Author : Shruti Jain

Published on Sep 22, 2022 Updated 25 Days ago

बुनियादी ढांचे में निवेश को बढ़ावा देने के लिए बहुपक्षीय सहयोग, भारत के लिए वक़्त की मांग है.

बेहतर भविष्य की तलाश: बुनियादी ढांचे में निवेश और G20 की प्राथमिकताएं

2017 में ग्लोबल इंफ़्रास्ट्रक्चर हब (GIH) ने बुनियादी ढांचे से जुड़े परिदृश्य को लेकर एक पूर्वानुमान पेश किया था. इसके मुताबिक 2016 से 2040 के बीच बुनियादी ढांचे में निवेश के लिए 94 खरब अमेरिकी डॉलर की दरकार है. रिपोर्ट के अनुसार विश्व में बुनियादी ढांचे के क्षेत्र में होने वाले कुल निवेश में एशिया का हिस्सा 54 फ़ीसदी रह सकता है. ग़ौरतलब है कि साल 2019 में पहली बार दुनिया के 500 सबसे बड़े परिसंपत्ति प्रबंधकों का असेट्स अंडर मैनेजमेंट (AuM) 104.4 खरब अमेरिकी डॉलर के पार पहुंच गया. बहरहाल, बुनियादी ढांचा खड़ा करने की अहमियत बार-बार जताए जाने के बावजूद बुनियादी ढांचों के क्षेत्र में अब भी एक खाई नज़र आती है.

विकासशील देशों में विकास प्रक्रिया को गति देने में बुनियादी ढांचा बेहद अहम रोल अदा करता है. 2012 में लॉस काबोस शिखर सम्मेलन में G20 देशों ने पहली बार इस अहमियत की तस्दीक़ की थी. लॉस काबोस कार्ययोजना में बुनियादी ढांचे में निवेश को मध्यम कालखंड में उत्पादकता और जीवन स्तर में प्रगति के स्रोत के तौर पर पहचाना गया था. इस कड़ी में अर्जेंटीना, ऑस्ट्रेलिया, ब्राज़ील, भारत, इंडोनेशिया, मैक्सिको, सऊदी अरब, दक्षिण अफ़्रीका और यूनाइटेड किंगडम (यूके) जैसे देशों में बुनियादी ढांचे से जुड़ी ख़ामियों को दूर करने की ज़रूरत बताई गई. इंफ़्रास्ट्रक्चर के लिए दीर्घकालिक वित्त तैयार करने की बात 2013 में सेंट पीटर्सबर्ग में हुए G20 शिखर सम्मेलन में दोबारा सुर्ख़ियों में आई. इस सिलसिले में दीर्घकालिक निवेश को लेकर वैश्विक पूंजी बाज़ारों से पूंजी प्रवाह का अनुकूल वातावरण तैयार करने के लिए साझा कार्रवाई को अंजाम दिए जाने की ज़रूरत बताई गई. साथ ही बुनियादी ढांचे में निजी निवेश को बढ़ावा देने पर भी ज़ोर दिया गया. 2014 में G20 के ब्रिसबेन शिखर सम्मेलन में भारत समेत तमाम सदस्य देश एक वैश्विक बुनियादी ढांचा कार्यक्रम शुरू करने पर रज़ामंद हुए थे. इसका मक़सद G20 के भीतर गुणवत्तापूर्ण बुनियादी ढांचे में निवेश को बढ़ावा देना है ताकि सदस्य देशों में अंतरराष्ट्रीय विकास बैंकों की कार्यवाहियों और कार्यक्रमों को और आगे बढ़ाया जा सके. इस सम्मेलन में भारत ने ग्लोबल इंफ़्रास्ट्रक्चर हब (GIH) के ज़रिए- “अगली पीढ़ी के बुनियादी ढांचा निर्माण- जिसमें डिजिटल बुनियादी ढांचा, और स्वच्छ और सस्ती ऊर्जा तक पहुंच सुनिश्चित करना शामिल है”- वैश्विक समर्थन हासिल करने की क़वायद सामने रखी थी.

इस सम्मेलन में भारत ने ग्लोबल इंफ़्रास्ट्रक्चर हब (GIH) के ज़रिए- “अगली पीढ़ी के बुनियादी ढांचा निर्माण- जिसमें डिजिटल बुनियादी ढांचा, और स्वच्छ और सस्ती ऊर्जा तक पहुंच सुनिश्चित करना शामिल है”

G20 के सदस्यों ने निवेश के रास्ते की बाधाएं कम करने और निवेश-योग्य परियोजनाओं की मौजूदगी में सुधार की अहमियत पर नए सिरे से ज़ोर दिया है. इसमें ज्ञान-साझा करने वाले संजाल के विकास की क़वायद शामिल है. इससे सदस्य देशों को अंतरराष्ट्रीय संगठनों, विकास बैंकों और सरकारों के बीच विकास परियोजनाओं से जुड़ी सूचनाएं साझा करने की सुविधा मिलेगी. निजी क्षेत्र और सरकार द्वारा बुनियादी ढांचे में किए जा रहे निवेश का अधिकतम सकारात्मक प्रभाव सुनिश्चित करने के लिए G20 के नेताओं ने 2019 के ओसाका शिखर सम्मेलन में GIH के 6 स्वैच्छिक और ग़ैर-बाध्यकारी गुणवत्तापूर्ण बुनियादी ढांचा निवेश (QII) सिद्धांतों को स्वीकार किया. इसके साथ ही वो गुणवत्तापूर्ण निवेश को बढ़ावा और प्राथमिकता देने के लिए G20 ऋण प्रदाता क्रियाकलापों का प्रभावी रुख़ तैयार करने को भी सहमत हुए. 2021 में GIH द्वारा बुनियादी ढांचा निकायों (I-Bodies) के अंतरराष्ट्रीय मंच ने महामारी के बाद तात्कालिक रूप से लोचदार बुनियादी ढांचा खड़ा करने की ज़रूरत को रेखांकित किया. इसके तहत “बिल्डिंग बैक बेटर” के संदेश को जीवंत करने का प्रयास किया गया.

बुनियादी ढांचा विकास के लिए भारतीय पहल

आर्थिक मामलों के विभाग के इंफ़्रास्ट्रक्चर टास्क फ़ोर्स की रिपोर्ट (2019) से इस दायरे में भारत सरकार के निरंतर जारी प्रोत्साहनकारी रुख का पता चलता है. रिपोर्ट में निजी पूंजी आकर्षित करने, बॉन्ड और क्रेडिट बाज़ारों में नई जान फूंकने और दीर्घकालिक कोषों के संभावित कर्ज़दाताओं के लिए मौजूदा निवेश दिशानिर्देशों की दोबारा पड़ताल किए जाने की अहमियत रेखांकित की गई है. इन संभावित ऋणदाताओं में बीमा कंपनियां और पेंशन फ़ंड्स शामिल हैं. निवेश अवसरों के विस्तार के सिलसिले में भारत के वित्त मंत्रालय ने 2019 में 6835 परियोजनाओं के साथ “राष्ट्रीय बुनियादी ढांचा पाइपलाइन (NIP)” की शुरुआत की. इनके लिए सरकार और निजी क्षेत्र दोनों की ओर से फ़ंडिंग में भारी बढ़ोतरी की दरकार है. साल दर साल भारत बुनियादी ढांचे के लिए दीर्घकालिक निवेशों के विकल्प तैयार करने में कामयाब होता गया है. इनमें इंफ़्रास्ट्रक्चर डेट फ़ंड्स (IDFs), इंफ़्रास्ट्रक्चर इनवेस्टमेंट ट्रस्ट (InvITs) और राष्ट्रीय निवेश और बुनियादी ढांचा कोष (NIIF) शामिल हैं. इन उपक्रमों ने 2020 तक 4 अरब अमेरिकी डॉलर की पूंजी प्रतिबद्धताएं सुरक्षित कर ली थीं. बुनियादी ढांचा विकास के लिए भारत के कुछ अहम कार्यक्रमों में

2021-22 में भारत सरकार के बजट में बुनियादी ढांचे की संभावित ब्राउनफ़ील्ड परिसंपत्तियों के लिए “नेशनल मॉनेटाइज़ेशन पाइपलाइन” की स्थापना का भी ऐलान किया गया था.

  • भारत के वित्त मंत्रालय ने एक विकास वित्त संस्थान (DFI) के गठन के लिए विधेयक पेश किया. 2024 तक DFI के लिए 5 लाख करोड़ रु का ऋण पोर्टफ़ोलियो तैयार करने का लक्ष्य है. 2021 के केंद्रीय बजट में बुनियादी ढांचे के लिए रकम मुहैया कराने के मामले में एक प्रदाता, सशक्त बनाने वाले और प्रोत्साहक किरदार के तौर पर DFI की स्थापना की ज़रूरत बताई गई.
  • प्रासंगिक क़ानूनों में ज़रूरी सुधारों के ज़रिए InVITs और REITs में विदेशी पोर्टफ़ोलियो निवेशकों द्वारा डेट फ़ाइनेंसिंग की सहूलियत मुहैया कराना. इस तरह InVITs और REITs के लिए वित्त की पहुंच आसान होने की उम्मीद है, जिससे बुनियादी ढांचे और रियल एस्टेट क्षेत्रों के लिए कोष की उपलब्धता में बढ़ोतरी होगी.
  • 2021-22 में भारत सरकार के बजट में बुनियादी ढांचे की संभावित ब्राउनफ़ील्ड परिसंपत्तियों के लिए “नेशनल मॉनेटाइज़ेशन पाइपलाइन” की स्थापना का भी ऐलान किया गया था.
  • वित्त मंत्रालय ने 2021-22 के लिए पूंजीगत निवेश में भारी बढ़ोतरी का एलान किया. इस सिलसिले में 54 लाख करोड़ रु मुहैया कराए गए जो 2020-21 के बजट अनुमानों से 34.5 प्रतिशत ज़्यादा था.
  • बुनियादी ढांचा क्षेत्र में विदेशी निवेश आकर्षित करने के लिए सरकार ने विदेशी सॉवरिन वेल्थ फ़ंड्स और पेंशन फ़ंड्स को भारतीय बुनियादी ढांचे में निवेश से होने वाली कमाई पर शत-प्रतिशत कर छूट मुहैया करवाया. भारत में ज़्यादा से ज़्यादा संख्या में फ़ंड्स का निवेश सुनिश्चित करने के लिए 2021-22 के केंद्रीय बजट में कुछ शर्तों में रियायत देने का प्रस्ताव किया गया. इनमें निजी फ़ंडिंग पर रोक, वाणिज्यिक क्रियाकलापों पर पाबंदी और बुनियादी ढांचे में सीधे निवेश से जुड़ी शर्तें शामिल हैं.
  • प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2019 में संयुक्त राष्ट्र जलवायु कार्यवाही शिखर सम्मेलन में आपदा रोधी बुनियादी ढांचे के लिए वैश्विक गठजोड़ (CDRI) का ऐलान किया. इस मौके पर उन्होंने आपदा-प्रतिरोधी बुनियादी ढांचे के विकास पर ज़ोर दिया.
  • भारत सरकार ने 2021 में एसेट मॉनेटाइज़ेशन डैशबोर्ड की शुरुआत का एलान किया. इससे निवेशकों को परियोजनाओं पर नज़र रखने और उनकी प्रगति की पड़ताल करने का मौक़ा मिल सकेगा.
  • 2020 के वित्तीय बजट में साख संवर्धन कोष का एलान किया गया. बुनियादी ढांचे से जुड़ी कंपनियों के साथ-साथ निम्न-दर्जे वाली कंपनियों द्वारा कॉरपोरेट बॉन्ड जारी करने की क़वायदों के विस्तार के मक़सद से ये घोषणा की गई.

गुणवत्तापूर्ण बुनियादी ढांचे में निवेश को G20 की प्राथमिकता बनाना

भारत में बुनियादी ढांचे के विकास में मौजूद खाई से जुड़े विरोधाभास के मद्देनज़र बुनियादी ढांचे में निवेश को बढ़ावा देने के लिए बहुपक्षीय सहयोग बेहद अहम हो जाता है. लिहाज़ा गुणवत्तापूर्ण बुनियादी ढांचे में निवेश को लेकर G20 के सिद्धांतों से जुड़े कार्यों की पहचान कर उन्हें आगे बढ़ाना, 2023 में G20 की अध्यक्षता से जुड़ी भारतीय क़वायद के लिए अहम होगा.

भारत को बेहतर रूप से तमाम सूचनाओं से लैस नीतिगत फ़ैसलों के लिए डेटा-आधारित जानकारियों की अहमियत पर ज़ोर देना चाहिए. साथ ही G20 के सदस्यों से बुनियादी ढांचा परिसंपत्तियों से जुड़े सुगम और तुलनात्मक डेटा बरक़रार रखने का अनुरोध भी करना चाहिए.

  • अनुकूल वातावरण: भारत बुनियादी ढांचे में निवेश को आगे बढ़ाने के लिए ज़्यादा अनुकूल वातावरण तैयार करने की आवश्यकता को विस्तार दे सकता है. इसके लिए इंफ़्रास्ट्रक्चर मॉनिटर और क्वॉलिटी इंफ़्रास्ट्रक्चर इनवेस्टमेंट डेटाबेस (QII Database) के निर्माण की वक़ालत की जा सकती है. भारत को बेहतर रूप से तमाम सूचनाओं से लैस नीतिगत फ़ैसलों के लिए डेटा-आधारित जानकारियों की अहमियत पर ज़ोर देना चाहिए. साथ ही G20 के सदस्यों से बुनियादी ढांचा परिसंपत्तियों से जुड़े सुगम और तुलनात्मक डेटा बरक़रार रखने का अनुरोध भी करना चाहिए. G20 के एक अन्य कार्यक्रम में अफ़्रीका इंफ़्रास्ट्रक्चर मार्केटप्लेस शामिल है. इसके तहत बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के लिए परियोजना प्रोफ़ाइल मुहैया कराने का लक्ष्य रखा गया है, जिससे पूंजी प्रदाताओं को परियोजना अवसरों के साथ जोड़ा जाता है.
  • नियामक पारदर्शिता और पूर्वानुमान क्षमता: भारत को G20 के सदस्यों से नियामक पारदर्शिता और पूर्वानुमान क्षमता में सुधार की भी अपील करनी चाहिए. इसके तहत मानकों का एक साझा समूह तैयार किया जा सकता है. बुनियादी ढांचे में निवेश के लिए राष्ट्र के स्तर पर ये मानक अपनाए जा सकते हैं. भारत सरकार के आर्थिक मामलों के मंत्रालय के टास्क फ़ोर्स ने ऐसे कार्यक्रमों को अपनाए जाने पर ज़ोर दिया है. इनमें उत्पाद-आधारित प्रदर्शन मानदंड, मानक स्थापित करने के लिए स्थायी प्रक्रियाओं के विकास, नियम-पालना से जुड़े तंत्र में सुधार लाना और समान नियमन तैयार करना शामिल हैं.
  • मुद्रा जोख़िम की रोकथाम: विदेशी धरती पर बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के सिलसिले में मुद्रा परिवर्तनीयता और उतार-चढ़ावों से जुड़े अनेक जोख़िम जुड़े होते हैं. ये विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में निवेश अवसरों को पेचीदा बना सकते हैं. बुनियादी ढांचा कार्यकारी समूह के तहत G20 के सदस्यों को जोख़िम कम करने वाले साधनों के सामरिक इस्तेमाल के ज़रिए एक भरोसेमंद व्यवस्था की निश्चित रूप से तलाश करनी चाहिए. जोख़िम प्रबंधन के लिए ब्याज़ दर डेरिवेटिव्स जैसे अन्य तमाम हेजिंग टूल्स का भी इस्तेमाल किया जाना चाहिए. G20 को बहुपक्षीय विकास बैंकों के जोख़िम कम करने वाले उत्पादों के क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने की ज़रूरत को भी रेखांकित करना चाहिए.
  • बहुपक्षीय विकास बैंकों की मदद लेना: विकासशील देशों में निवेश जुटाने के लिए MDBs, ECAs और DFIs की क्षमताओं का इस्तेमाल किया जा सकता है. इस सिलसिले में बैंकों, बीमा कंपनियों, MDBs और दूसरी ऋण प्रदाता संस्थाओं के बीच गठजोड़ का मॉडल तैयार करने की दरकार है. OECD/G20 रिपोर्ट में बुनियादी ढांचे में निजी निवेश को प्रभावित करने वाली चुनौतियों पर निवेशकों के विचारों का इज़हार हुआ है. इसमें MDBs से व्यावहारिकता अध्ययनों के लिए धन मुहैया कराने को कहा गया है. बाद के चरणों में निजी क्षेत्र के जुड़ाव से जुड़े तत्व भी इनके दायरे में आते हैं.
  • निजी क्षेत्र की भागीदारी: भारत को बुनियादी ढांचे में निवेश बढ़ाने के लिए एक रूपरेखा की अगुवाई करने पर विचार करना चाहिए. इससे निजी क्षेत्र की भागीदारी का बेहतरीन इस्तेमाल हो सकेगा. ये क़वायद G20 के एजेंडे को आगे ले जाएगी. ग़ौरतलब है कि बुनियादी ढांचे में निवेश अवसर बढ़ाने के लिए वित्तीय व्यवस्थाएं जुटाने को लेकर नीतिगत औज़ार तैयार करने का लक्ष्य G20 के एजेंडे में शामिल है.
  • QII सिद्धांत: भारत अपने विशाल-स्तरीय बुनियादी ढांचा नीति-निर्माण प्रक्रिया में QII सिद्धांतों को एकीकृत करने की अहमियत दोहरा सकता है. QII सिद्धांतों को परियोजनाओं के अमल में निश्चित रूप से एकीकृत किया जाना चाहिए. इनमें “स्मार्ट सिटी” या पारिस्थितिकी के हिसाब से संवेदनशील इलाक़ों में विशाल स्तरीय बुनियादी ढांचे के विकास से जुड़े कार्यक्रम शामिल हैं. 2023 में G20 की अध्यक्षता की ओर आगे बढ़ते हिंदुस्तान को बुनियादी ढांचा निवेश को सुविधाजनक बनाने की क़वायद की अगुवाई करनी चाहिए. इस सिलसिले में QII सिद्धांतों को स्वीकार कर उनके हिसाब से आगे बढ़ने की दरकार है.
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