Published on Nov 25, 2023 Updated 0 Hours ago

अखौरा-अगरतला रेल लिंक भारत-बांग्लादेश के बीच सहयोग के मामले में एक बड़ी उपलब्धि है. इससे कनेक्टिविटी, व्यापार और लोगों के बीच आपसी संपर्क में बढ़ोतरी होगी.

भारत और बांग्लादेश के लिए अखौरा-अगरतला रेल लिंक का महत्व

जब 2023 ख़त्म होने को है, उस वक्त भारत के पूर्वोत्तर में भारत और बांग्लादेश के बीच पहली अंतर्राष्ट्रीय रेलवे कनेक्टिविटी को स्थापित करने के लिए दोनों देशों के बीच एक दशक पुराना समझौता ज्ञापन (MoU) पिछले दिनों शुरू अखौरा-अगरतला सीमा पार रेल लिंक के ज़रिए साकार हुआ है. भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख़ हसीना के द्वारा इस रेल लिंक का वर्चुअल उद्घाटन किया गया और ये भारत के पूर्वोत्तर में स्थित राज्य त्रिपुरा की राजधानी अगरतला को बांग्लादेश के ब्राह्मणबड़िया ज़िले के अखौरा उप ज़िले से जोड़ता है. बांग्लादेश के ज़रिए संपर्क से लंबे, संकरे और भीड़ भरे सिलीगुड़ी  कॉरिडोर, जिसेचिकन्स नेकके नाम से भी जाना जाता है और जो पूर्वोत्तर को भारत के बाकी हिस्सों से जोड़ता है, के ज़रिए जाने की ज़रूरत नहीं पड़ती है. इससे भारत के पूर्वोत्तर राज्यों जैसे कि मिज़ोरम और असम के दक्षिणी हिस्सों से कोलकाता की दूरी कम होती है. ख़ास तौर पर त्रिपुरा के लिए रेल के ज़रिए कोलकाता की दूरी 1,600 किलोमीटर से कम होकर 500 किमी हो जाती है और जाने का समय 31 घंटे से घटकर लगभग 10 घंटे हो जाता है.

स्रोत: भारत-बांग्लादेश कनेक्टिविटी: संभावनाएं और चुनौतियां

बांग्लादेश के ज़रिए संपर्क से लंबे, संकरे और भीड़ भरे सिलीगुड़ी  कॉरिडोर, जिसे ‘चिकन्स नेक’ के नाम से भी जाना जाता है और जो पूर्वोत्तर को भारत के बाकी हिस्सों से जोड़ता है.

आशुगंज बंदरगाह, जो कि अखौरा के नज़दीक स्थित है, से उम्मीद की जाती है कि वो स्टेशन से चट्टोग्राम बंदरगाह तक सामान लाने-ले जाने का काम करेगा. इसके अलावा कई रेल, सड़क और नदी के नेटवर्क के ज़रिए अखौरा बांग्लादेश के औद्योगिक इलाकों जैसे कि ढाका, चट्टोग्राम और सिलहट से जुड़ा है. इसलिए बांग्लादेश के लिए ये रेल लिंक अपने दूसरे सबसे बड़े व्यापारिक साझेदार भारत के साथ व्यापार में बढ़ोतरी का वादा लेकर आया है. इस बारे में ये बताया गया है कि रेल लिंक चाय पत्ती एवं चीनी जैसे कृषि क्षेत्र, कंस्ट्रक्शन के सामान, लोहा एवं इस्पात और उपभोक्ता उत्पादों में द्विपक्षीय व्यापार को बढ़ाएगा.

ऐतिहासिक संपर्क की फिर से याद

1971 में बांग्लादेश के जन्म से पहले अखौरा जंक्शन का इस्तेमाल भारत के पूर्वोत्तर से कोलकाता जाने वाले लोग या पूर्वी पाकिस्तान के बाज़ार तक पहुंचने की कोशिश करने वाले लोग करते थे. हालांकि अलग देश के लिए युद्ध और इससे जुड़ी मुश्किलों ने इस रास्ते के इस्तेमाल पर रोक लगा दी. इस तरह सिलीगुड़ी  कॉरिडोर इकलौता विकल्प बन गया जो कि सामानों और भारी मशीनरी के परिवहन के लिए एक मुश्किल रास्ता है क्योंकि इसकी सड़कें तीव्र ढलान वाली  और मोड़ मुश्किल हैं. इसके परिणामस्वरूप भारत 1974 में सीमा पार आवागमन के लिए प्रोटोकॉल पर हस्ताक्षर होने के बाद से अखौरा-अगरतला रेल लिंक के लिए बांग्लादेश से अनुरोध कर रहा था. लेकिन ये विचार धरा का धरा रह गया. 1998 में भारत और बांग्लादेश के बीच व्यापार की समीक्षा को लेकर बातचीत के दौरान एक बार फिर से ये विचार सामने आया था. इसके लगभग एक दशक बाद जनवरी 2010 में प्रधानमंत्री हसीना के भारत दौरे में इस रेल संपर्क के निर्माण का एलान साझा बयान में किया गया. इस बात पर सहमति बनी कि रेल लाइन अगरतला से बांग्लादेश के गंगासागर तक जाएगी और गंगासागर से अखौरा तक डबल लाइन होगी. साथ ही बांग्लादेश रेलवे के गंगासागर और इमामबाड़ी स्टेशन पर दो अतिरिक्त लूप लाइन होगी. इस परियोजना को उत्तर सीमांत रेलवे (नॉर्थ फ्रंटियर रेलवे) के द्वारा पूरा किया जाना था और इसकी फंडिंग ज़्यादातर भारत के विदेश मंत्रालय और कुछ हिस्सा भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र विभाग के द्वारा की जाएगी.  

इस परियोजना को उत्तर सीमांत रेलवे (नॉर्थ फ्रंटियर रेलवे) के द्वारा पूरा किया जाना था और इसकी फंडिंग ज़्यादातर भारत के विदेश मंत्रालय और कुछ हिस्सा भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र विभाग के द्वारा की जाएगी.  .

मुश्किलों पर काबू पाना

वैसे तो परियोजना की शुरुआत 2016 में हुई थी लेकिन कई चुनौतियां इसकी राह में रुकावट बनीं. सबसे बड़ी चुनौती ये थी कि बांग्लादेश में कई लोगों को ये लगा कि भारत उनके इलाके के ज़रिए ज़मीन से घिरे (लैंडलॉक्ड) अपने पूर्वोत्तर को खोलना चाहता है और बदले में बांग्लादेश को वहां या भारत के बाकी हिस्सों तक पहुंच नहीं दी जाएगी. बांग्लादेश में कुछ तबकों ने भारत के अनुरोध का ये मतलब भी निकाला कि ये बांग्लादेश की संप्रभुता को कमज़ोर करने की साज़िश है. इस तरह बांग्लादेश ने भारत के सामने प्रोजेक्ट के लिए ये शर्त रखी कि वो अपने इलाके से नेपाल और भूटान को चट्टोग्राम बंदरगाह का इस्तेमाल करने की इजाज़त दे. मौजूदा समय में हिमालय में बसे दोनों देश भारत के ज़रिए इस पोर्ट का इस्तेमाल करते हैं और 2020 में बांग्लादेश के साथ भूटान के ट्रांज़िट व्यापार को और आसान बनाने के लिए भारत अगरतला में नया व्यापार रास्ता खोलने के लिए तैयार हुआ.

धारणाएं एक तरफ लेकिन वित्तीय परेशानियों के कारण भी रेल लिंक प्रोजेक्ट के पूरा होने में देरी हुई. शुरुआत में 972.52 करोड़ रुपये की मंज़ूरी दी गई जिसमें से 580 करोड़ रुपये भारत के हिस्से में काम के लिए आवंटित किए गए और 392.52 करोड़ बांग्लादेश के हिस्से के लिए रखा गया. बढ़ी हुई लागत और दूसरे खर्चों की वजह से लागत को दो बार संशोधित किया गया और अंतिम लागत का अनुमान 1,255.1 करोड़ रुपये का है जिसमें से 862.58 करोड़ रुपये भारत के हिस्से में काम के लिए है.

कोविड-19 की अप्रत्याशित शुरुआत ने कुछ और चुनौतियां पेश की और इसकी वजह से प्रोजेक्ट में और देरी हुई लेकिन सप्लाई चेन के महत्व पर इसके सबक ने महामारी के बाद परियोजना की समाप्ति को सुनिश्चित करने के लिए दोनों देशों को ज़रूरी प्रोत्साहन प्रदान किया.

कोविड-19 की अप्रत्याशित शुरुआत ने कुछ और चुनौतियां पेश की और इसकी वजह से प्रोजेक्ट में और देरी हुई लेकिन सप्लाई चेन के महत्व पर इसके सबक ने महामारी के बाद परियोजना की समाप्ति को सुनिश्चित करने के लिए दोनों देशों को ज़रूरी प्रोत्साहन प्रदान किया. इसी के मुताबिक अक्टूबर 2023 के अंत में भारत के एक नामित लैंड कस्टम्स स्टेशन निश्चिंतपुर से अखौरा के नज़दीक गंगासागर तक पहला ट्रायल रन किया गया. 12.24 किमी की पूरी रेल लाइन में त्रिपुरा में 5.46 किमी की बड़ी रेल लाइन है और अखौरा में 6.78 किमी की मीटर गेज रेल लाइन है. अंतर्राष्ट्रीय इमिग्रेशन का काम निश्चिंतपुर के डुअल गेज स्टेशन में होगा. यहां यात्रियों और सामान- दोनों के बदलाव का काम होगा. ये रेल लिंक ज़मीन से घिरे त्रिपुरा के लिए ‘पूर्वोत्तर के प्रवेश द्वार’ का काम करता है.

भू-राजनीतिक महत्व

चूंकि भारत और बांग्लादेश एक मिला हुआ भू-भाग साझा करते हैं, ऐसे में वो कनेक्टिविटी की पहल में स्वाभाविक साझेदार हैं और अखौरा-अगरतला रेल लिंक जैसी परियोजनाएं इस भौगोलिक निरंतरता की संभावना को हासिल करने में मदद करती हैं.

इसलिए अखौरा-अगरतला रेल लिंक ने यात्रियों और सामानों को ले जाने में फायदा पहुंचाते हुए भारतीय विदेश नीति को भी महत्वपूर्ण रूप से आगे बढ़ाया है.

हाल के वर्षों में भारत और बांग्लादेश ने दोनों देशों के बीच संपर्क बढ़ाने के लिए कई परियोजनाएं शुरू की हैं जिनमें मैत्री सेतु, जिसका उद्घाटन 2021 में किया गया था, एक महत्वपूर्ण उदाहरण है. ये त्रिपुरा के सुदूर दक्षिणी इलाके सबरूम को चट्टोग्राम बंदरगाह के साथ जोड़ता है और इसका डिज़ाइन इस तरह से तैयार किया गया है कि बांग्लादेश के कॉक्स बाज़ार या चटगांव पहाड़ी क्षेत्र से त्रिपुरा तक लोगों के साथ-साथ सामानों के परिवहन को आसान बनाएगा. सबरूम में तीसरे इंटीग्रेटेड चेक पोस्ट का उद्घाटन जल्द होने की उम्मीद है और ये मैत्री सेतु को काम-काज के लायक बनाएगा. साथ ही भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र और दक्षिण-पूर्व एशिया के बीच व्यापार का एक रास्ता तैयार करेगा. अगर मैत्री सेतु को अखौरा-अगरतला रेल लिंक से जोड़ दिया जाता है तो मैत्री सेतु बांग्लादेश के दूसरे प्रमुख हिस्सों तक भी मल्टी-मॉडल कनेक्टिविटी की पेशकश करेगा.

सहयोग में मील का पत्थर

अखौरा-अगरतला रेल लिंक भारत-बांग्लादेश के बीच सहयोग में एक बड़ा मील का पत्थर है. ये कनेक्टिविटी, व्यापार और लोगों के बीच आपसी संपर्क को बढ़ाएगी. चूंकि प्रधानमंत्री शेख़ हसीना आने वाले आम चुनाव के लिए तैयारी कर रही हैं, जो कि दिसंबर 2023-जनवरी 2024 के बीच होने वाला है, ऐसे में इस रेल लिंक से तीसरे कार्यकाल के लिए उनकी कोशिशों में और विश्वसनीयता जुड़ने की उम्मीद है क्योंकि अपनी जीत के लिए वो ‘विकास के कार्ड’ पर भरोसा कर रही हैं. यहां पर ये ध्यान देना महत्वपूर्ण है कि अखौरा-अगरतला रेल लिंक के साथ दो अन्य सहयोगी उपक्रमों- खुलना-मोंगला पोर्ट रेल लाइन और बांग्लादेश में मैत्री सुपर थर्मल पावर प्लांट की यूनिट II- का भी उद्घाटन किया गया. इन दोनों की फंडिंग भारत ने की.

भारत में भी 2024 में चुनाव होने वाले हैं और पूर्वोत्तर में समृद्धि लाने का वादा मोदी सरकार के लिए अच्छा है, ख़ास तौर पर इसलिए क्योंकि हाल के दिनों में मणिपुर में जातीय हिंसा पर चुप्पी को लेकर मोदी सरकार की आलोचना की गई है. इसके अलावा पूरब में मौजूद पड़ोस, जिसका बांग्लादेश एक अभिन्न हिस्सा है, के साथ अच्छे संबंध देश के भीतर, क्षेत्रीय स्तर पर और यहां तक कि अंतर्राष्ट्रीय पटल पर भी मोदी सरकार की लोकप्रियता को बढ़ाता है.

सोहिनी बोस ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन के सामरिक अध्ययन कार्यक्रम में एसोसिएट फेलो हैं.

अनसुया बासु रॉय चौधरी ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में सीनियर फेलो हैं.

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