ज्ञानोदय यानी (Enlightenment) के युग के दौरान संगठित धर्म से दूर यूरोपीय सामूहिक बुद्धि के गहरे मंथन, और पश्चिमी संवेदनशीलताओं के बाद के विकास पर विलाप करते हुए नीत्शे ने कहा, ‘ईश्वर मर चुका है’. हालांकि, युगों का बदलाव मानव की बुद्धि व साधन या एजेंसी का ऋणी नहीं है. इसके बजाय, यह शाश्वत पुनरावृत्ति के अपने स्वयं के चक्र का अनुसरण करता है, जैसे कि अभी पश्चिमी राजनीतिक संवेदनशीलता और अभिकर्तृत्व में ईश्वर तथा अच्छे व बुरे के बीच बाइनरी (जो पश्चिमी धर्मशास्त्रीय ढांचे के केंद्र में है) की वापसी हो रही है.
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