Author : Satish Dua

Published on Apr 14, 2021 Updated 0 Hours ago

एक मज़बूत और सक्षम सेना किसी भी दुश्मन को अपनी तरफ़ बुरी नज़र उठाने से रोकेगी. महामारी के समय में सीमा पर स्थिति का इस्तेमाल मुश्किलों से पार पाने में हो.

रक्षा बज़ट से जुड़ी कुछ बड़ी बातें

साल 2020 पूरी दुनिया के लिए कई मायनों में मुश्किल रहा. कोविड-19 संकट की वजह से अभूतपूर्व स्तर पर लोगों की मौत हुई, उनकी मुसीबत बढ़ी. आर्थिक गिरावट तो इतनी ज़्यादा हुई कि दुनिया को इससे उबरने में लंबा वक़्त लग जाएगा. भारत के लिए तो इसके अलावा भी एक चुनौती थी. जिस वक़्त दुनिया महामारी का मुक़ाबला कर रही थी, उस वक़्त लद्दाख में चीन ने ज़बरन सीमा को बदलने की कोशिश की. इसकी वजह से वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) के दोनों तरफ़ बड़े पैमाने पर सेना और हथियार की तैनाती हुई, ऐसे निर्माण किए गए जो लंबे वक़्त तक टिकेंगे. 

इस पृष्ठभूमि में इस बात की व्यापक उम्मीद की जा रही थी कि इस साल रक्षा बज़ट में बढ़ोतरी होगी. रक्षा बज़ट को 4.71 लाख करोड़ रुपये से बढ़ाकर 4.78 लाख करोड़ कर दिया गया. ये कोई बहुत ज़्यादा बढ़ोतरी नहीं थी, सिर्फ़ इतनी थी कि महंगाई के असर को बेअसर किया जा सके. 

सरकार के लिए निष्पक्ष भाव से सोचें तो कोविड-19 की वजह से अलग-अलग सेक्टर में ख़र्च बढ़ाने की मांग थी. स्वास्थ्य देखभाल पर ज़्यादा ख़र्च करना ज़रूरी था. ऐसे में ये समझना बेहद आसान है कि सरकार रक्षा ज़रूरतों के लिए और ज़्यादा आवंटन करने में क्यों सफल नहीं हो सकी. 

दूसरी तरफ़ खेद की बात है कि हमारी सुरक्षा चुनौतियों और सुरक्षा ज़रूरतों को भी हम यूं ही नहीं टाल सकते. ऐसे में हम क्या कर सकते हैं? क्या हम संख्या से आगे बढ़कर देख सकते हैं और कुछ इनोवेटिव समाधान ढूंढ़ सकते हैं? सबसे पहले, क्या जितना आवंटन किया गया है, उसमें कोई तरीक़ा है जिसके ज़रिए आधुनिकीकरण की ज़रूरतों, सेना के रोज़ाना ख़र्चे और पेंशन बिल के बीच संतुलन स्थापित किया जा सकता है? ऐसा हो जाए तो इसे स्मार्ट तरीक़े से ख़र्च करना कहेंगे और इससे मौजूदा संसाधनों का आदर्श इस्तेमाल होगा. दूसरा, चूंकि फंड सीमित है इसलिए सभी इनोवेटिव और लीक से हटकर समाधान की कोशिश ज़रूर करनी चाहिए ताकि मौजूदा संसाधनों का पूरा इस्तेमाल हो सके. और अंत में, क्या इस बात की कोई संभावना है कि अभी तक जिन कोशिशों को नहीं आज़माया गया है, उनके ज़रिए और ज़्यादा फंड इकट्ठा किया जा सके? 

कुछ ख़ास श्रेणियों में सेवानिवृत्ति की उम्र बढ़ाने का प्रस्ताव विचाराधीन है. ऐसा करने से राजस्व बज़ट में कमी आएगी.

रक्षा बज़ट में पूंजीगत बज़ट और राजस्व बज़ट शामिल होते हैं. एक अजीब समस्या है अनुपात से ज़्यादा राजस्व का हिस्सा क्योंकि सशस्त्र सेना में श्रम शक्ति काफ़ी ज़्यादा होती है. उदाहरण के लिए, पिछले साल पेंशन पर 1.33 लाख करोड़ रुपये ख़र्च हुए जो 4.71 लाख करोड़ रुपये के बज़ट में राजस्व के बाद सबसे बड़ा हिस्सा था. थल सेना के बज़ट का 82 प्रतिशत हिस्सा उसका राजस्व मद है. राजस्व मद के भीतर पेंशन बिल सबसे बड़ा हिस्सा है. 

पूंजीगत बज़ट उसे कहते हैं जो आधुनिकीकरण में काम आता है. पूंजीगत व्यय को बढ़ाने और किसी तरह राजस्व ख़र्च को घटाने की सख़्त ज़रूरत है. इस साल के रक्षा आवंटन में पूंजीगत व्यय को 1,13,734 करोड़ (पिछले साल का आंकड़ा) से बढ़ाकर 1,35,060 करोड़ कर दिया गया है. इस तरह पूंजीगत व्यय में 19 प्रतिशत की बढ़ोतरी की गई है और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के अपने शब्दों में “15 वर्षों में रक्षा के लिए पूंजीगत व्यय में सबसे ज़्यादा बढ़ोतरी की गई है.” दूसरी तरफ़ रक्षा पेंशन के लिए आवंटन को पिछले साल के 1.33 लाख करोड़ से घटाकर 1.13 लाख करोड़ कर दिया गया है. बाद में इसे संशोधित अनुमान में 1.25 लाख करोड़ किया गया. इसे स्मार्ट तरीक़े से ख़र्च कहा जा सकता है. 

कुछ इनोवेटिव समाधान

हम उन कुछ तौर-तरीक़ों की चर्चा करते हैं जो रक्षा बज़ट के राजस्व ख़र्च को कम कर सकते हैं और सीमित बज़ट में हमें पूरा फ़ायदा दे सकते हैं. पहला, कुछ ख़ास श्रेणियों में सेवानिवृत्ति की उम्र बढ़ाने का प्रस्ताव विचाराधीन है. ऐसा करने से राजस्व बज़ट में कमी आएगी. दूसरा, सशस्त्र सेना की एक लंबी मांग रही है कि चूंकि सैनिक जल्दी रिटायर होते हैं, इसलिए इस बात में दम है कि बाद में सैनिकों को दूसरे विभागों या बलों में शामिल किया जाए. ऐसा होने से पेंशन बिल का बोझ कम होगा और सरकारी विभागों या बलों को अनुशासित और प्रशिक्षित श्रम शक्ति मिलेगी. सशस्त्र बलों के आकार में कटौती एक साहसिक क़दम है जिसे रक्षा बलों ने ख़ुद उठाया है. थलसेना, नौसेना और वायुसेना के मौजूदा एकीकरण और दूसरी संरचना की स्थापना को देखते हुए इसमें कुछ समय लग सकता है लेकिन आख़िरकार इससे पूंजीगत ख़र्च में कमी आएगी. 

तीसरा, सेना में अधिकारियों को शामिल करने की एक नई योजना टूर ऑफ ड्यूटी विचाराधीन है. इससे न सिर्फ़ वेतन और पेंशन के मद में राजस्व ख़र्चे में कमी आएगी बल्कि छोटी समयावधि के लिए बेहतर प्रतिभावान लोग भी सेना में शामिल होने के लिए आकर्षित होंगे. इससे साइबर और स्पेस जैसे उच्च तकनीक वाले क्षेत्रों में विशेषज्ञों को शामिल करने में भी मदद मिलेगी. इन उच्च तकनीक वाले क्षेत्रों में नई सोच वाले लोगों का  आना अच्छा विचार है. अंत में, इस बात में दम है कि हर चीज़ को ख़रीदने के बदले स्मार्ट वित्तीय मॉडल अपनाने पर विचार किया जाना चाहिए. उदाहरण के लिए, ऑपरेशन के क्षेत्रों को छोड़कर दूसरे क्षेत्रों में परिवहन की ज़रूरतों को आउटसोर्स किया जा सकता है. इसी तरह अन्य लॉजिस्टिक सेवाओं को भी आउटसोर्स किया जा सकता है. पिछले दिनों रक्षा के क्षेत्र में ख़रीद के बदले लीज़िंग को मंज़ूरी सही दिशा में उठाया गया क़दम है. 

ज़्यादा फंड कैसे इकट्ठा हो

परमाणु हथियार से संपन्न पड़ोसियों के साथ दो सक्रिय सीमा होने की वजह से भारतीय सशस्त्र बलों के आधुनिकीकरण की सख़्त ज़रूरत है. इसे छोड़ा नहीं जा सकता. भारत जैसे विकासशील देश में पूंजीगत बज़ट हमेशा महंगा रहेगा. क्या हम फंड इकट्ठा करने और लाइन ऑफ क्रेडिट की व्यावहारिकरता की तलाश कर सकते हैं? एक साहसी क़दम ये हो सकता है कि कुछ चुनिंदा ज़मीन के खंडों से पैसा कमाया जाए. किसी के विरोध करने से पहले एक स्पष्टीकरण को पढ़ लिया जाए. थल सेना के नियंत्रण और इस्तेमाल में जो ज़मीन है और जिन पर छावनी और सैन्य स्टेशन बसे हुए हैं, उनमें किसी बदलाव की सलाह नहीं दी जा रही है. रक्षा संपदा के तहत ज़मीन हैं जो छावनी से दूर हैं जिनमें चारागाह शामिल हैं. इनमें से कुछ ज़मीनों पर अतिक्रमण भी है. समझदारी से इनका चयन करें तो सशस्त्र बलों को आधुनिक बनाने के अभियान में इनसे मदद मिल सकती है. अगर हम इंतज़ार करने के बदले तुरंत सशस्त्र बलों का आधुनिकीकरण करें तो इससे न सिर्फ़ लड़ाई की हमारी क्षमता में बढ़ोतरी होगी बल्कि ऐसा करने से हमारे सैनिकों की क़ीमती जान भी बचेगी. एक अंतिम सलाह जो वित्त मंत्री के विनिवेश पर ज़ोर के मुताबिक़ है. रक्षा क्षेत्र के सार्वजनिक उपक्रम और आयुध कारखाने निजी क्षेत्र के साथ संयुक्त उपक्रम के ज़रिए न सिर्फ़ विशाल राजस्व इकट्ठा कर सकते हैं बल्कि अपना उत्पादन भी बढ़ा सकते हैं. 

अगर हम इंतज़ार करने के बदले तुरंत सशस्त्र बलों का आधुनिकीकरण करें तो इससे न सिर्फ़ लड़ाई की हमारी क्षमता में बढ़ोतरी होगी बल्कि ऐसा करने से हमारे सैनिकों की क़ीमती जान भी बचेगी.

साफ़ तौर पर इन सलाहों के ज़रिए आगे बढ़ने की संभावना तलाश करने के लिए विशेषज्ञों की ज़रूरत होगी. लेकिन अभी तक जिस रफ़्तार से हम आधुनिकीकरण कर रहे थे, उसको जारी रखना एक विकल्प नहीं है. इससे हमें अपने जोखिम पर सीखना चाहिए. एक मज़बूत और सक्षम सेना किसी भी दुश्मन को अपनी तरफ़ बुरी नज़र उठाने से रोकेगी. महामारी के समय में सीमा पर स्थिति का इस्तेमाल मुश्किलों से पार पाने में हो.

इस मामले में दिल को ख़ुश करने वाले कुछ संकेत हैं. सरकार ने आधुनिकीकरण के लिए कभी रद्द न होने वाले पूंजीगत व्यय को लेकर वित्त आयोग की सिफ़ारिश को मंज़ूर कर लिया है. वित्त आयोग ने 2021-26 के लिए 2.38 लाख करोड़ के कभी न रद्द होने वाले रक्षा आधुनिकीकरण फंड की भी सिफ़ारिश की है. आधुनिकीकरण के लिए एक सुनिश्चित प्रतिबद्धता सुनियोजित और मज़बूत आधुनिकीकरण की योजना में सशस्त्र बलों की काफ़ी मदद करेगी. 

वित्त मंत्री ने संसद में अपने भाषण में रक्षा बज़ट का ज़िक्र नहीं किया बल्कि सिर्फ़ अनौपचारिक ढंग से आवंटन की जानकारी दी. एक आशावादी होने के नाते मैं इस तथ्य को उस संकेत की तरह देखता हूं कि देश की सुरक्षा के लिए कोई भी क़ीमत नहीं है. जिस चीज़ की ज़रूरत होगी, उसे मुहैया कराया जाएगा, जैसा कि सरकार समय-समय पर कहती भी है. 

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