Author : Nivedita Kapoor

Published on Nov 26, 2020 Updated 0 Hours ago

यूरोपियन यूनियन में सबसे बड़ा प्राकृतिक गैस आयातक अब ताज़ा अमेरिकी प्रतिबंधों से निपटने की चुनौती का सामना कर रहा है ताकि परियोजना को आगे बढ़ाने का काम सुनिश्चित किया जा सके.

रूस, यूरोपियन यूनियन और नॉर्ड स्ट्रीम 2: अर्थव्यवस्था बनाम भू-राजनीति

21 अक्टूबर को अमेरिका ने नॉर्ड स्ट्रीम 2 (NS2)- बाल्टिक सागर के आरपार रूस से जर्मनी तक 1,234 किलोमीटर लंबी निर्माणाधीन प्राकृतिक गैस पाइपलाइन- के ख़िलाफ़ पाबंदियों की सीमा का विस्तार करने के फ़ैसले का एलान किया. इसके दायरे में कोई भी कंपनी जो किसी पाइप बिछाने वाले जहाज़ के लिए ‘अपग्रेड या उपकरणों को लगाने’ की सेवा मुहैया कराने में लगी हुई है, को शामिल किया गया. इससे पहले 2019 में अमेरिकी पाबंदी उन जहाज़ों पर लगाई गई जो ‘नॉर्ड स्ट्रीम 2 के लिए समुद्र के स्तर से कम-से-कम 100 फीट नीचे पाइप बिछाने में’ लगा हुआ है. इस पाबंदी की वजह से निर्माण की गतिविधियां थम गईं.

माना जाता है कि ताज़ा फ़ैसला रूस के पाइप लाइन बिछाने वाले जहाज़ अकादेमिक चर्स्की को निशाना साधकर लिया गया था जिसका इस्तेमाल विदेशी जहाज़ की ग़ैर-मौजूदगी में डेनमार्क के समुद्र में बाक़ी बचे 147 किलोमीटर के निर्माण काम को पूरा करने में किया जा रहा था.

माना जाता है कि ताज़ा फ़ैसला रूस के पाइप लाइन बिछाने वाले जहाज़ अकादेमिक चर्स्की को निशाना साधकर लिया गया था जिसका इस्तेमाल विदेशी जहाज़ की ग़ैर-मौजूदगी में डेनमार्क के समुद्र में बाक़ी बचे 147 किलोमीटर के निर्माण काम को पूरा करने में किया जा रहा था. 

ख़बरों के मुताबिक़ अकादेमिक चर्स्की अपग्रेड का इंतज़ार कर रहा था और अमेरिकी पाबंदी का मक़सद NS2 के काम-काज को रोकने या इसमें देरी के लिए दख़ल देना था. ये घटनाक्रम उस वक़्त हुआ जब उम्मीद की जा रही थी कि अपने समुद्र के भीतर ‘तकनीकी रूप से कम आधुनिक जहाज़ों’ के इस्तेमाल से जुलाई की अमेरिकी पाबंदियों के दायरे से बाहर निकलकर डेनमार्क सरकार की हरी झंडी के बाद परियोजना के पूरा होने में एक महत्वपूर्ण बाधा दूर हो गई है.

लेकिन जर्मनी के विदेश मंत्री ने जिस दिन भरोसा जताया कि पाइपलाइन पूरी हो जाएगी और उनका देश ‘अमेरिका के राजनीतिक दबाव के आगे नहीं झुकेगा’ उसके अगले ही दिन ताज़ा पाबंदियों की घोषणा की गई. रूस के विपक्षी नेता एलेक्सी नवेलनी को ज़हर देने की कुछ अटकलें लग रही थीं जिसकी वजह से जर्मनी को NS2 से अलग होना पड़ा लेकिन अब उन अटकलों पर विराम लग गया है और इसके साथ ही जर्मनी ने व्यावसायिक ऊर्जा के समझौते को राजनीतिक घटनाओं से अलग रखने की अपनी परंपरा का पालन किया है.

यूरोपियन यूनियन में सबसे बड़ा प्राकृतिक गैस आयातक अब ताज़ा अमेरिकी प्रतिबंधों से निपटने की चुनौती का सामना कर रहा है ताकि परियोजना को आगे बढ़ाने का काम सुनिश्चित किया जा सके. अक्टूबर महीने की शुरुआत में पोलैंड के एकाधिकार विरोधी नियामक ने अपनी मंज़ूरी के बिना NS2 परियोजना में मदद के लिए गैज़प्रोम पर 7.6 अरब डॉलर का जुर्माना लगाया था. उसने 2016 में फ़ैसला दिया था कि ये ‘प्रतिस्पर्धा विरोधी’ है. इस क़दम के परियोजना के लिए ख़तरा होने की उम्मीद नहीं है.

ये घटनाक्रम पाइपलाइन के समर्थकों और विरोधियों के बीच लंबी भिड़ंत में सबसे ताज़ा मामले हैं. पाइपलाइन के पक्ष में दलीलों का स्वभाव उतना ही आर्थिक है जितना कि भू-राजनीतिक.

2015 में इस पाइपलाइन की कल्पना की गई थी. ये पाइपलाइन बाल्टिक सागर में मौजूदा नॉर्ड स्ट्रीम 1 पाइपलाइन के समानांतर है और उत्तरी जर्मनी तक पहुंचने के बाद यूरोपियन पाइपलाइन सिस्टम का इस्तेमाल कर एकीकृत बाज़ार में प्राकृतिक गैस की सप्लाई के लिए है. ये एक साझा परियोजना है जिसमें रूस की गैस कंपनी गैज़प्रोम और यूरोप की पांच कंपनियां- ENGIE, OMV, रॉयल डच शेल, यूनिपर और विंटरशैल- हिस्सेदार हैं. दोनों पक्ष NS2 के लिए पैसे का आधा-आधा योगदान दे रही हैं. 55 बीसीएम प्रति वर्ष की क्षमता के साथ ये पाइपलाइन यामल प्रायद्वीप से गैस ले जाएगी. इसकी क्षमता नॉर्ड स्ट्रीम 1 के मुक़ाबले दोगुनी है. यूरोपियन यूनियन के 27 देशों ने 2019 में रूस से 44.7 प्रतिशत गैस का आयात किया और इस तरह वो रूस के सबसे बड़े साझेदार हैं. इसके बाद नॉर्वे ने 21.3 प्रतिशत, अल्जीरिया ने 12.1 प्रतिशत, क़तर ने 6.3 प्रतिशत और नाइजीरिया ने 5.9 प्रतिशत गैस का आयात किया.

NS2 के समर्थक दलील देते हैं कि यूरोप की ऊर्जा ज़रूरतों को पूरा करने के लिए पाइपलाइन की ज़रूरत है क्योंकि उत्तरी सागर में प्राकृतिक गैस का उत्पादन आने वाले वर्षों में कम होने का अनुमान है और यूरोप की मांग मौजूदा स्तर पर बने रहने की उम्मीद है. रूस की पाइपलाइन को यामल प्रायद्वीप में बोवानेनकोवो गैस फील्ड से स्थायी आपूर्ति मिलेगी और वो भी प्रतिस्पर्धी क़ीमत पर क्योंकि ढुलाई की लागत में कमी की गई है. कुछ अनुमानों के मुताबिक़ कम आयात क़ीमत का फ़ायदा न सिर्फ़ जर्मनी को होगा बल्कि यूरोपियन यूनियन के सभी देशों को इसका फ़ायदा मिलेगा क्योंकि आयातित गैस की आपूर्ति पूरे यूरोपियन यूनियन में यूरोपियन पाइपलाइन ग्रिड के ज़रिए की जाएगी. इस पाइपलाइन को जारी रखने के पक्ष में एक और दलील ये दी जाती है कि यूक्रेन की पाइपलाइन पुरानी है और उस पर देख-रेख की ज़रूरत है. इसका मतलब होगा यूक्रेन के रास्ते यूरोप तक जाने वाली रूस की प्राकृतिक गैस की मात्रा में कमी जो 2018 में क़रीब 40 प्रतिशत थी और नॉर्ड स्ट्रीम 1 के चालू होने से पहले 80 प्रतिशत से भारी कमी दर्ज की गई है. NS2 के चालू होने से ये आंकड़ा और कम हो जाएगा.

NS2 के समर्थक दलील देते हैं कि यूरोप की ऊर्जा ज़रूरतों को पूरा करने के लिए पाइपलाइन की ज़रूरत है क्योंकि उत्तरी सागर में प्राकृतिक गैस का उत्पादन आने वाले वर्षों में कम होने का अनुमान है और यूरोप की मांग मौजूदा स्तर पर बने रहने की उम्मीद है

रूस यूक्रेन से दूर जाना चाहता है ताकि द्विपक्षीय विवादों का असर यूरोप के साझेदारों के साथ ऊर्जा संबंधों पर नहीं पड़े और 2014 के संकट के बाद ये विचार और स्थापित होता गया और इसने मज़बूत भू-राजनीतिक आयाम ले लिया. इसी तरह जर्मनी और दूसरे समर्थक इस बात को प्राथमिकता देंगे कि उनकी प्राकृतिक गैस की आपूर्ति पर रूस-यूक्रेन तनाव का असर नहीं पड़े जैसा कि 2006 और 2009 में हो चुका है जब सर्दियों में यूरोप को आपूर्ति के चरम पर दोनों देशों के बीच विवाद की वजह से असर पड़ा था. 2014 से यूक्रेन संकट के समय से रिश्ते बेहद ख़राब होने के बावजूद इसका अतिरिक्त फ़ायदा रूस और जर्मनी के साथ-साथ यूरोपियन यूनियन के दूसरे देशों के बीच आर्थिक साझेदारी बनाए रखने में है. इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि रूस-यूरोपियन यूनियन के बीच साझेदारी में काफ़ी गिरावट आई है, लेकिन इन संबंधों की वजह से एक निश्चित स्तर पर सहयोग बना हुआ है. साथ ही, पिछले कुछ वर्षों में यूक्रेन अपनी प्राकृतिक गैस की ज़रूरतों को पश्चिम-पूर्व के उल्टे प्रवाह के ज़रिए पूरा कर रहा है और इस प्रक्रिया से अपने पक्ष में क़ीमत का फ़ायदा उसे मिला है.

लेकिन विरोधी यूक्रेन और रास्ते में पड़ने वाले दूसरे देशों जैसे पोलैंड की तरफ़ ध्यान दिलाते हैं जो रास्ते का देश होने के बावजूद अपना राजस्व गंवा रहे हैं. ये दलील देकर वो NS2 का विरोध कर रहे हैं. यूरोपियन यूनियन में शामिल सोवियत विघटन के बाद के कुछ देश ख़ास तौर पर रूस पर अपनी निर्भरता को लेकर चिंतित हैं क्योंकि उनके बीच संबंध ठीक नहीं हैं. एक दलील ये भी दी जाती है कि मध्य-पूर्वी और दक्षिणी-पूर्व यूरोपियन देशों के मुक़ाबले जर्मनी और दूसरे उत्तरी-पश्चिमी यूरोपियन देशों को आर्थिक फ़ायदा ज़्यादा होगा.

मध्य-पूर्वी और दक्षिणी-पूर्व यूरोपियन देश यूरोपियन यूनियन में ऊर्जा सप्लाई करने वालों की कमी और कम सप्लाई होने की वजह से रूस के साथ सौदेबाज़ी की ताक़त पर असर को लेकर चिंतित रहते हैं. सोवियन विघटन से बने कुछ देश ऐसे घटनाक्रम के भू-राजनीतिक असर को लेकर भी सावधान हैं.

मध्य-पूर्वी और दक्षिणी-पूर्व यूरोपियन देश यूरोपियन यूनियन में ऊर्जा सप्लाई करने वालों की कमी और कम सप्लाई होने की वजह से रूस के साथ सौदेबाज़ी की ताक़त पर असर को लेकर चिंतित रहते हैं. सोवियन विघटन से बने कुछ देश ऐसे घटनाक्रम के भू-राजनीतिक असर को लेकर भी सावधान हैं. यूक्रेन फ़ायदा उठाने की ग़ैर-मौजूदगी में रणनीतिक कमज़ोरी को लेकर चिंतित है. इन चिंताओं में अमेरिका ने एक और चिंता जोड़ दी है कि NS2 ‘नाटो के पूर्वी किनारे को रूस के दबाव से और कमज़ोर करेगा.’

इन मतभेदों ने NS2 पर यूरोपियन यूनियन की राय को विभाजित कर दिया है. सदस्य देश आम राय की नीति पर नहीं पहुंच पाए हैं. भू-राजनीतिक फ़ैसलों के ख़िलाफ़ व्यावसायिक फ़ैसलों को तौला जा रहा है- यूनियन के भीतर ‘रूस और ऊर्जा पर नीति’ को लेकर विविधता को दिखाया जा रहा है जो आने वाले दिनों में और ज़्यादा हो सकती है. अमेरिकी पाबंदी को लेकर जर्मनी से एक चेतावनी आई है कि उसके नीति बनाने में दख़ल की कोशिश का असर अटलांटिक पार तालमेल पर हो सकता है. डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति कार्यकाल ने पहले ही यूरोपियन यूनियन और अमेरिका के रिश्तों को कमज़ोर किया है और इस तरह के घटनाक्रम से असंतोष और बढ़ेगा.

NS2 के बचाव में विशेषज्ञ दलील देते हैं कि विविध स्रोतों के मिश्रण से दक्षिणी और मध्य-पूर्वी यूरोप के देशों के लिए आयात और ‘प्रतिस्पर्धी, एकीकृत गैस बाज़ार’ की वजह से रूस की क़ीमत घटाने-बढ़ाने की ताक़त में कमी ने गैस की सप्लाई को राजनीतिक रंग देना मुश्किल कर दिया है. नॉर्ड स्ट्रीम 1 के निर्माण ने भी यूरोपियन यूनियन की ऊर्जा सुरक्षा पर नकारात्मक असर नहीं डाला है. NS2 ने यूरोपियन आयोग से न सिर्फ़ ज़रूरी इजाज़त हासिल कर ली है बल्कि निर्माण के लिए ज़रूरी परमिट भी संबंधित देशों से ले लिया है जो इस प्रोजेक्ट की व्यावहारिकता के बारे में बताता है.

इस तरह 94 प्रतिशत पूरे हो चुके प्रोजेक्ट को छोड़ देना व्यापार साझेदार के तौर पर यूरोपियन यूनियन की छवि को नुक़सान पहुंचाएगा. साथ ही यूरोपियन कंपनियों और गैज़प्रोम को वित्तीय नुक़सान भी होगा. रूस और यूक्रेन के संबंधों को देखते हुए यूक्रेन कॉरिडोर के ज़रिए गैस की सुचारू आपूर्ति पर भी शक बना हुआ है. इस तरह का क़दम रूस और यूरोपियन देशों के बीच मतभेदों को बढ़ाएगा. वास्तव में पाइपलाइन के पूरा होने से भी रूस और यूरोपियन यूनियन के बीच संबंधों में गिरावट में कमी आने की उम्मीद नहीं है.

रूस और यूक्रेन के संबंधों को देखते हुए यूक्रेन कॉरिडोर के ज़रिए गैस की सुचारू आपूर्ति पर भी शक बना हुआ है. 

अगर रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव के बयान को संकेत मानें तो दोनों पक्षों के बीच पूर्ण साझेदारी शुरू होने में लंबा वक़्त लग सकता है और दोनों पक्षों को मौजूदा हालात से संतोष करना पड़ेगा. यही हालात जर्मनी समेत प्रमुख यूरोपियन देशों के साथ रूस के द्विपक्षीय संबंध को लेकर भी है. हाल के वर्षों में इसमें गंभीर झटके लगे हैं और हालात बेहतर होने का नाम नहीं ले रहे हैं. लेकिन इसकी वजह से दोनों पक्षों के परस्पर फ़ायदे वाले व्यावसायिक समझौतों पर रोक नहीं है. ये समझौते पूरी तरह एक-दूसरे से अलग होने के मौक़े को भी रोकते हैं.

इन घटनाओं को देखते हुए बड़ा सवाल ये बना हुआ है कि क्या रूस के पाइप बिछाने वाले जहाज़ अपने दम पर काम को पूरा कर सकते हैं और क्या अमेरिका प्रोजेक्ट को पटरी से उतारने के लिए और सख़्त पाबंदी लागू करेगा ? फिलहाल तो रूस और जर्मनी- दोनों देश परियोजना को पूरा करने के लिए प्रतिबद्ध हैं और उम्मीद करनी चाहिए कि प्रोजेक्ट पूरा होगा, भले ही थोड़ी देर हो.

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