Published on Jul 24, 2021 Updated 0 Hours ago

बहस अब थियेटर कमांड के प्रस्ताव के वास्तविक क्रियान्वयन और उसके अलग अर्थ पर है.

थिएटर कमांड की संभावनाएं और चुनौतियां

2019 में चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस) के पद के गठन को एक ऐतिहासिक क़दम बताया गया था. इस फ़ैसले ने भारतीय सशस्त्र बलों के सांगठनिक ढांचे में थिएटर कमांड (टीसी) की शुरुआत पर बहस को केंद्र बिंदु में ला दिया. टीसी के विचार के पीछे मुख्य बात ‘साझापन’ को हासिल करना है. साझापन का मतलब “सेना की अलग-अलग शाखाओं के बीच सहयोग और एकीकरण” है. इस तथ्य को देखते हुए कि भारत के पास दुनिया की चौथी सबसे बड़ी सेना है लेकिन हर सेना एक-दूसरे से स्वतंत्र होकर काम करती है, ऐसे में ये वास्तव में उचित लक्ष्य और मौजूदा समय की बड़ी ज़रूरत है. ये कोई नया विचार नहीं है क्योंकि दुनिया के 32 से ज़्यादा देशों में सीडीएस की संरचना है. अमेरिका और चीन जैसी प्रमुख सैन्य ताक़तें भी इस मॉडल पर काम करती हैं “क्योंकि ऐसा पाया गया है कि ये संसाधनों को एक जगह जमा करने और कार्यकुशलता बढ़ाने का बेहतर तरीक़ा है.”

थियेटर कमांड के विचार की आलोचना

भारतीय संदर्भ में भी टीसी का विचार कोई नया नहीं है. ख़ास तौर पर 1999 के करगिल युद्ध के समय से एक के बाद एक सरकार की कई कमेटियों, करगिल समीक्षा समिति से लेकर मंत्रियों के समूह और नरेश चंद्रा कमेटी तक, ने खुल कर उच्च रक्षा प्रबंधन में संरचनात्मक बदलाव की बात कही थी. मुख्य सलाह ज्वाइंट थिएटर कमांड (जेटीसी) के गठन से लेकर चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ के पद के गठन की हुई थी. इन सिफ़ारिशों के आधार पर भारतीय सेना ने साझापन बढ़ाने के लिए क़दम उठाने की शुरुआत की थी. इन क़दमों में नौकरशाही के स्तर पर इंटिग्रेटेड डिफेंस स्टाफ (आईडीएस) के गठन से लेकर दो साझा कमांड- अंडमान और निकोबार कमांड (एएंडएनसी) और स्ट्रैटजिक फोर्सेज़ कमांड (एसएफसी) का गठन शामिल हैं. लेकिन ये तथ्य अभी भी बना हुआ है कि एक के बाद एक कमेटियों की तरफ़ से महत्वपूर्ण सुधार की सिफ़ारिश करने के बाद भी भारत में अभी भी “भौगोलिक तौर पर एक-दूसरे को छूने वाले 17 सर्विस कमांड हैं.”

इस तथ्य को देखते हुए कि भारत के पास दुनिया की चौथी सबसे बड़ी सेना है लेकिन हर सेना एक-दूसरे से स्वतंत्र होकर काम करती है, ऐसे में ये वास्तव में उचित लक्ष्य और मौजूदा समय की बड़ी ज़रूरत है. 

आम तौर पर सैन्य संपत्ति और मैनपावर के और ज़्यादा बेहतर इस्तेमाल की ज़रूरत को मानने के बावजूद इस स्थिति को देखते हुए टीसी के विचार की आलोचना भी हो रही है. आलोचना की एक मुख्य वजह है, जैसा कि एयर चीफ मार्शल एस. कृष्णास्वामी (रिटायर्ड) ने ज़ाहिर किया है, कि “थिएटर कमांड के गठन से ख़र्च में भारी बढ़ोतरी होगी लेकिन उससे होने वाले फ़ायदे पर संदेह है.” ये आलोचना मोटे तौर पर टीसी के विचार पर होने वाले ख़र्च की तुलना में फ़ायदे के विश्लेषण पर आधारित है क्योंकि भारतीय सेना कई क्षेत्रों में संसाधनों के अभाव का सामना कर रही है. जैसा कि निर्णायक रूप से दिखा है, जहां भारत वास्तव में सेना पर ख़र्च के मामले में दुनिया में चौथे नंबर पर है लेकिन सेना पर आवंटित सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का प्रतिशत लगातार नीचे गिर रहा है. वर्तमान में ये जीडीपी का 1.8% है जो 1962 के युद्ध के समय से सबसे कम है. इससे भी ज़्यादा चिंताजनक तथ्य ये है कि “रक्षा पेंशन, वेतन और भत्तों का हिस्सा 2011-12 के 49 प्रतिशत से बढ़कर 2020-21 में 61 प्रतिशत हो गया है. पूंजीगत व्यय का हिस्सा 2012 के 36 प्रतिशत से गिरकर 2020-21 में 25 प्रतिशत हो गया है.” यानी “भंडारण और आधुनिकीकरण की क़ीमत पर ख़र्च बढ़े हैं. ये दोनों चीज़ें ऐसी हैं जो सैन्य क्षमता हासिल करने और उसे बरकरार रखने के लिए ज़रूरी हैं.” इस व्यापक तस्वीर को देखते हुए जहां सैन्य ख़र्च में लगातार कटौती हुई है- और जो आवंटन होता है उसका एक बड़ा हिस्सा मैनपावर पर ख़र्च होता है- आलोचक दलील देते हैं कि संगठन के एक बिल्कुल नये सिस्टम से कोई फ़ायदा नहीं होगा बल्कि ऐसा होने से क़ीमती संसाधनों का नुक़सान होगा. ऐसे में अच्छी तरह काम कर रहे एक सिस्टम को बदलकर एक नये सिस्टम पर ज़ोर देना समय की ज़रूरत नहीं है. 

इसके विपरीत इसी तरह की समस्याओं को स्वीकार करते हुए, जिसमें ये तथ्य भी शामिल है कि पेंशन का आवंटन निकट भविष्य में बदलने वाला नहीं है, नये सिस्टम के समर्थक टीसी के गठन की दलील देते हैं. उनका कहना है कि टीसी सिस्टम से दुर्लभ संसाधनों का बेहतर इस्तेमाल होगा क्योंकि तालमेल का स्तर बढ़ेगा और बेकार की चीज़ें कम होंगी. 

उदाहरण के तौर पर चीन को लीजिए, जैसा कि ऊपर बताया गया है चीन में भी ज्वाइंट थिएटर कमांड सिस्टम है. वेतन के बढ़ते ख़र्च की चुनौतियों से पार पाने के लिए और आधुनिकीकरण के लिए पैसे बचाने के मक़सद से राष्ट्रपति शी ने “सितंबर 2015 में 3,00,000 सैनिकों की कटौती करने के लिए कहा. 1949 में चीन की सेना पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) में 80 लाख सैनिक थे और तब से बदलते सिद्धांत और सेना के आधुनिकीकरण की ज़रूरत के हिसाब से लगातार इसमें कटौती की गई है.” थल सेना के पूर्व प्रमुख की हैसियत से, मौजूदा चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ जनरल बिपिन रावत ने भी एक छोटी और मुस्तैद सेना के गठन की बात कही थी. नये गठित सैन्य मामलों के विभाग (डीएमए) की तरफ़ से पेंशन और भर्ती का जो प्रस्ताव लाया गया है वो भी इस रुझान की तरफ़ इशारा करता है. सुधार के मक़सद से लाए गए इन प्रस्तावों में “कुल मिलाकर क़रीब 1.5 लाख सैनिकों की संख्या” में कटौती से लेकर इंटिग्रेटेड बैटल ग्रुप (आईबीजी) जैसे विचार शामिल हैं. इन सभी का मक़सद ऊपर बताए गए सीमित संसाधनों को ध्यान में रखते हुए असरदार ढंग से लड़ाई के मैदान में बढ़त बनाए रखना है. 

चीन पर ध्यान देना ज़रूरी

चीन पर ध्यान देना भी इस वक़्त की अहम ज़रूरत है क्योंकि 2015 से चीन ने जो सुधार किए हैं उसका नतीजा “पीएलए के अलग-अलग अंगों के बीच साझापन और एकीकरण के रूप में आया है. चीन-भारत सीमा पर बेहतर एकीकरण लाने की कोशिश का नतीजा पूरी तरह दिख रहा है.” ऐसी स्थिति जो मौजूदा सीमा संकट के दौरान दिखी, भारत के लिए गंभीर सुरक्षा चुनौती खड़ा करती है. विश्लेषकों ने जो पाया है उसके मुताबिक़ सबसे चिंताजनक बात है दो अलग-अलग कमांड के तहत काम करने वाली चीन की सेना का पुनर्गठन करके उसको विशाल पश्चिमी कमांड के तहत लाना जो “भारत के साथ ज़मीनी सरहद की सुरक्षा के लिए ज़िम्मेदार है.” लेकिन भारत में “आठ ऑपरेशनल कमांड को इसमें शामिल किया जाएगा यानी थल सेना के तीन कमांड, वायु सेना के तीन कमांड और नौसेना का पूर्वी कमांड. इसके अतिरिक्त इकलौता ट्राई-सर्विस अंडमान और निकोबार थिएटर कमांड भी इसमें शामिल होगा.”

नये सिस्टम के समर्थक टीसी के गठन की दलील देते हैं. उनका कहना है कि टीसी सिस्टम से दुर्लभ संसाधनों का बेहतर इस्तेमाल होगा क्योंकि तालमेल का स्तर बढ़ेगा और बेकार की चीज़ें कम होंगी. 

कुल मिलाकर इस तरह की संरचना को देखते हुए, ख़ास तौर पर सीडीएस के पद के गठन के बाद, ये कहना उचित है कि टीसी के लिए ऑपरेशनल ज़रूरत को लेकर बहस असरदार ढंग से शांत हो चुकी है और सशस्त्र बलों का पुनर्गठन एक ज़रूरत है. नये गठित डीएमए को सौंपे गए अधिकार से भी इसकी पुष्टि होती है. डीएमए को “ऑपरेशन में साझापन लाकर संसाधनों के बेहतर इस्तेमाल के लिए सैन्य कमांड के पुनर्गठन, जिसमें साझा/थिएटर कमांड की स्थापना भी शामिल है, को आसान बनाने” को कहा गया है और सीडीएस की भूमिका “तीनों सेना के ऑपरेशन, लॉजिस्टिक, परिवहन, प्रशिक्षण, समर्थन सेवा, संचार, मरम्मत और देखरेख इत्यादि में साझापन लाना है.”

बहस अब थियेटर कमांड के प्रस्ताव के वास्तविक क्रियान्वयन और उसके अलग अर्थ पर है. एक तरफ़ ये प्रोजेक्ट मौजूदा सीडीएस जनरल रावत का विचार रहा है और उनकी तरफ़ से जो समय प्रस्तावित किया गया है, उसके मुताबिक़ “2022 तक हमारे पास ढांचा तैयार होगा और इस पर अमल शुरू हो जाएगा. मुझे उम्मीद है कि वायु रक्षा के मामले में अमल तेज़ी से होगा. समुद्री कमांड इसके बाद यानी 2021 में अमल करेगा और 2022 तक हम कम से कम ज़मीन आधारित थिएटर कमांड पर अमल शुरू कर देंगे.” 

दूसरी तरफ़ थल सेना प्रमुख जैसे लोगों ने भी साझापन, एकीकरण और संसाधनों के बेहतर इस्तेमाल की ज़रूरत को स्वीकार करते हुए मोटे तौर पर पुनर्गठन का समय भी पूछा है. जनरल नरवणे ने इंटिग्रेटेड डिफेंस कमांड के मुद्दे पर कहा कि इस पर अमल “अच्छी तरह सोच-समझकर” होगा और इसका फ़ायदा मिलने में “कई साल” लगेंगे.

रक्षा विश्लेषक, रणनीतिकार और रिसर्चर भी योजनाबद्ध प्रस्ताव की विशेषता पर दलीलें दे रहे हैं. इनमें समुद्री कमांड की संख्या- एक हो या दो– पर बहस से लेकर वायु शक्ति की भूमिका और साझा कमांड के तहत लचीलेपन पर बहस शामिल हैं. साथ ही पदों के स्तर और कमान की श्रृंखला पर बहस से लेकर इस पुनर्गठन को संभव बनाने के लिए पार की जाने वाली अलग-अलग तरह की अन्य चुनौतियां और बाधाएं शामिल हैं. 

भारतीय सेना में होना चाहिये गंभीर सुधार

इसके साथ-साथ इस बात को नहीं भूला जा सकता कि ये बहस उस वक़्त हो रही हैं जब भारतीय सेना कई ख़तरनाक चुनौतियों का सामना कर रही है, जहां ख़तरे का रूप जटिल और परिवर्तनशील है. जैसा कि ऊपर कहा गया है, थिएटर कमांड की बढ़ी हुई ज़रूरत के पीछे एक बड़ी वजह चीन की सेना के भीतर विस्तृत सैन्य सुधार रही है. अब भारत पहले से सक्रिय एलओसी के साथ सक्रिय एलएसी में ख़ुद को पा रहा है. इसकी वजह से भारतीय सेना में गंभीर सुधार की ज़रूरत बढ़ गई है. 

विश्लेषकों ने बताया है कि कैसे भारत के पास अभी तक अच्छी तरह विकसित रक्षा-औद्योगिक कॉम्प्लेक्स नहीं है जो भारतीय सेना के आधुनिकीकरण के मक़सद में साथ दे सकता है.

इस कारण टीसी के संबंध में आलोचना की दूसरी कतार आती है जो कि स्वभाव से वैचारिक होने से ज़्यादा परिचालन संबंधी है. दूसरी आलोचना मोटे तौर पर ये है कि इस तरह के सुधार खालीपन में काम नहीं कर सकते और इसके असरदार होने के लिए संरचनात्मक एकीकरण के अलावा साथ देने वाला इकोसिस्टम भी होना चाहिए. इसलिए टीसी के विचार के साथ लगातार और योजनाबद्ध हस्तक्षेप की ज़्यादा ज़रूरत है. साथ देने वाले इकोसिस्टम के मामले में आलोचकों ने मज़बूत रक्षा-औद्योगिक उत्पादन कॉम्प्लेक्स जैसी प्रणाली की ज़रूरत की दलील दी है. इसके अलावा युद्ध के बदलते स्वभाव जैसे ज़मीन आधारित युद्ध के बदले साइबर, स्पेस और मनोविज्ञान जैसे उभरते महत्वपूर्ण क्षेत्र में युद्ध की क्षमता को स्वीकार करना भी इसमें शामिल है. इस तरह की दलीलों में दम भी है क्योंकि कई लोग कहते हैं कि संसाधनों के बेहतर इस्तेमाल के लिए तकनीकी शक्ति, संपत्ति और क्षमता की बड़े पैमाने पर शुरुआत और उन पर निर्भरता की ज़रूरत होती है. इनमें अगली पीढ़ी के हथियार और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के अलावा दूसरी हानिकारक तकनीक शामिल हैं. विश्लेषकों ने बताया है कि कैसे भारत के पास अभी तक अच्छी तरह विकसित रक्षा-औद्योगिक कॉम्प्लेक्स नहीं है जो भारतीय सेना के आधुनिकीकरण के मक़सद में साथ दे सकता है. मिसाल के तौर पर, सीडीएस ने भले ही कुछ समय पहले ये कहा था कि “हमारा ध्यान स्वदेशीकरण और आत्मनिर्भर भारत के मिशन के लगातार समर्थन की कोशिशों पर लगा रहेगा” लेकिन इसके बावजूद भारत दुनिया में दूसरा सबसे बड़ा हथियार आयातक बना हुआ है और चीन के साथ मौजूदा सीमा संकट को देखते हुए भारतीय सेना “अलग-अलग तरह की सामग्री, ख़ास तौर पर गोला-बारूद, मिसाइल और हथियार का आयात कर रही है ताकि सेना के हथियारों के भंडार में कमी को पूरा किया जा सके. इन सामग्रियों की क़ीमत 10,000 करोड़ रुपये से ज़्यादा है.” 

इसके आगे ये आलोचना भी है कि टीसी के विचार के साथ इस बात को भी मानने की ज़रूरत है कि ड्रोन और अनमैन्ड सिस्टम से लेकर साइबर, इलेक्ट्रॉनिक और स्पेस के उभरते क्षेत्र में युद्ध का रूप बदल रहा है. इन महत्वपूर्ण क्षेत्रों में भी चीन की तरफ़ ध्यान दिलाना ज़रूरी है. उदाहरण के लिए पीएलए ने पहले ही “स्ट्रैटजिक सपोर्ट फोर्स की स्थापना की है जिसमें तीन स्वतंत्र फोर्स शामिल हैं- साइबर फोर्स, स्पेस फोर्स और इलेक्ट्रॉनिक युद्ध.” 

कुल मिलाकर थिएटर कमांड की तरफ़ क़दम बेहद ज़रूरी है और ऐसा लगता है कि आगे चलकर ये प्रेरक शक्ति बन जाएगा, ख़ास तौर पर सीडीएस के तहत. लेकिन इसके साथ-साथ कई तरह की बाधाएं भी मौजूद हैं जिनमें परिचालन से लेकर वैचारिक बाधाएं शामिल हैं. इन सुधारों को फ़ायदेमंद बनाने और भारतीय सेना को बदलने के लिए इन बाधाओं का ध्यान रखने की ज़रूरत है.

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