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क्या कूटनीति ही एकमात्र वास्तविक विकल्प है जो संघर्ष का तार्किक अंत प्रदान कर सकता है?
बहुत जल्द यूक्रेन (Ukraine) में जारी युद्ध (war) को नौ महीने पूरे हो जाएंगे, इसके बावज़ूद युद्ध ख़त्म होने के आसार दूर-दूर तक नहीं दिख रहे हैं. इसके आर्थिक प्रभाव के बावज़ूद यूरोप (Europe) के बाहर के अधिकांश लोग और शायद अमेरिका (America) तक यह भूल चुका है कि यह युद्ध अभी भी जारी है. केवल यूक्रेन के लोग अपना ख़ून बहा कर इस युद्ध का ख़ामियाज़ा भुगत रहे हैं. फिर भी, चाहे यह किसी भी तरह से हो, युद्ध को भूलना काफी महंगा साबित होगा, क्योंकि यह वैश्विक राजनीति (global politics) को पूरी तरह बदल देने की क्षमता रखता है.
रूस ने स्पष्ट रूप से बिना सोचे समझे कि एक युद्ध को कैसे समाप्त किया जाए, उसे शुरू कर दिया. शायद पुतिन ने यह सोच रखा था कि यूक्रेनी प्रतिरोध जल्द ही आख़िरी सांसे गिनने लगेगा या फिर यूक्रेनी आबादी का एक बड़ा हिस्सा खुले मन से रूसी सेना का स्वागत करेगी. जैसा कि हर्गिज़ नहीं हुआ है और, बल्कि इसके विपरीत, रूसी आक्रमण ने राष्ट्रपति वलोदिमिर ज़ेलेंस्की के साथ यूक्रेनी राष्ट्रवाद को काफी मज़बूत किया है – जो एक बहुत ही सफल हास्य अभिनेता हुआ करते थे – और इस जंग का प्रभावी चेहरा बन गए, जबकि रूसी मंसूबे और ख़तरनाक होने लगे.
यह सच है कि इस समस्या की जड़ में, शायद, एक विस्तारित नेटो के सामने रूस की असुरक्षा की भावना थी, जिसने कुछ वारसॉ संधि देशों को अपने पक्ष में शामिल करके शीत युद्ध के ज़मीनी नियमों का उल्लंघन किया था. जबकि यह भी एक सच है, जैसा कि पश्चिम ने तर्क दिया है, कि एक स्वतंत्र और संप्रभु देश को यह चुनने का अधिकार है कि वह किसके साथ सहयोग करेगा
यह सच है कि इस समस्या की जड़ में, शायद, एक विस्तारित नेटो के सामने रूस की असुरक्षा की भावना थी, जिसने कुछ वारसॉ संधि देशों को अपने पक्ष में शामिल करके शीत युद्ध के ज़मीनी नियमों का उल्लंघन किया था. जबकि यह भी एक सच है, जैसा कि पश्चिम ने तर्क दिया है, कि एक स्वतंत्र और संप्रभु देश को यह चुनने का अधिकार है कि वह किसके साथ सहयोग करेगा; और इस आधार पर, अगर कोई देश नेटो में शामिल होने का निर्णय लेता है तो वह निश्चित रूप से ऐसा करने के लिए स्वतंत्र है. इसके साथ ही, वास्तव में यह पश्चिमी देशों की जिम्मेदारी थी कि वह रूस को परेशान न कर यूरोप में ‘शांति व्यवस्था’ को बने रहने देते. क्योंकि कोई भी महान शक्ति अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था में अन्य महाशक्तियों द्वारा नज़रअंदाज़ किए जाने और अलग-थलग पड़ने को स्वीकार नहीं कर सकती है. क्या पश्चिमी देशों ने रूस को – जो सोवियत संघ के विघटन के कारण पिछले 30 वर्षों में महत्वपूर्ण बदलावों के दौर से गुजरा हो – उसे ‘वर्सायल्स मोमेंट’ की आड़ में अलग थलग कर दिया? अगर ऐसा है तो उसे रूस की शिकायतों के निपटारे के लिए प्रभावी राजनयिक साधनों का सहारा लेना चाहिए, भले ही वह रूसी हमले के यूक्रेन के प्रतिरोध का समर्थन ही क्यों ना करता हो. नीतियों को बढ़ावा देने के लिए प्रतिबंध कभी भी एक सफल साधन नहीं रहे हैं; और आज की वैश्वीकृत दुनिया में प्रतिबंध, दुश्मन को चोट पहुंचाने के साथ-साथ मंजूरी देने वाली शक्तियों को भी चोट पहुंचाएगी. यह वह सबक है जो यूरोपीय संघ (ईयू) के सदस्य राष्ट्र बड़ी क़ीमत चुका कर फिर से सीख रहे हैं.
दूसरी ओर, स्पष्ट संकेत हैं कि पुतिन का रूस अपने पुराने रसूख़ की वापसी के लिए रूसी सीमाओं का विस्तार करने की कोशिश कर रहा है, इस मंसूबे के साथ ही अपने पड़ोस में डेमोग्राफिक्स (जनसांख्यिकी) का लाभ उठाकर जितना संभव हो उतना पूर्व सोवियत इलाक़ों को फिर से रूस में मिला लिया जाए – वो डेमोग्राफिक्स (जनसांख्यिकी) जो गैर-रूसी क्षेत्रों में रूसीकरण की तत्कालीन सोवियत नीति द्वारा निश्चित तौर पर निर्मित थी. क्रीमिया पर कब्ज़ा, जो 1994 में रूस, ब्रिटेन और संयुक्त राज्य अमेरिका (यूएस) के बीच हस्ताक्षरित बुडापेस्ट ज्ञापन का उल्लंघन है, जिसमें यूक्रेन की क्षेत्रीय अखंडता, जिसमें क्रीमिया भी शामिल है, के सम्मान करने की बात कही गई थी, एक अच्छा उदाहरण था. क्रीमिया, जो 18वीं शताब्दी के अंत में 84 प्रतिशत क्रीमियाई तातार आबादी वाला एक तातार क्षेत्र था, जो बाद में साम्राज्यवादी रूस का हिस्सा बन गया. क्रांति के बाद यह यूक्रेन सोवियत सोशलिस्ट रिपब्लिक का एक हिस्सा बन गया. साल 2014 तक क्रीमिया में 68 प्रतिशत रूसी आबादी और 80 प्रतिशत से अधिक रूसी बोलने वाले लोग थे.
मौज़ूदा रूसी आक्रमण कीव में शासन परिवर्तन की कोशिश हो सकती है, जैसे कि रूस यूक्रेन में एक कठपुतली शासन स्थापित कर सकता है; शायद, विक्टर यानुकोविच को वापस लाना, जिन्हें पूरे यूक्रेन में यूरोमैडन के नाम से जाने जाने वाले व्यापक आंदोलन के बाद साल 2014 की शुरुआत में रूस में शरण लेनी पड़ी थी. यह भी हो सकता है कि वास्तव में, यह रूस समर्थित राष्ट्रों के एक बेल्ट – जैसा कि राष्ट्रपति लुकाशेंको का बेलारूस है – बनाने की कोशिश हो – जो नेटो के मुक़ाबले रूस की पश्चिमी सीमा पर एक बफ़र ज़ोन के तौर पर उभरे.
19वीं शताब्दी के मध्य से, यूक्रेन के पश्चिमी क्षेत्र ऑस्ट्रो-हंगेरियन साम्राज्य का हिस्सा थे, जबकि पूर्वी क्षेत्र रूस के रोमानोव्स के अंतर्गत आते थे. इसके अलावा, हाल के दिनों में सोवियत संघ के हिस्से के रूप में, यूक्रेन में 80 प्रतिशत रूसी बोलने वाले हैं जबकि केवल 17.3 प्रतिशत यूक्रेनी आबादी एथनिक रसियन हैं.
लेकिन शासन में बदलाव अब रूस के लिए एक आसान विकल्प की तरह नहीं लग रहा है, जब तक कि उसकी ज़मीनी सेना कीव पर कब्ज़ा नहीं कर लेती है – जो वह अब तक करने में नाकाम रहा है. इसलिए, रूस इससे ज़्यादा क्रूर विकल्प अपना सकता था, जैसे हवाई बमबारी के ज़रिए यूक्रेन की राजधानी कीव को दुनिया के नक्शे से मिटा देना.
लेकिन विकल्प के तौर पर, रूस संभवतः रूस में डोनबास को स्थायी रूप से शामिल करने का लक्ष्य बना रहा है जो दक्षिण-पूर्वी यूक्रेन (मुख्य रूप से दोनेतस्क और लुहान्स्क से बना) में एक औद्योगिक और खनन क्षेत्र है, जिसने एक समय में सोवियत संघ की औद्योगिक अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. आज डोनबास यूक्रेन के लिए एक महत्वपूर्ण क्षेत्र है इसलिए इसे यूक्रेन से अलग करके, रूस यूक्रेन को कमज़ोर और अपने ऊपर निर्भरता बढ़ाने की उम्मीद कर सकता है, जिससे इसे पश्चिमी देशों के प्रभाव से दूर रखने में मदद मिल सकती है.
19वीं शताब्दी के मध्य से, यूक्रेन के पश्चिमी क्षेत्र ऑस्ट्रो-हंगेरियन साम्राज्य का हिस्सा थे, जबकि पूर्वी क्षेत्र रूस के रोमानोव्स के अंतर्गत आते थे. इसके अलावा, हाल के दिनों में सोवियत संघ के हिस्से के रूप में, यूक्रेन में 80 प्रतिशत रूसी बोलने वाले हैं जबकि केवल 17.3 प्रतिशत यूक्रेनी आबादी एथनिक रसियन हैं. डोनबास क्षेत्र में, जहां रूसी मौज़ूदगी ज़्यादा है, वहां भी यह केवल सबसे बड़ा अल्पसंख्यक समूह है, जो दोनेतस्क में 39 प्रतिशत और लुहान्स्क में 38.2 प्रतिशत है. इन दोनों ओब्लास्ट में, यूक्रेनियन आबादी का लगभग 57 प्रतिशत हिस्सा है. ये आंकड़े या तो 2001 की जनगणना पर आधारित हैं, जो पिछली बार हुई थी या रिसर्च बेस्ड सर्वेक्षणों पर आधारित हैं. इस प्रकार एथनिक रसियन और रूसो-फोन्स यूक्रेन के पूर्व और दक्षिण में प्रमुख हैं लेकिन इसके पश्चिमी क्षेत्रों को अगर छोड़ दें तो यूक्रेन के बाकी हिस्सों में भी उनकी कुछ मौज़ूदगी है. फिर भी यह सच हो सकता है, जैसा कि कुछ लोग इसकी वकालत करते हैं, कि ज़्यादातर लोग, यहां तक कि डोनबास में अलगाववादियों के कब्ज़े वाले क्षेत्रों में भी, यूक्रेन के साथ ही रहना चाहते हैं.
यूरोमैडन आंदोलन और यूक्रेन से यानुकोविच के भागने के साथ, यूक्रेन की राजनीति में डोनबास क्षेत्र की अहमियत के अंत ने कई एथनिक रसियन को असंतुष्ट कर दिया. यूक्रेन में जातीयता और क्षेत्रवाद की जटिल जुगलबंदी में, कुछ के लिए क्षेत्रीय पहचान और एथनिक रसियन पहचान का मिश्रण हो सकता था. इसने डोनबास को यूक्रेन से अलग करने के मक़सद से एक क्षेत्रीय विद्रोह को मज़बूत किया है. यह विद्रोह पुतिन से प्रेरित था या नहीं लेकिन उन्होंने इसमें अलगाववादियों को डोनबास में रूसियों की ‘रक्षा’ करने के लिए गुप्त सैन्य सहायता के ज़रिए इसमें हस्तक्षेप करने का बढ़िया मौका देखा. 2014 में, दोनेतस्क और लुहान्स्क में रूसी समर्थक अलगाववादियों ने इन ओब्लास्ट को “स्वतंत्र लोगों के गणराज्य” के रूप में घोषित कर दिया. साल 2014 और 2015 में मिन्स्क समझौता और मिन्स्क II, फ्रांस और जर्मनी द्वारा रूस और अमेरिका सहित सभी संबंधित पार्टियों की मदद से जंग में शामिल सभी पक्षों को एक साझा मंच पर लाकर यूक्रेन में गृह युद्ध को समाप्त करने की कोशिश थी. लेकिन कोई भी पक्ष इसमें ईमानदार नहीं रहा और अलगाववादी विद्रोह को फिर से हवा दी गई और सारे समझौते टूट गए.
2014 में रूस ने क्रीमिया पर कब्ज़ा कर लिया था, जिसे लेकर उसके कुछ विवादास्पद दावे थे. चूंकि यह विलय स्पष्ट रूप से अपरिवर्तनीय हो गया था, कम से कम अल्पावधि के लिए, लिहाज़ा इसने यूक्रेन के दूसरे इलाक़ों पर कब्ज़ा जमाने की रूसी भूख को और बढ़ा दिया.
2014 में रूस ने क्रीमिया पर कब्ज़ा कर लिया था, जिसे लेकर उसके कुछ विवादास्पद दावे थे. चूंकि यह विलय स्पष्ट रूप से अपरिवर्तनीय हो गया था, कम से कम अल्पावधि के लिए, लिहाज़ा इसने यूक्रेन के दूसरे इलाक़ों पर कब्ज़ा जमाने की रूसी भूख को और बढ़ा दिया. फरवरी 2022 में, यूक्रेन पर आक्रमण करने से तीन दिन पहले, रूस ने आधिकारिक तौर पर ‘दोनेतस्क और लुहान्स्क के स्व-घोषित गणराज्यों’ को मान्यता दी थी. और अब, 30 सितंबर को, इसने चार पूर्वी क्षेत्रों- लुहान्स्क, दोनेतस्क, ज़ापोरीज़्ज़िया, और खेरसॉन – को अपने कब्ज़े में लेने की घोषणा की है, जिसमें पूरे डोनबास क्षेत्र में यूक्रेनी क्षेत्र के लगभग 15 प्रतिशत हिस्सा शामिल है.
कुछ लोग तर्क देंगे कि ‘रूसी घुसपैठ के बिना भी, डोनबास अप्रभावित रहा होगा‘, और यहां उग्रवाद के लिए यूक्रेन के अंदर क्षेत्रीय प्रमुखता की कमी के साथ रूस के साथ एथनिक आइडेंटिफिकेशन जिम्मेदार है लेकिन रूस इसका फायदा उठा रहा है. हालांकि, यह भी संभव हो सकता है कि डोनबास के सभी एथनिक रसियन रूस के राष्ट्रपति ब्लादीमिर पुतिन की नीतियों का समर्थन नहीं करते हों.
पश्चिमी देशों और रूस दोनों को इस युद्ध को जीतने के निहित ख़तरे का एहसास होना चाहिए क्योंकि दोनों पक्षों की जीत के बाद भी इसके विनाशकारी परिणाम सामने आएंगे. सवाल है कि क्या रूस को जातीयता के आधार पर कब्ज़े के मंसूबों को छोड़ देना चाहिए, क्योंकि यह एक ख़तरनाक प्रस्ताव को फिर से सामने लाने की कोशिश करेगा जो 1940 के दशक में राज्य व्यवस्था को स्वीकार करने वाला था लेकिन इस बार ऐसा परमाणु युग के दौरान होगा. इसके विपरीत, एक बार जब इस पर कब्ज़ा कर लिया जाएगा, तो क्या फिर इस क्षेत्र को यूक्रेन द्वारा पुनः कब्ज़ा नहीं किया जा सकता है? और अगर फिर से कब्ज़ा कर लिया गया, तो क्या यह रूस समर्थित विद्रोह को अच्छे के लिए, या मौज़ूदा युद्ध को ख़त्म कर देगा? शायद इन सवालों का एकमात्र असली जवाब कूटनीति में ही है.
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Professor in Political Science, Calcutta University (Retired 2008). Formerly Dean, Faculty of Arts, Calcutta University; Visiting Fellow in Political Science and Associate, Committee on South ...
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