Author : Noyontara Gupta

Published on Oct 21, 2022 Updated 0 Hours ago
सीटू यादव: समुदाय में हर वर्ग के लोगों को आगे बढ़ाने में जुटी एक कम्युनिटी लीडर!

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मध्य प्रदेश के दूरदराज के इलाके में स्थित बालाघाट ज़िले में चंगेरा नाम का एक शांत और साधारण सा गांव है, जिसकी आबादी दो हज़ार से कम है. यहीं पर हमारी मुलाकात 35 वर्षीय सीटू यादव से हुई.

सीटू बहुत ही मिलनसार और प्रतिभाशाली हैं. छह बहनों और एक भाई में से एक सीटू, एक भरे-पूरे परिवार में पली-बढ़ी हैं. वह बचपन के दिनों को याद करते हुए बताती हैं, “हमने मिलजुलकर ना केवल पढ़ाई की, बल्कि ख़ुशी-ख़ुशी साथ में रहे. हम सबको खेलना बहुत पसंद था और कबड्डी मेरा पसंदीदा गेम था.”

भले ही सीटू के पिता इसके प्रबल पक्षधर थे कि सभी बच्चों को पढ़ाया जाना चाहिए, इसके बावज़ूद सीटू 10वीं कक्षा तक ही पढ़ पाईं, क्योंकि घर में पढ़ने वाले बहुत लोग थे. 18 साल की उम्र में सीटू की शादी हो गई और 2005 में वह चंगेरा गांव चली गईं, जहां वह अब अपने पति, दो बच्चों और ससुराल वालों के साथ रहती हैं. अपनी शादी के बाद सीटू को अपना पहला फोन मिला. वो कीपैड वाला एक छोटा प्रीपेड सेलुलर फोन था, जिसका उपयोग वह टाइम देखने और कॉल करने के लिए करती थीं.

बाद के वर्षों में सीटू ने देखा कि हंसी-ख़ुशी और आपस में घुलमिलकर रहने वाले चंगेरा गांव में सबकुछ ठीक नहीं था. उन्होंने बताया कि गांव के लोग चाहे घर में हो या बाहर, महिलाओं को पुरुषों से कमतर समझते थे. गांव में पुरुषों और महिलाओं के प्रति इस असमानता से भरे व्यवहार ने उन्हें कुछ करने के लिए प्रेरित किया.

सीटू ने वर्ष 2014 में रिलायंस फाउंडेशन के साथ हाथ मिलाया और समुदायिक कल्याण के लिए कार्य शुरू किया. रिलायंस फाउंडेशन के ‘सक्षम कार्यक्रम’ (समुदायों में जागरूकता और स्वास्थ्य  साक्षरता पैदा करने के उद्देश्य से एक पहल) के हिस्से के रूप में सीटू ने एक स्वास्थ्य संगिनी (स्वास्थ्य सेवा स्वयंसेविका) के रूप में काम किया. वह यह जानने के लिए घर-घर जाती थीं कि गांव की महिलाएं अपने दिनों को किस प्रकार व्यतीत करती हैं.

कोविड-19 महामारी अपने साथ भारी तबाही और संकट के अलावा नई चुनौतियां भी लेकर आई. इसमें बच्चों की शिक्षा से जुड़े मुद्दे भी शामिल हैं. कोरोना वायरस के तेज़ी से फैलने के साथ ही पूरे देश में लॉकडाउन और सोशल डिस्टेंसिंग लागू कर दी गई. बच्चों का स्कूल जाना बंद हो गया है और क्लास में पढ़ाई भी बंद हो गई. ऐसे में बच्चों को वायरस की चपेट में आने से दूर रखने के लिए उन्हें एकत्र कर डिजिटल क्लास आयोजित की गईं, जो कभी सफल रहीं तो कभी विफल हो गईं. इस डिजिटल क्लास का मकसद था कि बच्चों की पढ़ाई-लिखाई कोरोना महामारी से प्रभावित नहीं हो.

तभी चंगेरा गांव में सीटू के बच्चे जिस स्कूल में पढ़ते थे, उसके एक शिक्षक ने मोबाइल तकनीक को लेकर प्रशिक्षण देना शुरू किया और बच्चों को ई-लर्निंग के माध्यम से पढ़ाना शुरू किया. सीटू भी मोबाइल टेक्नोलॉजी वाली इस क्लास में शामिल हो गईं. एक बार जब उन्होंने प्रशिक्षण पूरा कर लिया, तो उन्होंने अपने क्षेत्र में मोबाइल फोन के माध्यम से बच्चों को पढ़ाना शुरू कर दिया.

मध्य प्रदेश में महिलाओं का तकनीकी सशक्तिकरण(15-49 वर्ष की आयु)
वे महिलाएं जिनके पास मोबाइल फोन है और खुद उपयोग भी करती हैं 38.5%
जो महिलाएं अपने मोबाइल फोन में एसएमएस मैसेज पढ़ सकती हैं 74.3%
जो महिलाएं वित्तीय लेन-देन के लिए मोबाइल का उपयोग करती हैं 23.3%
जिन महिलाओं ने कभी इंटरनेट का इस्तेमाल किया है 26.9%

स्रोत: राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण, 2019-21[1]

कुछ ही महीनों के भीतर वह अपने इलाक़े में सबसे अधिक चर्चित शख्सियत बन गईं और उनकी मांग भी बहुत बढ़ गई. बच्चों को पढ़ाने और डिजिटल वर्ल्ड से जुड़ी जानकारियों में महारत हासिल करने वाली सीटू के सामने तमाम अवसरों के दरवाजे खुल गए. रिलायंस फाउंडेशन की मदद से उन्होंने चंगेरा गांव में महिलाओं की बैंक से संबंधित कार्यों जैसे कि ऋण के लिए आवेदन करना और मोबाइल फोन संचालित करने के बारे में बताने जैसे कामों में सहायता करना शुरू कर किया. वास्तविकता में अगर देखा जाए तो महिलाओं को और वो भी विशेष रूप से भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं को मोबाइल फोन के बहुआयामी उपयोग के बारे में बताना एक बहुत की ज़रूरी और अनिवार्य कदम है. यह ग्रामीण क्षेत्र की महिलाओं की दुर्बलता और कमज़ोरी को सशक्तिकरण में बदलने के लिए बहुत आवश्यक है.[2] सीटू गंभीरता के साथ कहती हैं, “हम उन्हें बताते हैं कि कैसे प्रगति करना है. हम उन्हें सिखाते हैं कि कैसे आगे बढ़ना है.”

रिलायंस फाउंडेशन ने उन्हें कृषि विज्ञान केंद्र से भी जोड़ा, जो राष्ट्रीय कृषि अनुसंधान प्रणाली का एक हिस्सा है और जिसका उद्देश्य कृषि और इससे जुड़े अन्य उद्यमों में मूल्यांकन, संशोधन एवं तकनीक के प्रदर्शन के ज़रिए स्थान-विशिष्ट प्रौद्योगिकी मॉड्यूल का आकलन करना है. सीटू ने चंगेरा में किसानों को कृषि विज्ञान केंद्र के बारे बताया. गांव के किसानों ने भी अपने कृषि कार्यों के लिए कृषि विज्ञान केंद्र द्वारा दिए गए अवसरों का लाभ उठाया.

सीटू ने यह भी देखा कि उनके गांव में लड़कियां अक्सर 8वीं कक्षा के बाद पढ़ाई छोड़ देती हैं. देखा जाए तो पूरे देश में लड़कियों की शिक्षा के मामले में यही प्रवृत्ति नज़र आती है. उच्च माध्यमिक स्तर पर लड़कियों की बढ़ी ड्रॉपआउट दर आज भी भारत के लिए गंभीर चिंता का मुद्दा है. ज़ाहिर है कि प्राथमिक विद्यालय स्तर पर प्रत्येक 100 लड़कों पर 96 लड़कियों का नामांकन होता है, लेकिन हाई स्कूल स्तर पर प्रति 100 लड़कों पर केवल 50 लड़कियों का नामांकन होता है.[3] सीटू ने चंगेरा गांव में इस मोर्चे पर बदलाव लाने का दृढ़निश्चय किया. वह घर-घर गईं और माता-पिता को अपनी बेटियों को आगे पढ़ने की अनुमति देने के लिए मनाया. वह बताती हैं, ”इसके लिए मुझे बहुत अधिक विरोध का सामना करना पड़ा. लोगों ने इसको लेकर मुझे गालियां भी दीं, लेकिन मैंने कभी भी उन बातों पर ध्यान नहीं दिया.”

रिलायंस फाउंडेशन ने उन्हें कृषि विज्ञान केंद्र से भी जोड़ा, जो राष्ट्रीय कृषि अनुसंधान प्रणाली का एक हिस्सा है और जिसका उद्देश्य कृषि और इससे जुड़े अन्य उद्यमों में मूल्यांकन, संशोधन एवं तकनीक के प्रदर्शन के ज़रिए स्थान-विशिष्ट प्रौद्योगिकी मॉड्यूल का आकलन करना है. सीटू ने चंगेरा में किसानों को कृषि विज्ञान केंद्र के बारे बताया. गांव के किसानों ने भी अपने कृषि कार्यों के लिए कृषि विज्ञान केंद्र द्वारा दिए गए अवसरों का लाभ उठाया.

सीटू ने जो ज़िम्मेदारी ली थी उसको लेकर प्रतिबद्धता दिखाते हुए, तब तक हर ऐसी लड़की के परिजन को समझाना जारी रखा, जब तक वो अपनी बच्चियों को आगे पढ़ाने के लिए तैयार नहीं हो गए. हालांकि उनमें से ज़्यादातर ऑनलाइन पढ़ाई के लिए तैयार हुए.

सीटू ने अपने गांव में महिलाओं को राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन से जोड़ने में भी मदद की. यह ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा कौशल विकास को सक्षम करने और समुदायों को आकार देने में मदद करने के लिए शुरू की गई एक ग़रीबी उन्मूलन योजना है

समुदाय में मोबाइल प्रौद्योगिकी को लेकर बढ़ती जनकारी के साथ, चंगेरा की महिलाएं अचार और पापड़ जैसे उत्पादों का विज्ञापन करने के लिए अपने मोबाइल फोन का उपयोग करके छोटे व्यवसाय शुरू करने में भी सक्षम हुईं. इतना ही नहीं ज़ल्द ही ग्राहकों की भी उनके उत्पादों में उल्लेखनीय रुचि दिखने लगी. गांव के किसानों ने भी खेती-किसानी के बारे में अधिक जानने के लिए मोबाइल फोन का उपयोग किया.

कई संगठनों ने समुदाय के बीच सीटू की उपलब्धियों को ना केवल स्वीकार किया है, बल्कि उनकी सहायता भी मांगी है. एजुकेट गर्ल्स,[a]   कृषि विज्ञान केंद्र, राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन, स्वच्छ भारत अभियान [b] और कई अन्य संस्थानों एवं कार्यक्रमों ने चंगेरा और उसके आसपास के गांवों में अपने विस्तार के लिए सीटू से मदद करने के लिए संपर्क किया है. दरअसल, सीटू आज आस-पास के करीब 40 गांवों में एक लोकप्रिय सामुदायिक कार्यकर्ता बन चुकी हैं.

सीटू ने अपने गांव में महिलाओं को राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन से जोड़ने में भी मदद की. यह ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा कौशल विकास को सक्षम करने और समुदायों को आकार देने में मदद करने के लिए शुरू की गई एक ग़रीबी उन्मूलन योजना है. सीटू ने विस्तार से बताया, महिलाओं ने मोबाइल टेक्नोलॉजी के माध्यम से अपना प्रशिक्षण पूरा किया, साथ ही इस तकनीक को सीखने वाले समूहों का गठन किया, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि जिन महिलाओं तक मोबाइल फोन की पहुंच नहीं है, वे भी इस प्रशिक्षण से लाभान्वित हो सकें.

भारत की महामारी के पश्चात जो हालात हैं, जो वास्तविकता है, वो ऑफलाइन हो या फिर ऑनलाइन दोनों ही स्तर पर मौजूद है. पारंपरिक पेशों और व्यवसायों के विकास के लिए उन्हें डिजिटल स्पेस के अनुकूल होने की ज़रूरत के साथ-साथ वर्चुअल वर्कस्पेस को ग्रामीण भारत के लिए अधिक समावेशी और सुलभ बनाना महत्वपूर्ण है, ताकि अवसरों तक अधिक पहुंच बनाई जा सके. सीटू से प्रशिक्षण लेने के बाद क़ाबिल बने चंगेरा के लोगों के लिए मोबाइल फोन ने इस ख़ाई को कुछ हद तक पाटने में सहायता की है.

जिस प्रकार से सीटू 500 से अधिक महिलाओं वाले 50 स्वयं सहायता समूहों की भी देखरेख करती हैं, उससे उनका प्रभाव क्षेत्र और भी शानदार नज़र आता है. इन स्वयं सहायता समूहों की सभी महिलाएं अब मोबाइल टेक्नोलॉजी का उपयोग करती हैं, जिनमें से कई के पास अपने निजी मोबाइल फोन भी हैं. सीटू कहती हैं कि उन्होंने समुदाय के बीच प्रौद्योगिकी को लेकर एक बढ़ा हुआ विश्वास देखा है और चंगेरा एवं अन्य गांवों में लोगों ने, विशेष रूप से महिलाओं ने भी यह महसूस किया है कि मोबाइल प्रौद्योगिकी को अपनाने के बाद उनका काम बेहद आसान हो गया है.

सीटू कहती हैं कि अब उन्हें महसूस होता है कि उनकी भी अपनी एक पहचान है. आज उन्हें प्यार से सभी ‘स्कूटी[c] वाली दीदी’ कहकर बुलाते हैं. शुरुआत में जब उन्होंने समुदायिक कार्यकर्ता के रूप में कार्य शुरू किया था, तब वह पैदल ही चलती थीं. अपने इलाके में महिलाओं की मदद के लिए वह हर दिन 15 किलोमीटर पैदल चलती थीं. बाद में अपने काम को और कुशलतापूर्वक अंज़ाम देने के लिए उन्होंने एक स्कूटी ख़रीदी और इसी की बदौलत उनके समुदाय को उनकी एक पहचान गढ़ने में मदद मिली. एक सामुदायिक कार्यकर्ता के रूप में गांव में बदलाव को बढ़ावा देने वाले उनके काम के बदले उन्हें बहुत अधिक प्रशंसा मिली है. फिर चाहे डिजिटल साक्षरता को बढ़ावा देने की बात हो, चाहे महिलाओं को कपड़े और मास्क सिलने के लिए प्रशिक्षण देने का विषय हो, या फिर चंगेरा गांव (ज़िले के नल से पानी की आपूर्ति वाले कुछ गांवों में से एक) में नल का कनेक्शन प्रदान करने में मदद करने का मुद्दा हो, सीटू ने ऐसे कई प्रशंसनीय कार्यों को बखूबी अंजाम दिया है.

सामुदायिक निर्माण एक सामूहिक तौर पर किया जाने वाले कार्य है. अपने समुदाय को मोबाइल टेक्नोलॉजी और ऑनलाइन दुनिया से रूबरू कराके और उसमें शामिल करके सीटू अपनी तरफ से यह सुनिश्चित करने की पूरी कोशिश कर रही हैं कि इसमें हर वर्ग के लोग सहभागी बनें. सीटू कहती हैं, “मोबाइल तकनीक ने मेरी बहुत मदद की है. मोबाइल फोन के बिना मैं कुछ भी नहीं कर पाती.”

स्रोत: स्कूल सर्वेक्षण 2021[5]

 

प्रमुख सबक

  • कृषि जैसे पारंपरिक क्षेत्रों में मोबाइल प्रौद्योगिकी को अधिक सुलभ बनाने के लिए लक्षित क्षमता विकास पहलों को सार्वजनिक, निजी और नागरिक समाज के किरदारों द्वारा समर्थित किया जाना चाहिए.
  • समुदाय के स्तर पर ऑनलाइन स्कूली शिक्षा और ई-लर्निंग द्वारा प्रदान किए जाने वाले अवसरों के बारे में जन जागरूकता बढ़ाने के लिए समुदाय के प्रमुख प्रतिनिधियों और मोबिलाइजर्स को प्रशिक्षित किया जाना चाहिए. उनकी दखल का कैस्केड प्रभाव यानी एक के बाद एक श्रृंखलाबद्ध असर हो सकता है और इसके परिणामस्वरूप शिक्षा तक पहुंच स्थापित करने के लिए सूचना और संचार प्रौद्योगिकियों के उपयोग में बढ़ोतरी हो सकती है.

END NOTES


[a] एजुकेट गर्ल्स एक गैर-लाभकारी संगठन है, जिसकी स्थापना वर्ष 2007 में हुई थी. यह संगठन सामुदायों को प्रेरित कर और उन्हें एक साथ लाकर भारत के ग्रामीण और पिछड़े क्षेत्रों में लड़कियों की शिक्षा की दिशा में काम करता है. यह राजस्थान, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के 18,000 गांवों में काम करता है.

 

[b] स्वच्छ भारत अभियान (स्वच्छ भारत मिशन) भारत सरकार द्वारा वर्ष 2014 में खुले में शौच को समाप्त करने और ठोस अपशिष्ट प्रबंधन में सुधार के लिए शुरू किया गया एक राष्ट्रव्यापी अभियान है.

[c] भारत में एक स्कूटर को कभी-कभी स्कूटी के रूप में संदर्भित किया जाता है.

[1] International Institute for Population Sciences, National Family Health Survey (NFHS-5), 2019–21: India: Volume 1, March 2022, http://rchiips.org/nfhs/NFHS-5Reports/NFHS-5_INDIA_REPORT.pdf

[2] Balasubramanian, K., Perumal Thamizoli, Abdurrahman Umar, and Asha Kanwar, “Using Mobile Phones to Promote Lifelong Learning among Rural Women in Southern India.” ResearchGate, https://www.researchgate.net/publication/249016186_Using_mobile_phones_to_promote_lifelong_learning_among_rural_women_in_Southern_India

[3] TNN,“Dropout Rate of Girls after Class X Still Worrisome,” The Times of India, TOI, January 4, 2022, https://timesofindia.indiatimes.com/home/education/news/dropout-rate-of-girls-after-class-x-still-worrisome/articleshow/88685751.cms

[4] “Online Learning Leaves Poor, Young Women in India Behind,” Hindustan Times, September 29, 2020, https://www.hindustantimes.com/india-news/online-learning-leaves-poor-young-women-in-india-behind-opinion/story-KBqPXnE0lFpk1fia7XkNtJ.html

[5] “Locked Out: Emergency Report on School Education,” September 6, 2021, https://counterviewfiles.files.wordpress.com/2021/09/locked-out-emergency-report-on-school-education-6-sept-2021.pdf

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