Published on Oct 20, 2022 Updated 0 Hours ago

2018 में प्रदान, DEF और टाटा ट्रस्ट की परियोजनाएं समाप्त हो गईं. इसकी वजह से सोमती को मजबूर होकर उद्यमी की अपनी क्षमताओं को अपनाना पड़ा और ख़ुद CIRC चलाने के लिए सीखना पड़ा.

सोमती गाथिया: टेक्नोलॉजी के सहारे बदलाव का नेतृत्व करने को तैयार!

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मध्य प्रदेश के भोपाल जिले में नर्मदा नदी के किनारे रायपुर नाम का एक गांव बसा है. 1,855 लोगों की आबादी वाले इस आकर्षक गांव में 38 साल की सोमती गठिया का भी घर है. 1[i] लंबी, घुमावदार नदी की पृष्ठभूमि में सोमती दिन भर काम में व्यस्त रहती है जिन्हें उसे शाम होने से पहले पूरा करना पड़ता है. सोमती एक सामुदायिक सूचना एवं संसाधन केंद्र (CIRC) चलाती है जहां वो और उसकी सहकर्मी लक्ष्मी दीदी आस-पास के लोगों को कई तरह की डिजिटल सेवाएं प्रदान कर मदद करती हैं. इनमें सरकारी नौकरी के आवेदन का ऑनलाइन फॉर्म भरना, सामाजिक सुरक्षा योजनाओं के लिए ऑनलाइन आवेदन करना, प्रिंटआउट लेना, फ़ोटोग्राफ खिंचवाना और ईमेल आईडी बनाना शामिल हैं.

2010 में सोमती के एक पड़ोसी ने उससे प्रोफेशनल असिस्टेंस फॉर डेवलपमेंट एक्शन (प्रदान) नाम के एक NGO के द्वारा आयोजित बैठक में शामिल होने की ज़िद की. प्रदान रायपुर में सरकारी अधिकारों और पात्रताओं को लेकर जागरुकता पैदा करने के कार्यक्रम में शामिल था. प्रदान की बैठक में शामिल होने के बाद सोमती ने फ़ैसला लिया कि वो प्रदान के लिए कम्युनिटी रिसोर्स पर्सन (CRP) बनेगी.

रायपुर गांव में मुख्य रूप से गोंड आदिवासी रहते हैं जो कि प्राथमिक तौर पर खेती और मज़दूरी का काम करते हैं. CIRC की स्थापना से पहले गांव के लोगों को किसी भी तरह की सरकारी योजना और नौकरी के आवेदन के लिए दस्तावेज़ तैयार करने नज़दीक के शहर शाहपुर जाना पड़ता था जो कि क़रीब 15 किलोमीटर दूर है. लेकिन शाहपुर जाकर काम कराने की वजह से उन्हें अपनी एक दिन की मज़दूरी गंवानी पड़ती थी. सोमती और उसके पति लाखन भी सरकार की महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी योजना a[1] के तहत प्रदान की जाने वाली मज़दूरी के काम में लगे हुए थे लेकिन इस काम से उन्हें अच्छी आमदनी नहीं होती थी.

2010 में सोमती के एक पड़ोसी ने उससे प्रोफेशनल असिस्टेंस फॉर डेवलपमेंट एक्शन (प्रदान) नाम के एक NGO के द्वारा आयोजित बैठक में शामिल होने की ज़िद की. प्रदान रायपुर में सरकारी अधिकारों और पात्रताओं को लेकर जागरुकता पैदा करने के कार्यक्रम में शामिल था. प्रदान की बैठक में शामिल होने के बाद सोमती ने फ़ैसला लिया कि वो प्रदान के लिए कम्युनिटी रिसोर्स पर्सन (CRP) बनेगी. इस भूमिका में सोमती का काम सरकार की कल्याण योजनाओं के बारे में जानकारी हासिल कर समाज के लोगों को उन योजनाओं तक पहुंचने के रास्तों के बारे में शिक्षित करना और उन्हें ट्रेनिंग देना था. सोमती पूरी पढ़ाई नहीं कर पाने में अपनी नाकामी को याद करते हुए कहती है, “हमेशा सीखते रहना महत्वपूर्ण है. शिक्षा एकमात्र हुनर है जो आपसे कभी भी कोई छीन नहीं सकता है.” पांच बेटियों और चार बेटों के साथ सोमती के पिता लड़कियों के लिए शिक्षा को ज़रूरी नहीं मानते थे. यही वजह है कि उन्होंने आठवीं क्लास के बाद सोमती को आगे पढ़ने की इजाज़त नहीं दी. 2001 में 17 साल की उम्र में सोमती की शादी हो गई और वो अपने ससुराल रायपुर चली गई.

स्रोत: राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे, 2019-212[ii]

प्रदान के साथ अपने काम-काज के अलावा सोमती एक स्वयं-सहायता समूह नर्मदा वुमेंस एसोसिएशन का भी हिस्सा थी.b[2] सोमती ने अपना पहला फीचर मोबाइल फ़ोन उस वक़्त ख़रीदा जब 2010 में उसने CRP के रूप में काम करना शुरू किया. इसकी वजह ये थी कि उसे क्षेत्र में दौरे के तहत आस-पास के गांव जाना पड़ता था और फ़ोन का इस्तेमाल करके वो आसानी से अपने दौरे को तय कर लेती थी. स्वयं-सहायता समूह के सदस्य के तौर पर प्रदान द्वारा आयोजित बैठकों में महिलाओं ने गांव के युवाओं को डिजिटल हुनर के बारे में शिक्षित करने की ज़रूरत पर चर्चा शुरू की ताकि वो अपनी स्कूली पढ़ाई पूरी करने के बाद एक अच्छा रोज़गार पा सकें.

2015 में प्रदान ने डिजिटल एम्पॉवरमेंट फाउंडेशन (DEF) और टाटा ट्रस्ट के साथ मिलकर रायपुर और उसके आस-पास के कुछ गांवों में कम्प्यूटर सेंटर की शुरुआत की. सोमती और कई अन्य CRP ने बुनियादी डिजिटल और तकनीकी साक्षरता, जिनमें लैपटॉप एवं कैमरा जैसी डिजिटल डिवाइस का इस्तेमाल, फाइल सेव करना और रिकॉर्ड की देख-रेख करना शामिल है, की पांच दिनों की ट्रेनिंग हासिल की.

इसके जवाब में 2015 में प्रदान ने डिजिटल एम्पॉवरमेंट फाउंडेशन (DEF) और टाटा ट्रस्ट के साथ मिलकर रायपुर और उसके आस-पास के कुछ गांवों में कम्प्यूटर सेंटर की शुरुआत की. सोमती और कई अन्य CRP ने बुनियादी डिजिटल और तकनीकी साक्षरता, जिनमें लैपटॉप एवं कैमरा जैसी डिजिटल डिवाइस का इस्तेमाल, फाइल सेव करना और रिकॉर्ड की देख-रेख करना शामिल है, की पांच दिनों की ट्रेनिंग हासिल की. सोमती याद करते हुए कहती है, “जब मैंने पहली बार लैपटॉप को छुआ तो घबराहट में मेरे हाथ कांप रहे थे. मुझे इस बात का डर लग रहा था कि अगर मैंने कोई बटन दबा दिया और इसकी वजह से कुछ ग़लत हो गया तो क्या होगा.”

प्रदान पहले से ही सरकारी सेवाओं पर कार्यक्रम आयोजित कर रहा था और उसने इन्हें डिजिटल साक्षरता परियोजना में शामिल कर दिया. DEF और टाटा ट्रस्ट के साथ मिलकर प्रदान ने चार गांवों (रायपुर, पावरझंडा, जमनगरी और मुढ़ा) में CIRC की स्थापना की ताकि मज़बूत इंटरनेट कनेक्टिविटी के साथ ऐसी सेवाएं और कार्यक्रम सेंटर में मुहैया कराया जा सके. सोमती कहती है, “अब सरकारी सेवाएं ऑनलाइन उपलब्ध थीं, इसलिए हमें भी टैबलेट दिया गया ताकि उसका इस्तेमाल कर हम लोगों को योजनाओं के बारे में जागरुक कर सकें और उन्हें आवेदन दायर करने में मदद कर सकें.” CRP को इस बात की ट्रेनिंग भी दी गई कि इन डिवाइस का इस्तेमाल कैसे करें जिससे कि दूर-दराज़ में मौजूद ऐसे लोगों तक भी पहुंच सकें जो CIRC तक आने में सक्षम नहीं हैं.

हर CIRC में एक लैपटॉप, प्रिंटर, बायोमेट्रिक डिवाइस और एक डिजिटल कैमरा है जो सरकारी योजनाओं तक पहुंचने में लोगों के लिए ज़रूरी हैं. वीडियो कॉलिंग, पैन कार्ड और सरकारी कल्याण योजनाओं के लिए आवेदन जैसी ऑनलाइन सेवाओं के अलावा इन सेंटर को चलाने वाली सोमती और दूसरी महिलाएं अब सरकारी फॉर्म के उस हिस्से को समझने के लिए गूगल की अनुवाद सेवा का भी इस्तेमाल कर रही हैं जो कि सिर्फ़ अंग्रेज़ी में हैं.

DEF ने तीन वर्षों के दौरान हर महीने दो बार 36 महिलाओं के लिए डिजिटल साक्षरता का सत्र भी चलाया जहां उन्हें ये सिखाया गया कि उपकरण को कैसे चलाया जाता है और ऑनलाइन सेवाओं तक कैसे पहुंचते हैं. सोमती कहती है, “DEF में ट्रेनिंग देने वाले लोग हमारे साथ बहुत धैर्य से व्यवहार करते थे जबकि हम में से कुछ को सबसे आसान काम सीखने में भी कई बार कोशिश करनी पड़ती थी.”

इसके बाद अगला काम समाज की महिलाओं और युवकों को इन हुनर से लैस करना था. सोमती ने 200 स्कूली बच्चों और दूसरे युवाओं के लिए क्लास आयोजित की. पहले इन बच्चों को कम्प्यूटर सीखने के लिए नज़दीक के शहर तक जाना पड़ता था. महिलाओं के साथ आयोजित सत्र में सोमती ने बुनियादी हुनर सिखाया जैसे कि कम्प्यूटर को ऑन और ऑफ करना, MS पेंट का इस्तेमाल करना, MS वर्ड एवं MS पेंट में हिंदी में अपना नाम लिखना. इसके साथ-साथ ऑनलाइन ख़रीदारी एवं सोशल मीडिया (जिसमें फ़ेसबुक एवं वीडियो कॉलिंग के लिए स्काइप शामिल हैं) का इस्तेमाल करना भी बताया. ध्यान देने की बात ये है कि DEF ने सोशल मीडिया के इस्तेमाल में ट्रेनिंग लेने वाले सभी बच्चों को सर्टिफिकेट भी प्रदान किया.

सोमती CRP के तौर पर अपने काम-काज से गुज़र-बसर करती है और रायपुर CIRC से भी उसे कुछ आमदनी होती है. CIRC हर सेवा के लिए एक मामूली फीस लेती है जो हर महीने लगभग 6,000 रुपये हो जाते हैं. सेंटर पर होने वाला खर्च चुकाने के बाद जो भी रक़म बचती है, उसे सोमती और लक्ष्मी अपनी मासिक आमदनी के तौर पर आपस में बांट लेती हैं. 2020 में सोमती ने CIRC से होने वाली आमदनी से अपना पहला स्मार्टफ़ोन ख़रीदा.

सोमती कहती है, “मेरे समाज के लोगों के बीच इन नये हुनर को सीखने के बारे में काफ़ी उत्सुकता है. पहले मुझे जाकर उन्हें किसी काम को करने के डिजिटल तरीक़े के बारे में समझाना पड़ता था. लेकिन अब वो ख़ुद मेरे पास ये समझने के लिए आते हैं कि कैसे अपना स्मार्टफ़ोन इस्तेमाल करें और इससे वो क्या-क्या दूसरे काम कर सकते हैं.”

सोमती CRP के तौर पर अपने काम-काज से गुज़र-बसर करती है और रायपुर CIRC से भी उसे कुछ आमदनी होती है. CIRC हर सेवा के लिए एक मामूली फीस लेती है जो हर महीने लगभग 6,000 रुपये हो जाते हैं. सेंटर पर होने वाला खर्च चुकाने के बाद जो भी रक़म बचती है, उसे सोमती और लक्ष्मी अपनी मासिक आमदनी के तौर पर आपस में बांट लेती हैं. 2020 में सोमती ने CIRC से होने वाली आमदनी से अपना पहला स्मार्टफ़ोन ख़रीदा.

लेकिन सोमती का ये सफ़र चुनौतियों के बिना नहीं था. CIRC को डिजिटल भारत कार्यक्रम के तहत भारत सरकार के कॉमन सर्विस सेंटर (CSC) 2.0 योजना के साथ जोड़ना था. CSC उपयोगी सेवाओं जैसे कि ग्रामीण भारत में सामाजिक कल्याण योजनाओं, स्वास्थ्य देखभाल और शैक्षणिक एवं वित्तीय सेवाओं के लिए पहुंच का बिंदु है.3[iii] इस कार्यक्रम के साथ जुड़ने और ऐसी सेवाओं को देने के लिए CIRC चलाने वाले लोगों को एक CSC आईडी हासिल करने की ज़रूरत है. CSC योजना के तहत महिलाओं को इस बात के लिए प्रोत्साहित किया जाता है कि वो CIRC चलाने के लिए ग्रामीण स्तर की उद्यमी (VLE) बनें लेकिन जिन्होंने 10वीं क्लास तक पढ़ाई की है वही VLE बन सकती हैं.

सोमती कहती है, “शिक्षा की इस शर्त के बारे में जानकर मैं उदास हो गई क्योंकि मैं अपनी पढ़ाई पूरी नहीं कर सकी थी. वैसे तो मैं सब कुछ जानती हूं और अब नई चीज़ों के बारे में भी ख़ुद सीख रही हूं लेकिन इसके बावजूद मैं CSC आईडी नही रख सकती हूं.” लक्ष्मी CSE आईडी हासिल करने में कामयाब रही और सोमती सेंटर चलाने में उसकी मदद कर रही है.

2018 में प्रदान, DEF और टाटा ट्रस्ट की परियोजनाएं समाप्त हो गईं. इसकी वजह से सोमती को मजबूर होकर उद्यमी की अपनी क्षमताओं को अपनाना पड़ा और ख़ुद CIRC चलाने के लिए सीखना पड़ा. सोमती कहती है, “मैं घबराई लेकिन मुझे पूरा भरोसा था क्योंकि उन्होंने हमें हुनर सिखाया था जो कि समय और अभ्यास के साथ और बढ़ता है.”

जल्द ही सोमती रायपुर की दूसरी महिलाओं को आजीविका के लिए प्रोत्साहित करने और उन्हें उनके अधिकारों के बारे में जागरुक करने के लिए निकल पड़ी. सोमती कहती है, “मेरे आस-पास के लोगों में ये एक सामान्य विचार है कि महिलाएं सिर्फ़ घर के काम-काज करने के लिए होती हैं. मैं ज़्यादा-से-ज़्यादा महिलाओं को स्वतंत्र और हुनरमंद बनने के लिए ट्रेनिंग देकर इस विचार को तोड़ना चाहती हूं.”

सोमती एक घटना को याद करती है जब दो बुजुर्ग विधवा महिलाओं ने पेंशन हासिल करने में मदद के लिए सोमती से संपर्क साधा था क्योंकि उनके आवेदन को बार-बार अज्ञात कारणों से खारिज कर दिया गया था. राज्य सरकार के समग्र पोर्टल c[3] पर पड़ताल के बाद सोमती को पता चला कि उनके पेंशन के आवेदन को इसलिए खारिज किया जा रहा है क्योंकि उन्होंने नाम और उम्र को लेकर ग़लत जानकारी दी थी. सोमती कहती है, “मैंने वेबसाइट पर संशोधन फॉर्म दायर किया, उन महिलाओं के रिकॉर्ड को ठीक कराने के लिए पंचायतd[4] लेकर गई.” इसके कुछ ही समय बाद दोनों महिलाओं को अपनी पेंशन मिलने लगी.

तकनीक ने सोमती को अकुशल मज़दूर वाले दिनों से आगे बढ़ने में मदद की. अब वो अपने समाज के लोगों को कई तरह की सेवाएं प्रदान कर रही है. CIRC चलाने के अलावा सोमती अब लोगों को इस बात के बारे में भी बता रही है कि वो अपनी बेटियों को मोबाइल और लैपटॉप दें और उन्हें उनकी पढ़ाई पूरी करने दें. सोमती कहती है, “तकनीक महिलाओं को पुरुषों के बराबर होने में मदद कर सकती है, उनका विश्वास बढ़ा सकती है और तकनीक की मदद से वो अपनी आजीविका कमा सकती हैं.” ये कहते हुए सोमती उम्मीद जताती है कि तकनीक आगे बढ़ने के साथ वो भी सीखना जारी रखेगी.

 

ज़रूरी सबक़

  • डिजिटल साक्षरता के ट्रेनिंग मॉड्यूल को उद्यमिता में क्षमता निर्माण की ट्रेनिंग के साथ जोड़ना चाहिए ताकि ग्रामीण महिलाओं के लिए आजीविका के बेहतर तरीक़ें तैयार हो सकें.
  • डिजिटल साक्षरता मॉड्यूल को सोशल नेटवर्क में महिलाओं की ट्रेनिंग पर भी विचार करना चाहिए ताकि वो इस हुनर का इस्तेमाल व्यवसाय के अवसरों की पहचान और छानबीन में कर सकें.
  • डिजिटल और सोशल नेटवर्किंग के कौशल में सर्टिफिकेट कोर्स महिलाओं (ख़ास तौर पर उन महिलाओं को जिन्होंने औपचारिक शिक्षा पूरी नहीं की है) को वो रोज़गार हासिल करने में मदद कर सकते हैं जिनमें बुनियादी डिजिटल हुनर की ज़रूरत होती है.

[1]a The scheme guarantees 100 days of paid work for unskilled manual labour in a financial year.

[2]b Self Help Groups are a community of 12-25 rural women who become financial intermediaries where each member save a certain amount of small money and lends it to the members in need. The Reserve Bank of India ensures that banks provide loans to them for smaller interest rates, without any collateral guarantees.

[3]c Samagra Portal is state government’s digital register of their citizen, with information that include name, father’s name, caste, occupation, education, marital status, financial status, beneficiaries of the scheme, savings account number, BPL, disability, among others.

[4]d Village-level governing bodies.

NOTES

[i]1 Census of India, 2011: https://censusindia.gov.in/census.website/data/census-tables

[ii]2 National Family Health Survey (NFHS-5), 2019–21, International Institute for Population Sciences (IIPS), Volume 1, March 2022, http://rchiips.org/nfhs/NFHS-5Reports/NFHS-5_INDIA_REPORT.pdf

[iii] 3 Ministry of Electronics and Information Technology, Government of India, “Welcome to Common Service Centres”

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Contributor

Antara Sengupta

Antara Sengupta

Antara Sengupta is an Erasmus+ scholar pursuing an International Masters in Education Policies for Global Development. She is a former Research Fellow at ORF Mumbai.

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