ऐसा लगता है कि श्रीलंका की मौजूदा सरकार ने ख़ुद को लोकतांत्रिक नियमों से और भी दूर कर लिया है. आज की सरकार में राजपक्षे भाइयों की सत्ता के तीन केंद्र हैं- बसिल, गोटाबाया और महिंदा राजपक्षे. श्रीलंका के इतिहास में ऐसा पहली बार हो रहा है कि देश के वित्त, आर्थिक नीतियों और रक्षा मंत्रालय को तीन भाई चला रहे हैं. इस सत्ताधारी परिवार के पांच और सदस्य भी सरकार के अलग अलग पदों पर क़ाबिज़ हैं; आज श्रीलंका सरकार में राजपक्षे परिवार के कुल आठ सदस्य मंत्री हैं. लिहाज़ा ये दुनिया का सबसे बड़ा सत्ताधारी ख़ानदान बन गया है. दक्षिण एशिया में ख़ानदान की राजनीति कोई नई बात नहीं है. लेकिन, इससे पहले राजनीति के किसी भी दौर में हमने इतने बड़े पैमाने पर परिवारवाद नहीं देखा था. बसिल राजपक्षे को वित्त मंत्री बनाने के ताज़ा फ़ैसले से राजपक्षे परिवार के पास सत्ता की ताक़त और बढ़ गई है, जो लोकतांत्रिक मूल्यों से और दूरी बनाने और अपने अस्तित्व को सही ठहराने के लिए एक वैकल्पिक राजनीतिक मॉडल को बढ़ावा देने जैसा है. सरकार के मौजूदा तानाशाही मिज़ाज के अलावा ये एक और बड़ा ख़तरा है. सरकार ने देश की राजनीतिक व्यवस्था में तानाशाही तौर तरीक़ों के लिए एक नया रास्ता खोल दिया है. राजपक्षे भाइयों द्वारा तैयार की गई इस उर्वर ज़मीन से दुनिया के दूसरे तानाशाही देश और ख़ास तौर से चीन अपना एजेंडा चलाने वाली मुनाफ़े की फ़सल काट सकते हैं.
बसिल राजपक्षे को वित्त मंत्री बनाने के ताज़ा फ़ैसले से राजपक्षे परिवार के पास सत्ता की ताक़त और बढ़ गई है, जो लोकतांत्रिक मूल्यों से और दूरी बनाने और अपने अस्तित्व को सही ठहराने के लिए एक वैकल्पिक राजनीतिक मॉडल को बढ़ावा देने जैसा है.
चीन की कम्युनिस्ट पार्टी का शताब्दी वर्ष, महान दीवार और इसका अस्तित्व
चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के शताब्दी समारोह के मौक़े पर बीजिंग में 70 हज़ार श्रोताओं से घिरे राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने अपने शताब्दी भाषण में साफ़ चेतावनी देते हुए कहा था कि, ‘चीन की जनता किसी भी विदेशी ताक़त या इंसान को इस बात की इजाज़त नहीं देगी कि वो उनके देश को डराए धमकाए और ऐसा करने वाले को चीन की राष्ट्रवादी ताक़तें मुंहतोड़ जवाब देंगी क्योंकि उनके भीतर किसी विदेशी ताक़त से लड़ने का मज़बूत इरादा और शक्ति है.’ चीन ये लड़ाई एक साथ कई मोर्चों यानी ज़मीन, समुद्र, अंतरिक्ष और साइबर दुनिया में लड़ेगा. शी जिनपिंग ने ये चेतावनी दुनिया को उस वक़्त दी है, जब चीन ख़ालिस अपनी ख़ूबियों वाली महान शक्ति बनने की महत्वाकांक्षा के साथ आगे बढ़ रहा है. चीन जो नई विश्व व्यवस्था बनाना चाहता है उसकी अपनी ख़ूबियां होंगी और जिन्हें चीन की कम्युनिस्ट पार्टी (CCP) का समर्थन हासिल होगा. दक्षिणी चीन सागर में चीन की दादागीरी, हॉन्ग कॉन्ग और शिंजियांग में मानव अधिकारों से जुड़ी चिंताएं, श्रीलंका को मूलभूत ढांचे के विकास के लिए दिए जा रहे क़र्ज़ से लेकर साइबर दुनिया और 5G तकनीक तक जैसे मुद्दे ‘चीन की चाशनी’ में घुले हुए हैं. चीन जिस विश्व व्यवस्था का ख़्वाब देख रहा है, वो उसे चीन की कम्युनिस्ट पार्टी की राजनीतिक विचारधारा के हिसाब से गढ़ना चाहता है. संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद में चीन का रवैया, इस बात का सुबूत है कि चीन की नज़र में आम नागरिकों की आज़ादी के अधिकारों से ज़्यादा अहमियत आर्थिक अधिकारों की है.
वैसे तो इंटरनेट, चीन की आर्थिक तरक़्क़ी का एक औज़ार है. लेकिन, इसका अस्तित्व राजनीतिक स्थिरता के लिए भी चुनौती है. क्योंकि इंटरनेट विचारों की विविधता को बढ़ावा देता है. जानकारी का प्रसार करता है और ये समाज को लोकतांत्रिक बनाने का भी एक माध्यम है.
सुधार की खिड़की खुली रखने के बावजूद, चीन की कम्युनिस्ट पार्टी का शताब्दी समारोह उसके राजनीतिक मूल्यों और विचारधारा का जश्न है. जैसा कि चीन के सुधारवादी नेता देंग शाओपिंग ने कहा था, ‘अगर आप ताज़ा हवा के लिए खिड़की खोलते हैं, तो ज़ाहिर है कुछ मक्खियां और मच्छर भी घुस आएंगे’. ऐसी ‘मक्खियों’- यानी राजनीतिक विरोध और उदारवादी विचारधारा- को क़ाबू में रखने के लिए सीसीपी ने कई तरीक़े आज़माए हैं. ऐसा ही एक तरीक़ा था, वर्ष 2000 में आया गोल्डेन शील्ड प्रोजेक्ट, जिसे चीन के सार्वजनिक सुरक्षा मंत्रालय ने एक सुरक्षा दीवार के तौर पर खड़ा किया था. वैसे तो इंटरनेट, चीन की आर्थिक तरक़्क़ी का एक औज़ार है. लेकिन, इसका अस्तित्व राजनीतिक स्थिरता के लिए भी चुनौती है. क्योंकि इंटरनेट विचारों की विविधता को बढ़ावा देता है. जानकारी का प्रसार करता है और ये समाज को लोकतांत्रिक बनाने का भी एक माध्यम है. इसीलिए, चीन ने गोल्डेन शील्ड प्रोजेक्ट के ज़रिए ऐसी दीवार खड़ी की, जिसकी आड़ में चीन की कम्युनिस्ट पार्टी उदारवादी विचारधारा को कुचल सके.
आज दुनिया के एक चौथाई इंसान चीन में आबाद हैं. फिर भी चीन की कम्युनिस्ट पार्टी तानाशाही शासन वाली दूसरी सबसे पुरानी एकदलीय व्यवस्था को पिछले सात दशक से कामयाबी से चला रही है. राना मित्तर के मुताबिक़, चीन में मार्क्सवादी कम्युनिस्ट व्यवस्था इतने लंबे समय तक बने रहने के पीछे दो बड़ी वजहें हैं. पहली तो ये कि चीन की कम्युनिस्ट पार्टी लगातार निर्मम बनी हुई है. सीसीपी के मॉडल को बनाए रखने के लिए ताक़त के निर्मम इस्तेमाल की लेनिनवादी विचारधारा इसकी ज़रूरी ख़ूबी बन गई है. दूसरी वजह ये है कि चीन की कम्युनिस्ट पार्टी अपनी ज़रूरत के हिसाब से लचीला रुख़ भी अपना लेती है. ये किसी तानाशाही निज़ाम के बर्ताव के ठीक उलट है. हम ये ख़ूबी माओ के दौर के सोवियत मॉडल से देंग शाओपिंग के दौर में आर्थिक सुधारों के ज़रिए बदलाव करने के लिए तैयार रहने के रूप में देख सकते हैं. ये तो वैसा है कि है कि कम्युनिस्ट पार्टी ने चीन की ख़ूबियों के साथ एक पूंजीवादी क्रांति करने में कामयाबी हासिल की है.
श्रीलंका में घुसपैठ का चीनी चोर दरवाज़ा
चीन की कम्युनिस्ट पार्टी का लेनिनवादी मॉडल उन देशों में बहुत आसानी से चल सकता है, जो उदारवादी लोकतांत्रिक मूल्यों को कुचलते आए हैं. इस मामले में श्रीलंका की तानाशाही सरकार को चीन से बाहरी समर्थन मिलता रहेगा. राजपक्षे भाइयों की तिकड़ी ने पहले ही चीन और सीसीपी के विकास के मॉडल पर मुहर लगा दी है. चीन भी राजपक्षे भाइयों की मदद करेगा और उनका इस्तेमाल करके अपने बेल्ट ऐंड रोड इनिशिएटिव वाले विकास और सामरिक एजेंडे को आगे बढ़ाएगा. हालांकि, उसकी ये कोशिशें सिर्फ़ BRI तक सीमित नहीं रहेंगी. श्रीलंका की सत्ता पर राजपक्षे परिवार का शिकंजा कसने का देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था पर दूरगामी असर पड़ेगा.
पहली नज़र में लेनिनवादी ख़ूबियों वाली सीसीपी की राजनीतिक विचारधारा में श्रीलंका जैसे लोकतांत्रिक देश दिलचस्पी न लें और ऐसा लगे कि BRI की राह में आने वाले देशों में चीन के कम्युनिस्ट मॉडल को बढ़ावा देना शायद असंभव सा काम लगे; लेकिन, लंबी अवधि में शायद ऐसा न हो. इस वक़्त श्रीलंका में लोकतांत्रिक व्यवस्था की ओर झुकाव ज़्यादा है; हालांकि, देश के लोकतंत्र के बुनियादी ढांचों में बदलाव जैसे कि संविधान और प्रशासनिक नीतियों में तरज़ीह देने जैसे बुनियादी बदलाव करके आगे चलकर सीसीपी मॉडल के तानाशाही मूल्यों और नियमों को श्रीलंका में भी लागू किया जा सकता है. फिर इन्हें मौजूदा व्यवस्था के विकल्प के तौर पर ये कहते हुए सही ठहराया जा सकता है कि इससे आर्थिक विकास को और धार मिलेगी. चीन निश्चित रूप से अपनी कम्युनिस्ट पार्टी के एजेंडे को आगे बढ़ाएगा. श्रीलंका समेत बहुत से देशों में वो इसे आर्थिक चमत्कार का नक़ाब उढ़ाकर पेश करेगा.
चीन के साथ प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे के अनौपचारिक संबंधों का ही नतीजा है कि राजपक्षे सरकार ने बेहद कम फ़ायदे के बावजूद, पोर्ट सिटी बिल को संसद से मंज़ूरी दिलवाई और बुनियादी ढांचे में बड़े पैमाने पर चीनी निवेश को इजाज़त दी है.
6 जुलाई को सीसीपी और विश्व का राजनीतिक भविष्य सम्मेलन में प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे ने चीन की कम्युनिस्ट पार्टी की भूमिका की ये कहते हुए तारीफ़ की थी कि, ‘चीन ने अपनी खुली आर्थिक नीति से 90 करोड़ लोगों को ग़रीबी के दलदल से बाहर निकाला… मुझे यक़ीन है कि चीन, एशिया को वो ताक़त दोबारा लौटा सकेगा, जो पांच सौ साल पहले सिल्क रूट के रूप में उसके पास थी. चीन का हमेशा से ये मानना रहा है कि मूलभूत ढांचे में सुधार करने से आम लोगों को नए माध्यम और नई शक्ति मिलेगी. इसीलिए हमने लगातार चीन को आमंत्रित किया है कि वो यहां आकर हमारे मूलभूत ढांचे के विकास में हमारी मदद करें.’
इससे आगे महिंदा राजपक्षे ने सिनोफार्म वैक्सीन का विकास करने और दिल खोलकर उसका दान करने के लिए चीन का शुक्रिया अदा किया था. राजपक्षे ने कहा था कि, ‘ये और तारीफ़ की बात है कि चीन ने हमारे जैसे देशों में सिनोफार्म वैक्सीन के उत्पादन को मंज़ूरी दे दी है. कोविड-19 जैसी मौजूदा महामारी के दौरान चीन की कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा मानवता के हित में लिए गए फ़ैसलों का सम्मान किया जाएगा’.
श्रीलंका के प्रधानमंत्री द्वारा चीन की तारीफ़ में क़सीदे पढ़ना इस बात का साफ़ इशारा है कि राजपक्षे की हुकूमत का अस्तित्व चीन के सहयोग पर ही निर्भर है. चीन के साथ प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे के अनौपचारिक संबंधों का ही नतीजा है कि राजपक्षे सरकार ने बेहद कम फ़ायदे के बावजूद, पोर्ट सिटी बिल को संसद से मंज़ूरी दिलवाई और बुनियादी ढांचे में बड़े पैमाने पर चीनी निवेश को इजाज़त दी है. जोनाथन ई. हिलमैन ने अपनी किताब, ‘द एंपायर्स न्यू रोड…’ में बिल्कुल सही विश्लेषण किया है कि, ‘अगर चीन के क़र्ज़ को हम सिगरेट मान लें, तो श्रीलंका का हंबनटोटा बंदरगाह कैंसर के शिकार फेफड़े की वो तस्वीर है, जो सिगरेट के पैकेट पर चेतावनी देने के लिए छापी जाती है’. श्रीलंका के नेताओं ने आर्थिक लाभ की अनदेखी करते हुए BRI को बढ़ावा दिया है. वो सत्ता में बने रहने के लिए चीन के मूलभूत ढांचे के प्रोजेक्ट से भारी राजनीतिक फ़ायदे की उम्मीद लगाए बैठे हैं. आर्थिक चुनौतियों और रहन- सहन के बढ़ते ख़र्च को देखते हुए आम जनता को बेहद कम फ़ायदे वाली बड़े पैमाने की विकास योजनाओं को स्वीकार करने में मुश्किल होगी. क्योंकि, कोलंबो पोर्ट सिटी जैसी परियोजनाएं पूरी होने और फिर उनसे मुनाफ़ा कमाने में इतना वक़्त लग जाता है, जो मौजूदा सरकार के कार्यकाल से कहीं ज़्यादा होगा.
श्रीलंका की सरकार ने चीन के सामरिक आयाम की पूरी तरह से अनदेखी कर दी है. चीन ने यूरोपीय संघ में सेंध लगाने के लिए जहां बाल्कन देशों के ज़रिए ‘बाल्कन बैकडोर’ का रास्ता बनाया, उसी तरह दक्षिण एशिया में घुसपैठ के लिए चीन, श्रीलंका जैसे तानाशाही देशों को ज़रिया बना रहा है. श्रीलंका के जिस ‘चोर दरवाज़े’ को चीन ने अपने सामरिक विस्तार के लिए तैयार किया है, वो श्रीलंका सरकार के नीति निर्माताओं को नहीं दिख रहा है. उनकी आंखें चीन के आर्थिक चमत्कार से चुंधियाई हुई हैं, और वो अपना राजनीतिक अस्तित्व बचाने के लिए इसे स्वीकार कर रहे हैं.
प्रतीकवाद और श्रीलंका पोदुजना पेरामुना का इसको समर्थन
चीन की कम्युनिस्ट पार्टी की प्रतीकात्मक अहमियत को और उजागर करते हुए श्रीलंका की सरकार ने सीसीपी के शताब्दी वर्ष पर एक ख़ास सिक्का भी जारी किया. ये सिक्के जो शायद चीन में ही ढाले गए और श्रीलंका को भेजे गए थे, इस बात की साफ़ गवाही हैं कि राजपक्षे सरकार चीन पर किस हद तक निर्भर है. सरकार के इस क़दम पर श्रीलंका की जनता की नाराज़गी सोशल मीडिया पर खुलकर ज़ाहिर हुई. लोगों ने चीन पर श्रीलंका की इतनी निर्भरता और क़र्ज़ चुकाने में सक्षम न होने की कड़ी आलोचना की. ऐसी ही एक सोशल मीडिया पोस्ट एक स्थानीय विमान इंजीनियर ने लिखी थी, ‘ये सिर्फ़ किसी दूसरे देश का सम्मान भर नहीं है. ये एक ऐसे तानाशाही दल का सम्मान है, जो किसी देश पर एकक्षत्र राज करता है. क्या आगे चलकर श्रीलंका में भी यही होने वाला है?’. हालांकि चीन की कम्युनिस्ट पार्टी तो अपने मॉडल को हर देश में आगे बढ़ाना चाहती है. लेकिन, श्रीलंका की जनता अपने बेशक़ीमती लोकतांत्रिक मूल्यों को गंवाने के ख़तरों पर ज़रूर विचार करेगी और इसे अपने नागरिक अधिकारों के लिए ख़तरा मानेगी. श्रीलंका की सरकार अन्य देशों के साथ कूटनीतिक रिश्तों के लिए उनके अहम मुकामों की याद में तो सिक्के जारी करती रही है. लेकिन, ये पहली बार था जब किसी और देश की राजनीतिक पार्टी के लिए सरकार ने सिक्के जारी किए. एक और प्रतीकात्मक क़दम, कोलंबो में चीन द्वारा बनाए गए लोटस टावर पर रौशनी करने का था. इसका उद्घाटन वैसे तो पिछली सरकार के दौर में ही हो चुका था. लेकिन, तब यहां आम जनता को आने की इजाज़त नहीं थी.
श्रीलंका की सरकार अन्य देशों के साथ कूटनीतिक रिश्तों के लिए उनके अहम मुकामों की याद में तो सिक्के जारी करती रही है. लेकिन, ये पहली बार था जब किसी और देश की राजनीतिक पार्टी के लिए सरकार ने सिक्के जारी किए.
राजपक्षे सरकार के राजनीतिक दल श्रीलंका पोदुजना पेरामुना (SLPP) के गठबंधन में कई वामपंथी दल भी शामिल हैं. सीसीपी के समर्थकों की फ़ेहरिस्त को और लंबा करते हुए श्रीलंका की वामपंथी पार्टियां और राजपक्षे की सत्ताधारी SLPP ने कोलंबो में चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के शताब्दी समारोह के समर्थन में उसके साथ एक ऑनलाइन सम्मेलन भी आयोजित किया था. इस सम्मेलन में शामिल हुए श्रीलंका के प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे ने कहा कि, ‘दोस्त हमेशा साथ रहेंगे. दुख में भी और सुख में भी साथी होंगे… दीवार पर बने चित्रों की तरह वो कभी भी एक दूसरे से आंखें नहीं फेरते… हम हमेशा दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान और उसके बाद हमारे देश की आज़ादी के प्रति चीन की सरकार की प्रतिबद्धता की तरीफ़ करते रहेंगे’. इस सम्मेलन के दौरान 11 राजनीतिक दलों ने चीन की कम्युनिस्ट पार्टी को विकासशील देशों का मज़बूत समर्थक बताया, जो अपने बीआरआई प्रोजेक्ट के ज़रिए विकासशील देशों को उनकी संप्रभुता बनाए रखते हुए, उनके मूलभूत ढांचे और उत्पादन को सुधारने में मदद कर रही है. इसके अलावा राजपक्षे सरकार ने संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद में चीन की तरफ़ से लाए गए एक साझा बयान पर भी दस्तख़त किए, जिसमें ब्रिटेन में मानव अधिकारों के हालात पर चिंता जताई गई थी.
महामारी के दौर में जब आम जनता टीकाकरण अभियान के लिए संघर्ष कर रही है, तब भी श्रीलंका की सरकार ने चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के शताब्दी समारोह के पीछे पूरी ताक़त लगाती. हालांकि, देश में महामारी और आर्थिक मुश्किलों के चलते सीसीपी और राजपक्षे का ये मार्केटिंग अभियान जनता का ध्यान खींचने में असफल रहा. सरकार में बसिल राजपक्षे के शामिल होने को सरकार से जुड़े लोग उम्मीद की नई किरण की तरह देख रहे हैं. उन्हें लग रहा है कि ये शायद अर्थव्यवस्था में नई जान डालने की कोशिश है. लेकिन, राजपक्षे की तिकड़ी को श्रीलंका में सीसीपी के एजेंडे को आगे बढ़ाते हुए इस बात को लेकर सावधान रहना होगा कि कहीं वो अपने यहां लोकतंत्र को दबाने में न जुट जाए.
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