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Published on Jun 24, 2024 Updated 0 Hours ago

सर्कुलर अर्थव्यवस्था को लागू करने से बर्बाद होने वाले उत्पादों को कम किया जा सकता है. लेकिन, अधिकतम लाभ के लिए नीति निर्माताओं को ठेके वाले मॉडल का दायरा बढ़ाना ही होगा.

सर्कुलर अर्थव्यवस्था का विस्तार करने की ज़रूरत

लीनियर अर्थव्यवस्था में उत्पादों का निर्माण होता है, खपत की जाती है और फिर फेंक दिया जाता है. भारत में पर्यावरण और इंसानों एवं जानवरों की सेहत पर इसके बुरे असर एकदम साफ़ दिख रहे हैं. अगर हम इस लीनियर आर्थिक मॉडल पर चलते रहते हैं, तो एक विकसित होती अर्थव्यवस्था और ग्राहकों की बड़ी तादाद की वजह से संसाधनों और उत्पादों की बढ़ती मांग की वजह से ये समस्या और बिगड़ती ही जाएगी.

 अगर हम इस लीनियर आर्थिक मॉडल पर चलते रहते हैं, तो एक विकसित होती अर्थव्यवस्था और ग्राहकों की बड़ी तादाद की वजह से संसाधनों और उत्पादों की बढ़ती मांग की वजह से ये समस्या और बिगड़ती ही जाएगी.

इन चुनौतियों से सर्कुलर अर्थव्यवस्था निजात दिला सकती है, क्योंकि इसमें फेंके गए उत्पादों को कई तरीक़ों से कम किया जा सकता है. इसमें उत्पादों के सही रख-रखाव और मरम्मत करके, द्वितीयक बाज़ार में उत्पाद के मालिकाना हक़ को बदलकर, उसे नए सिरे से चमकाकर और रिसाइकिलिंग करके उत्पादों की जीवन अवधि को बढ़ाया जा सकता है.

 

सर्कुलर अर्थव्यवस्था से प्रदूषण को कम करना

 

भारत द्वारा 2070 तक नेट ज़ीरो का लक्ष्य हासिल करने का वादा पूरा करने के लिए तमाम तरह की तकनीकों, नीतियों और नियामक सुधारों के साथ साथ नए वित्तीय और कारोबारी मॉडलों की ज़रूरत पड़ेगी. सर्कुलर अर्थव्यवस्था (CE) इनमें से एक ऐसा मॉडल है, जो ऊर्जा की बचत करके भारत की नेट ज़ीरो का लक्ष्य हासिल करने की महत्वाकांक्षा पूरी करने में योगदान दे सकती है. एक रिसर्च पेपर के मुताबिक़, CE में इतनी संभावना है कि ये दुनिया भर में ऊर्जा की खपत को 6 से 11 प्रतिशत तक कम कर सकती है. इसके अतिरिक्त भारत के विकसित और हरित अर्थव्यवस्था बनने के सफ़र में बहुत बड़ी तादाद में संसाधनों की ज़रूरत होगी, जिनमें से ज़्यादातर का आयात करना होगा. लीनियर से सर्कुलर अर्थव्यवस्था की तरफ़ रुख़ करके आयातित सामान की की मांग कम होगी और देश आत्मनिर्भर बनकर विदेशी मुद्रा भी बचा सकेगा.

 वैसे तो सर्कुलर इकॉनमी के कई फ़ायदे हैं. लेकिन, इसे बड़े पैमाने पर अपनाने की राह में कई चुनौतियां भी हैं. सबसे अहम चुनौतियां तो इस्तेमाल किए जा चुके उत्पादों को जमा करने में आने वाली मुश्किल और उसकी लागत

वैसे तो सर्कुलर इकॉनमी के कई फ़ायदे हैं. लेकिन, इसे बड़े पैमाने पर अपनाने की राह में कई चुनौतियां भी हैं. सबसे अहम चुनौतियां तो इस्तेमाल किए जा चुके उत्पादों को जमा करने में आने वाली मुश्किल और उसकी लागत, उत्पादों का प्रवाह उलटने के लिए आवश्यक आपूर्ति श्रृंखला का अभाव और जनता की सीमित भागीदारी हैं; हो सकता है कि वसूली जाने वाली क़ीमत लागत से कम हो; बेहद भारी उत्पादों को लाना ले जाना और रिसाइकिल करना मुश्किल होता है; और सेकेंडरी बाज़ार के अस्तित्व का न होना भी एक चुनौती है.

 

समाधान

 

जो उत्पादन बड़े स्तर पर स्टील, एल्यूमिनियम और सीमेंट का इस्तेमाल करते हैं, उनको लक्ष्य करके ठेके वाला मॉडल अपनाना असरदार और लागू कर सकने लायक़ समाधान होगा, जो ऊपर उल्लिखित चुनौतियों से निपटने में मददगार बन सकता है. इन उत्पादों में काफ़ी ऊर्जा लगती है, इनका कार्बन उत्सर्जन कम करना मुश्किल और प्रदूषण फैलाने वाला होता है. इसलिए, इन सामानों के इस्तेमाल से बने उत्पादों को रिसाइकिल करने से ऊर्जा की ज़रूरतें कम होंगी और प्रदूषण की समस्या में भी कमी आएगी. तकनीकी रूप से इन्हें फिर से तैयार करके दोबारा उपयोग किया जा सकता है.

 

ठेके वाले मॉडल में संपत्तियों को उनकी जीवन अवधि समाप्त होने के बाद निर्माता को वापस किए जाने का प्रावधान होता है. मिसाल के तौर पर, कोई स्टील कंपनी ऑटोमोबाइल या उनके कल पुर्ज़े बनाने वाली कंपनियों के साथ सौदा करता है. शर्त ये होती है कि स्टील को रिसाइकिल या फिर से तैयार नहीं किया जाता और उसे स्टील निर्माता को वापस कर दिया जाता है. अगर ग्राहक उपयोग करने के बाद ख़ुद किसी उत्पाद को रिसाइकिल या नए सिरे से तैयार नहीं करते तोफिर वो इसके मालिक नहीं रह जाते हैं. ठेके की अवधि ही उस संपत्ति की मियाद हो सकती है. हालांकि, इस्तेमाल करने वाले को इसके निर्माता को वही क़ीमत मौक़े पर देनी होगी, न कि पट्टे के दौरान किस्तों में देनी होगी. ऐसे समझौतों में अपग्रेड किए जाने का लचीलापन उपलब्ध होगा, जहां ग्राहक नए और अधिक कुशल मॉडल को अपना सकते हैं, जिससे स्थायित्व के मामले में लगातार सुधार को प्रोत्साहित किया जा सकेगा.

 

रख-रखाव की ज़िम्मेदारी यूज़र की होगी

 

ठेके वाले इस मॉडल में इस्तेमाल करने वाले की ये ज़िम्मेदारी होगी कि वो उत्पाद का सही रख-रखा करे, ताकि वो हमेशा अच्छी स्थिति में रहे. इससे उत्पाद की जगह कोई नया प्रोडक्ट लेने और कचरा पैदा होने की ज़रूरत कम होगी. रख-रखाव के तरीक़ों को पर्यावरण के लिए मुफ़ीद मानकों (जैसे कि बायोडिग्रेडेबल लुब्रिकैंट का इस्तेमाल) का पालन करना होगा. निर्माण करने वाली कंपनियां यूज़र को उत्पाद के बेहतर इस्तेमाल के लिए प्रशिक्षित करेंगे, ताकि उसकी जीवन अवधि और कुशलता अधिकतम हो सके. निर्माता यूज़र को लगातार मदद दे सकते हैं, ताकि उपभोक्ता उत्पाद की जगह कोई नया सामान ख़रीदने के बजाय उसी का उपयोग जारी रखें. निर्माता उन ग्राहकों को प्रोत्साहन या डिसकाउंट भी दे सकते हैं, जो उत्पाद का ठीक से रख-रखाव करें और उन्हें अच्छी स्थिति में वापस करें. इस मामले में एक तीसरे पक्ष को नियुक्त किया जा सकता है, जो नियमित समीक्षा करके ठेके में तय की गई स्थायित्व की शर्तों का समुचित पालन करना सुनिश्चित करे. इस ढांचे में दोबारा इस्तेमाल करने, उसे फिर से इस्तेमाल लायक़ बनाने और उत्पादों के कचरे के सही तरीक़े से निस्तारण को बढ़ावा मिलता है, जिससे कचरे में काफ़ी कमी लाना सुनिश्चित होता है और किसी उत्पाद के पूरे जीवन चक्र में संसाधनों की कुशलता में बढ़ोत्तरी होती है.

 

प्रभाव बढ़ाने के लिए अनुकूल नीतियों और नियमों का निर्माण

 

भारत में उत्पादकों की एक विस्तारित जवाबदेही की नीति तो है, लेकिन ये प्लास्टिक के कचरे के प्रबंधन तक सीमित है. इस मॉडल को अधिक असरदार बनाने के लिए नीति निर्माताओं को चाहिए कि वो इसका दायरा और बढ़ाएं औऱ इसमें अधिक से अधिक मैटेरियल और उत्पादों को शामिल करें. पहला क़दम तो ये होना चाहिए कि उन उत्पादों की पहचान की जाए जो पर्यावरण के ठोस लाभ उपलब्ध कराते हैं (मिसाल के तौर पर लीनियर मॉडल की तुलना में ऊर्जा की मांग कम करते हों), जिन्हें बहुत अधिक अतिरिक्त लागत के बग़ैर फिर से तैयार या रिसाइकिल किया जा सके. नियमन करने वाले चिह्नित किए गए उत्पादों के निर्माताओं के लिए यूज़र के साथ एक समझौता करने को अनिवार्य बना सकते हैं. इसके तहत अगर कोई उत्पाद फिर से तैयार नहीं किया जाता और दोबारा इस्तेमाल नहीं होता, तो यूज़र उसे निर्माता को वापस करें. कुछ ख़ास लक्ष्य हासिल करने की सूरत में सरकार टैक्स में रियायतें और प्रोत्साहन भी दे सकती है. मिसाल के तौर पर अगर निर्माता अपनी बिक्री वाले 60 प्रतिशत से अधिक उत्पादों को रिसाइकिल या दोबारा तैयार करके बेचते हैं, तो वो अपने आयकर में दो प्रतिशत की रियायत हासिल कर सकें.

 इसके अतिरिक्त सरकार को चाहिए कि वो इस्तेमाल किए जा चुके उत्पादों को ग्राहकों से इकट्ठा करके फिर से तैयार करने या रिसाइकिल करने के लिए ज़रूरी मूलभूत ढांचे के निर्माण में मदद करे. 

इसके अतिरिक्त सरकार को चाहिए कि वो इस्तेमाल किए जा चुके उत्पादों को ग्राहकों से इकट्ठा करके फिर से तैयार करने या रिसाइकिल करने के लिए ज़रूरी मूलभूत ढांचे के निर्माण में मदद करे. नियमन करने वाले उन उत्पादों को अलग अलग करना अनिवार्य कर सकते हैं, जहां ऊंची क़ीमत वाले उत्पादों को दोबारा इस्तेमाल किया जा सकता है (जैसे कि बैटरियों में इलेक्ट्रॉनिक सामान). सरकार विवादों के निपटारे के लिए एक हरित पैनल गठित कर सकती है जो पर्यावरण से जुड़े संघर्षों में महारत रखती हो, ताकि विवादों का हल निकल सके. स्थायित्व के लक्ष्यों पर ध्यान केंद्रित रखने और साझीदारी के मूल्यों को बनाए रखने के लिए किसी क़ानूनी क़दम से पहले मध्यस्थता और आपसी बातचीत के इस्तेमाल पर ज़ोर होना चाहिए.

 

ऐसा होने पर निर्माता स्थायित्व को बढ़ावा देने वाली कंपनी के तौर पर शोहरत हासिल करते हैं और वो अपने समकक्षों की तुलना में रिसाइकिल करने की बेहतर दरें मुहैया करा सकते हैं. कुशल और अच्छे रख-रखाव वाले उत्पादों की वजह से ग्राहक के लिए उपयोग की लागत कम होती है.

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