Author : Shashank Mattoo

Published on Feb 28, 2022 Updated 0 Hours ago

ऐसा लगता है कि कोरियाई प्रायद्वीप में हथियारों की होड़ शुरू हो गई है. उत्तर और दक्षिण कोरिया ख़तरनाक रूप से अपने हथियार भंडारों में इज़ाफ़ा कर रहे हैं. 

मिसाइल और फ़ौजी ताक़त जुटाने की होड़: कोरियाई प्रायद्वीप में तेज़ होती हथियारों की रस्साकशी

2021 के ख़ौफ़नाक घटनाक्रमों के बाद 2022 ने ज़्यादातर देशों में ख़ामोशी के साथ दस्तक दी. बहरहाल कोरियाई प्रायद्वीप में नए साल का आग़ाज़ इसके उलट रहा. यहां बड़ी फ़ौजी तैयारियों के चलते तनाव में भारी बढ़ोतरी हुई है. उत्तर और दक्षिण कोरिया, दोनों ने अपनी सैनिक क्षमताओं को तेज़ी से आगे बढ़ाया है.  लिहाज़ा इस पूरे इलाक़े में एक ख़तरनाक परमाणु नाटक का मंच सज तैयार हो चुका है.

किम जोंग उन ने बता दिया कि कोविड-19 महामारी के चलते हुई आर्थिक तबाही के बावजूद उनका देश और भी ज़्यादा विनाशकारी फ़ौजी क्षमता हासिल करने की दिशा में बेरोकटोक आगे बढ़ता रहेगा.

2019 में स्टॉकहोम में अमेरिका और उत्तर कोरिया के बीच वार्ताओं का दौर अधर में लटक गया था. तब से लेकर अबतक अपनी मिसाइल क्षमताओं को विस्तार देने की उत्तर कोरिया की हसरत किसी से छिपी नहीं हैं. 2021 की शुरुआत में किम जोंग उन ने नॉर्थ कोरियन वर्कर्स पार्टी के 8वें पार्टी कांग्रेस में आधुनिकीकरण कार्यक्रम का एक खाका पेश किया था. पिछले कुछ सालों में हाइड्रोजन बम बनाने और लंबी दूरी की इंटरकॉन्टिनेंटल बैलेस्टिक मिसाइलों का परीक्षण करने के बाद किम ने सामरिक परमाणु हथियारों, परमाणु पनडुब्बियों, मानवरहित हवाई प्रणालियों और नई-नई मिसाइलों का जुगाड़ करने की अपनी योजना का इज़हार किया. दुनिया में एकाकी और अलग-थलग पड़े उत्तर कोरिया ने 2022 की शुरुआत के बाद से अपनी मिसाइल ताक़त की जमकर नुमाइश की है. इन क़वायदों के ज़रिए किम जोंग उन ने बता दिया कि कोविड-19 महामारी के चलते हुई आर्थिक तबाही के बावजूद उनका देश और भी ज़्यादा विनाशकारी फ़ौजी क्षमता हासिल करने की दिशा में बेरोकटोक आगे बढ़ता रहेगा.

अमेरिका की अगुवाई वाले पूर्वी एशियाई गठजोड़ ढांचे की साझा ख़ुफ़िया और टोही क्षमताओं के  बावजूद वो उत्तर कोरिया की विनाशकारी ताक़त की सही-सही थाह नहीं लगा सके हैं.

बेकाबू होता उत्तर कोरिया

उत्तर कोरिया द्वारा हाइपरसोनिक मिसाइलों, रेल-आधारित क्षमताओं और मिसाइल लॉन्च बेस तैयार किया जाना अमेरिका-दक्षिण कोरिया गठजोड़ के लिए चिंता बढ़ाने वाली ख़बर है. दोनों ही लोकतांत्रिक देशों के लिए झगड़ालू उत्तर कोरिया को रोक पाना अब और भी कठिन हो जाएगा. मिसाल के तौर पर मिसाइलों को रेल के ज़रिए दागने की उत्तर कोरिया की क्षमताओं के विकास से उसके पड़ोसियों को निगरानी और टोह लगाने की क़वायदों पर ज़्यादा संसाधन ख़र्च करने होंगे. चीन से लगी उत्तर कोरिया की सीमा से महज़ 15 किमी दूर भूमिगत मिसाइल अड्डे के ख़ुलासे से दुनिया भर की ख़ुफ़िया एजेंसियों में हड़कंप मच गया था. दक्षिण कोरिया, जापान और अमेरिका तीनों ही उत्तर कोरिया पर लगाम लगाने की कोशिशों में लगे हैं. ऐसे में मिसाइल से जुड़ी नई क्षमताओं के ख़ुलासे से कुछ बातें शीशे की तरह साफ़ हो गई हैं. पहला, अमेरिका की अगुवाई वाले पूर्वी एशियाई गठजोड़ ढांचे की साझा ख़ुफ़िया और टोही क्षमताओं के  बावजूद वो उत्तर कोरिया की विनाशकारी ताक़त की सही-सही थाह नहीं लगा सके हैं. हाल ही में नए मिसाइल अड्डे के ख़ुलासे से ये भी पता चलता है कि अमेरिकी गठजोड़ के पास तबाही से जुड़े इन ख़तरों के ज़मीन पर स्थित पक्के ठिकानों के बारे में सटीक जानकारी उपलब्ध नहीं है. इससे इस इलाक़े में गठजोड़ का सुरक्षा गणित और पेचीदा हो जाता है. माना कि सैनिक टकराव छिड़ने की सूरत में अमेरिकी गठजोड़ पूरी तत्परता के साथ उत्तर कोरिया के भारी-भरकम हथियार भंडारों को निशाना बनाएगा. इसके बावजूद उसे इस बात का इत्मीनान नहीं होगा कि मिसाइल लॉन्च किए जाने के ज्ञात ठिकानों पर सक्रियता से हमला किए जाने से उत्तर कोरिया को कमज़ोर करने में पक्के तौर पर कामयाबी मिल ही जाएगी. दूसरे, उत्तर कोरिया के हथियार भंडारों में लगातार इज़ाफ़ा करते जाने की किम जोंग उन की मुहिम से जापान और दक्षिण कोरिया की मिसाइल प्रतिरक्षा प्रणालियों पर दबाव और बढ़ता जाएगा.

अमेरिका की अगुवाई वाले पूर्वी एशियाई गठजोड़ ढांचे की साझा ख़ुफ़िया और टोही क्षमताओं के  बावजूद वो उत्तर कोरिया की विनाशकारी ताक़त की सही-सही थाह नहीं लगा सके हैं.

ज़ाहिर है अपने लड़ाकू पड़ोसी की हरकतों से दक्षिण कोरिया के लिए ख़तरे बढ़ गए हैं. लिहाज़ा उसे भी जवाबी क़दम उठाने पर मजबूर होना पड़ा है. 2017 में सत्ता संभालने के बाद से राष्ट्रपति मून जे-इन ने हर साल रक्षा ख़र्च में औसतन 7.4 प्रतिशत का इज़ाफ़ा किया है. वो “एक ऐसा देश जिसे कोई हिला न सके” तैयार करने के अपने घोषित नज़रिए के हिसाब से आगे बढ़ रहे हैं. इसी कड़ी में उन्होंने सैन्य साज़ोसामानों की ख़रीद के लिए एक नई एजेंसी खड़ी की है. साथ ही  उन्होंने अत्याधुनिक टोही क्षमताओं, सटीक निशाना बनाकर मार करने वाली मिसाइलों और मिसाइल प्रतिरक्षा प्रणालियों की ख़रीद और विकास पर काफ़ी ज़ोर दिया है. दक्षिण कोरिया ने हाल ही में सबमरीन लॉन्च्ड बैलिस्टिक मिसाइल (SLBM) लॉन्च किया है. दक्षिण कोरिया ग़ैर-परमाणु क्षमताओं वाला ऐसा पहला देश है जिसने इस तरह का हथियार हासिल किया है.

दक्षिण कोरिया का 3K सिस्टम 

दक्षिण कोरिया ने अपने उत्तरी पड़ोसी की काट के तौर पर आधुनिकीकरण की क़वायद भी चलाई है. इसे 3K सिस्टम के तौर पर जाना जाता है. इसमें पहले से भांपकर किए जाने वाला किल चेन सिस्टम, कोरिया हवाई और मिसाइल प्रतिरक्षा प्रणाली और कोरिया मैसिव पनिशमेंट एंड रिटेलिएशन सिस्टम शामिल है. किल चेन सिस्टम का लक्ष्य पूर्व तैयारी के साथ हमले कर मिसाइल लॉन्च करने की उत्तर कोरिया की क्षमताओं को नष्ट करना है. कोरिया हवाई और मिसाइल प्रतिरक्षा प्रणाली का मकसद उत्तर कोरिया की ओर से होने वाले संभावित मिसाइल हमलों से बचाव करना है. टकराव की स्थिति में उत्तर कोरिया निश्चित तौर पर ऐसे मिसाइल हमले करेगा. इसके बाद कोरिया मैसिव पनिशमेंट एंड रिटैलिएशन का नंबर आता है. दरअसल ये इस पूरी क़वायद का सबसे विवादित हिस्सा है. इसके तहत उत्तर कोरियाई नेतृत्व के ठिकानों को निशाना बनाकर उनपर भारी-भरकम चोट की तैयारी की गई है. दक्षिण कोरिया ने टोही क्षमताओं, हमलावर मिसाइलों और मिसाइल प्रतिरक्षा प्रणालियां हासिल करने पर भारी-भरकम ख़र्च किया है. इन क़वायदों से उसने उत्तर कोरिया के तमाम गुणा-भागों को पूरी तरह से पलट दिया है. भले ही पूर्व तैयारियों के साथ अमेरिका और दक्षिण कोरिया द्वारा किए गए हमलों से उत्तर कोरिया के तमाम हथियार भंडार नष्ट नहीं होंगे लेकिन इससे ये क्षमताएं काफ़ी हद तक कुंद हो सकती हैं. इस प्रणाली से ख़ासतौर से उत्तर कोरिया के शीर्ष-स्तर का राजनीतिक और सैन्य नेतृत्व निशाने पर रहेगा. ग़ौरतलब है कि उत्तर कोरिया का नेतृत्व अपनी ज़िंदगी को तमाम दूसरे लक्ष्यों से ज़्यादा अहमियत देता है. ऐसे में इस बात में कोई शक़ नहीं कि दक्षिण कोरिया के मैसिव पनिशमेंट सिस्टम से उत्तर कोरियाई नेतृत्व को हमेशा ख़तरा बना रहेगा.

भले ही पूर्व तैयारियों के साथ अमेरिका और दक्षिण कोरिया द्वारा किए गए हमलों से उत्तर कोरिया के तमाम हथियार भंडार नष्ट नहीं होंगे लेकिन इससे ये क्षमताएं काफ़ी हद तक कुंद हो सकती हैं. 

कोरियाई प्रायद्वीप बना टकराव का अड्डा

ऐसा लगता है कि कोरियाई प्रायद्वीप एक ऐसे टकराव का अड्डा बन गया है जिसमें न तो किसी की जीत हो सकती है और न ही किसी की हार. अमेरिका और दक्षिण कोरिया को डर है कि उत्तर कोरिया द्वारा नए और उन्नत मिसाइलों और लॉन्चिंग क्षमताओं के जुगाड़ से उनकी मौजूदा मिसाइल प्रतिरक्षा प्रणालियों पर काफ़ी दबाव पड़ सकता है. अगर उत्तर कोरिया आक्रामक कार्रवाइयां शुरू करता है तो मिसाइल प्रतिरक्षा प्रणालियों पर बोझ पड़ने से उन्हें काफ़ी नुक़सान पहुंच सकता है. ऐसे में अगर सियासी संकट खुले टकराव में बदलता है तो दक्षिण कोरिया पर ख़तरा भांपते हुए पहले हमला करने की अपनी क्षमताओं के इस्तेमाल का दबाव बढ़ जाएगा. इसी प्रकार, हमला करने की दक्षिण कोरिया की क्षमताओं में इज़ाफ़े से उत्तर कोरिया पर भी अतिरिक्त दबाव पड़ता है. दक्षिण कोरिया ने उत्तर कोरिया की मिसाइलों और नेतृत्व को सक्रियता के साथ तबाह करने की योजना तैयार कर रखी है. इसके मद्देनज़र अलग-थलग पड़ी उत्तर कोरियाई राज्यसत्ता अपनी फ़ौजी क्षमताओं को “इस्तेमाल करने या खोने” के लिए मजबूर हो सकती है. दक्षिण कोरिया में राष्ट्रपति पद की दावेदारी में सबसे आगे चल रहे यून सियोक योल ने उत्तर कोरियाई मिसाइलों को बीच में अटकाने की क़वायदों को “व्यावहारिक तौर पर नामुमकिन” करार दिया है. यून जल्द ही देश के राष्ट्रपति बन सकते हैं. उनके मुताबिक किसी ख़तरनाक हमले को “रोकने का इकलौता तरीक़ा उसके पहले संकेत मिलते ही तत्परता के साथ हमला करना है.” दोनों ही पक्षों ने एक-दूसरे की कमज़ोरी भांप ली है. इसके नतीजे के तौर पर कोरियाई प्रायद्वीप में स्थितियां और तनावपूर्ण हो सकती हैं.

ऐसा लगता है कि कोरियाई प्रायद्वीप एक ऐसे टकराव का अड्डा बन गया है जिसमें न तो किसी की जीत हो सकती है और न ही किसी की हार.

सहज नहीं है मौजूदा हालात

मौजूदा हालात किसी के लिए सहज नहीं हैं. बाइडेन प्रशासन द्वारा सत्ता संभाले जाने के बाद अमेरिका ने उत्तर कोरिया के साथ वार्ताओं को दोबारा शुरू करने की इच्छा जताई थी.  हालांकि अमेरिकी पहल को उत्तर कोरिया द्वारा ख़ारिज किए जाने के बाद अमेरिका के विशेष प्रतिनिधि सुंग किम के सामने अनिश्चितताओं का दौर पैदा हो गया था. ग़ौरतलब है कि उत्तर कोरिया पर चीन का अच्छा-ख़ासा प्रभाव है. दोनों महाशक्ति- चीन और अमेरिका  ज़बरदस्त भूराजनीतिक रस्साकशी में उलझे हैं. ऐसे में चीन द्वारा अमेरिका के लिए इस इलाक़े में कूटनीतिक मोर्चे पर आसान हालात पैदा किए जाने की संभावना न के बराबर है. दक्षिण कोरिया फ़िलहाल राष्ट्रपति चुनावों को लेकर व्यस्त है. चुनाव में प्रत्याशियों के बीच कड़ा मुक़ाबला चल रहा है. नए प्रशासन के सत्ता संभालने तक कूटनीतिक मोर्चे पर दक्षिण कोरिया की तरफ़ से कुछ ख़ास योगदान दिए जाने की उम्मीद नहीं है. चुनावों के बाद नया प्रशासन ही इस दिशा में कोई ठोस पहल कर सकता है. एशिया में अमेरिकी अगुवाई वाला गठजोड़ भी आंतरिक प्रतिद्वंदिता से जूझ रहा है. अमेरिका के दोनों प्रमुख मित्र देशों जापान और दक्षिण कोरिया के रिश्ते 2018 से बेपटरी हैं. दोनों देशों के तनाव भरे रिश्तों का अब तक निपटारा नहीं हो सका है.

कई मोर्चों पर चुनौतियां

ज़ाहिर है बाइडेन प्रशासन के लिए कई मोर्चों पर चुनौतियां हैं. वार्ताओं का दौर शुरू होने से पहले अमेरिका को आपस में उलझे अपने दोनों मित्र देशों को सुलह की मेज़ पर लाना होगा. उनके साथ तमाम साझा लक्ष्य तय करने होंगे. ग़ौरतलब है कि अमेरिकी वार्ताकार उत्तर कोरिया को परमाणु-मुक्त बनने के बदले पाबंदियों में राहत दिए जाने से जुड़ा अहम सौदा करने में नाकाम रहे थे. ऐसे में अब छोटे और चरणबद्ध करार पर ज़ोर दिए जाने के आसार हैं. इनके ज़रिए उत्तर कोरिया के हथियार भंडारों को सीमित करने और भविष्य में हथियारों के परीक्षण और विकास को रोकने पर ज़ोर दिया जाएगा. अमेरिका को उत्तर कोरिया के लिए तमाम प्रोत्साहनकारी उपाय भी बेहद सतर्कता से तय करने होंगे. उत्तर कोरिया की मौजूदा क्षमताओं में भविष्य में और ज़्यादा सुधारों को रोकने और उत्तर कोरिया द्वारा किए गए वादों पर अमल की टोह रखने के लिए एक निगरानी तंत्र का भी गठन करना होगा. निगरानी से जुड़ा काम ख़ासतौर से कठिन होने वाला है. दरअसल उत्तर कोरियाई सुरक्षा बल अपने फ़ौजी अड्डों को किसी तरह की निगरानी के लिए खोलने को लेकर गहरे उन्माद से भरे रहते हैं. दूसरी ओर उत्तर कोरिया को पूरी तरह से परमाणु-मुक्त बनाए जाने की संभावनाओं के बिना उसके साथ होने वाला कोई भी सौदा अमेरिका में लंबे अर्से तक चलने वाली घरेलू सियासी रस्साकशी में उलझ सकता है. ख़ासतौर से बाइडेन की विपक्षी रिपब्लिकन पार्टी इस मसले पर मुखर विरोध कर सकती है.

ज़ाहिर है बाइडेन प्रशासन के लिए कई मोर्चों पर चुनौतियां हैं. वार्ताओं का दौर शुरू होने से पहले अमेरिका को आपस में उलझे अपने दोनों मित्र देशों को सुलह की मेज़ पर लाना होगा.

उत्तर कोरिया को लंबे अर्से से “ग़ैर-मुमकिन राजसत्ता” के तौर पर जाना जाता रहा है. बाइडेन के लिए भी ये वैसी ही सिरदर्दी का सबब बन रहा है जैसा उनके पूर्ववर्ती राष्ट्रपतियों के लिए रहा था.

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