Author : Oommen C. Kurian

Published on Jan 11, 2021 Updated 0 Hours ago

भारत को एक दमदार इंफॉर्मेशन इंफ्रास्ट्रक्चर में निवेश करना चाहिए. यह भी मुमकिन है कि नए साल में शायद हम मौजूद और साइंटिफिक इंफॉर्मेशन को हेल्थकेयर डिलीवरी सिस्टम में एक उत्प्रेरक की भूमिका में देखें और कोविड-19 टीकाकरण अभियान इसकी प्रयोगशाला हो सकता है.

दौड़ते-दौड़ते थम गयाः 2021 में कैसा होगा भारत का हेल्थकेयर

यह कहना गलत नहीं होगा कि कोविड-19 महामारी के कारण भारत की हेल्थ पॉलिसी को लेकर बहस के केंद्र में  गई है, नहीं तो आजादी मिलने के बाद से किसी भी सरकार का इस ओर ध्यान ही नहीं गया था. वैसे सच यह भी है कि नीतिनिर्माताओं ने दशकों तक इस क्षेत्र की अनदेखी की भरपाई करने की भी कोशिश की. उन्हें पता था कि जब तक स्वास्थ्य क्षेत्र में सुधार नहीं होता, तब तक भारत, वैश्विक टिकाऊ विकास लक्ष्य (सस्टेनेबल डिवेलपमेंट गोल्स यानी SDG) हासिल नहीं कर पाएगा. यह भी सच है कि किसी महादेश जितनी समस्याओं से घिरने के बावजूद अगर भारत इस क्षेत्र में कामयाब होता है तो वह दुनिया के एक बड़े हिस्से के लिए इंडिया मॉडल भी पेश कर सकता है. ऐसा नहीं है कि यह बात सिर्फ हेल्थकेयर सेक्टर पर ही लागू होती है, यह देश में दूसरे क्षेत्रों के लिए भी उतनी ही सही है, लेकिन इसमें भी कोई शक नहीं कि इसकी सबसे अधिक अहमियत स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए है. इस क्षेत्र में ऐसी कई दिक्कतें हैं, जिनकी वजह से बड़ी आबादी तक स्वास्थ्य सेवाओं को पहुंचाने में परेशानी होती है और यह बात किसी से छिपी भी नहीं है

सच तो यह भी है कि 2021 में देश को कहीं बड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा. महामारी से लड़ाई लंबी चलने वाली है, इसलिए दूसरी बीमारियों से लड़ने के लिए वित्तीय और अन्य संसाधन जुटाना 2021 में सबसे बड़ी चुनौती होगी. 

गुज़रे दशकों में भारतीय स्वास्थ्य क्षेत्र के संकेतकों ने दिखाया है कि इस मामले में धीमी ही सही नियमित प्रगति हुई है. बड़ी बात यह भी है कि नीतिगत स्तर पर ध्यान नहीं दिए जाने और फंड की कमी के बावजूद इनमें से ज्य़ादातर उपलब्धियां हासिल हुई हैं. जब राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति, 2017 में 2025 तक स्वास्थ्य पर जीडीपी का ढाई फीसदी खर्च करने का लक्ष्य तय किया गया था, तब ज्य़ादातर विश्लेषकों का कहना था कि इसे हासिल कर पाना मुश्किल होगा. वैसे तो भारत आज भी इस लक्ष्य से काफी दूर दिख भी रहा है (ग्राफ देखें), लेकिन यह भी सच है कि कोविड-19 महामारी ने सरकार को 2025 के अपने लक्ष्य से कई गुना अधिक खर्च करने को मजबूर कर दिया है. इसी वजह से सरकार ने अपनी हद से आगे बढ़कर खर्च किया है.

2020 के मध्य तक यह साफ हो चुका था कि कोविड-19 राष्ट्रीय संकट साबित होगा, जिसका असर 2021 में या इसके अगले साल भी बना रह सकता है. बात सिर्फ़ इतनी ही नहीं थी, महामारी से पहले के आंकड़े भी दिखा रहे थे कि देश के बड़े हिस्से में नवजात और शिशु मृत्यु दर में जो कमी आई थी, उसकी रफ्त़ार धीमी पड़ गई थी और यहां तक कि उसमें उलटा ट्रेंड शुरू हो गया था. ख़ासतौर पर शहरी क्षेत्रों में इस मामले में स्थिति काफी बुरी थी. ऐसे में महामारी ने भारतीय स्वास्थ्य क्षेत्र की मौजूदा समस्याओं को और उभार दिया. इसमें कुपोषण का संकट  भी शामिल है.

सच तो यह भी है कि 2021 में देश को कहीं बड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा. महामारी से लड़ाई लंबी चलने वाली है, इसलिए दूसरी बीमारियों से लड़ने के लिए वित्तीय और अन्य संसाधन जुटाना 2021 में सबसे बड़ी चुनौती होगी. कुछ अनुमानों में कहा गया है कि भारत के ग्रॉस डोमेस्टिक प्रॉडक्ट में 10.3 फीसदी की कमी आई है और अर्थव्यवस्था के जल्द पटरी पर आने के आसार नहीं दिख रहे. इसका मतलब यह है कि हेल्थकेयर सेक्टर में सतत निवेश की ख़ातिर अतिरिक्त फंड का इंतजाम करना होगा और इसके लिए नए ज़रिये तलाशने होंगे. 15वें वित्त आयोग ने अनुमान लगाया था कि 2020 से 2025 तक स्वास्थ्य मंत्रालय को 5.38 लाख करोड़ रुपये की ज़रूरत पड़ेगी. इधर, कोविड-19 की जांच, निगरानी, इलाज और व्यापक टीकाकरण प्रोग्राम के कारण यह रकम कहीं अधिक रह सकती है. दूसरी तरफ, कोविड-19 महामारी के अलावा दूसरी बीमारियों के लिए एक समानांतर ढांचे की जरूरत पड़ेगी. उससे भी स्वास्थ्य क्षेत्र पर सरकार का ख़र्च कई गुना बढ़ सकता है.

नॉलेज और इन्फॉर्मेशन शेयरिंग

अगर इस क्षेत्र को मिलने वाले सीमित संसाधन का बेहतर इस्तेमाल करना है तो उसके लिए असरदार नॉलेज और इंफॉर्मेशन शेयरिंग की जरूरत पड़ेगी. इस मामले में चूक कितनी भारी पड़ सकती है, यह हम पहले ही देख चुके हैं. जब देशभर में महामारी का फैलाव हो रहा था, तब देखा गया कि इसके ख़तरों के बारे में सभी तक सही सूचना नहीं पहुंच पा रही थी. यह स्वास्थ्य क्षेत्र की एक बड़ी खामी थी. स्वास्थ्य सेवाओं के साथ भारत का हेल्थ मैनेजमेंट इंफॉर्मेशन सिस्टम (HMIS) भी महामारी के कारण बुरी तरह प्रभावित हुआ और अधूरी जानकारी के कारण गलत विश्लेषण सामने आए और गलत नतीजे निकाले गए. ऐसे में लोगों का आत्मविश्वास बढ़ने के बजाय उनकी घबराहट बढ़ी।

इसमें कोई दो राय नहीं है कि महामारी ने भारत के हेल्थकेयर डिलीवरी सिस्टम की बुनियादी खामियां सामने ला दी हैं, इसके दायरे में  अपर्याप्त मेडिकल सप्लाई से लेकर सरकारी अस्पतालों में स्वास्थकर्मियों की कमी, ग़लत इलाज और निजी अस्पतालों की मुनाफ़ाख़ोरी जैसे मसले थे.

इस तरह की दिक्कत फिर ना हो, इसके लिए भारत को एक मजबूत इंफॉर्मेशन इंफ्रास्ट्रक्चर में निवेश करना होगा। 2021 में हम हेल्थकेयर डिलीवरी सिस्टम के लिए प्रासंगिक और साइंटिफिक सूचनाओं के इनीशिएटिव की उम्मीद करते हैं. और कोविड-19 का टीकाकरण अभियान में इसकी परीक्षा हो सकती है. वैसे, मज़बूत इंफॉर्मेशन इंफ्रास्ट्रक्चर को लेकर कुछ पहल हुई हैं. एक राज्य में जो प्रयोग सफल हुए, उन्हें दूसरे राज्यों तक ले जाने में मदद और बेहतरीन तौर-तरीकों को अपनाने जैसे कुछ शुरुआती कदम उठाए गए हैं, लेकिन इस दिशा में अभी काफी कुछ करना बाकी है.

एक अनुमान के मुताबिक महामारी शायद 40 करोड़ लोगों को 2021 में गरीबी की दलदल में गहरे धकेल दे, ऐसे में स्वास्थ्य के क्षेत्र में एक संघीय सहकारी व्यवस्था की जरूरत पड़ेगी, जिसमें केंद्र, राज्य, स्थानीय प्रशासन और नागरिकों की भागीदारी की जरूरत पड़ेगी. भारत की संघीय व्यवस्था में स्वास्थ्य क्षेत्र राज्य के दायरे में आता है, लेकिन 15वें वित्त आयोग के तहत एक उच्चस्तरीय समिति बनी थी, जिसने हाल में इसे समवर्ती सूची में डालने का सुझाव दिया है. यानी इसमें केंद्र और राज्य दोनों को अधिकार मिलेगा.

इसके साथ यूनिवर्सल हेल्थ कवरेज के तहत जो प्रगति हुई है, उसे बनाए रखने के साथ उसकी रफ्त़ार बढ़ाने के लिए गांव के स्तर से इनोवेशन की जरूरत पड़ेगी. इसमें कोई दो राय नहीं है कि महामारी ने भारत के हेल्थकेयर डिलीवरी सिस्टम की बुनियादी खामियां सामने ला दी हैं, इसके दायरे में  अपर्याप्त मेडिकल सप्लाई से लेकर सरकारी अस्पतालों में स्वास्थकर्मियों की कमी, ग़लत इलाज और निजी अस्पतालों की मुनाफ़ाख़ोरी जैसे मसले थे. इसलिए वैक्सीन, दवा, डायग्नोस्टिक्स और स्वास्थ्यकर्मियों के समान वितरण के लिए केंद्र और राज्यों को अपनीअपनी ताकत लगानी होगी. इसमें निजी क्षेत्र और सिविल सोसायटी को भी भागीदार बनाना होगा. इसके लिए उन्हें प्रोत्साहन दिया जा सकता है.

ग्रामीण इलाकों में बेहतर हो स्वास्थ्य सेवा

एक शोध में अनुमान लगाया गया है  कि भारत को समान स्वास्थ्य सेवाएं देने के लिए 2030 तक 20.7 लाख डॉक्टरों की जरूरत पड़ेगी. इस मामले में देश की स्थिति ठीक नहीं है. इसलिए सरकार मेडिकल की पढ़ाई के लिए सीटें बढ़ा रही है. यह काम सरकारी और निजी क्षेत्र दोनों में किया जा रहा है. इसका मक़सद ख़ासतौर पर ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाओं की कमी को दूर करना है. हाल के अनुमान के मुताबिक, 2014-15 में मेडिकल संस्थानों में 54,348 सीटें थीं, जो 2019-20 तक 48 फीसदी की उछाल के साथ  80,312 पहुंच गईं.

भारत एक डिजिटल पावर हाउस है, लेकिन अब तक देश के हेल्थकेयर सेक्टर में हम इस ताकत का लाभ नहीं उठा सके हैं. इसकी मदद से बेहतरीन, व्यापक, किफायती, जवाबदेह और हर किसी की पहुंच वाला हेल्थकेयर सिस्टम तैयार किया जा सकता है

इतना ही नहीं, 2014 से 2019 के बीच सरकारी मेडिकल कॉलेजों में सीटों में 47 फीसदी का इजाफ़ा हुआ. हालांकि, इसी अवधि में मेडिकल कॉलेजों की संख्य़ा में महज़ 33 फीसदी  की ही बढ़ोतरी हुई. सरकारी और निजी मेडिकल कॉलेजों की संख्य़ा 2014-15 में 404 थी, जो 2019 में 539 तक पहुंच गई थी स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी अक्सर वर्ग, जाति, लिंग, क्षेत्र और धार्मिक भेदभाव के कारण और बढ़ जाती है. इनका समाधान स्थानीय सच्चाइयों को देखते हुए करना चाहिए. इसलिए डिजिटल इनोवेशन का इस्तेमाल भारत में अधिक से अधिक लोगों तक इसकी पहुंच के लिए करना होगा. देशभर में सामाजिकआर्थिक मामलात में डिजिटल खाई को पाटने के लिए जो पहल की जा रही हैं, उनके साथ यह काम भी करना होगा. भारत एक डिजिटल पावर हाउस है, लेकिन अब तक देश के हेल्थकेयर सेक्टर में हम इस ताकत का लाभ नहीं उठा सके हैं. इसकी मदद से बेहतरीन, व्यापक, किफायती, जवाबदेह और हर किसी की पहुंच वाला हेल्थकेयर सिस्टम तैयार किया जा सकता है. इसमें नेशनल डिजिटल हेल्थ मिशन एक रचनात्मक भूमिका निभा सकता है. हालांकि, इसके लिए सभी पक्षों के साथ विमर्श करना और उनकी भागीदारी सुनिश्चित करनी होगी.

2021में भारत सोशल डेटर्मिनेंट्स ऑफ हेल्थ (SDH)  अप्रोच को मजबूत करने के साथ उसका दायरा भी बढ़ा सकता है. पिछले एक दशक में सरकार खामोशी के साथ SDH फ्रेमवर्क पर अमल करने की कोशिश कर रही है. इसकी ख़ातिर पोषण (नेशनल न्यूट्रिशन मिशन), पेयजल (हर घर जल), घर के अंदर वायु प्रदूषण (उज्जवला योजना), सैनिटेशन (स्वच्छ भारत), रोड एक्सेस (ग्राम सड़क योजना), और लैंगिक (बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ) क्षेत्रों में पहल हुई हैं. कहते हैं कि हर आपदा अपने एक अवसर भी लाती है. भारत की अगर इकनॉमी के एक आधार के तौर पर हेल्थ पॉलिसी में लंबे वक्त तक दिलचस्पी बनी रहती है तो यह माना जाएगा कि महामारी ने इतिहास में अपनी भूमिका निभाई है.

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