TF-1: मैक्रोइकोनॉमिक्स, व्यापार और आजीविका: नीति अनुकूलन एवं अंतर्राष्ट्रीय समन्वय
सार
यह पॉलिसी ब्रीफ़ प्रस्तावित करता है कि G20 देशों को डेटा असंतुलन की वजह से सामने आने वाली रुकावटों को दूर करने के लिए मूल्य श्रृंखला में हितधारकों के बीच महत्त्वपूर्ण आपूर्ति श्रृंखला से संबंधित जानकारी से जुड़ी असमानता को कम करने में सहयोग करना चाहिए. G20 का मंच इस तरह का फ्रेमवर्क स्थापित करने के लिए सबसे उपयुक्त है, क्योंकि G20 दुनिया की 20 सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं का समूह है और G20 को आपूर्ति श्रृंखला में होने वाले व्यवधानों की चुनौतियों का सीधे मुक़ाबला करना होगा. हालांकि, G20 देशों ने अपने डेटा गैप्स इनीशिएटिव्स यानी 1.0, 2.0 और 3.0 पहलों के माध्यम से वित्तीय क्षेत्र, जलवायु परिवर्तन, आय और संपत्ति वितरण एवं डेटा साझाकरण जैसे क्षेत्रों में इस तरह की असमानता को सुरक्षित तरीक़े से कम करने का प्रत्यक्ष अनुभव हासिल कर लिया है.[1] यह पॉलिसी ब्रीफ़ सुझाव देता है कि चौथी डेटा गैप पहल में G20 देशों को एक और बेहद ज़रूरी कार्य शुरू करने पर विचार करना चाहिए, यानी जवाबदेह, कार्य-कुशल और पारदर्शी डेटा साझाकरण के ज़रिए आपूर्ति श्रृंखला लचीलापन को लेकर कार्य शुरू करना चाहिए.
1 .चुनौतियां
वर्ष 2021 में जब कोविड-19 महामारी अपने चरम पर थी, तब वैश्विक अर्थव्यवस्था अनिश्चितिता की स्थित में पहुंच गई थी, क्योंकि लॉकडाउन की वजह से मांग और आपूर्ति में उतार-चढ़ाव को समझने के लिए साझा कोशिशों की कमी के कारण आपूर्ति श्रृंखला बुरी तरह से बाधित हो गई थी. सेमीकंडक्टर चिप्स की कमी के मामले में आपूर्ति श्रंखला में सबसे अधिक व्यवधान पैदा हुआ था. ज़ाहिर है कि ये चिप्स मोबाइल फोन जैसे इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स से लेकर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और रक्षा उपकरणों के निर्माण के लिए बेहद महत्त्वपूर्ण हैं. आपूर्ति श्रृंखला में व्यवधान पैदा होने के कई कारण थे, जिनमें से सबसे प्रमुख कारण निम्नलिखित थे:
i. कोविड महामारी के दौरान चिप्स की मांग में भारी उतार-चढ़ाव देखने को मिला था. इस पहला कारण यह था कि वर्क फ्रॉम होम यानी घर से कार्य करने के लिए पर्सनल कंप्यूटर और लैपटॉप जैसे गैजेट्स की मांग में भारी बढ़ोतरी हुई थी. उसी दौरान स्मार्टफोन और ऑटोमोबाइल निर्माताओं की ओर से चिप्स की मांग में गिरावट दर्ज़ की गई, क्यों लॉकडाउन के समय उपभोक्ताओं की इनकम में कमी आने की वजह से ये सेक्टर धीमी वृद्धि का सामना कर रहे थे.
ii. वर्क फ्रॉम होम के कारण फैक्ट्री में होने वाले काम भी अचानक से कम हो गए, जिसने चिप्स उद्योग में कार्यबल के कामकाज को बाधित कर दिया. इसके अलावा क्वारंटीन के समय ने भी उत्पादन दर पर नकारात्मक प्रभाव डाला.
iii. इसके साथ ही लंबे समय तक लॉकडाउन के साथ-साथ कोविड से जुड़ी वस्तुओं के निर्यातों के लिए परिवहन क्षमता का बहुत अधिक उपयोग होने की वजह से भी चिप्स की आपूर्ति व्यापक स्तर पर बाधित हुई थी. वैक्सीन, मास्क और दवाओं के ट्रांसपोर्ट के लिए जहाजों और मालवाहक विमानों का अत्यधिक उपयोग होने के कारण ज़बरदस्त दबाव का सामना करना पड़ा, जिसके फलस्वरूप अक्सर इंजन फेल हो गए, जबकि डॉकयार्ड में जहाजों को दूसरे देशों की सीमाओं में दाख़िल होने के लिए संघर्ष करना पड़ा.
देखा जाए तो इन सभी मामलों में आपूर्ति श्रृंखला के भीतर निर्माताओं से लेकर आपूर्तिकर्ताओं तक और निजी विक्रेताओं से लेकर सरकारों तक, विभिन्न किरदारों के बीच बेहतर संपर्क स्थापित किया जा सकता था. साथ ही वस्तुओं की उपलब्धता एवं पारदर्शिता के लिए सहयोग को लेकर संचार एवं सूचना के आदान-प्रदान के मामले में और अधिक औपचारिक तरीक़े का उपयोग किया जा सकता था. उदाहरण के लिए, चिप्स से जुड़ी जानकारी को ही लें, सरकारों और अन्य किरदारों के बीच अगर बेहतर समन्वय होता तो इसके बारे में पूरी जानकारी हासिल की जा सकती थी कि दुनिया में किस जगह पर चिप्स आसानी से उपलब्ध थे, यानी उनका व्यापक स्टॉक मौज़ूद था और कब तक चिप्स का निर्यात किया जाना संभव था. इसी तरह से अगर सरकारों के बीच चिप्स के परिवहन के लिए लॉजिस्टिक्स मदद के मुद्दे पर समुचित सहयोग होता, तो निश्चित तौर पर कोविड की वजह से उत्पन्न उपरोक्त व्यवधानों से आसानी से निपटा जा सकता था.
आपूर्ति श्रृंखला ऐसी इकाइयों का जटिल नेटवर्क है, जो उन प्रथाओं और प्रक्रियाओं में शामिल हैं, जो कि व्यक्तिगत उपभोक्ता और बड़ी अर्थव्यवस्था के लिए मूल्यों को सृजित करने का काम करती हैं. इन इकाइयों की पहचान या तो 'अपस्ट्रीम' के रूप में की जाती है, यानी कि वे इकाइयां जो आपूर्ति श्रृंखला के उत्पादों के निर्माण के पहले के चरण में शामिल हैं (कच्चे माल के प्रावधान और स्वयं निर्माण सहित) या इनकी पहचान 'डाउनस्ट्रीम', के रूप में की जाती हैं, अर्थात जो कि पैकेजिंग के साथ ही अंतिम उपभोक्ताओं तक वितरण से जुड़े कार्यों में संलग्न होती हैं.[2]
वितरित आपूर्ति श्रृंखला में इतने अलग-अलग किरदारों की मौज़ूदगी के साथ, मांग और खपत से जुड़े आंकड़ों, कच्चे माल की उपलब्धता, या उत्पाद की आपूर्ति की वास्तविक बनाम अनुमानित उपलब्धता उचति तरीक़े से समन्वय की कमी एवं प्रासंगिक किरदारों के निजी हितों की वजह से प्रभावित होती है.
अंतर्राष्ट्रीय आपूर्ति श्रृंखलाओं पर कोविड-19 महामारी के प्रभावों से यह स्पष्ट हो जाता है कि यदि ऐसी आपूर्ति श्रृंखलाओं में सभी हितधारकों के पास उत्पादन, आउटपुट और खपत प्रक्रियाओं का अनुकूलन करने के लिए ज़रूरी जानकारी पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध नहीं है, साथ ही उनके बीच आंकड़ों और सूचना का असंतुलन है, तो इस प्रकार की विफलताओं का राष्ट्रीय और वैश्विक अर्थव्यवस्थाओं एवं इनकम पर व्यापक असर होगा.
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'आंकड़ों' और 'असमानता' की प्रकृति
आपूर्ति श्रृंखला में विभिन्न प्रकार के प्रासंगिक आंकड़े शामिल होते हैं: [3]
- बिक्री और मांग से जुड़े आंकड़े - उपभोक्ताओं के आंकड़ों को सम्मलित करते हुए ये उत्पादों और सेवाओं की मांग, ग्राहकों की प्राथमिकताओं, ख़रीदारी की आदतों और व्यवहार को समझने में मदद करते हैं, जिससे हितधारकों को भविष्य की मांग का पूर्वानुमान लगाने और उसके मुताबिक़ इन्वेंट्री स्तर का निर्धारण करने की जानकारी हासिल होती है;
- आपूर्तिकर्ता से जुड़े आंकड़े - यह आंकड़े आपूर्तिकर्ताओं से संबंधित प्रमुख समय, गुणवत्ता रेटिंग और मूल्य निर्धारण के बारे में पूरी जानकारी उपलब्ध कराते हैं, जो हितधारकों को उनके सर्वोत्तम आपूर्तिकर्ताओं का चयन करने और सुविधाजनक शर्तों पर बातचीत करने में मदद करते है;
- इन्वेंट्री डेटा - ये आंकड़े हितधारकों को उनके मौजूदा इन्वेंट्री स्तर को समझने में मदद करते हैं और पूरी आपूर्ति श्रृंखला में उत्पादों की आवाजाही पर नज़र रखते हैं;
- परिवहन से जुड़े आंकड़े - यानी मार्गों, शिपिंग के समय और इसके ख़र्च के बारे में जानकारी, जो हितधारकों को उनकी शिपिंग और वितरण प्रक्रियाओं को अनुकूलित करने में मदद करती है; और
- वित्तीय आंकड़े - इन आंकड़ों में लागत और नकदी प्रवाह के बारे में जानकारी शामिल होती है, जो हितधारकों के लिए अपने वित्त का प्रबंधन करने और निवेश एवं ग्रोथ के बारे में सटीक निर्णय लेने के लिए आवश्यक हैं.
जो भी आंकड़े उपलब्ध हैं, उनकी व्यापकता और भिन्नता के मद्देनज़र विश्लेषक [4] आपूर्ति श्रृंखलाओं के भीतर कई प्रकार की सूचना विषमताओं को स्वीकार करते हैं. इनमें लागत सूचना विषमता, मांग सूचना विषमता, क्षमता सूचना विषमता, गुणवत्ता सूचना विषमता, अव्यवस्था सूचना विषमता, विशेषता सूचना विषमता, इन्वेंट्री सूचना विषमता, क़ीमत सूचना विषमता, प्रयास-स्तर सूचना विषमता और वस्तुपरक कार्य सूचना विषमता शामिल हैं. देखा जाए तो इनमें से लागत और मांग से संबंधित सूचना विषमताओं का अक्सर सबसे अधिक अध्ययन किया जाता है.
अपस्ट्रीम किरदारों, जैसे कि निर्माताओं के पास ऊपर दिए गए अव्यवस्था से संबंधित विभिन्न कारकों की वजह से उत्पादन में होने वाली देरी से जुड़े हुए रीयल-टाइम आंकड़े उपलब्ध होते हैं. इसी तरह, डाउनस्ट्रीम किरदारों, जैसे कि विक्रेताओं और यहां तक कि सरकारों के पास मांग में उतार-चढ़ाव और डिलीवरी में देरी से जुड़े रीयल-टाइम आंकड़े मौज़ूद होते हैं. हालांकि, यह डेटा विभिन्न हितधारकों के बीच साझा नहीं किया गया है. यह ब्रीफ़ उन दो वजहों की पहचान करता है, कि क्यों ये हितधारक ऐसे आंकड़े साझा करने में सक्षम (स्वेच्छा से या अनिच्छा से) नहीं हो सकते हैं:
i. आंकड़ों को ऐसे ही प्रकाशित करने या सामने लाने की तुलना में उन्हें बेचना ज़्यादा लाभदायक है. सीधे शब्दों में कहा जाए, तो विभिन्न किरदार, ख़ास तौर पर बिचौलियों (जैसे कि सलाहकार फर्मों) के पास ऐसी जानकारी है, जो एक विकेन्द्रीकृत आपूर्ति श्रृंखला में अन्य किरदारों के लिए महत्त्वपूर्ण हो सकती है. ज़ाहिर है कि यह बिचौलिया कंपनियां अपने ग्राहकों (निर्माताओं, आपूर्तिकर्ताओं और निर्यातकों) के लिए इन जानकारियों को व्यापक रूप से एक सुलभ भंडार में संग्रहीत करने के लिए सक्षम करने के बजाए, इसे एक सर्विस [5] के तौर पर बेचेंगे. इसके अलावा, चिप्स इंडस्ट्री से जुड़े गठबंधन, जैसे कि वाशिंगटन स्थित सेमीकंडक्टर इंडस्ट्री एसोसिएशन (SIA), विभिन्न पूर्वानुमानों और दूसरे अहम आंकड़ों पर अपनी पकड़ रखते हैं और इसे वार्षिक रिपोर्ट के रूप में प्रकाशित करते हैं, जिसे बेचा जाता है. (उदाहरण के लिए गैर-सदस्यों के उपयोग के लिए वर्ष 2022 की रिपोर्ट की क़ीमत 375 अमेरिकी डॉलर है [6] ). इसी तरह, ब्लूमबर्ग ने एक व्यापक आपूर्ति श्रृंखला डेटाबेस बनाया है,[7] जिसे एक 'उत्पाद' के रूप में प्रचारित किया जाता है. ज़ाहिर है कि विभिन्न प्रकार के तुलनात्मक लाभ के लिए और सूचना को एक मज़बूत हथियार के रूप में उपयोग करने के लिए यह अनिवार्य है.
ii. सूचना एकत्र करने की जो प्रक्रियाएं हैं, उनमें देखा जाए तो कई प्रकार की ख़ामियां है और इन ख़ामियों को दूर करने में डिजिटलीकरण काफ़ी मददगार साबित हो सकता है. विश्लेषकों का सुझाव है [8] कि अपस्ट्रीम आपूर्ति श्रृंखला के तमाम किरदार नई और उभरती हुई प्रौद्योगिकियों को अपनी असेंबली लाइन में एकीकृत करके उत्पादन से जुड़े रीयल-टाइम आंकड़े जुटा सकते हैं. हालांकि, स्रोत पर आंकड़े एकत्र करने की प्रक्रिया अस्पष्ट, जटिल और जानबूझकर प्रयास की कमी वाली हो सकती है. यहां, हम डेल (Dell) के उदाहरण [9] पर नज़र डालते हैं, जिसकी डिजिटलीकृत आपूर्ति श्रृंखला ने सेमीकंडक्टर की कमी से निपटने में मदद की है. इसके तहत आपूर्ति और मांग से जुड़े विभिन्न आंकड़ों को उनके डिजिटल मॉडल में एकीकृत किया जाता है, जिससे उन्हें आपूर्ति कम होने की स्थिति में कुछ स्टॉक रखने वाली यूनिट्स (SKU) को प्राथमिकता देने या कटौती करने का निर्णय लेने की सहूलियत मिलती है. ज़्यादातर कंपनियां [10] मांग और आपूर्ति की अस्थिरता से जुड़े मुद्दों को तत्काल संबोधित करने के उद्देश्य से अपनी आपूर्ति श्रृंखला की तेजी को बढ़ाने के लिए डिजिटलीकरण की ओर रुख कर रही हैं. इसके लिए जिन व्यापक तकनीक़ों को लागू किया जा रहा है, उनमें सेंसर, अल्फान्यूमेरिकल कोड्स यानी जिनमें वर्ण और संख्याएं दोनों शामिल होते हैं, बार कोड्स, रेडियो फ्रीक्वेंसी आइडेंटिफिकेशन टैग्स (RFID) और जियोग्राफिक इन्फॉर्मेशन सिस्टम्स (GIS) शामिल हैं.
2 .G20 की भूमिका
G20 देश विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाएं हैं और वैश्विक आर्थिक सुधार पर भविष्य की किसी भी बातचीत के लिए आपूर्ति श्रृंखला लचीलापन अनिवार्य रूप से प्रमुख आवश्यकता बन गया है. जैसा कि कोविड-19 महामारी जैसे संकटों से आपूर्ति श्रृंखला बाधित होती है और ऐसी परिस्थितियों में उपभोक्ता संतुष्टि से लेकर निर्माताओं, खुदरा विक्रेताओं और निर्यातकों को कर्ज से बचाने तक किसी न किसी तरह से कई मुद्दों का बोझ नीति निर्माताओं के ऊपर पड़ता है. ऐसे परिदृश्य में अगर G20 देशों की सरकारें उद्योग से जुड़े किरदारों द्वारा सूचनाओं के पारदर्शी और आसान साझाकरण को सक्षम कर सकती हैं, तो इससे वे कही न कहीं अपने स्वयं के नीतिगत नतीज़ों को भी मज़बूत कर सकती हैं.
जो भी राष्ट्रीय और वैश्विक आर्थिक विचार-विमर्श हैं, वो राष्ट्रीय निर्यातकों, शिपमेंट क्षमताओं और आपूर्ति की बाधा से जुड़ी सुरक्षा एवं उनके संरक्षण के इर्दगिर्द सिमटे हुए हैं. व्यापार के लिए आमतौर पर सबसे अधिक इस्तेमाल किए जाने वाले मार्गों को, जो कि ख़ासतौर पर वैश्विक आर्थिक संकट के दौरान अत्यधिक भीड़भाड़ वाले हो जाते हैं और यहां तक कि अवरुद्ध हो जाते हैं और शिपमेंट में देरी एवं आपूर्ति की बाधाओं को बढ़ाते हैं, उन्हें मुक्त करना बहुत आवश्यक है. अगर कोविड-19 महामारी के दौरान के हालातों पर एक नज़र डालें, तो उस समय एशिया को उत्तरी अमेरिका और यूरोप से जोड़ने वाले लोकप्रिय आपूर्ति मार्गों पर भीड़भाड़ बहुत बढ़ गई थी और नतीज़तन इससे निर्यात प्रभावित हुआ एवं विशेष रूप से मास्क एवं दवाओं के निर्यात में देरी का सामना करना पड़ा. कोविड महामारी के दौरान देशों के बीच सीमा पार के आंकड़ों को साझा करने यानी एक-दूसरे के डेटा को साझा करने के औपचारिक तरीक़ों की कमी की वजह से एक तरफ, ऑस्ट्रेलिया और चीन ने देखा[11] कि उनके बंदरगाहों पर खाली कंटेनरों का ढेर लग गया था, जबकि बड़ी संख्या में आपूर्ति से जुड़े अनुरोधों के कारण भारत और अमेरिका के बंदरगाहों पर कंटेनरों की कमी हो रही थी.
3. G20 को लिए सिफ़ारिशें
यह पॉलिसी ब्रीफ़ सरकारों और निजी क्षेत्र के लिए पारस्परिक रूप से लाभप्रद स्थिति बनाने हेतु डेटा गवर्नेंस मॉडल की परिकल्पना करता है. परिकल्पना किए गए डेटा गवर्नेंस मॉडल के दो प्रमुख पहलुओं में डेटा संग्रह और डेटा साइंस शामिल हैं.
डेटा संग्रहण
अगर सरकारों और निजी संस्थाओं के बीच की बात की जाए, तो सरकार आपूर्ति श्रृंखला से संबंधित विभिन्न किरदारों, जो कि एक दूसरे के साथ तालमेल नहीं रख सकते हैं, उनके बीच समन्वय करने की क्षमता की वजह से कम से कम ख़र्च में डेटा संग्रह के कार्य को करने के लिए सबसे अच्छी तरह से सक्षम है. सरकार के पास सबसे प्रभावशाली उपकरण टैक्सेशन यानी कर लगाना है. यह एक सच्चाई है कि सरकारें मूल्य श्रृंखला के कई स्तरों पर टैक्स वसूलती हैं, ऐसे में सरकारों को आपूर्ति श्रृंखला से संबंधित डेटा संग्रह में संलग्न निजी संस्थाओं की तुलना में अपेक्षाकृत न्यूनतम लागत पर एक मज़बूत और एकीकृत डेटा इन्फ्रास्ट्रक्चर या प्रणाली बनाने में सहूलियत होती है. इसके अतिरिक्त, सरकारें घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय सीमाओं के पार माल और सेवाओं की तमाम तरह की मंजूरी के लिए चौकीदार के रूप में भी कार्य करती हैं.
फिलहाल मुद्दा यह है कि दुनिया भर की सरकारें आम तौर पर डेटा एकत्र करने की इस क्षमता का फायदा नहीं उठाती हैं और न ही जनता के लिए इसका इस्तेमाल करती हैं. इस प्रकार से पैदा हुए अंतर ने ही निजी संस्थाओं को इस क्षेत्र में आगे बढ़ने और डेटा असंतुलन को दूर करने का अवसर प्रदान किया है, यह अलग बात है कि इससे उनकी आर्थिक लागत में बढ़ोतरी हुई है. हालांकि, सरकारों के पास चूंकि नीति बनाने और उद्योग को प्रभावित करने की ताक़त है, ऐसे में वे सभी स्रोत बिंदुओं पर डेटा संग्रह को अनिवार्य कर सकती हैं. इसके अतिरिक्त आपूर्ति श्रृंखलाओं पर डेटासेट के स्रोत में आपूर्ति श्रृंखला में अन्य निजी खिलाड़ियों के अलावा पहले से ही सरकारी रिकॉर्ड्स शामिल हैं. हालांकि, आंकड़ों को न तो ठीक प्रकार से संभाला जाता है और न ही उन तक पहुंचा जा सकता है, ऐसे में निजी संस्थाओं के लिए डेटा संग्रह करना एक बेहद महंगा मामला बन जाता है. अगर सरकारें अपने टैक्स से जुड़े रिकॉर्ड्स का लाभ उठाएं और आपूर्ति श्रृंखलाओं में शामिल सभी किरदारों को अपने इन्वेंट्री डेटा को स्रोत पर शुरुआती दौर में ही एकत्र करने और इसे सरकार के साथ साझा करने के लिए अनिवार्य करें, ताकि ऐसे आंकड़ों को एक ही स्रोत पर इकट्ठा किया जा सकें, तो निश्चित तौर पर इस प्रभावहीनता को दूर किया जा सकता है.
सरकारों की डेटा संग्रह के लिए एक समानांतर फ्रेमवर्क विकसित करने की प्रक्रिया को केवल विशेष तरह की घटनाओं के दौरान या बाद में आगे नहीं बढ़ाया जा सकता है. सरकारों के लिए महत्त्वपूर्ण जानकारी हर वक़्त आसानी से उपलब्ध कराने के लिए यह एक लगातार चलने वाली प्रक्रिया होनी चाहिए, ताकि यह साफ दिखे कि असामान्य व्यवधानों पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करने के लिए उसके पास समय और समझ है. इसके साथ ही डेटा का फोकस, जिसे आवश्यक रूप से एकत्र किया जाना चाहिए, उसमें पहले विस्तारपूर्वक बताए गए सभी पांच प्रकार के डेटासेट शामिल नहीं हो सकते हैं. इसके बजाय, इस तरह की क़वायद का प्रमुख फोकस मांग और आपूर्ति, आपूर्तिकर्ताओं एवं ट्रांसपोर्ट से जुड़े आंकड़ों पर होना चाहिए.
G20 ने अतीत में सूचना संपर्कों में कमियों के माध्यम से कार्य करके और अध्ययन करके अपने डेटा गैप्स इनीशिएटिव्स के ज़रिए अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के साथ सहयोग किया है. G20 देश DGI-4 के हिस्से के तौर पर G20 सचिवालय के भाग के रूप में सभी आपूर्ति श्रृंखला किरदारों के लिए डेटा दर्ज़ करने का एकल स्रोत स्थापित करने के लिए संकल्प भी ले सकते हैं. मामूली शुल्क देकर सभी के लिए उपलब्ध एक डिजिटल डैशबोर्ड शायद इस मकसद को पूरा करेगा और इसका रखरखाव G20 सचिवालय के फाइनेंस ट्रैक के अंतर्गत इंटरनेशनल फाइनेंशियल आर्किटेक्चर (IFA) वर्किंग ग्रुप द्वारा किया जा सकता है.
यह भी सिफ़ारिश की जाती है कि G20 देशों की सरकारें स्रोत पर रीयल-टाइम सूचना संग्रह की अनुमति देने के लिए मैन्युफैक्चरिंग और उत्पादन की साइटों के भीतर इंटरनेट ऑफ थिंग्स (IoT) और ब्लॉकचेन के एकीकरण को प्रोत्साहित करें. ये प्रौद्योगिकियां आपूर्ति श्रृंखला में पारदर्शिता लाने के लिए एक बेहतर माध्यम है, क्योंकि:
- इंटरनेट ऑफ थिंग्स (IoT) इन्वेंट्री प्रबंधन को अधिक स्पष्ट और सुसंगत बना रहा है, साथ ही भंडारण से जुड़ी विभिन्न प्रमुख प्रक्रियाओं का अनुकूलन कर रहा है और संचालन में सुधार के लिए श्रम लागत को भी कम कर रहा है. IoT टैग या डिवाइस को दोबारा इस्तेमाल की जा सकने वाली संपत्ति जैसे कि इन्वेंट्री स्टोरेज टोट्स एवं पैलेट्स यानी सामान ढोने वाले वाहनों और छोटे प्लेटफॉर्मों से जोड़ा जा सकता है, जो वेयरहाउस पिकर को उनके स्टोरेज स्थानों पर जाने के लिए निर्देश देने का काम करता है.
- इसी प्रकार से IoT आपूर्ति श्रृंखलाओं में परिवहन से जुड़ी गतिविधियों के लिए फायदेमंद साबित हो सकता है. IoT- सक्षम समाधानों का उपयोग करके एक 'स्मार्ट' ट्रांसपोर्टेशन मैनेजमेंट सिस्टम (TMS) बनाया जा सकता है. ये समाधान परिवहन से जुड़ी प्रक्रियाओं को बदलने और उन्हें अधिक कुशल एवं लचीला बनाने के लिए IoT उपकरणों का इस्तेमाल करते हैं. उदाहरण के लिए, दूर-सुदूर स्थित वितरण केंद्रों से रेफ्रीजेरेटेड ट्रकों की स्थिति सुनिश्चित करने, उनके रूट और डिलीवरी के समय को दुरुस्त करने, साथ ही उत्पाद की गुणवत्ता बनाए रखने के लिए GPS का उपयोग किया जा सकता है.[12]
- IoT का इस्तेमाल न केवल पिकिंग और पैकिंग जैसी गतिविधियों को स्वचालित करने का काम करता है, बल्कि डिलीवरी के समय की पूर्व सूचना एवं फ्लीट की उपलब्धता में सुधार करके गोदामों में उत्पादों और सामग्रियों का पता लगाने के साथ-साथ परिवहन के दौरान आवश्यक मानवीय कोशिश को कम करके क्षमता भी बढ़ाने का काम करता है. इसके अतिरिक्त, इन्वेंट्री प्राप्त करने और ऑर्डर डिस्पैच प्रक्रियाओं को स्वचालित करके ख़र्च में कटौती के साथ ही ग़लतियों की संभावना को भी कम से कम किया जा सकता है.[13]
- ब्लॉकचेन लेन-देन का एक साझा और टैंपर-प्रूफ लेजर यानी छेड़छाड़ नहीं किया जा सकने वाला बहीखाता प्रदान कर सकता है, जिससे वस्तुओं की निगरानी रखना और उनकी तलाश करना आसान हो जाता है, क्योंकि वस्तुएं आपूर्ति श्रृंखला के माध्यम से आगे बढ़ती हैं. यह न सिर्फ़ पारदर्शिता और जवाबदेही में सुधार कर सकता है, बल्कि धोखाधड़ी या ग़लतियों के ज़ोख़िम को भी कम कर सकता है.
- इसके अलावा, ब्लॉकचेन, डेटा साझाकरण में शामिल कई प्रक्रियाओं को स्वचालित कर सकता है, जैसे कि लेनदेन की पुष्टि करना और रिकॉर्ड अपडेट करना. यह डेटा साझा करने के लिए ज़रूरी समय और प्रयास को कम कर सकता है, साथ ही आपूर्ति श्रृंखला के ऑपरेशन की गति और क्षमता में सुधार कर सकता है. [14]
- आख़िर में, आंकड़े साझा करने के लिए एक पारदर्शी और सुरक्षित प्लेटफॉर्म प्रदान करके, ब्लॉकचेन आपूर्ति श्रृंखला भागीदारों के बीच भरोसा क़ायम करने में मदद कर सकता है. ज़ाहिर है कि इससे अधिक प्रभावशाली सहयोग एवं एक बेहतर समग्र आपूर्ति श्रृंखला इकोसिस्टम बन सकता है.
- भारत सरकार ने प्रधानमंत्री गति शक्ति नेशनल मास्टर प्लान के अंतर्गत मल्टीमॉडल कनेक्टिविटी के प्रयासों को समन्वित करने के लिए इसरो-आधारित भू-स्थानिक इंटेलिजेंस जैसी प्रौद्योगिकी प्रणालियों को पहले ही एकीकृत कर लिया है. [15] सप्लाई चेन 'स्मार्ट सिस्टम' में IoT एकीकरण के तत्व भी इसी प्रकार से इन्वेंट्री और ट्रांसपोर्ट डेटा को प्रभावी बनाने के लिए GPS और RFID जैसे भू-स्थानिक उपकरणों का उपयोग कर सकते हैं. इसके अलावा, तमिलनाडु सरकार का सेंटर ऑफ एक्सीलेंस इन इमर्जिंग टेक्नोलॉजीज (CEET) पंजीकरण दस्तावेज़ों के टैंपर-प्रूफ लेजर को संभालने के लिए ब्लॉकचैन का उपयोग करता है.[16] इस तरह की टेक्नोलॉजी को प्राइवेट फर्मों और G20 देशों द्वारा विभिन्न चीज़ों को एक साथ रखने के प्रारूप में समन्वित किया जा सकता है और डेटा भंडारण प्रक्रियाओं को व्यवस्थित बनाने के लिए एकीकृत किया जा सकता है.
डेटा विज्ञान
जहां तक निजी संस्थाओं का संबंध है, तो उन्हें प्रमुख तौर पर डेटा विज्ञान में विशेषज्ञता हासिल करने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए, जिसमें डेटा विवरण उपलब्ध कराना एवं परामर्श सेवाएं प्रदान करना शामिल है. उल्लेखनीय है कि एक बार जब निजी इकाइयों और कंसल्टेंसी फर्मों को डेटा संग्रह की अपनी ड्यूटी से आज़ाद कर दिया जाएगा, तो समग्र आपूर्ति श्रृंखला ज़ाहिर तौर पर न केवल अधिक कुशल एवं पारदर्शी हो जाएगी, बल्कि बेहतर कार्यात्मक विशेषज्ञता के लिए भी अधिक गुंजाइश पैदा करेगी. यह डेटा एकत्र करने से जुड़ी लागतों को एक तरफ हटाकर कंसल्टेंसी फीस को कम करेगा. इन बड़ी कंसल्टेंसी फर्मों के लिए राजस्व के अनुमानित नुक़सान को उनके बढ़े हुए उपभोक्ता आधार से पूरा किया जा सकता है, यह नुक़सान संभवित रूप से बढ़ेगा, क्योंकि उनकी कंसल्टेंसी फीस में गिरावट (डेटा संग्रह से मुक्त होने के बाद) आएगी. इसका किसी भी लिहाज़ से यह मतलब नहीं होगा कि निजी कंपनियों को अपने स्वयं के डेटा बैंक को स्थापित करने से रोक दिया गया है.
ऐसा होने पर कंसल्टेंसी कंपनियां अपने उपभोक्ता आधार को बढ़ा सकती हैं और डेटा रुझानों के विश्लेषण एवं मांग या आपूर्ति में उतार-चढ़ाव की पूर्व सूचना के माध्यम से लाभ कमा सकती हैं. इसके अलावा, G20 (और इसलिए, एक पब्लिक) गुड्स के रूप में आंकड़ों की उपलब्धता कई छोटे और मध्यम आकार की कंसल्टेंसी फर्मों को उभरने का मौक़ा देगी. ज़ाहिर है कि ये छोटी और मध्यम आकार की कंपनियां डेटा संग्रह से जुड़ी भारी लागत की वजह से प्रमुख एवं स्थापित कंसल्टेंसी फर्मों के साथ प्रतिस्पर्धा नहीं कर सकती थीं, हालांकि यह अलग बात है कि इन फर्मों के पास डेटा विवरण और कंसल्टेंसी से संबंधित विशेषज्ञता हो सकती है. यहां भी सरकारों की महत्त्वपूर्ण भूमिका होगी; सबसे पहले, सरकारों को डेटा संग्रह में संलग्न होने की ज़िम्मेदारी के बिना अपनी विशेषज्ञता के लिए मार्केट का विस्तार करने के लिए छोटे और मध्यम स्तर के डेटा वैज्ञानिकों और सलाहकारों के लिए नए अवसरों को उपलब्ध करना होगा. दूसरा, सरकारें डेटा व्याख्या और कंसल्टेंसी बिजनेस के लिए प्रोत्साहन प्रदान कर सकती हैं, जो की ख़ास तौर पर व्यवधानों से प्रभावित आपूर्ति श्रृंखला किरदारों की ज़रूरतों को पूरा करते हैं, यानि की सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम.
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जहां होता है दो इकाइयों का मिलन
सरकारी डेटा संग्रह के प्रयासों का निजी कंपनियां या संस्थाएं किस तरह से समर्थन कर सकती हैं? एक बार जब G20 सरकारें 'छिपे' या 'नेक्सस' आपूर्तिकर्ताओं की पहचान कर लेती हैं, जैसा कि ताइवान सेमीकंडक्टर मैन्युफैक्चरिंग कंपनी के मामले में हुआ है, आपूर्ति श्रृंखला में इस तरह के नोड्स को समझने में आसानी हो सकती है कि एकत्रित डेटा को कैसे तैयार किया जाता है और किस प्रकार से उनका पूर्व-सूचना एवं आपूर्ति श्रृंखला क्षमता बढ़ाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है. इन नोड्स के पास आपूर्ति श्रृंखलाओं में भविष्य में होने वाले उतार-चढ़ाव और मार्केट से जुड़ी अन्य अहम सूचनाओं के बारे में बहुत अधिक जानकारी होती है, जो कि "आर्थिक स्थितियों में बदलाव के शुरुआती संकेतों को बता सकती हैं और इसके फलस्वरूप आपूर्ति और मांग के बारे में अनुमान लगाया जा सकता है."[17] सरकारें न केवल ऐसे नेक्सस आपूर्तिकर्ताओं के साथ सहयोग कर सकती हैं, बल्कि उनसे सीख भी हासिल कर सकती हैं. इसके अलावा सरकारें आख़िरकार संकट के समय नेक्सस आपूर्तिकर्ताओं द्वारा इन एकत्रित आंकड़ों को अपना हथियार बनाने के बजाए, इन्हें सरकारों को बेचने की अनुमति भी दे सकती हैं. यही वो नोड्स हैं, जिन्हें आख़िरकार डेटा को पारदर्शी बनाने और डेटा संग्रह प्रक्रियाओं को कुशल बनाने के लिए सरकार के प्रोत्साहन के अनुरूप कार्य करने की ज़रूरत है.
4 .निष्कर्ष
आंकड़ों का असंतुलन एक समान रूप से सभी देशों में उद्योगों को प्रभावित करता है, विशेष रूप से G20 देशों को उनके विशाल आर्थिक आकार और व्यापार गतिविधियों की वजह से बहुत ज़्यादा प्रभावित करता है. यही वजह है कि G20 देशों को आपसी रणनीतिक मतभेदों को अलग रखते हुए इस मुद्दे को हल करने के लिए एकजुट होकर प्रयास करना चाहिए.
इतिहास पर नज़र डालें, तो पहले भी बुनियादी मुद्दों पर तमाम तरह के मतभेदों वाले देशों ने परस्पर हित के मसलों पर सहयोग किया है, हालांकि ऐसा करने में उन्हें मुश्किलों का सामना करना पड़ा है. ज़ाहिर है कि आपूर्ति श्रृंखलाओं के मामले में भी आपसी तालमेल को बढ़ाकर, सभी व्यवधानों को समाप्त किया जा सकता है.
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Endnote:
[1] “G20 GDI Recommendations,” International Monetary Fund.
[2] Grigory Pishchulov, Knut Richter, and Sougand Golesorkhi, “Supply Chain Coordination Under Asymmetric Information and Partial Vertical Integration,” Annals of Operations Research, 7 May 2022.
[3] “How Supply Chain Analytics Can Boost Business Revenue,” Emeritus Blog, November 21, 2022.
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