-
CENTRES
Progammes & Centres
Location
अच्छी ख़बर ये है कि लद्दाख का मौजूदा संकट पहले के गतिरोधों से कुछ हद तक मिलता-जुलता है जिनका शांतिपूर्ण समाधान हो गया था. बुरी ख़बर ये है कि दोनों देश कुछ महत्वपूर्ण और चिंताजनक मामलों में भी अलग राय रखते हैं. इस बात के काफ़ी संकेत मिल रहे हैं कि LAC नये और ज़्यादा उथल-पुथल के अध्याय में प्रवेश कर रहा है.
ये दो पार्ट की सीरीज़ का पहला पार्ट है.
चीन-भारत सरहद एक बार फिर सुलग रही है. डोकलाम पहाड़ी पर चीन और भारत की सेना के अभूतपूर्व गतिरोध के दो साल के भीतर 2,167 मील लंबी विवादित सीमा के कई मोड़ पर इस साल मई में तनावपूर्ण हालात बन गए. एक-दूसरे को घूंसे मारे गए, ख़ून बहा, वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) को पार किया गया, सरहद पर तोप और भारी उपकरण तैनात किए गए. फिर जून की शुरुआत में उम्मीद की एक किरण नज़र आई: वरिष्ठ सैन्य कमांडरों के बीच 6 जून को बातचीत से लगा कि गतिरोध की कई जगहों पर तनाव कम करने की प्रक्रिया शुरू हो गई है. हालांकि, पैंगॉन्ग झील में भारत और चीन के सैनिकों के बीच झगड़ा बरकरार रहा. अगर पहले की तरह इस बार भी सीमा पर संकट का शांतिपूर्ण समाधान होता है तब भी LAC पर ये रुझान बताता है कि विवादित सरहद ज़्यादा विस्फोटक होता जा रहा है.
पिछले दशक के दौरान चीन चार क्षेत्रीय मोर्चों पर चालबाज़ी की रणनीति अपना रहा है: पूर्वी चीन सागर, दक्षिणी चीन सागर, चीन-भारत सीमा और नौ-परिवहन की स्वतंत्रता पर अमेरिका की तरफ़. इन मोर्चों के मामले में चीन-भारत सरहद एक समय सबसे ज़्यादा स्थिर मानी जाती थी. लेकिन अब वो सोच बदलने का वक़्त आ गया है.
दो अलग-अलग जगहों पर चीन और भारत के गश्ती दलों के बीच मुक्के से एक-दूसरे पर प्रहार की ख़बरों के साथ चीन-भारत सीमा पर ताज़ा घटनाक्रम का आरंभ मई की शुरुआत में हुआ. पहली घटना पाँच मई को लद्दाख में पैंगॉन्ग झील के किनारे हुई. पैगॉन्ग झील सीमा उन दो दर्जन विस्फोटक जगहों में से एक है जहां दोनों देशों के बीच आपस में तय LAC नहीं है. मुक्के से प्रहार की दूसरी घटना जो ज़्यादा अजीब थी, 9 मई को उस जगह हुई जहां भारतीय राज्य सिक्किम और तिब्बत आपस में मिलते हैं. ध्यान देने की बात ये है कि सीमा के इस टुकड़े का विवाद 2000 के मध्य में साफ़ तौर पर सुलझ चुका था और भारत इसे विवादित नहीं मानता था. हालांकि, उसी वक़्त से पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) के सिक्किम में घुसपैठ की ख़बरें समय-समय पर आती रही है.
मई के मध्य तक ऐसी ख़बरें आईं कि जब पैंगॉन्ग झील में झगड़ा चल रहा था, उसी वक़्त चीन और भारत के सैनिक लद्दाख में चार और अलग-अलग जगहों पर गतिरोध में शामिल थे और वहां सैनिकों को बढ़ाया जा रहा था. इन जगहों में गलवान नदी, हॉट स्प्रिंग और गोगरा इलाक़ा शामिल थे. महीने के आख़िर तक पैंगॉन्ग झील पर चीन और भारत के सैनिकों के बीच हिंसक झड़प के वीडियो सामने आए. भारतीय मीडिया में अटकलें शुरू हो गईं कि चीन ने 10,000 सैनिकों के साथ LAC को पार किया है.
चीन और भारत के अधिकारियों ने शुरुआत में LAC पर गतिरोध को लेकर काफ़ी कम जानकारी दी. मई के मध्य में चीन ने भारत के ख़िलाफ़ “घुसपैठ” और LAC के नज़दीक इन्फ्रास्ट्रक्चर का “गैर-क़ानूनी” काम करने का आरोप लगाया. भारत के विदेश मंत्रालय ने इस बात पर ज़ोर दिया कि: “सभी भारतीय गतिविधियां पूरी तरह से LAC के भारतीय पक्ष में हैं. वास्तव में चीन ने ऐसी गतिविधियां की हैं जिनकी वजह से भारत का सामान्य निगरानी का काम बाधित हो रहा है.”
चीन का वरिष्ठ नेतृत्व इस मामले को भाषणों में उठाने से परहेज करता रहा. भारत में उसके राजदूत ने इस बात पर ज़ोर दिया कि दोनों देश “एक-दूसरे के लिए ख़तरा नहीं हैं” और “बातचीत के ज़रिए एक-दूसरे को समझें.” चीन के विदेश मंत्रालय ने दावा किया कि “कुल मिलाकर हालात स्थिर और नियंत्रण में हैं.” सिर्फ़ चीन के अति राष्ट्रवादी मुखपत्र ग्लोबल टाइम्स ने उम्मीदों के मुताबिक भारत पर निशाना साधा. उसने ज़ोर देकर कहा कि भारत ने पहले से इस संकट की तैयारी की थी, सीमा पर गतिरोध के लिए अमेरिका पर आरोप लगाया, धमकी दी कि भारत का इस्तेमाल “तोप की राख” की तरह ना करे और भारत से अनुरोध किया कि “वो चीन को लेकर अपनी समझ और रिसर्च को बढ़ाए” और “सही और रणनीतिक फ़ैसला ले.”
जून की शुरुआत में भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने सार्वजनिक रूप से बयान दिया जिससे लगा कि एक तरफ़ तो भारत कूटनीतिक समाधान पर ज़ोर दे रहा है, दूसरी तरफ़ चेतावनी भी दे रहा है: “भारत किसी के आत्मसम्मान को चोट नहीं पहुंचाना चाहता, ना ही वो किसी भी हालात में भारत के आत्मसम्मान को नुक़सान पहुंचाना बर्दाश्त करेगा. अगर कोई हमारा सिर झुकाने की कोशिश करेगा तो इस बात में कोई संदेह नहीं है कि हम उचित जवाब देंगे.”
तो धरती पर हिमालय में क्या हो रहा है? जैसा कि अक्सर LAC पर होता रहा है, घटनाओं को लेकर हमारी समझ अधूरी जानकारी, परस्पर-विरोधी बयानों और अज्ञात की अटकलबाज़ियों के कारण पूरी तरह साफ़ नहीं है. इसके बावज़ूद नई रिपोर्ट के जारी होने, सरकारों के बयानों, सैटेलाइट तस्वीरों और जानकारी से भरे विश्लेषण की वजह से लद्दाख में हाल की घटनाओं को लेकर बेहतर तस्वीर सामने आई है. हालांकि, ये अभी भी अधूरी है.
जैसा कि अक्सर LAC पर होता रहा है, घटनाओं को लेकर हमारी समझ अधूरी जानकारी, परस्पर-विरोधी बयानों और अज्ञात की अटकलबाज़ियों के कारण पूरी तरह साफ़ नहीं है
सबसे पहले, लगता है कि LAC के पास लद्दाख में गतिरोध के तीन बिंदुओं- गलवान नदी, गोगरा और हॉट स्प्रिंग पर बड़ी तादाद में और चिंता में डालने वाला सैनिकों का जमघट है. गोगरा के पास चीन के मोर्चे पर भारी-भरकम तोप तैनात की गई है. गलवान नदी के पास ऐसी विश्वसनीय ख़बर है कि मई में PLA ने LAC के पार सीमित इलाक़े में घुसपैठ की लेकिन या तो सैनिकों को वापस भेज दिया गया या वो ख़ुद अपनी मर्ज़ी से LAC के अपने इलाक़े में चले गए.
दूसरी ख़बरों से लगता है कि PLA ने LAC के पार कुछ जगहों पर अपना डेरा डाल दिया है लेकिन इन दावों की पुष्टि होना अभी बाक़ी है. भारत ने अपनी तरफ़ से LAC के पास मोर्चों पर सैनिकों, उपकरणों और सप्लाई में बढ़ोतरी की है. कश्मीर में नियंत्रण रेखा पर तैनात सैनिकों में से कुछ को LAC पर भेजा गया है. ख़बरों से पता चलता है कि दोनों तरफ़ से क़रीब-क़रीब 10 हज़ार सैनिक वहां तैनात किए गए हैं.
स्थानीय और डिवीज़न स्तर के सैन्य कमांडरों के बीच कई चरण की अधूरी बातचीत के बाद छह जून को दोनों पक्षों ने “दोस्ताना और सकारात्मक माहौल” में कोर कमांडर स्तर की बातचीत की. ख़बरों के मुताबिक़, राजनयिक बातचीत के साथ सैन्य बातचीत के कारण गलवान नदी, गोगरा और हॉट स्प्रिंग में धीरे-धीरे तनाव में कमी आई है. दोनों पक्ष LAC के पास अग्रिम मोर्चों से सैनिक हटाने पर सहमत हुए हैं. चीन के विदेश मंत्रालय ने इस बात पर ज़ोर दिया कि दोनों पक्ष “सकारात्मक सहमति पर पहुंचे हैं ताकि सीमा पर हालात सुधारने के लिए क़दम उठाए जा सकें.”
लद्दाख के दक्षिण में पैंगॉन्ग झील पर और ज़्यादा जटिल गतिरोध अभी भी जारी है. LAC के द्वारा दो टुकड़ों में बांटी जाने वाली झील के किनारे पर वर्षों से समस्या खड़ी हो रही थी. भारत का नियंत्रण झील के पश्चिमी एक-तिहाई हिस्से पर है जबकि चीन का नियंत्रण पूर्व में दो-तिहाई हिस्से पर है. भारत सरकार के आंकड़ों के मुताबिक़ 2015 से 2019 के बीच सीमा पर किसी और बिन्दु के मुक़ाबले पैंगॉन्ग झील में चीन ने सबसे ज़्यादा घुसपैठ की. LAC पर घुसपैठ की 1,000 से ज़्यादा कोशिशों में एक-चौथाई कोशिशें पैंगॉन्ग झील में घुसपैठ की हुई.
भारत सरकार के आंकड़ों के मुताबिक़ 2015 से 2019 के बीच सीमा पर किसी और बिन्दु के मुक़ाबले पैंगॉन्ग झील में चीन ने सबसे ज़्यादा घुसपैठ की. LAC पर घुसपैठ की 1,000 से ज़्यादा कोशिशों में एक-चौथाई कोशिशें पैंगॉन्ग झील में घुसपैठ की हुई.
2017 में चीन और भारत 500 मील दक्षिण-पूर्व में डोकलाम पहाड़ी पर अभूतपूर्व गतिरोध के तहत आमने-सामने आए. दोनों देशों के सैनिकों की असाधारण हिंसा का वीडियो सामने आया जिसमें नदी के किनारे सैनिक एक-दूसरे पर घूंसे मारे रहे थे. ख़बरों के मुताबिक़ इस साल मई में चीन ने विवादित झील की गश्त के लिए नाव की संख्या तीन गुना कर दी. पानी के रास्ते LAC पर घुसपैठ असामान्य नहीं है.
पैंगॉन्ग झील इतनी जटिल क्यों है? झील के उत्तरी किनारे पर कई भूगर्भीय उभार हैं- आठ पहाड़ी “फिंगर” हैं जो पानी की तरफ़ झुके हुए हैं. भारत का भौगोलिक दावा पूर्व से फिंगर 8 तक है. चीन का दावा पश्चिम से फिंगर 2 तक है. पैंगॉन्ग झील में समस्या एक-दूसरे के दावे पर विरोधी दावा नहीं है. ये वास्तविकता है कि चीन और भारत LAC की स्थिति को लेकर सहमत नहीं हैं. चीन दलील देता है कि फिंगर 4 पर LAC है. भारत के लिए LAC कई मील पूर्व फिंगर 8 पर है.
फिंगर-4 तक के भौगोलिक इलाक़े पर भारत का संप्रभु नियंत्रण है. उसके पश्चिमी किनारे पर भारत की सैन्य चौकी है. दिक़्क़त फिंगर 4 के पूर्व में है, दो कथित LAC के बीच. चीन नियमित तौर पर दशकों से इलाक़े में गश्त कर रहा है और 1999 में उसने एक सड़क भी बनाई थी. भारतीय सेना भी अपने दावे वाले इलाक़े फिंगर 8 तक गश्त करती है. हालांकि, भारतीय सैनिकों को पैदल गश्त करना पड़ता है क्योंकि फिंगर 4 के आसपास के मुश्किल भू-भाग में गाड़ियां नहीं चल सकतीं. फिंगर 4 और फिंगर 8 के बीच ये कथित LAC भारतीय सैनिकों और PLA के बीच बार-बार संघर्ष की वजह है. ख़बरों के मुताबिक़ 2013 से चीन की सेना भारतीय गश्त को “रोक” रही है.
पिछले महीने जब लद्दाख के उत्तर में तनाव बढ़ रहा था तो चीन के 200 सैनिकों की टुकड़ी फिंगर 4 की तरफ़ बढ़ गई. यहां तक कि एक बिंदु पर अस्थायी रूप से LAC को भी पार कर लिया. ऐसा लगता है कि यथास्थिति को बदलने के लिए PLA ने फिंगर 4 के नज़दीक एक ढांचा और उसके उत्तर में छोटी चौकियां बनाई हैं.
भारतीय मीडिया इस चर्चा में उलझा हुआ है कि क्या चीन ने “भारतीय ज़मीन” पर कब्ज़ा किया है. इसका उत्तर जटिल है: भारत ने इलाक़े पर दावा किया, गश्त भी की लेकिन फिंगर 4 और फिंगर 8 के बीच के इलाक़े पर कभी उसका संप्रभु नियंत्रण नहीं रहा. वहीं चीन ने बेहतर सड़क संपर्क और मज़बूत मौजूदगी दिखाई.
पिछले 40 साल से ज़्यादा समय में दुश्मनी की वजह से एक भी मौत नहीं हुई. विवादित इलाक़े में बार-बार के संघर्ष को देखते हुए ये बड़ी उपलब्धि है. भारत के मुताबिक़ हर साल LAC पर सैकड़ों बार चीन घुसपैठ करता है और गश्त के दौरान ज़्यादातर झड़पों का नतीजा अस्थायी, औपचारिक बातचीत के रूप में निकलता है.
भारतीय मीडिया इस चर्चा में उलझा हुआ है कि क्या चीन ने “भारतीय ज़मीन” पर कब्ज़ा किया है. इसका उत्तर जटिल है: भारत ने इलाक़े पर दावा किया, गश्त भी की लेकिन फिंगर 4 और फिंगर 8 के बीच के इलाक़े पर कभी उसका संप्रभु नियंत्रण नहीं रहा. वहीं चीन ने बेहतर सड़क संपर्क और मज़बूत मौजूदगी दिखाई.
लेकिन 2013 के बसंत में कुछ बदलाव हुआ. लद्दाख की देपसांग घाटी में चीन के दर्जनों सैनिकों ने LAC को पार करके कैंप बना लिया. उन्होंने सीमा के नज़दीक नये सैन्य बंकर और चौकी के निर्माण पर आपत्ति जताई. वो तीन हफ़्ते तक वहीं रहे जब तक कि बातचीत से उनकी वापसी को लेकर समझौता नहीं हुआ और ये वादा नहीं किया गया कि नई सैन्य चौकियों में से कम-से-कम कुछ को तोड़ दिया जाएगा. चीन की सेना 2011 समेत पहले भी कई बार कुछ समय के लिए LAC को पार करके अस्थायी निर्माण को तोड़ने के लिए आ चुकी थी लेकिन 2013 में उसका लंबे वक़्त तक रहना यथास्थिति से हटकर था.
इससे भी चिंता की बात ये है कि PLA ने यही तरीक़ा अगले साल राष्ट्रपति शी जिनपिंग के पहले भारत दौरे की पूर्व संध्या पर भी अपनाया था. सितंबर 2014 में चुमार के नज़दीक चीन के सैकड़ों सैनिकों ने LAC को पार किया जिसकी वजह से 16 दिन तक गतिरोध बना रहा. आख़िरकार दोनों पक्षों ने चीन के सैनिकों की वापसी के लिए एक समझौता किया. ख़बरों के मुताबिक़ इस समझौते में भारत की तरफ़ से वादा किया गया कि वो एक नवनिर्मित निगरानी चौकी और LAC के नज़दीक कई बंकर को तोड़ेगा और चीन LAC की तरफ़ एक सड़क का विस्तार रोकेगा. 2015 में लद्दाख में एक बार फिर कुछ समय के लिए गतिरोध बना जब भारतीय सैनिकों ने LAC के नज़दीक चीन को एक वॉच टावर बनाने से रोका.
अच्छी ख़बर ये है कि लद्दाख का मौजूदा संकट पहले के गतिरोधों से कुछ हद तक मिलता-जुलता है जिनका शांतिपूर्ण समाधान हो गया था. बुरी ख़बर ये है कि दोनों देश कुछ महत्वपूर्ण और चिंताजनक मामलों में भी अलग राय रखते हैं. इस बात के काफ़ी संकेत मिल रहे हैं कि LAC नये और ज़्यादा उथल-पुथल के अध्याय में प्रवेश कर रहा है.
पहला संकेत ये है कि सभी सेक्टर में चीन की तरफ़ से LAC का उल्लंघन बढ़ रहा है. भारत सरकार ने 2019 में PLA के द्वारा 660 से ज़्यादा उल्लंघन दर्ज किया. ये 2018 के मुक़ाबले 50% की बढ़ोतरी और मौजूदा समय का रिकॉर्ड है. (LAC पर हवाई घुसपैठ में भी बढ़ोतरी दर्ज की गई है, 2017 की 47 घुसपैठ के मुक़ाबले 2019 में 108 घुसपैठ दर्ज हुई.)
दूसरा संकेत ये है कि ताज़ा गतिरोध LAC के कई अलग-अलग सेक्टर में एक साथ शुरू हुआ जो आम तौर पर नहीं होता. तीसरा संकेत ये है कि इसमें असामान्य दुश्मनी का स्तर था जहां दोनों देशों के सैनिकों ने एक-दूसरे पर घूंसों से प्रहार किया और पत्थर फेंके जो कि 2017 से पहले असामान्य था.
चौथा संकेत ये है कि गतिरोध उन सेक्टर में बना जो परंपरागत तौर पर विवादित या विस्फोटक नहीं हैं और जहां LAC की स्थिति को लेकर असहमति नहीं थी. इनमें गलवान नदी, गोगरा, हॉट स्प्रिंग और सिक्किम (जहां पिछले कुछ वर्षों के दौरान हर साल LAC पर PLA की एक घुसपैठ दर्ज की गई वहीं पैंगॉन्ग झील में हर साल 100 घुसपैठ दर्ज हुई) शमिल हैं.
कुल मिलाकर ये रुझान संकेत देते हैं कि LAC पर गतिरोध ज़्यादा शत्रुतापूर्ण, ज़्यादा संख्या में और ज़्यादा समय के लिए हो रहे हैं. साथ ही ये गतिरोध ज़्यादा मीडिया कवरेज और अंतर्राष्ट्रीय तवज्जो भी हासिल कर रहे हैं. इसकी वजह से दोनों पक्षों के लिए इधर-उधर की गुंजाईश नहीं बची है.
The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.
Jeff Smith is the Director of Asian Security Programs at the Heritage Foundation in Washington DC.
Read More +