Author : Aditya Bhan

Published on Oct 14, 2022 Updated 0 Hours ago

चूंकि सशस्त्र संघर्ष और आतंकवाद के बीच गहरा संबंध स्थापित हो चुका है, ऐसे में रूस और यूरेशिया के द्वारा आतंकवादी हिंसा के घटते रुझान को बनाए रखने की क्षमता पर एक सवालिया निशान खड़ा होता है.

रूस और यूरेशिया: क्या ये क्षेत्र आतंकवाद के अपने घटते रुझान को बरक़रार रखने में कामयाब रह पायेगा?

13 सितंबर 2022 को आतंकवाद के ख़िलाफ़ भारत-ताज़िकिस्तान साझा कार्य समूह की चौथी बैठक में दोनों देशों ने आतंकवाद के सभी रूपों की कड़ी निंदा की और आतंकवाद एवं आतंकवाद की मदद करने वाले चरमपंथ का मुक़ाबला करने में दोहरे रवैये को खारिज कर दिया. वैश्विक आतंकवाद इंडेक्स (GTI) 2022 की रिपोर्ट के अनुसार आतंकवाद के शिकार के रूप में भारत की स्थिति ताजिकिस्तान के मुक़ाबले बहुत ख़राब है. GTI की रैंकिंग में भारत 12वें पायदान पर है जबकि ताजिकिस्तान का स्थान 47वां है. ये ठीक उसी तरह है जैसे कि क्षेत्रीय स्तर पर दक्षिण एशिया रूस और यूरेशिया के मुक़ाबले काफ़ी ज़्यादा आतंकवादी हिंसा का सामना करता है.

वास्तव में 2007 से ही दक्षिण एशिया वो क्षेत्र बना हुआ है जिसका औसत GTI स्कोर सबसे ज़्यादा है. दूसरी तरफ़ रूस और यूरेशिया ने 2021 में सबसे ज़्यादा सुधार दर्ज किया (सारणी 1 देखिए) और इस क्षेत्र में आतंकवाद से जुड़ी मौतों में 71 प्रतिशत कमी दर्ज की गई. इसके अलावा रूस और यूरेशिया में आतंकवादी हमलों में मरने वाले लोगों की संख्या में पिछले चार वर्षों के दौरान हर साल कमी आई है और 2010, जब आतंकवादी हमलों में सबसे ज़्यादा लोगों की मौत हुई थी, उसमें 317 लोगों की मौत के मुक़ाबले 99 प्रतिशत की कमी आई है. हाल के समय में कई सशस्त्र संघर्षों की वजह से रूस और यूरेशिया के अलग-अलग हिस्सों के तहस-नहस होने के साथ और सशस्त्र संघर्ष एवं आतंकवाद के बीच गहरे संबंध के कारण इस क्षेत्र के द्वारा आतंकवादी हिंसा के घटते रुझान को बनाए रखने की क्षमता पर एक सवालिया निशान खड़ा होता है.

वास्तव में 2007 से ही दक्षिण एशिया वो क्षेत्र बना हुआ है जिसका औसत GTI स्कोर सबसे ज़्यादा है. दूसरी तरफ़ रूस और यूरेशिया ने 2021 में सबसे ज़्यादा सुधार दर्ज किया और इस क्षेत्र में आतंकवाद से जुड़ी मौतों में 71 प्रतिशत कमी दर्ज की गई.

सारणी 1: GTI स्कोर, रैंक और स्कोर में बदलाव

 स्रोत: वैश्विक आतंकवाद इंडेक्स 2022 रिपोर्ट

आतंकवाद और संघर्ष

संघर्ष और आतंकवाद के बीच एक मज़बूत संबंध है क्योंकि जैसे ही संघर्ष में बढ़ोतरी होती है वैसे ही पुलिस और सेना पर हमलों को वैधता हासिल होती है. इसी तरह दुश्मनों के साथ संपर्क रखने वाले नागरिकों जैसे कि सहानुभूति रखने वालों और ओवर ग्राउंड वर्कर्स (OGW) पर निशाना साधने वाले हमलों को भी वैधता मिलती है. सशस्त्र संघर्ष की वजह से हथियारों, ख़ास तौर पर छोटे हथियारों, को हासिल करना भी आसान हो जाता है और इलाक़े पर सरकार की पकड़ कम हो जाती है. इसके अलावा जैसे-जैसे संघर्ष तेज़ होता है, वैसे-वैसे व्यापक पैमाने पर हिंसा के ख़िलाफ़ मनोवैज्ञानिक अड़चन कम होती है.

संघर्ष वाले क्षेत्रों में आतंकवाद की घुसपैठ होती दिख रही है क्योंकि संघर्ष वाले इलाक़ों में आतंकवादी हमलों का प्रतिशत बढ़ रहा है. पिछले तीन वर्षों के दौरान आतंकवाद से जुड़ी लगभग 98.5 प्रतिशत मौतें संघर्ष से प्रभावित देशों में हुईं और 2021 में ये आंकड़ा बढ़कर 97.6 प्रतिशत हो गया (आंकड़ा 1 देखें).

आंकड़ा 1: 2021 में अलग-अलग संघर्षों में मौत का प्रतिशत

स्रोत: ड्रैगनफ्लाई टेररिज़्म ट्रैकर, UCDP, IEP गणना

ध्यान देने की बात ये है कि जैसे-जैसे संघर्ष और तेज़ हुए हैं, वैसे-वैसे आतंकवादी हमलों में होने वाली बर्बादी और उनकी संख्या- दोनों में बढ़ोतरी हुई है. ख़ास बात ये है कि संघर्ष प्रभावित देशों में आतंकवादी हमले बिना संघर्ष वाले देशों के मुक़ाबले छह गुना ज़्यादा ख़तरनाक हैं और युद्ध के मैदान में मौतों में 4.7 प्रतिशत सालाना बढ़ोतरी के मुक़ाबले सालाना आतंकवादी हमलों की संख्या में 10 प्रतिशत बढ़ोतरी हुई है.

एक युद्धग्रस्त क्षेत्र

रूस-यूक्रेन युद्ध की समाप्ति का कोई आसार नहीं होने के साथ अल-क़ायदा और इस्लामिक स्टेट जैसे संगठन यूक्रेन के मोर्चे पर रूस की सैन्य तैनाती के कारण पैदा हुई कमज़ोरी का फ़ायदा उठा सकते हैं. इसके अलावा कॉकेशिया के इस्लामिक समूह भी यूक्रेन में रूस के सैनिकों का ध्यान बंटने का इस्तेमाल फिर से सक्रिय होने, फिर से जमा होने और हमले में कर सकते हैं.

इन संघर्षों के अलावा टैंक, मोर्टार, रॉकेट आर्टिलरी और हमला करने वाले ड्रोन के साथ काफ़ी ज़्यादा सैन्य तैनाती वाली किर्गिस्तान-ताज़िकिस्तान सीमा पर हिंसक संघर्षों ने कम-से-कम 110 लोगों की जान ले ली है और हज़ारों लोग विस्थापित हुए हैं.

जिहादी संगठनों ने पिछले एक दशक के दौरान रूस (मुख्य रूप से उत्तरी कॉकेशिया) और पूर्व सोवियत संघ के देशों से हज़ारों की संख्या में भर्तियां की हैं. सिर्फ़ चेचेन्या और दागिस्तान से लगभग 5,000 और मध्य एशिया, ख़ास तौर पर कज़ाख़स्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान और उज़्बेकिस्तान, से क़रीब 6,000 भर्तियां की गई हैं. जैसे-जैस रूस-यूक्रेन युद्ध तेज़ होता जा रहा है, वैसे-वैसे ये समूह इस क्षेत्र में कट्टरपंथ बढ़ाने और यूक्रेन में 10 लाख मुस्लिम तातार में से भर्ती करने की तरफ़ ध्यान दे सकते हैं और उनका इस्तेमाल यूक्रेन में रूस के ठिकानों पर हमला करने में कर सकते हैं.

हालात इस वजह से और भी बिगड़े क्योंकि आर्मीनिया और अज़रबैजान के बीच दशकों पुराने नागोरनो-काराबख़ संघर्ष में हाल के दिनों में तेज़ी आई है. इसके कारण विदेशी भाड़े के लड़ाके इस क्षेत्र की तरफ़ काफ़ी संख्या में आकर्षित हो रहे हैं. ख़बरों के मुताबिक़ तुर्की के समूह और आतंकी संगठन अज़रबैजान की तरफ़ से लड़ रहे हैं. रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने दिसंबर 2020 में ही ये कहा था कि नागोरनो-काराबख़ में दुश्मनी के कारण “दुर्भाग्यपूर्ण रूप से असंख्य लोगों की मौत हुई है, दक्षिण कॉकेशस में पहले से मुश्किल स्थिति में और बढ़ोतरी हुई है और आतंकवादी ख़तरों के विस्तार का जोखिम बढ़ा है” और अब लगता है कि वो डर असलियत में बदल रहा है.

इन संघर्षों के अलावा टैंक, मोर्टार, रॉकेट आर्टिलरी और हमला करने वाले ड्रोन के साथ काफ़ी ज़्यादा सैन्य तैनाती वाली किर्गिस्तान-ताज़िकिस्तान सीमा पर हिंसक संघर्षों ने कम-से-कम 110 लोगों की जान ले ली है और हज़ारों लोग विस्थापित हुए हैं. वैसे तो रूस की मध्यस्था के ज़रिए एक मुश्किल युद्धविराम पर सहमति बन गई है लेकिन दोनों पक्षों ने एक दूसरे पर युद्धविराम के उल्लंघन का आरोप लगाया है. इसी क्षेत्र में अप्रैल 2021 में हुए एक खूनी संघर्ष से डरावनी समानता के साथ ये ताज़ा संघर्ष उन परेशान करने वाले नियमित, बड़े पैमाने के और तेज़ अंतर्राष्ट्रीय सैन्य संघर्षों के रुझान में शामिल हो गया है जिनकी वजह से मध्य एशिया में शांति और स्थिरता को ख़तरा पैदा होता है और जो कट्टरपंथ एवं आतंकवाद के लिए उचित माहौल मुहैया कराते हैं.

 दृष्टिकोण

इस बात को देखते हुए कि GTI 2022 की रिपोर्ट आतंकवाद से व्यवहार के तरीक़े में बदलाव की पहचान करती है और ऐसी गतिविधियां राजनीतिक तौर पर अस्थिर एवं संघर्ष से ग्रस्त क्षेत्रों और देशों में ज़्यादा केंद्रित है, इसलिए रूस और यूरेशिया ज़्यादा असुरक्षित हैं. पिछले कुछ वर्षों में इस क्षेत्र में आतंकवाद से जुड़ी मौतों में ख़ास तौर पर और आतंकी गतिविधियों में सामान्य तौर पर तेज़ गिरावट के बाद भी ये स्थिति है. हिंसक संघर्ष को कम करने और राजनीतिक स्थिरता को बनाए रखने के उद्देश्य से समन्वित प्रयास इस समय की ज़रूरत हैं. इस प्रयास की अनुपस्थिति में इस क्षेत्र के भीतर मौजूदा कमियों का फ़ायदा उठाने की कोशिश करने वाले कट्टरपंथी संगठनों की भर्ती की संभावना फिर से शुरू होने का वास्तविक ख़तरा है. इसके परिणामस्वरूप जो चरमपंथ आएगा वो हाल के समय में आतंकवाद के मोर्चे पर हासिल बढ़त को ख़त्म करना शुरू कर सकता है.

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