चिप उत्पादन के वैश्विक स्वरूप के बावजूद ये बहुत ज़्यादा ख़ास भी है: जापान तीन महत्वपूर्ण रसायनों का उत्पादन करता है, नीदरलैंड्स एक्सट्रीम अल्ट्रावॉयलेट (EUV) लिथोग्राफी उपकरण का उत्पादन करता है और ताइवान एवं दक्षिण कोरिया अत्याधुनिक चिप के उत्पादन के लिए जाने जाते हैं. सप्लाई चेन इस तरह से बनी हुई है कि इसके ऊपरी छोर में अमेरिका, यूरोप एवं जापान हैं, बीच में ताइवान एवं दक्षिण कोरिया हैं और आख़िरी छोर में चीन है जहां निर्यात किए जाने से पहले चिप को अंतिम सामान के रूप में तैयार किया जाता है. अमेरिका और चीन के बीच तकनीकी प्रतिद्वंद्विता, जिसमें कोविड-19 के कारण सप्लाई चेन में रुकावट से बढ़ोतरी हुई है, क्षेत्रीय एकीकरण में परिवर्तन को प्रेरित कर रही है. आधुनिक तकनीकों के आने के साथ अमेरिका “मूल्य साझा करने वाला” चिप गठबंधन तैयार करने के लिए जापान, नीदरलैंड्स, दक्षिण कोरिया और ताइवान जैसे प्रमुख सहयोगियों के साथ जुड़ रहा है. इस तरह सैन्य और वाणिज्यिक इस्तेमाल में आधुनिक चिप की महत्वपूर्ण भूमिका को स्वीकार किया गया है.
मौजूदा समय में वैश्विक सेमीकंडक्टर बाज़ार के 10 प्रतिशत हिस्से पर जापान का कब्ज़ा है. इसके विपरीत 80 के दशक के आख़िर में जापान का कब्ज़ा 50 प्रतिशत हिस्से पर था.
मौजूदा समय में वैश्विक सेमीकंडक्टर बाज़ार के 10 प्रतिशत हिस्से पर जापान का कब्ज़ा है. इसके विपरीत 80 के दशक के आख़िर में जापान का कब्ज़ा 50 प्रतिशत हिस्से पर था. लेकिन अमेरिका के द्वारा जापान पर अपने सेमीकंडक्टर, विशेष रूप से डायनैमिक रैंडम एक्सेस मेमोरी (DRAM) चिप, के निर्यात को सीमित करने के बहुत अधिक तबाव की वजह से इसमें तेज़ी से गिरावट आई. व्यापार से जुड़ी इन पाबंदियों और चीन के साथ कीमत की होड़ एवं विशेष मॉडल की तरफ वैश्विक सेमीकंडक्टर बाज़ार के रुझानों में बदलाव ने जापान के चिप उत्पादकों पर गंभीर असर डाला. एक समय अग्रणी उत्पादक रहा जापान दक्षिण कोरियाई, ताइवानी और अमेरिकी प्रतिद्वंद्वियों से पिछड़ने के बाद अब अपने सेमीकंडक्टर उद्योग को फिर से ज़िंदा करने की कोशिश कर रहा है.
मुख्य ताकतें
हो सकता है कि जापान के सेमीकंडक्टर उद्योग ने पिछले कुछ वर्षों के दौरान अपनी प्रतिस्पर्धात्मक बढ़त खो दी हो लेकिन रसायनों, सामग्रियों और उपकरणों के सप्लायर के तौर पर उसकी स्वदेशी क्षमता उल्लेखनीय रूप से मज़बूत बनी हुई है. वैश्विक बाज़ार के महत्वपूर्ण हिस्से पर जापान की कंपनियों का नियंत्रण है. सामग्री के मामले में 56 प्रतिशत और उपकरणों के उत्पादन के मामले में 32 प्रतिशत बाज़ार के हिस्से पर जापान का कब्ज़ा है. सामग्री और उपकरण- दोनों ही सेमीकंडक्टर के विकास के लिए अहम हैं. जापान दुनिया में लगभग पूरी तरह से फोटोरेसिस्ट कोटिंग और प्रीमियम एल्युमिनियम इलेक्ट्रोलाइटिक कैपेसिटर्स की सप्लाई करता है जो आधुनिक चिप के उत्पादन के लिए ज़रूरी हैं. इसके अलावा जापान दूसरी 70 आधुनिक सामग्रियों के वैश्विक बाज़ार में महत्वपूर्ण हिस्सा रखता है जिनमें से ज़्यादातर की सप्लाई ताइवान और दक्षिण कोरिया जैसे बड़े उत्पादन केंद्रों को की जाती है जबकि बाकी का इस्तेमाल घरेलू स्तर पर किया जाता है.
जापान के सेमीकंडक्टर उपकरण के निर्यात में सेमीकंडक्टर उत्पादन उपकरण का हिस्सा लगभग 60 प्रतिशत है जबकि कल-पुर्जे लगभग 20 प्रतिशत हैं. टोक्यो इलेक्ट्रॉन (TEL), दुनिया में तीसरा सबसे बड़ा उपकरण निर्माता, जापान में सबसे बड़ा सेमीकंडक्टर उपकरण उत्पादक है. शीर्ष 10 वैश्विक कंपनियों में जगह बनाने वाले जापान के उत्पादकों में स्क्रीन, एडवांटेस्ट और हिताची हाई-टेक शामिल हैं. इसके अलावा जापान की दो कंपनियां शिन-एत्सू केमिकल और सुमको मिलकर सिलिकॉन वेफर्स के 60 प्रतिशत वैश्विक बाज़ार पर कब्ज़ा जमाई हुई हैं.
सरकार का समर्थन कम होने के अतीत के उदाहरणों और उद्योग की पुनर्संरचना के कई नाकाम प्रयासों, जैसे कि 2012 में एलपिदा मेमोरी के दिवालिया होने (सरकार से फंडिंग मिलने और फिर 2013 में अमेरिका की कंपनी माइक्रॉन के द्वारा अधिग्रहण किए जाने के बावजूद) और इसके साथ-साथ “अक्सा” एवं “मिराई” जैसी परियोजनाओं की असफलता, के बावजूद जापान अब नया नज़रिया अपना रहा है. सेमीकंडक्टर औद्योगिक नीति में नए सिरे से जापान की दिलचस्पी न सिर्फ़ अमेरिका के सेमीकंडक्टर उत्पादन उद्योग के दीर्घकालिक विकास को सुनिश्चित करने के लिए हाल में बनाए गए कानूनों से प्रेरित नहीं है. बल्कि सप्लाई चेन को मज़बूत करने के उद्देश्य से नई साझेदारियों के लिए अवसरों और चीन, प्राकृतिक आपदाओं एवं कोविड-19 महामारी के द्वारा पेश सामरिक चिंताओं का समाधान करने से भी प्रेरित है. बाहरी सुरक्षा की चुनौतियों के अनुरूप ढालने के लिए जापान के अर्थव्यवस्था, व्यापार एवं उद्योग मंत्रालय (METI) ने महामारी के प्रकोप से भी पहले ताइवान सेमीकंडक्टर मैन्युफैक्चरिंग कंपनी (TSMC) को जापान में निवेश करने के लिए आमंत्रित करने के उद्देश्य से 2019 में बातचीत शुरू की.
राष्ट्रीय सुरक्षा का आर्थिक विकास के साथ जुड़ाव
सैन्य और आर्थिक- दोनों ही संदर्भों में सेमीकंडक्टर के सामरिक महत्व की वजह से घरेलू सेमीकंडक्टर का उत्पादन जापान के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ी चिंता और उद्योगों के लिए एक आर्थिक अवसर बन गया है. जापान की राष्ट्रीय सुरक्षा की रणनीति का लक्ष्य आत्मनिर्भरता को बढ़ाना और एक तकनीकी बढ़त हासिल करना है. इसे हासिल करने के लिए जापान उद्योग के विशेष जोखिमों की लगातार समीक्षा कर रहा है. एक तरफ तो सहयोगियों और समान विचार वाले देशों के साथ तालमेल के उपायों को लागू कर रहा है, वहीं दूसरी तरफ उदारता के साथ सरकारी सब्सिडी की पेशकश कर रहा है.
जापान की राष्ट्रीय सुरक्षा की रणनीति का लक्ष्य आत्मनिर्भरता को बढ़ाना और एक तकनीकी बढ़त हासिल करना है. इसे हासिल करने के लिए जापान उद्योग के विशेष जोखिमों की लगातार समीक्षा कर रहा है.
2021 में METI ने घरेलू सेमीकंडक्टर के उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए सेमीकंडक्टर और डिजिटल उद्योगों को राष्ट्रीय परियोजना का दर्जा दिया, समर्थन की एक रणनीति तैयार की और फंडिंग के रूप में 7.7 अरब अमेरिकी डॉलर को मंज़ूरी दी. कार्बन तटस्थता हासिल करने के उद्देश्य से ये रणनीति अलग-अलग उद्योगों में इलेक्ट्रिफिकेशन और डिजिटाइज़ेशन के लिए बुनियाद के रूप में सेमीकंडक्टर के विकास और इस्तेमाल पर ध्यान देती है.
जापान की सेमीकंडक्टर औद्योगिक नीति मज़बूत तकनीकी गठजोड़ों का फायदा उठाती है, प्राइवेट निवेश को खोलती है और सामरिक ख़तरों में विविधता लाती है. METI रापिदस में कम जोख़िम और अधिक लाभ की परियोजना और कुमामोटो में कम जोख़िम और कम लाभ की जापान एडवांस्ड सेमीकंडक्टर मैन्युफैक्चरिंग (JASM)/TSMC प्रोजेक्ट का समर्थन करता है. 2021 के अंत में JASM के बनने से पहले सेमीकंडक्टर से जुड़े कम-से-कम 46 उत्पादकों ने क्यूशू रीजन में नए निवेशों का एलान किया. इस तरह स्थानीय आर्थिक विकास और आधुनिक सेमीकंडक्टर उत्पादन में जापान की प्रतिस्पर्धी स्थिति को बढ़ावा दिया गया. इसके अलावा 2021 में उपकरण और सामग्री उत्पादकों समेत 13 एंटरप्राइजेज़ की भागीदारी के साथ शुरू JOINT2 पहल का उद्देश्य मिल-जुलकर सेमीकंडक्टर उत्पादन की बाद की प्रक्रिया के लिए अगली पीढ़ी के पैकेजिंग मैटेरियल को विकसित करना और उनकी समीक्षा करना है. इन दृष्टिकोणों का मक़सद प्राइवेट निवेश को खोलकर औद्योगिक नीति को अधिक असरदार बनाना है.
डेटा साझा करने के बढ़ते महत्व को स्वीकार करते हुए जापान का लक्ष्य संवेदनशील सूचनाओं को नियंत्रित और सुरक्षित रखने की क्षमता में असमानता को कम करना है, ख़ास तौर पर डुअल-यूज़ तकनीक के क्षेत्रों में. सूचना की सुरक्षा को बढ़ाने के लिए उद्योग विशेष का आकलन, जिसमें सुरक्षा क्लीयरेंस की प्रक्रियाएं शामिल हैं, किया जाएगा. ये कोशिश पिछले दिनों अमेरिका और दक्षिण कोरिया के साथ रियल टाइम में उत्तर कोरिया के मिसाइल वॉर्निंग डेटा-शेयरिंग को सक्रिय करने के तरीकों के साथ मेल खाती है जो सेमीकंडक्टर औद्योगिक सहयोग के साथ जुड़ सकती है.
प्रमुख साझेदारियों के ज़रिए तालमेल का निर्माण
2022 के चिप्स एक्ट के बाद अमेरिका और जापान ने अपने संबंधों को मज़बूत किया है और सेमीकंडक्टर उद्योग में तालमेल स्थापित किया है. इसके अलावा जापान ने यूरोपियन यूनियन, यूनाइटेड किंगडम, नीदरलैंड्स और भारत के साथ सहयोग के ज्ञापन पर भी हस्ताक्षर किए हैं. अमेरिका और जापान के बीच बुनियादी सिद्धांतों पर द्विपक्षीय समझौते के साथ जापान, अमेरिका-पूर्व एशिया सेमीकंडक्टर सप्लाई चेन रिज़िलियंस वर्किंग ग्रुप (जिसे सामान्य रूप से "फैब 4" के नाम से जाना जाता है) का एक सदस्य है जिसमें ताइवान और दक्षिण कोरिया शामिल हैं.
वैसे तो वैश्विक स्तर पर सेमीकंडक्टर के डिज़ाइन में अमेरिका की कंपनियों का वर्चस्व है लेकिन उत्पादन क्षमता के मामले में अमेरिका अभी भी पीछे है. वर्तमान समय में दुनिया की आधुनिक सेमीकंडक्टर उत्पादन की क्षमता में अमेरिका में मौजूद चिप उत्पादन यूनिट का हिस्सा केवल 12 प्रतिशत है. अधिक लागत के बावजूद अमेरिकी अधिकारी और दिग्गज कारोबारी चीन के सक्षम विकल्प के रूप में तेज़ी से जापान के सेमीकंडक्टर उत्पादन की तरफ देख रहे हैं.
सेमीकंडक्टर इकोसिस्टम को साझा तौर पर विकसित करने के लिए जापान ने भारत के साथ भी एक समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं. जुलाई 2023 में भारत और जापान ने सेमीकंडक्टर के विकास को लेकर एक समझौता ज्ञापन (MoU) पर दस्तख़त किए.
सेमीकंडक्टर इकोसिस्टम को साझा तौर पर विकसित करने के लिए जापान ने भारत के साथ भी एक समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं. जुलाई 2023 में भारत और जापान ने सेमीकंडक्टर के विकास को लेकर एक समझौता ज्ञापन (MoU) पर दस्तख़त किए. इस MoU के तहत डिज़ाइन, मैन्युफैक्चरिंग, इक्विपमेंट रिसर्च और टैलेंट डेवलपमेंट को शामिल किया गया. इस साझेदारी का लक्ष्य जापान में मज़दूरी की अधिक लागत और संसाधनों की कमी जैसी बाधाओं को दूर करना है. भारत ने 50 प्रतिशत तक परियोजना खर्च को उठाकर सेमीकंडक्टर और डिस्प्ले मैन्युफैक्चरिंग प्रोजेक्ट का समर्थन करने का प्रस्ताव दिया है.
मौजूदा समय में जापान को चिप उद्योग में महत्वपूर्ण चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है क्योंकि उसके सबसे आधुनिक कारखाने दुनिया की बड़ी कंपनियों सैमसंग और TSMC की तुलना में लगभग एक दशक पीछे चल रहे हैं. तकनीकी रूप से जापान के सबसे उन्नत DRAM (डाइनैमिक रेंडम एक्सेस मेमोरी) चिप का उत्पादन अमेरिका की कंपनी माइक्रोन टेक्नोलॉजी करती है क्योंकि जापान के DRAM उत्पादक, जिनका 80 के दशक में अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में दबदबा था, इस उद्योग से बाहर हो गए हैं. इन चुनौतियों के बावजूद सेमीकंडक्टर डिवाइस की कुछ श्रेणियों जैसे कि NAND मेमोरी, पावर सेमीकंडक्टर, माइक्रोकंट्रोलर और CMOS इमेज सेंसर में जापान अंतर्राष्ट्रीय रूप से प्रतिस्पर्धी बना हुआ है. वैसे तो ये तय करना जल्दबाज़ी होगी कि जापान की सेमीकंडक्टर से जुड़ी औद्योगिक नीति देश के चिप उद्योग को फिर से ज़िंदा करने में सफल होगी या नहीं, जैसा कि पिछले दिनों सरकार ने स्वीकार किया है, लेकिन चिप उद्योग को बढ़ावा देने का मौजूदा अभियान वैश्विक चिप बाज़ार में एक महत्वपूर्ण पकड़ स्थापित करने का जापान का "आख़िरी मौका" हो सकता है.
प्रत्नाश्री बासु ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में एसोसिएट फेलो हैं.
नमिषा बिनयकिया ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में रिसर्च इंटर्न हैं.
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