Author : Kabir Taneja

Published on Apr 25, 2017 Updated 0 Hours ago

इस साल के अंत में शाह सलमान के भारत दौरे को देखते हुए सऊदी अरब द्वारा भारतीय अर्थव्यवस्था में निवेश किया गया और इसके साथ ही सऊदी अरब द्वारा भारत में निवेश के लिए एक सऊदी अरब द्वारा भारत को तैयार किया जाना चाहिए।

सऊदी अरब को चाहिए एशिया का साथ, लाभ गेन भारत

सऊदी अरब के शाह सलमान बिन अब्दुलअजीज अल सऊद ने एशिया की बहुप्रचारित यात्रा के दौरान पिछले कुछ वर्षों में ग्रामीण इलाकों में अपनी यात्राएं कीं। यह टूर अप्लायन्सेज उनके साथ आए दल के विशाल आकार को लेकर पेपरों की रिपब्लिक छाया में आ रहा है। इस दल में 1,500 लोग शामिल थे जिनमें सलाहकार, किशोर, सहयोगी विशेषज्ञ और सहायक कर्मचारी शामिल थे। इस दौरान मलेशिया, इंडोनेशिया, ब्रुनेई, चीन और जापान का दौरा किया गया। वैसे तो इस दौरे में मूल रूप से मंदी भी शामिल थी, लेकिन इस देश में फ्लू फैलने की वजह से पिछली बार माले में इस दल के स्थिरता को रद्द कर दिया गया था।

पिछले कुछ वर्षों से सऊदी अरब ने मुख्योग्यत: तेल से ही राजस्व राजस्व वसूली करने की अपनी ऐतिहासिक लता से घरेलू अर्थव्यवस्था को कुछ राहत देने के लिए आविश्यककदम उठाना शुरू कर दिया है। वस्तुतः हो कि कच्चे तेल की बदकिस्मती ही सउद का राजघराना मध्य-पूर्व की सबसे शक्तिशाली हस्ती के रूप में उभरकर सामने आई है। यही नहीं, इस राजघराने से पश्चिमी देशों को अतिरिक्त सहायता भी मिलती है। हालाँकि, वैश्विक संग्रहालय के साथ-साथ तेल की आबादी में भारी गिरावट, सऊदी अरब की जनसंख्या और ऊर्जा की जनसंख्या आदि में निवेश भी दुबई के रास्ते पर स्थिरता और अन्य क्षेत्रों जैसे कि उद्यमों, सेवाओं, युवाओं की आबादी आदि में निवेश को बढ़ावा देता है। ड्रू द्वारा पेट्रो-डॉलर से दोस्ती करना शुरू कर रही है।

शाह सलमान का एशिया दौरा वैश्विक आर्थिक परामर्शों के ही पैमाने पर है, अंतर्राष्ट्रीय व्यापार और वित्त का सबसे अहम हिसा अब पश्चिम के पारंपरिक सिद्धांतों से खिसक कर पूरब में नए उद्योग, आर्थिक और राजनीतिक प्रभाव से जुड़े अवसरों की ओर होमुख कर रहा है। सोसा, इस दौरे का उद्देशयोग्य सिर्फ आर्थिक हितों की नीति को जारी रखना ही नहीं था, बल्कि दक्षिण-पूर्व एशिया के मुख्मुख्य: सुन्नी मुस्लिम मुस्लिम देश के साथ संपर्क साधने की नीति को जारी रखना भी था, जो अब भी सऊदी अरब का एक मुख्मुख विदेश नीति है। सिद्धांत है. दुनिया भर में अपनी कुशल, अनैतिक धार्मिक संपर्क नीति को जारी रखने के बावजूद सऊदी अरब के मुख्य हित अब आर्थिक मसलों पर ही धारियाँ होती जा रही हैं, वह एक ऐसे ही उदारवादी में अपनी अस्ति सिद्धांतों को बनाए रखने में छोड़ी गई है जिसमें सिर्फ पेट्रो-डॉलर शामिल हैं ही स्थिरता की उपयोगिता में सक्षम नहीं हो पायेगा। सऊदी अरब के लिए यह स्थिरता एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, क्योंकि उसे अपनी आबादी के लिए शुरू की गई घरेलू सामाजिक छूट के अपने विशाल नेटवर्क को निरंतर धन लाभ के लिए प्रवेश की आवश्यकता होगी। असत्यापित हो कि सऊदी अरब की आम जनता ने अब तक बिना किसी आंतरिक हमले के कुछ हद तक देश में स्थिरता के साथ-साथ सउद के राजघराने पर भी आधिपत्य कायम रखा है।

सऊदी अरब के अनगिनत अवसरों के साथ वैश्विक बाजार में प्रवेश कर रहे हैं भारत लाभ उठा सकते हैं। इनमें तेल और गैस भी शामिल हैं।

इस एशिया यात्रा के दौरान सऊदी अरब ने मलेशिया और इंडोनेशिया के साथ 16 अरब डॉलर के तेल शोधन पर हस्ताक्षर किए। जापान, जो अब सऊदी अरब के तेल का सबसे बड़ा प्रतीक है, ने चीन को पीछे छोड़ दिया है। इस बीच, लगभग 750 अरब डॉलर का मूलधन सऊदी सॉवरेन फंड 100 अरब डॉलर के निवेश कोष के लिए टोक्यो स्थित सॉफ्टबैंक से हाथ मिलाने की तैयारी कर रहा है। पूर्वी सागर के पार जापान का कट्टर प्रतिद्वंद्वी चीन भी सऊदी अरब के साथ अच्छे संबंध रखता है और शाह की यात्रा के दौरान दोनों देशों ने 65 अरब डॉलर की मूल शत्रुता के 'संभावनाओं' के लिए दोस्ती की।

भारत को शाह सलमान के एशिया भ्रमण को एक ऐसी नीति के रूप में देखना चाहिए कि सऊदी अरब के मालिक अपनी अर्थव्यवस्था के साथ क्या करना चाहते हैं और एशिया में निवेश करने के लिए अपनी निवेश योजना बनाना चाहते हैं। भारत अब भी अपनी वार्षिक तेल आपूर्ति का लगभग पांचवाँ हिस्सा सऊदी अरब से प्राप्त करता है। इस बीच, रिपोर्ट्स के मुताबिक सरकारी तेल कंपनी सऊदी अरामको, जो दुनिया की सबसे बड़ी आई पेट्रोलियम कंपनी की तैयारी में है, वह भी भारत के डाउनस्ट्रीम क्षेत्र यानी मार्केटिंग में भारी-भरकम निवेश करने की इच्छी है। साल 2016 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बेन की सऊदी अरब यात्रा और उससे पहले ऑस्ट्रेलिया के ब्रिस में साल 2014 में आयोजित जी-20 शिखर सम्मेलन के दौरान पूर्व शासक शाह अब्दुल्ला बिन अब्दुल अजीज के साथ खाड़ी देशों में उनके नेतृत्व को मदद मिली। था। यह एक महत्वपूर्ण क्षण था क्योंकि वर्ष 2014 तक कई खाड़ी देशों की आम चुनाव में उन्हें बधाई देने से भी शुरुआत की गई थी। गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में मोदी के अतीत और फिर से साल 2002 में हुई गोधरा की घटना की वजह से ऐसी स्थिति देखने को मिली थी। केवल मिस्र और कतर ही उस क्षेत्र के ऐसे दो देश थे, जिन्होंने बिना किसी देरी के जीत के लिए मोदी को बधाई दी थी। हालांकि, उत्तर प्रदेश में हुए चुनाव के बाद इस तरह के मोहरे में तबदीली साफा दिखाई दी। असल में, अबू धाबी के क्राउन प्रिंस ने ही पहले ऐसे विदेशी नेता थे जिन्होनें इस चुनाव में जीत पर मोदी को बधाई दी। इसके बाद तो कई विदेशी नेताओं ने इस जीत पर मोदी को बधाई दी, जिसमें कतर के अमीर भी शामिल थे।

एक और बात. मोदी सरकार इसके बाद खाड़ी देशों को रिझाने के लिए निरंतर सही एवं सकारात्‍मक कदम उठाती रही है। वर्ष 2015 में 90 साल के शाह अब्दुल्ला का निधन हो गया और परंपरा के अनुसार भारत पूरे दिन शोक व्यक्त करते हुए विश्व भर के देशों में शामिल हो गया। ठीक ऐसा ही सम्मन वर्ष 2005 में शाह अब्दुल्ला के पूर्वज शाह फहद का निधन हो गया था। पिछले साल मोदी ने दोनों देशों के बीच पहले ही दो प्रमुख विवादित बयानों को आगे बढ़ाने के लिए रियाद के दौरे की घोषणा की थी, जिसमें एक साल 2006 का दिल्लीपत्र और दूसरे साल 2010 का रियाद दौरा शामिल था। केंद्र में कांग्रेस के शासनकाल के दौरान वर्ष 2006 में अब्दुल्ला की भारत यात्रा दोनों देशों के बीच और देशों के बीच बातचीत सुनिश्चित करने का मार्ग प्रशस्त हो गई थी। वह 51 वर्षों में भारत की यात्रा करने वाले सउद शाह परिवार के प्रथम प्रमुख थे। उसके बाद से ही असामूथिक रिसोर्सान्ते प्रागाढ़ होते चले गये। दोनों देशों के बीच राजनीतिक विशिष्टताएं जैसे कि आतंकवादी साझेदार समुदाय पर सामुदायिक सहयोग इस दिशा में विशेष रूप से उल्लिखित है। निरंतर मजबूत रेंज कार्गो स्टॉक एक्सचेंज का एक प्रमाण यह भी है कि सुखोई-30 एमकेई लड़ाकू जेट लांचर और सहायक विमान और 110 एयरमैन के भारतीय वायु सेना दल ने ब्रिटेन में युद्धाभ्यास के लिए इस सल्तनत की भी यात्रा की थी। वैसे तो इस यात्रा पर प्रकाश डाला नहीं गया था, लेकिन यह वर्ष 2014 में दोनों देशों के बीच उद्यम रक्षा पर हस्ताक्षर के बाद होने वाला था: सबसे महत्वपूर्ण क्षण था।

मोदी के दौरे से पहले एक भाषण में विदेश सचिव एस.एस. जयशंकर ने पश्चिम एशिया की ओर भारत की पहुंच को लेकर 'थिंक वेस्ट' पर विशेष बल दिया था। पश्चिम एशिया का एक ऐसा ख़तरनाक क्षेत्र है जो साठोत्तरी के दशकों में नेहरूवादी सम्राट द्वारा निर्मित की गई छाया में अंकित हो रहा है। हालाँकि, अब इसमें नई जान की ज़रूरत है। जयशंकर ने कहा, “अगर पूर्वी मोर्चा लंबे समय से चली आ रही नीति के बारे में बात कर रही है तो पश्चिमी मोर्चा अभी हाल ही में उभरती हुई पार्टी के रूप में उभरी है, भले ही खाड़ी देश में भारत की ऐतिहासिक ताकतें न बनी हों।” खाड़ी देशों में भारत के 7 मिलियन लोगों का एक समुदाय सुनिश्चित है जो निवेश और निवेश (सावदेश उद्यम वाली जाति) का एक प्रभावशाली स्रोत है। हालाँकि, यह एक विकासपरक घटना है जिसका उद्देश्य गणनाओं से कोई लेना-देना नहीं है। इस क्षेत्र पर हमारी ऊर्जा समुच्चय भी नीति की तुलना में उद्यमों से कहीं अधिक देखी जा रही है।" इसमें यह भी कहा गया है, ''इन (खाड़ी) देशों के पार-आध्यात्मिक प्रभाव से हमें सहयोग के नए अवसर आसान हो रहे हैं।'' मैं इस बारे में भविष्यवाणी कर रहा हूं कि 'एक्ट ईस्ट' का मिलान 'थिंक वेस्ट' से होगा।''

प्रोटोटाइप में अपात्रों को ही आगाह करने वाली बातें भी बताई जाती हैं। अत: ऐसे में सऊदी अरब के साथ मजबूत समूह को आक्रामक भारतीय दृष्टिकोण अपनाते समय इजराइल और ईरान के साथ साझा करने पर भी ध्यान देना होगा।

इस साल के आर्षार्द्ध में शाह सलमान की प्रस्तावित भारत यात्रा से पहले क्षेत्रीय राजनीति में अपना संतुलन बनाए रखने के लिए भारत के लिए कई चुनावी नतीजे आएंगे। वैसे तो मोदी की बहुप्रतीक्षित इजराइल यात्रा भी शामिल होगी, लेकिन भारत के प्रधानमंत्री सबसे पहले फिलीस्तीन के राष्ट्रपति मोहम्मद अब्बास के साथ शामिल होंगे और इसके साथ ही फिलीस्तीन के मुद्दे को लेकर अपना रुख भारत के संतुलन पर कायम रखेंगे। 'फतह' जैसे धार्मिक विश्वास के साथ लेकर भारत के घातक खतरों के बावजूद इस बात को खुलासा में रखा जाएगा। यहां यह भी याद रखना जरूरी है कि पश्चिम एशियाई राजनीति अपने रुख को लेकर निरपेक्ष नहीं है, क्योंकि ईरान के 'पी5+1' परमाणु उत्सर्जन के मामले में उसे मुसलमानों के खिलाफ़ जा रहे थे, सऊदी अरब और इज़रायल एकजुट हो रहे थे, जबकि उनके एकजुटता की संभावना को रेखांकित नहीं किया जा रहा था।

सऊदी अरब में पहले ही भारत में विभिन्न कोयला कंपनियों की स्थापना में महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों में बड़ी तेल रिफाइनरियों की स्थापना भी शामिल है। इस साल के अंत में शाह सलमान के भारत दौरे को देखते हुए सऊदी अरब द्वारा भारतीय अर्थव्यवस्था में निवेश किया गया और इसके साथ ही सऊदी अरब द्वारा भारत में निवेश के लिए एक सऊदी अरब द्वारा भारत को तैयार किया जाना चाहिए। इसके तहत भारत को खाड़ी में आईटी, सेवाएं और ऑटो-निर्माण जैसी कंपनियों को सहायता प्रदान की जानी चाहिए। एक ठोस भारत-सउदी आर्थिक दृष्टिकोण का मार्ग प्रशस्त करने का एक अच्छा तरीका यह है कि आर्थिक कॉलेजों को उस 'रणनीति' परिकल से अलग कर देना चाहिए जो भारत के लगभग हर उदाहरण का अहम अंग है। रक्षा सहयोग जैसे क्षेत्रों की तुलना में आर्थिक बाजार के सहयोगियों को बाकी हिस्सों में शामिल किया गया है, उनके लिए नीति स्पष्टता और समर्थकों की नजरिया की जरूरत है। सऊदी सॉवरेन फंड जैसे हेवी-भरकम अटेस्ट वाले सॉवरेन फंड निश्चित रूप से इस तरह की नजर रखेंगे।

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