Published on Jan 05, 2023 Updated 0 Hours ago

यूएनएससी 21वीं सदी की भू-राजनीतिक सच्चाइयों को प्रतिबिंबित करे, यह सुनिश्चित करने के लिए ग्लोबल साउथ के देशों के अधिक प्रतिनिधित्व की ज़रूरत है.

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) के पुनर्गठन का सवाल?
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) के पुनर्गठन का सवाल?

द्वितीय विश्व युद्ध (Second World War) के तुरंत बाद, दुनिया में शांति और सुरक्षा (Peace and Security in World) बनाये रखने के लिए, 1945 में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC-United Nations Security Council) का गठन किया गया. हालांकि, इसकी शुरुआत के बाद से, वैश्विक व्यवस्था ने महत्वपूर्ण बदलाव देखे हैं, जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं: उपनिवेशीकरण (Decolonisation) के बाद संयुक्त राष्ट्र (United Nations) के सदस्य देशों की संख्या में काफ़ी बढ़ोतरी हुई है; दुनिया एकध्रुवीय से बहुध्रुवीय हुई है; आबादी का विस्फोट हुआ है और यह 2.2 अरब से बढ़कर 7.7 अरब पर पहुंच गयी है. इन बदलावों के बावजूद, यूएनएससी (UNSC) की संरचना मोटे तौर पर जस की तस है. अब भी पांच स्थायी सदस्य (पी5) – चीन, फ्रांस, रूस, ब्रिटेन और अमेरिका – और 10 अस्थायी सदस्य हैं, जबकि अफ्रीका, लैटिन अमेरिका और एशिया को दरकिनार किया जाना जारी है. 

जो देश यूएनएससी का स्थायी सदस्य बनने के आकांक्षी हैं, उनमें भारत सबसे मुखर है. ‘संपेरों के देश’ से ऊपर उठते हुए यह एक बड़ा वैश्विक शक्ति केंद्र बन गया है. सदस्यता पाने की उसकी कोशिश इस तथ्य पर आधारित है कि वह संयुक्त राष्ट्र के संस्थापक देशों में से एक है और वर्तमान में अस्थायी सदस्य के रूप में काम कर कर रहा है

बीते वर्षों में, इस संरचना के ख़िलाफ़ दक्षिण एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका द्वारा आवाज़ उठायी गयी है, क्योंकि उनका प्रतिनिधित्व कम है और वे वैश्विक चिंताओं के निवारण में भागीदारी नहीं कर पा रहे हैं. बढ़ती वैश्विक चिंताओं में हथियारों की होड़, जलवायु परिवर्तन, दुनिया का बहु-ध्रुवीकरण, नये शक्ति केंद्रों का उदय, वैश्वीकरण, आतंकवाद, मानवाधिकार उल्लंघन, शरणार्थी संकट इत्यादि शामिल हैं. 

यूएनएससी के लिए भारत की दावेदारी

जो देश यूएनएससी का स्थायी सदस्य बनने के आकांक्षी हैं, उनमें भारत सबसे मुखर है. ‘संपेरों के देश’ से ऊपर उठते हुए यह एक बड़ा वैश्विक शक्ति केंद्र बन गया है. सदस्यता पाने की उसकी कोशिश इस तथ्य पर आधारित है कि वह संयुक्त राष्ट्र के संस्थापक देशों में से एक है और वर्तमान में अस्थायी सदस्य के रूप में काम कर कर रहा है, वह सबसे बड़ा लोकतंत्र है, दूसरी सबसे बड़ी आबादी वाला देश है, और पांचवीं सबसे बड़ी और सबसे तेज़ बढ़ती अर्थव्यवस्था है. 

इतना ही नहीं, जलवायु परिवर्तन, टिकाऊ विकास लक्ष्यों (एसडीजी), सहस्राब्दी विकास लक्ष्यों से संबंधित सभी फोरमों तथा अन्य संयुक्त राष्ट्र शिखर सम्मेलनों में भारत सक्रियतापूर्वक संलग्न रहा है. भारत दुनिया के अविकसित और विकासशील देशों के हितों का प्रतिनिधित्व भी करता है. गुटनिरपेक्षता के सिद्धांत के प्रति भारत की निष्ठा और पंचशील (शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के पांच सिद्धांत जो एक देश द्वारा दूसरे देश के आंतरिक मामलों में गैर-दख़लअंदाज़ी पर केंद्रित हैं) में दृढ़ विश्वास ने दुनिया में शांति और स्थिरता को काफ़ी बढ़ावा दिया है.

यूएनएससी वर्तमान भूराजनीतिक सच्चाइयों को प्रतिबिंबित करे, इसके लिए भारत का मानना है कि विश्व बैंक, अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष और विश्व व्यापार संगठन जैसी अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं के साथ-साथ यूएनएससी में भी बड़े संरचनात्मक बदलाव की ज़रूरत है. इनमें से कुछ बहुपक्षीय फोरमों में सुधार के वास्ते अपने रुख़ को मज़बूत बनाने के लिए, भारत हाल में बहुपक्षीय समूहों जैसे आईबीएसए (भारत, ब्राजील, दक्षिण अफ्रीका) और जी4 देशों (ब्राजील, जर्मनी, भारत और जापान) के साथ गुटबंद हो रहा है.

यूएनएससी के पांच स्थायी सदस्यों में से चार देशों, जिनमें अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस और रूस शामिल हैं, ने विस्तारित यूएनएससी में स्थायी सीट के लिए भारत की उम्मीदवारी को अपना समर्थन दिया है. हालांकि, चीन ने भारत को शामिल किये जाने में अड़ंगा लगाया है. पाकिस्तान, उत्तर कोरिया और इटली जैसे चीन के क़रीबी सहयोगी भी यूएनएससी में स्थायी सदस्यता के लिए भारत की उम्मीदवारी का विरोध करते रहे हैं.

भारत एक वैश्विक नियम-निर्माता बनने का इरादा रखता है, और इसलिए विस्तारित यूएनएससी में स्थायी श्रेणी का सदस्य बनना चाहता है, ताकि उभरती अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था में उसकी अधिक भूमिका हो. हालांकि, यूएनएससी के पी5 सदस्यों के बीच सहमति के अभाव के चलते, भारत अभी तक यूएनएससी की स्थायी सदस्य की श्रेणी से बाहर ही है.

भारत के रास्ते में रोड़ा है चीन

भारत, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका के लिए समस्या यह है कि वे स्थायी निकाय के सदस्य तब तक नहीं हो सकते जब तक कि सुधारों पर पी5 के बीच सहमति नहीं बन जाती. वीटो पॉवर पी5 सदस्यों को यह शक्ति प्रदान करता है कि वे अन्य देशों का यूएनएससी में प्रवेश रोक सकें. 

यूएनएससी के पांच स्थायी सदस्यों में से चार देशों, जिनमें अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस और रूस शामिल हैं, ने विस्तारित यूएनएससी में स्थायी सीट के लिए भारत की उम्मीदवारी को अपना समर्थन दिया है. हालांकि, चीन ने भारत को शामिल किये जाने में अड़ंगा लगाया है. पाकिस्तान, उत्तर कोरिया और इटली जैसे चीन के क़रीबी सहयोगी भी यूएनएससी में स्थायी सदस्यता के लिए भारत की उम्मीदवारी का विरोध करते रहे हैं. भारत को दरकिनार करने के लिए, चीन ने इसके बजाय छोटे और मझोले आकार के देशों को शामिल किये जाने का प्रस्ताव रखा है. 

इस तरह की कुछ चुनौतियों के बावजूद, भारत सरकार ने विस्तारित यूएनएससी में स्थायी सीट पाने के अपने रुख़ को सर्वोच्च प्राथमिकता दी हुई है. ज़रूरी अंतरराष्ट्रीय समर्थन हासिल करने के लिए, वह इस मुद्दे को सभी महत्वपूर्ण द्विपक्षीय और बहुपक्षीय फोरमों में उठाती रही है. उसने जी-4 में सुधारोन्मुखी देशों के साथ अपनी संलग्नता बढ़ायी है, क्योंकि वे भी यूएनएससी की स्थायी सदस्यता के आकांक्षी हैं. इसके अलावा उसने L.69 ग्रुप (एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका का एक बहु क्षेत्रीय समूह है) के साथ भी संलग्नता बढ़ायी है.

स्थायी और अस्थायी निकायों का विस्तार काफ़ी समय से लंबित है; उन्हें दक्षिण एशियाई मामलों में भारत की निर्विवाद भूमिका के अलावा उसके भौगोलिक आकार; विशाल आबादी; आर्थिक वृद्धि; लोकतांत्रिक प्रणाली; राजनीतिक स्थिरता; सॉफ्ट, सैन्य व नाभिकीय शक्ति को देखते हुए, भारत जैसे देशों को अवश्य शामिल करना चाहिए. यूएनएससी को अधिक वैध, प्रभावी, और चरित्र में प्रतिनिधित्वपूर्ण बनाने के लिए तथा दक्षिण एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका के साथ ऐतिहासिक नाइंसाफ़ियों को ठीक करने के लिए भी सुधार ज़रूरी हैं.

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