Author : Soumya Bhowmick

Published on Jul 21, 2023 Updated 0 Hours ago

SDG 4 के लक्ष्यों पर आगे बढ़ने के लिए शिक्षा के क्षेत्र में व्यापक सुधारों की ज़रूरत है जिससे युवाओं को चुनौतियों से पार पाकर अवसरों का लाभ उठाने के लिए सशक्त बनाया जा सके.

SDG-4 (गुणवत्तापूर्ण शिक्षा): संस्थागत चुनौतियों का सामना करते हुए युवा पूंजी को मज़बूत बनाने का प्रयास!

आज के युवा जिस तरह की चुनौतियों का सामना कर रहे हैं, वो अभूतपूर्व हैं. महामारी और उसकी वजह से लगे लॉकडाउन के कारण पढ़ाई के अवसर गंवाने से लेकर गहराता जलवायु संकट, ख़तरनाक होती वर्चुअल दुनिया और भू-राजनीतिक संघर्षों की वजह से खाद्य और ऊर्जा सुरक्षा की चिंताएं- आज की पीढ़ी जिन मुश्किलों का सामना कर रही है, वो बहुत हैं, जटिल हैं और आपस में जुड़ी हुई हैं. हालांकि, दुनिया भर के नौजवान इन चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार हो रहे हैं, वो मुद्दों के इर्द गिर्द अपना मोर्चा खड़ा कर रहे हैं और ऐसे नए नए समाधान तैयार कर रहे हैं, जिनमें अलग अलग संस्कृतियों, भौगोलिक क्षेत्रों और विकास के स्तर का भी ख़याल रखा जा रहा है. अच्छी शिक्षा के लिए टिकाऊ विकास का लक्ष्य (SDG 4), इस बात को समझता है कि लंबी अवधि में व्यापक सुधारों के लक्ष्य हासिल करने में शिक्षा किस तरह केंद्रीय भूमिका अदा करती है. SDG 4 का मक़सद, ‘सभी के लिए समावेशी और समान प्रकार से अच्छी शिक्षा सुनिश्चित करना और जीवन भर सीखने के अवसर मुहैया कराना है, ख़ास तौर से युवाओं के लिए आधुनिक दुनिया में तरक़्क़ी करने में मदद करना है.’

अच्छी शिक्षा के लिए टिकाऊ विकास का लक्ष्य (SDG 4), इस बात को समझता है कि लंबी अवधि में व्यापक सुधारों के लक्ष्य हासिल करने में शिक्षा किस तरह केंद्रीय भूमिका अदा करती है. SDG 4 का मक़सद, ‘सभी के लिए समावेशी और समान प्रकार से अच्छी शिक्षा सुनिश्चित करना और जीवन भर सीखने के अवसर मुहैया कराना है

Table 1: SDG 4 Scores (2023) 

क्षेत्र/समूह SDG 4 स्कोर (100 में से)
पूर्वी यूरोप और मध्य एशिया 87.9
पूर्वी और दक्षिणी एशिया 90.0
लैटिन अमेरिका और कैरेबियाई क्षेत्र 86.3
मध्य पूर्व और उत्तरी अफ्रीका 69.8
ओशियानिया 58.0
OECD के सदस्य देश 95.5
छोटे द्वीपीय विकासशील देश 75.5
उप-सहारा क्षेत्र के अफ्रीकी देश 41.4

Note:  2023 SDG 4 के स्कोर निम्नलिखित संकेतकों पर आधारित हैं:

1.     पूर्व प्राइमरी संगठित  शिक्षा में भागीदारी (4 से 6 साल के बच्चों की भागीदारी)

2. प्राइमरी में कुल नामांकन की दर (%)

3. लोअऱ सेकेंडरी की पढ़ाई पूरी करने की दर (%)

4. साक्षरता की दर (15 से 24 साल की आयु की आबादी का %)

5. तृतीय स्तर की शिक्षा प्राप्त करना (25 to 34 साल की उम्र वाली आबादी का %)

6. PISA स्कोर (सबसे ख़राब 0 से सबसे अच्छा 600 तक)

7. सामाजिक आर्थिक स्तर के आधार पर विज्ञान में प्रदर्शन (%)

8. विज्ञान के क्षेत्र में कम अच्छा प्रदर्शन करने वाले ( 15 साल की उम्र वालों का %)

Source: Sustainable Development Report 2023, SDSN

शिक्षा में तकनीक की नई भूमिका तलाशना

कोविड महामारी ने पूरी दुनिया में शिक्षा व्यवस्थाओं को प्रभावित  किया है. इससे स्कूल में पढ़ाई के समय का नुक़सान हुआ है और विश्व स्तर पर शिक्षा के मामले में असमानता बढ़ी है. इसने विकसित और विकासशील देशों के बीच अंतर को और बढ़ा दिया है. जैसे जैसे लॉकडाउन की पाबंदियां बढ़ती गईं, स्कूलों को बंद करना पड़ा, जिससे SDG 4 के लक्ष्य हासिल करने की कोशिशों पर बुरा असर पड़ा. हालांकि, जिन देशों में स्वास्थ्य और शिक्षा की व्यवस्था अच्छी थी, उन देशों में स्कूल जल्दी खुल गए. मिसाल के तौर पर, विकसित देशों के बच्चों के स्कूल जाने के दिनों का औसत नुक़सान साल 2020 में 15 दिन का था. इसके उलट, उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं में ये नुक़सान बढ़कर 45 दिन और सबसे ग़रीब देशों में तो 75 दिनों तक पहुंच गया था. महामारी के बाद के दौर में बहाली की प्रक्रिया के लिए

शिक्षा के मामले में इस नुक़सान की भरपाई और विकसित एवं विकासशील देशों के बीच अंतर को पाटना बहुत ज़रूरी हो गया है. क्योंकि, इसी से वैश्विक अर्थव्यवस्थाओं की दूरगामी व्यापक आर्थिक संरचना तय होती है और इसमें युवा पूंजी महत्वपूर्ण रोल अदा करती है.

मानव पूंजी निर्माण को सुधारने में तकनीक एक ताक़तवर औज़ार है. इससे न्यायोचित और अच्छी शिक्षा हासिल करने के लिए शिक्षा के क्षेत्र में संरचनात्मक दिक़्क़तों को दूर करने में भी मदद मिल सकती है. तकनीक में ये ताक़त भी है कि वो ज्ञान तक पहुंच को लोकतांत्रिक बनाएं और शिक्षा को अधिक सुलभ और समावेशी बना सकती है, ख़ास तौर से उन देशों में जहां संसाधनों की कमी है. शिक्षा तकनीक (ed-tech) के मंचों के बढ़ते इस्तेमाल ने महामारी के दौरान ऑनलाइन शिक्षा के ज़रिए छात्रों को अपनी पढ़ाई पूरी कर पाने में अहम भूमिका अदा की है. इसमें इंटरएक्टिव मटेरियल  और व्यक्तिगत स्तर पर शिक्षा के अनुभव शामिल हैं. ओपेन एजुकेशनल रिसोर्सेज़ (OERs), ऑनलाइन पाठ्यक्रमों और डिजिटल पुस्तकालयों की वजह से पढ़ने वाले अपनी ज़रूरत और सुविधा हिसाब से पढ़ाई की चीज़ें देख और पढ़ सकते हैं. महामारी के दौरान ये बहुत उपयोगी साबित हुआ था.

वित्तीय साक्षरता और उद्यमिता की शिक्षा से युवा पीढ़ी को पेचीदा आर्थिक मंज़र से निपटने में मदद मिलेगी और वो सामाजिक और पर्यावरण संबंधी चुनौतियों के लिए नए समाधान तलाशने को प्रेरित हो सकेंगे.

फिर भी, केवल तकनीक का इस्तेमाल पर्याप्त नहीं है. स्थानीय स्तर के संदर्भों के साथ बच्चों को पढ़ाने के लिए मानवीय तत्व बेहद अहम हो जाते हैं. Ed-Tech के मंच, पढ़ाई के मटेरियल  तो उपलब्ध कराते हैं, लेकिन, उनके साथ साथ शिक्षा की असरदार रणनीतियों और टीचर से भी मदद दी जानी चाहिए. ऑनलाइन और व्यक्तिगत स्तर पर निर्देश के ज़रिए मिले जुले तरीक़े से पढ़ाने से बच्चों के सीखने की रफ़्तार तेज़ हो सकती है और उनके लिए शिक्षा सुलभ भी हो सकती है, ख़ास तौर से विकासशील देशों में जहां मूलभूत ढांचे की कमियां बाधाएं खड़ी करती हैं.

समकक्षों के साथ मिलकर पढ़ना भी अच्छी सोच-समझ, समस्या सुलझाने और सहयोग को बढ़ाने के लिहाज़ से महत्वपूर्ण होता है. इसीलिए, शिक्षा व्यवस्थाएं समुदाय के भाव को बढ़ावा दे सकती हैं और नौजवानों को मिलकर साथ काम करने, ज्ञान साझा करने और एक दूसरे से सीखने के अवसर मुहैया कराकर सामाजिक मेलजोल  को बढ़ावा दे सकती हैं. इसके अलावा, वैश्विक नागरिकता, वित्त और पर्यावरण को देखते हुए शिक्षा के सुधारों के लिए नीतियों का निर्माण समावेश के महिलावादी सिद्धांतों से प्रेरित होना चाहिए. वित्तीय साक्षरता और उद्यमिता की शिक्षा से युवा पीढ़ी को पेचीदा आर्थिक मंज़र से निपटने में मदद मिलेगी और वो सामाजिक और पर्यावरण संबंधी चुनौतियों के लिए नए समाधान तलाशने को प्रेरित हो सकेंगे.

पाठ्यक्रम में स्वदेशी नज़रियों, पर्यावरण को लेकर पारंपरिक ज्ञान और सांस्कृतिक विरासतों को शामिल करके, शिक्षा व्यवस्थाएं पर्यावरण को मज़बूत बनाने, टिकाऊपन और सांस्कृतिक विविधता के प्रति जागरूकता को बढ़ा सकती हैं. हालांकि, पारंपरिक संस्कृतियाँ  अक्सर शिक्षा की आधुनिक तकनीकों का विरोध करती हैं और उन्हें धीरे धीरे परिवर्तित किया जाना चाहिए, जिससे वो अधिक नए नज़रिए को अपना सकें. इसके लिए समुदायों से संवाद करने, उनकी मान्यताओं का सम्मान करने और मिलकर शिक्षा के कार्यक्रम करने की ज़रूरत होगी, जिससे पारंपरिक ज्ञान और आधुनिक क्षमताओं के बीच का अंतर दूर किया जा सके. सांस्कृतिक संरक्षण को आधुनिक हुनर सीखने के साथ संतुलित करना होगा, ताकि नौजवानों को तेज़ी से बढ़ते हुए समाज के हिसाब से ख़ुद को ढालने के लिए तैयार किया जा सके.

व्यापक शैक्षिक सुधारों की ज़रूरत

युवा पीढ़ी की चुनौतियों से निपटने के लिए शिक्षा के सुधार व्यापक होने चाहिए. इनमें शुरुआती बचपन से लेकर उच्च शिक्षा और पूरे जीवन में सीखने की सोच शामिल होनी चाहिए. शुरुआती बचपन की पढ़ाई, भविष्य में सीखने और विकास की नींव रखती है. सरकारों को चाहिए कि वो शुरुआती बचपन के अच्छे कार्यक्रमों में निवेश करें और खेल पर आधारित पढ़ाई, ज्ञान संबंधी विकास और सामाजिक भावनात्मक हुनर सिखाने को प्राथमिकता दें. प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा को जटिल सोच, रचनाशीलता, समस्या के समाधान और डिजिटल साक्षरता पर केंद्रित होना चाहिए. मूल्यांकन को सिर्फ़ रट्टा लगाने और तयशुदा मानकों पर परीक्षा के आधार पर करने के बजाय, असली दुनिया में इस्तेमाल और प्रोजेक्ट के आधार पर सीखने पर केंद्रित किया जाना चाहिए. अलग अलग उम्र के बच्चों को  पढ़ाने के लिए अलग अलग रणनीतियां बनाई जानी चाहिए, जिसमें छोटे बच्चों की पढ़ाई में खेल खेल में सीखने के तौर-तरीक़ों को तरज़ीह देनी चाहिए. इसके अलावा शिक्षा व्यवस्थाओं को नई पीढ़ी के पास मौजूद हुनर के आधार पर परखा जाना चाहिए. ट्रेंड्स इन इंटरनेशनल मैथमैटिक्स ऐंड साइंस स्टडी (TIMSS) जैसे अंतरराष्ट्रीय मूल्यांकन अहम विषयों में बच्चों की क़ाबिलियत परखने में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं. नीति निर्माता अपने दखल देने के क्षेत्रों की पहचान करके संसाधनों और सहयोग के लक्ष्य निर्धारित कर सकते हैं, ताकि बच्चों को बेहतर शिक्षा के अच्छे नतीजे निकल सकें.

आज जब उद्योग और रोजगार के बाज़ार बदल रहे हैं, तो छात्रों को प्रमाणपत्र देने के मामले में भी अधिक व्यापक दृष्टिकोण अपनाएं अपनाए जाने की ज़रूरत है. कुशलता पर आधारित मूल्यांकन, डिजिटल बैज और छोटे छोटे अलग प्रमाण पत्र, युवाओं के हुनर और उनकी उपलब्धियों को अधिक सटीक और बारीक़ तरीक़े से प्रस्तुत कर सकते हैं.

शिक्षा के सुधार में एक और महत्वपूर्ण क्षेत्र प्रमाणपत्र देने का है. शिक्षा के पारंपरिक प्रमाण पत्र, अक्सर युवा पीढ़ी के हुनर की उचित नुमाइंदगी करने में असफल रहते हैं जिनमें डिग्री और डिप्लोमा भी शामिल हैं. आज जब उद्योग और रोजगार के बाज़ार बदल रहे हैं, तो छात्रों को प्रमाणपत्र देने के मामले में भी अधिक व्यापक दृष्टिकोण अपनाएं  जाने की ज़रूरत है. कुशलता पर आधारित मूल्यांकन, डिजिटल बैज और छोटे छोटे अलग प्रमाण पत्र, युवाओं के हुनर और उनकी उपलब्धियों को अधिक सटीक और बारीक़ तरीक़े से प्रस्तुत कर सकते हैं. क्षमता पर आधारित शिक्षा और वैकल्पिक प्रमाणपत्र की दिशा में आगे बढ़ने वाला बदलाव लाने से औपचारिक शिक्षा और रोज़गार देने वालों की आवश्यकता के हिसाब से हुनर के बीच अंतर को पाट सकता है.

कुल मिलाकर SDG 4 के लक्ष्य हासिल करने की दिशा में आगे बढ़ने के लिए, युवाओं को चुनौतियों से पार पाने और मौक़ों का इस्तेमाल करना सिखाने के लिए शिक्षा के व्यापक सुधारों की आवश्यकता है. शिक्षा और कौशल विकास में निवेश करके, तकनीक का इस्तेमाल करके, पढ़ाई के लिए समावेशी और न्यायोचित माहौल उपलब्ध कराकर और विविधता भरे सांस्कृतिक नज़रियों को शिक्षा व्यवस्था में शामिल करना, मानव पूंजी निर्माण को बढ़ावा देने के लिए महत्वपूर्ण है. युवा पीढ़ी को उनकी ज़रूरत के ज्ञान, कौशल और मूल्यों से लैस करके समाज, 21वीं सदी की अर्थव्यवस्था और समाज में उनकी पूरी भागीदारी और कामयाबी सुनिश्चित कर सकता है.

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