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उत्तर प्रदेश, जिसे दूधियों (मिल्कमैन) की धरती के रूप में भी जाना जाता है, भारत का सबसे बड़ा दुग्ध उत्पादक राज्य है. उत्तर प्रदेश में देश के लगभग 18 प्रतिशत दूध का उत्पादन होता है. (देखें चित्र -1)[1] उत्तर प्रदेश के कानपुर नगर ज़िले के दलेलपुर गांव से स्वावलंबन और सफलता की एक प्रेरणादायक कहानी सामने आई है. यह कहानी है कि दुग्ध उत्पादन में सफलता हासिल करने वाली 39 वर्षीय सपना सिंह की, जिन्होंने अपनी खुद की डेयरी स्थापित करने के लिए तमाम बाधाओं को कुशलता से पार किया है. आज सपना सिंह अपनी डेयरी पर दूध उत्पादन करने के साथ ही आस-पास के लगभग 35 डेयरी किसानों से दूध एकत्र करती हैं, जिनमें से ज़्यादातर महिला डेयरी किसान हैं. एक और अहम बात यह है कि मार्च, 2022 से सपना के डेयरी सेंटर से होने वाला पैसों का लेनदेन पूरी तरह से डिजिटल हो चुका है.
आज सपना सिंह अपनी डेयरी पर दूध उत्पादन करने के साथ ही आस-पास के लगभग 35 डेयरी किसानों से दूध एकत्र करती हैं, जिनमें से ज़्यादातर महिला डेयरी किसान हैं. एक और अहम बात यह है कि मार्च, 2022 से सपना के डेयरी सेंटर से होने वाला पैसों का लेनदेन पूरी तरह से डिजिटल हो चुका है.
वैश्विक दुग्ध उत्पादन में भारत का योगदान लगभग 23 प्रतिशत है. वर्ष 2014-15 में भारत में कुल दुग्ध उत्पादन 146.31 मिलियन टन था, जो 6.2 प्रतिशत की कुल वार्षिक वृद्धि दर से बढ़ते हुए वर्ष 2020-21 में 209.96 मिलियन टन तक पहुंच गया.[2] डेयरी उद्योग में सपना की सफलता की इस यात्रा ने दलेलपुर गांव को दुनिया के सबसे बड़े दूध उत्पादक देश के दिल में एक सफेद सितारे के रूप में दर्ज़ कर दिया है. सपना के दिवंगत पिता उनकी सबसे बड़ी ताक़त थे, जो खेती-किसानी किया करते थे, जबकि उनकी मां एक गृहिणी थीं. ऐसे में जबकि कानपुर नगर ज़िले में केवल 58.5 प्रतिशत महिलाओं ने 10 या उससे अधिक वर्षों की स्कूली शिक्षा ग्रहण की है,[3] सपना के माता-पिता की सोच प्रगतिशील थी और वे अपनी बेटी को शिक्षित करने के महत्त्व को भली-भांति जानते थे. सपना ने पोस्ट ग्रेजुएशन किया, जो कि दलेलपुर जैसे गांव के लिए एक बहुत बड़ी बात थी. सपना की उच्च शिक्षा ने ही उन्हें अपने व्यवसाय में टेक्नोलॉजी के उपयोग के लिए प्रेरित किया और उनके अंदर आत्मविश्वास पैदा किया.
सपना घरेलू हिंसा की शिकार हैं. वर्ष 2017 में गर्भवती होने पर उन्होंने बहादुरी दिखाते हुए अपनी ससुराल को छोड़ दिया और अपने माता-पिता के घर लौट आई थीं. वर्ष 2019 में जब दुग्ध कंपनी नमस्ते इंडिया क्षेत्र का सर्वेक्षण करने के लिए आई, तो सपना ने उन्हें कम से कम 6 महीने के लिए अपने गांव में विलेज लेवल कलेक्शन सेंटर (वीएलसीसी) संचालित करने का अवसर देने के लिए राजी कर लिया. हालांकि इसको लेकर उन्हें अपने पति, सास-ससुर और पिता में से किसी का भी समर्थन नहीं मिला था.
सपना को गांव के लोगों को उनकी क्षमताओं पर भरोसा करने और अपने घरों में पैदा होने वाले दूध को उनकी डेयरी में जमा करने के लिए राजी करने को लेकर काफ़ी मेहनत करनी पड़ी. लेकिन सपना ने डेयरी किसानों को समय पर भुगतान करके ज़ल्द ही उन्हें प्रभावित कर लिया और फिर क्या था गांव के कई अन्य लोग भी डेयरी व्यवसाय का विस्तार करने में सपना की मदद करने लगे. सपना कहती हैं, “मुझे अपनी शिक्षा का लाभ मिला और इसलिए जब मैंने डेयरी शुरू की तो मैंने उन महिलाओं से बात करना शुरू किया, जो अपने घरों में पैदा होने वाले दूध को बेचने के लिए मेरे पास आती थीं. जब मैंने उनकी कहानियां सुनीं, तो मुझे एहसास हुआ कि यह मेरी ज़िम्मेदारी है कि मैं उन महिलाओं को सशक्त करूं और उनके हालातों को बदलूं, जिस प्रकार मैंने खुद के लिए किया है. अगर मैं इनके लिए कुछ कर पाई तो यह मेरे लिए बहुत ही ख़ुशी की बात होगी.”
उत्तर प्रदेश में महिलाओं का तकनीकी सशक्तिकरण(15-49 वर्ष की आयु) |
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वे महिलाएं जिनके पास मोबाइल फोन है और खुद उपयोग भी करती हैं |
46.5% |
जो महिलाएं अपने मोबाइल फोन में एसएमएस मैसेज पढ़ सकती हैं |
65.7% |
जो महिलाएं वित्तीय लेन-देन के लिए मोबाइल का उपयोग करती हैं |
18.0% |
जिन महिलाओं ने कभी इंटरनेट का इस्तेमाल किया है |
30.6% |
स्रोत : राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण, 2019-21[4]
जब कोविड-19 महामारी आई, तो बैंकों समेत सबकुछ बंद हो गया. उस समय सपना ने टेक्नोलॉजी की ओर रुख़ किया. वह कहती हैं, “मुझे अपनी डेयरी के फायनेंस का प्रबंधन करना था. पहले डेयरी में नकद भुगतान किया जाता था. महामारी की वजह से बैंकों पर प्रतिबंधों के चलते और कोविड-19 के फैलने के डर के बीच मुझे इस बात को लेकर बेहद तनाव था कि जो लोग मुझे दूध बेचते हैं, उनका भुगतान कैसे होगा. अगर लोगों को पैसे नहीं मिले तो वे अपने ज़रूरी पेमेंट कैंसे करेंगे, ज़रूरी आवश्यकताओं को कैसे पूरा करेंगे? इसके बाद मेरे मन में विचार आया कि अगर मैं ऑनलाइन लेनदेन करना सीख जाऊं, तो मैं किसी के बैंक खाते में पैसे भेज सकती हूं और वो अपना पैसा एटीएम से निकाल सकता है. इसलिए मैं महामारी के दौरान ही डिजिटल बैंकिंग की तरफ मुड़ गई.”
सपना याद करती हैं कि किस प्रकार 1990 के दशक के आख़िर में उनके पिता गांव में सबसे पहले मोबाइल फोन ख़रीदकर लाए थे. मोबाइल फोन ने वर्ष 2011 से ही सपना की बहुत मदद की है, जब उन्हें पोस्ट ग्रेजुएट की पढ़ाई के दौरान कीपैड वाला एक बेसिक फोन दिया गया था. वर्ष 2017 में ही उन्होंने अपना पहला स्मार्टफोन इस्तेमाल करना शुरू किया था. महामारी के दौरान, उन्होंने इस स्मार्ट फोन के ज़रिए ऑनलाइन लेनदेन करना सीखा और अब उनका फोन, उनके व्यवसाय की अहम आवश्यकता बन चुका है. वास्तव में देखा जाए तो कोविड-19 महामारी ने भारत में डिजिटल भुगतान को बढ़ावा देने के लिए एक प्रेरक के तौर पर काम किया है. वर्ष 2017-18 में देश में कुल डिजिटल भुगतान 20.71 बिलियन रुपये था, जो वर्ष 2020-21.[5] में बढ़कर 55.54 बिलियन रुपये हो गया. सपना अब सिविल सोसाइटी संगठन सॉलिडेरिडैड (Solidaridad) के लिए एक सामुदायिक मोबिलाइज़र के रूप में काम करती हैं, जिसके विशेषज्ञों ने उन्हें वर्ष 2021 में अच्छी डेयरी प्रैक्टिस और वित्तीय एवं डिजिटल साक्षरता के बारे में प्रशिक्षित किया था. इस प्रशिक्षण को रिलायंस फाउंडेशन और USAID की एक पहल, ‘वुमेन कनेक्ट चैलेंज इंडिया’ के माध्यम से समर्थित किया गया था.
प्रशिक्षण के बाद जब सपना स्मार्टफोन का उपयोग करने में कुशल हो गईं, तो उन्होंने ज़ल्द ही यह महसूस किया कि अपने समुदाय, विशेष रूप से महिलाओं को डिजिटल उपकरणों को अपनाने के लिए प्रेरित करना एक बड़ी चुनौती है. अब वह अपनी डेयरी से जुड़ी महिलाओं को ऑनलाइन वित्तीय लेनदेन करने के लिए प्रशिक्षिण हेतु सॉलिडेरिडैड का सहयोग करती हैं. लेकिन महिलाओं को डिजिटल साक्षरता हासिल करने के लिए प्रेरित करने के उनके प्रयास काफ़ी अलग तरह के रहे हैं. वह कहती हैं कि पेमेंट ऐप डाउनलोड करने से लेकर क्यूआर कोड के जरिए मनी ट्रांसफर तक हर पहलू को सिखाने के लिए वह पूरा समय देती हैं, क्योंकि वह यह सुनिश्चित करना चाहती हैं कि महिलाएं सब कुछ अच्छी तरह से समझें. सपना कहती हैं, “महिलाओं को अधिक व्यावहारिक अनुभव प्रदान करने के लिए मैं अक्सर उनसे फोन पे और गूगल पे जैसे ऐप के माध्यम से एक रुपया ट्रांसफर करवाती हूं, ताकि वे यूपीआई ट्रांजैक्शन[A] को लेकर ज्यादा आश्वस्त हो जाएं और उनके मन में किसी प्रकार का कोई भ्रम ना रहे.”
सपना अब सिविल सोसाइटी संगठन सॉलिडेरिडैड (Solidaridad) के लिए एक सामुदायिक मोबिलाइज़र के रूप में काम करती हैं, जिसके विशेषज्ञों ने उन्हें वर्ष 2021 में अच्छी डेयरी प्रैक्टिस और वित्तीय एवं डिजिटल साक्षरता के बारे में प्रशिक्षित किया था. इस प्रशिक्षण को रिलायंस फाउंडेशन और USAID की एक पहल, ‘वुमेन कनेक्ट चैलेंज इंडिया’ के माध्यम से समर्थित किया गया था.
सपना उदास होकर कहती हैं, “मेरे गांव की महिलाएं अक्सर मोबाइल टेक्नोलॉजी का उपयोग करने से हिचकिचाती हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि रोज़मर्रा के जीवन में उनसे जो अपेक्षा की जाती है और उनका जो काम है, उसमें इससे कोई फायदा नहीं होने वाला है. उन्हें लगता है कि वे कुछ नया सीखने में सक्षम नहीं हैं. उनका मानना है कि मवेशियों को पालना, परिवार की देखभाल करना और खेती-बाड़ी करना ही उनका असल काम है.” सपना को अक्सर महिलाओं को यह समझाना पड़ता है कि मोबाइल फोन के माध्यम से बहुत कुछ किया जा सकता है (जैसे कि महामारी के दौरान अपने बच्चों की ऑनलाइन कक्षाओं के लिए इसका उपयोग किया जा सकता है). इसके साथ ही मोबाइल टेक्नोलॉजी की जानकारी होने के बाद सिर्फ़ डिजिटल बैंकिंग ही नहीं, बल्कि यूट्यूब पर कुकिंग रेसिपी खोजने से लेकर विभिन्न वस्तुओं के बाज़ार मूल्यों की ऑनलाइन तुलना करने तक में इसका उपयोग किया जा सकता है. सपना अक्सर गांव के बड़े लोगों को अपनी बेटियों को मोबाइल फोन उपलब्ध कराने के लेकर भी समझाती हैं, ताकि वे आर्थिक रूप से जागरूक हो सकें और अपने करियर को आगे बढ़ा सकें.
सपना को ऑनलाइन बैंकिंग से संबंधित तमाम तरह की धोखाधड़ी वाले लेनदेन को लेकर लोगों के संदेह और उनके सवालों से भी जूझना पड़ता है. वह बताती हैं, “एक बार मुझे एक फर्ज़ी कॉल आया, जिसमें KYC[B] की आड़ में मेरे बैंक खाते से जुड़ी मेरी व्यक्तिगत जानकारी मांगी गई थी. लेकिन अच्छी बात यह थी कि मुझे ऐसी फर्ज़ी कॉल के बारे में पता था. इसलिए मैंने अपनी कोई भी गोपनीय जानकारी देने से पहले टोल-फ्री हेल्पलाइन पर बात की और उससे पता चला कि यह एक कॉल बैंक की तरफ से नहीं की गई थी.” हालांकि, सपना के मुताबिक डिजिटल बैंकिंग से होने वाले लाभ के सामने इस प्रकार के ज़ोख़िम कुछ भी नहीं हैं, वैसे भी इस तरह के ज़ोख़िमों को जानकारी और बेहतर डिजिटल प्रशिक्षण के माध्यम से कम किया जा सकता है. वो इस बात को सही ठहराती हैं कि डिजिटल भुगतान ने महिलाओं को सीधे उनके बैंक एकाउंट्स में पेमेंट प्राप्त करने में सक्षम बनाया है, जो उन्हें ना केवल अपने पैसे का उपयोग करने का निर्णय लेने की वित्तीय आज़ादी प्रदान करता है, बल्कि लेनदेन के रिकॉर्ड को रखना भी आसान बनाता है.
सपना के मुताबिक डिजिटल बैंकिंग से होने वाले लाभ के सामने इस प्रकार के ज़ोख़िम कुछ भी नहीं हैं, वैसे भी इस तरह के ज़ोख़िमों को जानकारी और बेहतर डिजिटल प्रशिक्षण के माध्यम से कम किया जा सकता है. वो इस बात को सही ठहराती हैं कि डिजिटल भुगतान ने महिलाओं को सीधे उनके बैंक एकाउंट्स में पेमेंट प्राप्त करने में सक्षम बनाया है, जो उन्हें ना केवल अपने पैसे का उपयोग करने का निर्णय लेने की वित्तीय आज़ादी प्रदान करता है, बल्कि लेनदेन के रिकॉर्ड को रखना भी आसान बनाता है.
सपना ने जब वर्ष 2019 में अपनी डेयरी शुरू की थी, तभी उन्हें इस बात का अंदाज़ा हो गया था कि डेयरी उद्योग की सबसे प्रमुख कड़ी महिलाएं ही हैं। इसीलिए उन्होंने महिलाओं के साथ निजी तौर पर संपर्क बनाना शुरू कर दिया था. महिलाओं से बातचीत के दौरान वह उनके बच्चों के स्वास्थ्य के बारे में पूछती थीं और सॉलिडेरिडैड की मदद से उन्हें पशुओं के इलाज एवं टीकाकरण के बारे में जानाकरी उपलब्ध कराती थीं. सपना अपने गांव की महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए कुछ अलग हटकर करना चाहती थीं. यानी डिजिटल साक्षरता के माध्यम से महिलाओं को वित्तीय स्वतंत्रता के क्षेत्र में सशक्त बनाना चाहती थीं. ज़ाहिर है कि दुग्ध उत्पादन की प्रक्रिया में जिस प्रकार से विभिन्न मशीनों का उपयोग किया जाता है, उसको देखते हुए डेयरी इंडस्ट्री के लिए प्रौद्योगिकी बेहद आवश्यक बन चुकी है. सपना कहती हैं, “हालांकि मोबाइल फोन बेहद महत्वपूर्ण हैं, लेकिन मैं अब लैपटॉप चलाने में पारंगत होना चाहती हूं ताकि मैं बड़ी स्क्रीन पर अन्य महिलाओं को और अधिक स्पष्टता के साथ प्रशिक्षण दे सकूं.”
चित्र 1: भारत के शीर्ष चार राज्यों द्वारा दुग्ध उत्पादन (2010-2020)
स्रोत: लेखक का अपना, आरबीआई प्रकाशन से मिले “राज्यवार दुग्ध उत्पादन,” के आंकड़े[6]
चित्र 2 : दूध के थोक मूल्यों की सूचकांक संख्या (प्रतिशत में)
स्रोत: लेखक का अपना, राष्ट्रीय डेयरी डेवलपमेंट बोर्ड की “थोक कीमतों के लिए सूचकांक संख्या”[7]
सपना का मानना है कि आत्मसम्मान और स्वतंत्रता जीवन की सबसे महत्वपूर्ण चीज़ें हैं. वह अपनी चार साल की बेटी को इन मूल्यों को देना चाहती हैं. वह यह भी मानती हैं कि महिलाओं को आर्थिक स्वतंत्रता प्राप्त करने में प्रौद्योगिकी मददगार साबित हो सकती है. सपना यह जानती हैं कि आगे की राह आसान नहीं होगी- दूध की क़ीमतों में बढ़ोतरी और यूपीआई पेमेंट्स पर संभावित नए शुल्क से देशभर में उनके जैसे हज़ारों डेयरी वर्कर्स पर असर पड़ने की संभावना है (चित्र-2 देखें). लेकिन जिस प्रकार से सपना ने तमाम चुनौतियों का सामना किया है और अपनी सफलता के बीच आने वाली कई बाधाओं को पार किया है, उन्हें भरोसा है कि वह भविष्य में आने वाली चुनौतियों का भी बखूबी मुक़ाबला करने में सक्षम होंगी और आगे बढ़ेंगी.
सपना का मानना है कि आत्मसम्मान और स्वतंत्रता जीवन की सबसे महत्वपूर्ण चीज़ें हैं. वह अपनी चार साल की बेटी को इन मूल्यों को देना चाहती हैं. वह यह भी मानती हैं कि महिलाओं को आर्थिक स्वतंत्रता प्राप्त करने में प्रौद्योगिकी मददगार साबित हो सकती है.
ज़रूरी सबक़
- डेयरी सेक्टर में महिलाओं के बीच डिजिटल साक्षरता बेहद महत्वपूर्ण है, ताकि वे ऑनलाइन जानकारी का प्रभावी ढंग से, सुरक्षित रूप से और ज़िम्मेदारी के साथ उपयोग कर सीधे अपने खातों में भुगतान प्राप्त कर सकें. और इससे उनकी वित्तीय आत्मनिर्भरता, आत्मविश्वास और सामाजिक स्थिति में वृद्धि हो सके.
- डिजिटल भुगतान को प्रमुखता देने और आगे बढ़ाने से समय पर पेमेंट सुनिश्चित होगा, जो कि डेयरी सेक्टर के संचालन के लिए बहुत ज़रूरी है और इससे लेनदेन के रिकॉर्ड को बनाए रखने में भी सुधार होगा.
- इंटरनेट कनेक्टिविटी के साथ स्मार्टफोन तक पहुंच महिलाओं को टैबलेट और लैपटॉप जैसे ज़्यादा जटिल लेकिन लाभदायक गैजेट्स का उपयोग करने के लिए सक्षम बनाने में मदद करेगी, जो डेयरी उद्योग को तकनीकी रूप से उन्नत करेगी.
[A] यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस या यूपीआई, जिसे नेशनल पेमेंट्स कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया द्वारा विकसित किया गया है, एक रियल टाइम पेमेंट सिस्टम है, जो बैंकों के बीच दो लोगों के खातों और व्यक्ति से मर्चेंट खातों में तत्काल ट्रांजैक्शन को सक्षम बनाता है. इसमें एक ही मोबाइल एप्लिकेशन से कई बैंक खातों को जोड़ने की भी सुविधा है.
[B] KYC का मतलब है ‘Know Your Customer’ या ‘Know Your Client’ यानी ‘अपने ग्राहक को जानें’. भारतीय बैंकिंग क्षेत्र में एक खाता खोलते समय ग्राहक की पहचान सुनिश्चित करने और सत्यापित करने के लिए जानकारी एकत्र करने की यह एक अनिवार्य प्रक्रिया है और इसे समय-समय पर अपडेट भी किया जाता है.
NOTES
[1] Ministry of Food Processing Industries, Government of India, “Opportunities in Dairy Sector in India,” https://www.mofpi.gov.in/sites/default/files/OpportunitiesinDairySectorinIndia.pdf
[2] Ministry of Finance, Government of India, “Economic Survey, 2021-22,” https://www.indiabudget.gov.in/economicsurvey/ebook_es2022/files/basic-html/page277.html#:~:text=India%20is%20ranked%201st%20in,%2D15%20 (Figure%2021)
[3] National Family Health Survey-5, Ministry of Health and Family Welfare, Government of India, “District Fact Sheet – Kanpur Nagar, Uttar Pradesh,” http://rchiips.org/nfhs/NFHS-5_FCTS/UP/Kanpur%20Nagar.pdf
[4] International Institute for Population Sciences, National Family Health Survey (NFHS-5), 2019–21: India: Volume 1, March 2022, https://iipsindia.ac.in/content/national-family-health-survey-nfhs-5-india-report
[5] “The rise of UPI empire as India leads digital payments,” NewsOnAir, July 1, 2022, https://newsonair.com/2022/07/01/the-rise-of-upi-empire-as-india-leads-digital-payments/
[6] Reserve Bank of India, “Statewise Milk production,” https://m.rbi.org.in/scripts/PublicationsView.aspx?id=20743
[7] National Dairy Development Board, “Index number for wholesale prices,” https://www.nddb.coop/information/stats/indexwholesale
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