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भारत और मिस्र के बीच द्विपक्षीय संबंधों की मज़बूती मेना क्षेत्र में बेहतर बहुपक्षीय सहयोग की दिशा में ले जा सकती है.
अपनी सैन्य कूटनीति के बड़े फ्रेमवर्क के भीतर, भारत कुछ प्रमुख मध्य पूर्व एवं उत्तर अफ्रीकी (MENA) देशों के साथ अपने समग्र सैन्य–सुरक्षा/रक्षा संबंधों का वर्तमान में विस्तार कर रहा है. तकनीक हस्तांतरण और संयुक्त–सहकार्य (ज्वाइंट–कोलैबरेशन) कार्यक्रमों समेत इस तरह के सहयोग का निर्माण, देश की विदेश नीति के एक महत्वपूर्ण उद्देश्य के रूप में उभरा है. इस क्षेत्र में संबंधों की ऊर्ध्वगामी दिशा इज़राइल, ओमान, सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात (यूएई), जॉर्डन, बहरीन और क़तर जैसे देशों के साथ तेज़ी से बढ़ती साझेदारियों में व्यापक रूप से दिखायी पड़ती है. इन देशों के साथ द्विपक्षीय संबंधों का सैन्य–सुरक्षा आयाम महत्वपूर्ण होता जा रहा है, और यह तेल–ऊर्जा व सामाजिक–आर्थिक क्षेत्रों में सहयोग के संग–संग एक और विशिष्टता के रूप में शायद उभरेगा. इसी तरह, भारत उत्तरी अफ्रीका में समान रूप से महत्वूपर्ण एक देश, मिस्र (जिसे इस क्षेत्र में सबसे बड़ी सैन्य शक्ति रखने वाले देशों में से एक के बतौर, व्यापक रूप से जाना जाता है) के साथ अपना सेना–से–सेना का सहयोग मज़बूत बनाने के लिए कुछ रणनीतिक क़दम उठा रहा है. इस साल, दोनों देश अपने राजनयिक संबंध स्थापित होने के 75वें साल का जश्न मना रहे हैं.
भारत उत्तरी अफ्रीका में समान रूप से महत्वूपर्ण एक देश, मिस्र के साथ अपना सेना-से-सेना का सहयोग मज़बूत बनाने के लिए कुछ रणनीतिक क़दम उठा रहा है. इस साल, दोनों देश अपने राजनयिक संबंध स्थापित होने के 75वें साल का जश्न मना रहे हैं.
मिस्र उन देशों में है जिसके साथ भारत के लगातार सौहार्दपूर्ण संबंध बने हुए हैं, बशर्ते कि बीच में आये ठंडेपन की एक छोटी अवधि को छोड़ दें, ख़ासकर 1970 के दशक के उत्तरार्ध से, जब काहिरा ने सोवियत की अगुवाई वाले गुट से दूरी बनाते हुए अमेरिका के क़रीब जाना शुरू किया. हालांकि, शीत युद्ध के उत्तरार्ध के दौरान आये इस बदलाव से कोई बड़ा मसला पैदा नहीं हुआ, जो, अन्यथा, दोनों देशों (जो गुट–निरपेक्ष आंदोलन के संस्थापक सदस्य थे) के बीच संबंधों पर विपरीत प्रभाव डाल सकता था. इस तरह के बदलावों और अलग–अलग दौर के भूराजनीतिक परिदृश्यों के बीच, उनके सहयोग का एक पहलू जो निर्बाध रहा, वह रक्षा संबंधी सहयोग था, जिसमें दोनों पक्ष एक संतुलन बनाये रखने में सक्षम थे. इस तरह की बुनियाद के साथ, मौजूद परिदृश्य में, रक्षा/सैन्य–सुरक्षा सहयोग बढ़ाने के लिए दोनों देशों की सरकारों द्वारा किये जा रहे प्रयास साफ़ दिखते हैं. इन संबंधों को सितंबर 2016 में मिस्र के राष्ट्रपति अब्देल फतह अल–सिसी की राजकीय यात्रा से प्रोत्साहन मिला, जिसने कई मोर्चों पर आपसी संलग्नता को मज़बूत करने का एक महत्वपूर्ण अवसर मुहैया कराया. इस आलोक में, 19-20 सितंबर 2022 को, भारतीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की काहिरा की दो–दिवसीय आधिकारिक यात्रा के दौरान, रक्षा क्षेत्र में सहयोग के लिए भारत–मिस्र के बीच समझौता ज्ञापन (एमओयू) पर हस्ताक्षर किया जाना, एक महत्वपूर्ण विकास है, जिसे ‘मील के पत्थर’ के रूप में भी देखा गया है. दोनों पक्षों द्वारा किया गया यह रणनीतिक निर्णय रक्षा–संबंधी संलग्नताओं को और प्रोत्साहित करेगा.
कुछ केंद्रीय कारक हैं जिन्होंने समग्र भारत–मिस्र सहयोग के विस्तार में योगदान दिया है. उनमें ये शामिल हैं : अलक़ायदा और इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक़ एंड सीरिया (आईएसआईएस) जैसे आतंकी संगठनों के अवशेषों और संबद्ध व्यक्तियों या समूहों (जो सिनाई व मेना क्षेत्र तथा भारतीय उपमहाद्वीप में सक्रिय हैं) जैसे गैर–राज्य कर्ताओं से उपज रहे ख़तरे को दोनों देशों द्वारा साझा ढंग से महसूस करना; हिंसक चरमपंथ तथा कट्टरपंथीकरण (रैडिकलाइजेशन) की परिघटना; सीमा–पार आतंकवाद; और धन शोधन. ये कुछ ऐसे कारक हैं जो हाल के दिनों में दोनों देशों के सैन्य–सुरक्षा प्रतिष्ठानों को क़रीब लेकर आये. इसके साथ–साथ, मिस्र की सरकार ने रक्षा–सैन्य आधुनिकीकरण और हथियारों के आयात के लिए स्रोतों के विविधीकरण की प्रक्रिया भी शुरू की है, जिसका स्वदेश निर्मित प्रणालियों और हथियारों के निर्यात के वास्ते भारत की ग्राहकों की बढ़ती तलाश के साथ अच्छा संयोग बैठता है. इसके लिए, मध्य पूर्व, अफ्रीका क्षेत्र, अमेरिका, दक्षिण व दक्षिण–पूर्व एशियाई क्षेत्र भारत के लाभप्रद बाज़ार बन सकते हैं. सिर्फ़ ख़रीदार–विक्रेता के संबंध से परे जाकर, नयी दिल्ली अपने अंतरराष्ट्रीय साझेदारों के साथ औद्योगिक सहयोग विकसित करने के अवसर भी तलाश रहा है, जिसमें मिस्र की रक्षा/सुरक्षा फर्म्स के साथ संलग्नता संभावनाशील लगती है, ख़ासकर पूर्व–वर्णित एमओयू को देखते हुए.
भारत और मिस्र के लिए, सैन्य–सुरक्षा/रक्षा सहयोग को मज़बूत करना कोई बहुत कठिन काम नहीं होना चाहिए. ऐसा इसलिए कि महत्वपूर्ण द्विपक्षीय संस्थानिक प्रणालियां पहले से स्थापित हैं. इनमें संयुक्त रक्षा समिति (जेडीसी) (जो समग्र रक्षा सहयोग की निगरानी करती है), राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों (एनएसए) और डिप्टी एनएसए के स्तर पर सुरक्षा वार्ता, और आतंकवाद पर बना संयुक्त कार्य समूह (जेडब्ल्यूजी) शामिल हैं. उदाहरण के लिए, मिस्र के राष्ट्रपति की 2016 की पूर्व–वर्णित भारत यात्रा के दौरान, दोनों पक्षों ने आतंकवाद की मुसीबत और समान सुरक्षा चुनौतियों – चरपमंथ और कट्टरपंथीकरण से मिलकर निपटने पर सहमति जतायी, जिसके बाद साइबर सुरक्षा सहयोग बढ़ाने पर चर्चा हुई. अब, रक्षा एमओयू के ज़रिये, भारत और मिस्र सशस्त्र बलों के संयुक्त प्रशिक्षण और अभ्यास की बारंबारता बढ़ाने, आतंकवाद/उग्रवाद–विरोधी सहयोग को मज़बूत करने के साथ–साथ, ‘सैन्य प्लेटफार्मों और उपकरणों के सह–उत्पादन, रखरखाव’ के अपेक्षाकृत नये क्षेत्रों में प्रवेश कर रहे हैं. उल्लेखनीय है कि भारतीय वायुसेना (आईएएफ) और उसकी समकक्ष, मिस्री वायुसेना (ईएएफ) ने अपनी तरह की पहली अंत:क्रिया (लड़ाकू हथियार स्कूलों के बीच) – टैक्टिकल लीडरशिप प्रोग्राम – का आयोजन जुलाई 2022 में मिस्र में किया. इस दौरान उन्होंने ‘जटिल, बहु–विमान मिशनों की भागीदारी वाले बड़े सैन्य बल संघर्षों के विषय में विचारों’ का आदान–प्रदान किया. इससे पहले, इन दोनों वायुसेनाओं ने अक्तूबर 2021 के आख़िर में, ‘डेज़र्ट वॉरियर’ नामक दो–दिवसीय अभ्यास में हिस्सा लिया. इस तरह के कार्यनीतिक (टैक्टिकल) अभ्यास हवाई युद्ध से जुड़े उनके अनुभवों और संबंधित वायुसेनाओं द्वारा अपनाये गये सर्वोत्तम तौर–तरीक़ों को साझा करने का मौक़ा देते हैं.
मध्य पूर्व, अफ्रीका क्षेत्र, अमेरिका, दक्षिण व दक्षिण-पूर्व एशियाई क्षेत्र भारत के लाभप्रद बाज़ार बन सकते हैं. सिर्फ़ ख़रीदार-विक्रेता के संबंध से परे जाकर, नयी दिल्ली अपने अंतरराष्ट्रीय साझेदारों के साथ औद्योगिक सहयोग विकसित करने के अवसर भी तलाश रहा है
इसके अलावा, फ़ारस की खाड़ी व लाल सागर में और इर्द–गिर्द बढ़ती जटिलताओं के बीच, भारतीय और मिस्री नौसेनाओं के बीच मौजूदा नौसैनिक सहयोग संतोषजनक है, जिसमें विस्तार के लिए और संभावनाएं भी हैं. मिस्र की लोकेशन रणनीतिक है, दूसरे शब्दों में कहें तो यह अफ्रीका, एशिया और यूरोप के तीनमुहाने पर है, और यह मिस्र की नौसेना के साथ मज़बूत सहयोग निर्मित करना भारत जैसों देशों के लिए एक लाभ की स्थिति प्रदान करता है. ये बात समुद्री व्यापार और सुरक्षा–संबंधी सहयोग, दोनों के लिए सही है. बीते कुछ सालों के दौरान समुद्री (मैरिटाइम) साझेदारी अभ्यासों के नियमित आयोजन ने दोनों नौसेनाओं के बीच अंतरसंचालनीयता बढ़ाने में गहरी दिलचस्पी प्रदर्शित की है. यह समुद्री डकैती, मानव तस्करी, हथियारों की तस्करी समेत किसी भी साझा समुद्री ख़तरे के ख़िलाफ़ संयुक्त अभियानों, और मानवीय सहायता से संबंधित मामलों में संयुक्त रूप से काम करने के लिए संभावनाओं को विस्तृत कर सकता है.
बृहत्तर क्षेत्र में समुद्री सुरक्षा सुनिश्चित करने और उसे बढ़ावा देने के लिए, भारत और मिस्र को इस क्षेत्र से और इससे परे, परस्पर हितों वाले, समान सोच वाले देशों को इसमें शामिल करने की संभावना तलाशनी चाहिए. संयुक्त नौसैनिक अभ्यासों/क़वायदों का आयोजन ओमानी, अमीराती, और सऊदी नौसेनाओं के साथ भी किया जा सकता है, क्योंकि इन देशों की भारत और मिस्र की नौसेनाओं के साथ उसी तरह की द्विपक्षीय गतिविधियां हैं. इसके अलावा, जैसे–जैसे भारत–मिस्र सैन्य संबंध आगे बढ़ते हैं, समन्वय व सहयोग स्थापित करने के लिए फ्रांसीसी नौसेना का भी स्वागत किया जा सकता है. यह न सिर्फ़ मेना क्षेत्र में, बल्कि भूमध्य सागर और हिंद महासागर क्षेत्र में भी समुद्री सुरक्षा बनाये रखने के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण होगा. हाल के दिनों में, पेरिस और काहिरा अपने सुरक्षा–रक्षा सहयोग को तेज़ी से बढ़ा रहे हैं, जिसमें मुख्य रूप से बड़े हथियार व्यापार और आतंकवाद–विरोधी अभियानों (जैसा कि भारत और फ्रांस के बीच मामला है) पर ध्यान केंद्रित है. निर्बाध समुद्री पोत परिवहन सुनिश्चित करने और विभिन्न समुद्री ख़तरों से निपटने के लिए फ्रांस ऊपर वर्णित समुद्रों में अपनी नौसैनिक मौजूदगी बढ़ाना चाहता है. इसके अलावा, फ्रांस द्वारा ‘मुक्त और खुले हिंद–प्रशांत’ को बढ़ावा दिये जाने को देखते हुए, वह भारत और मिस्र के साथ साझेदारी बनाना शायद पसंद करेगा. हिंद–प्रशांत रणनीति के निर्माण के लिए सुएज़ नहर के महत्व से ये तीनों देश वाक़िफ़ हैं. इन रणनीतिक हितों में गहरी एकरूपता को अंतत: एक नये विकास के रूप में सामने आना चाहिए, चाहे यह जल्दी हो या फिर देर से.
वास्तव में, भारतीय मंत्री की पूर्व–वर्णित यात्रा सही वक़्त पर और महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह एक ऐसे मोड़ पर हुई है जब सरकार अपनी रक्षा सामग्री के निर्यात और रक्षा औद्योगिक सहयोग के निर्माण के लिए वर्तमान में साझेदार तलाश रही है. बीते कुछ सालों में, भारत दुनिया के सबसे बड़े हथियार आयातकों में शामिल हो गया है, और वह मुख्यतया ‘मेक इन इंडिया’ और आत्मनिर्भर भारत अभियान जैसी नयी पहलक़दमियों के ज़रिये, आगामी वर्षों में इस स्थिति को पलटने के लिए प्रयास कर रहा है. इसलिए, फोकस साफ़ तौर पर घरेलू उत्पादन बढ़ाने पर है. 2016-20 के दौरान वैश्विक हथियार निर्यात में 0.2 फ़ीसद हिस्सेदारी के साथ, भारत दुनिया में रक्षा सामग्री का 24वां सबसे बड़ा निर्यातक था, और निर्यात की मात्रा बढ़ने की उम्मीद की जाती है.
मिस्र के साथ रक्षा संबंधों में निरंतर वृद्धि में भारतीय रक्षा कंपनियों (राज्य–स्वामित्व वाली या निजी) की उपस्थिति बढ़ाने की क्षमता मौजूद है. चूंकि तकनीक सहयोग को फलीभूत होने में समय लगता है, इसलिए दोनों देशों के बीच अभी और अधिक रक्षा व्यापार होने की काफ़ी संभाव्यता है. यह भारत के रक्षा उद्योगों के लिए लाभप्रद हो सकता है, जो रडार, गश्ती जहाज़, हल्के लड़ाकू विमान (एलसीए), हल्के लड़ाकू हेलिकॉप्टर (एलसीएच), मिसाइल प्रणालियों, इलेक्ट्रॉनिक युद्ध प्रणालियों (ईडब्ल्यूएस), टैंक और सैन्य वाहन समेत कई चीज़ों की तेज़ी से डिजाइनिंग और विनिर्माण कर रहे हैं. अभी जो स्थिति है, मिस्र ब्रह्मोस क्रूज़ मिसाइलों (रूस के साथ संयुक्त रूप से विकसित) के साथ ही साथ भारत द्वारा स्वदेशी रूप से विकसित आकाश मिसाइल प्रणाली को ख़रीदने में अपनी दिलचस्पी का इज़हार कर चुका है. काहिरा ने इसी तरह की दिलचस्पी का संकेत हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड द्वारा विकसित, एक इंजन वाले एलएसी ‘तेजस’ की ख़रीद के लिए दिया है. लंबी अवधि में, इन बड़ी हथियार प्रणालियों का निर्यात भारत के दर्जे को बढ़ाकर हथियार निर्यातक के रूप में कर सकता है, साथ ही हथियार–निर्यात से आने वाले राजस्व को बढ़ाने में मदद कर सकता है, जो न सिर्फ़ भारत की आर्थिक वृद्धि, बल्कि रक्षा अनुसंधान एवं विकास (आरएंडडी) कार्यक्रमों को धन मुहैया कराने के लिए भी अहम है. 2017-21 के दौरान दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा हथियार आयातक होने के नाते, और अपने हथियार आपूर्तिकर्ता स्रोतों का विविधीकरण जारी रखने के साथ, मिस्र उपलब्ध निर्यातकों को तलाशता रहेगा, और भारत, एक दोस्ताना साझेदार के रूप में, उसकी कुछ रक्षा आवश्यकताओं को पूरा कर सकता है.
भारत और मिस्र व्यापक सैन्य-सुरक्षा साझेदारियां स्थापित करने के लिए एक आपसी तालमेल बना रहे हैं. आर्थिक और रणनीतिक हितों की बढ़ती एकरूपता इस दिशा में संबंधों के विस्तार में योगदान देगी. भारत की बढ़ती तकनीकी विशेषज्ञता मिस्र की एक आत्मनिर्भर रक्षा उद्योग खड़ा करने की मुहिम में एक मुख्य स्रोत भी बन सकती है.
ज़ाहिर है, भारत और मिस्र व्यापक सैन्य–सुरक्षा साझेदारियां स्थापित करने के लिए एक आपसी तालमेल बना रहे हैं. आर्थिक और रणनीतिक हितों की बढ़ती एकरूपता इस दिशा में संबंधों के विस्तार में योगदान देगी. भारत की बढ़ती तकनीकी विशेषज्ञता मिस्र की एक आत्मनिर्भर रक्षा उद्योग खड़ा करने की मुहिम में एक मुख्य स्रोत भी बन सकती है. इस बीच, कुछ मध्य पूर्वी देशों के साथ अच्छे रिश्ते रखने का फ़ायदा उठाते हुए, भारत और मिस्र को सुरक्षा के मोर्चे पर त्रिपक्षीय और बहुपक्षीय साझेदारियां बनाने पर विचार करना चाहिए. अंत में, दोनों पक्षों द्वारा प्रदर्शित इस पर्याप्त राजनीतिक सद्भावना को भविष्य में सैन्य, सुरक्षा और रक्षा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण प्रगति के रूप में परिणत होना चाहिए.
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Dr. Alvite Ningthoujam is an Assistant Professor at the Symbiosis School of International Studies (SSIS) Symbiosis International (Deemed University) Pune Maharashtra. Prior to this he ...
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