Published on Sep 30, 2022 Updated 24 Days ago

अनेक फ़ायदों से लैस होने के बावजूद क्वांटम प्रौद्योगिकी राष्ट्रीय सुरक्षा पर प्रतिकूल असर डाल सकती है. इनके नियमन के लिए आचार नीति की रूपरेखा निश्चित रूप से तय की जानी चाहिए.

क्वांटम प्रौद्योगिकी: आचार नीति और नैतिकता से जुड़े सवाल

भौतिक वस्तु के गूढ़ ब्योरों के अध्ययन के लिए क्वांटम साइंस अहम है. क्वांटम विज्ञान से उभरी प्रौद्योगिकी में ज़बरदस्त परिवर्तनकारी ताक़त होती है. एटम बम, लेज़र्स और सेमीकंडक्टर्स क्वांटम यांत्रिकी के चंद शुरुआती परिणामों में से हैं. इस तरह के प्रौद्योगिकीय परिणाम क्वांटम ऐप्लिकेशंस की “पहली पीढ़ी” में शुमार किए जाते हैं. लेज़र्स और एटम बम 20वीं सदी के मध्य में हासिल की गई कामयाबियों में गिने जाते हैं. “दूसरी पीढ़ी” के तहत संरचनात्मक वस्तुओं पर ज़ोर दिया जा रहा है. अतीत में इन्हें क़ुदरत से हासिल किया जाता था. अब क्वांटम कंप्यूटरों के ज़रिए इनमें ज़रूरी बदलाव लाए जा रहे हैं.

क्वांटम प्रौद्योगिकी अपने नयेपन और ताज़गी के बूते दूसरी उभरती प्रौद्योगिकियों से अलग रसूख़ रखती है. इससे गणनात्मक शक्ति को बढ़ावा मिलेगा. प्रॉसेसिंग में लगने वाले समय में नाटकीय रूप से कमी आएगी, और आधुनिक वक़्त के एनक्रिप्शन में ये आसानी से पैठ बना लेगी. हालांकि दूसरी उभरती प्रौद्योगिकियों के विपरीत क्वांटम क्षमताओं से राष्ट्रीय सुरक्षा के सामने मौजूद ख़तरे में बढ़ोतरी हो सकती है. इससे साइबर हमलों की तादाद में ज़बरदस्त इज़ाफ़ा हो सकता है और ये डेटा के सुरक्षित हस्तांतरण के लिए बड़ी चुनौती साबित हो सकती है.

पिछली सदी के दौरान परमाणु बम के इस्तेमाल से जुड़े ख़तरों के व्यापक अध्ययन से लेकर आधुनिक समय में साइबर अपराधों की रोकथाम के लिए साइबरस्पेस के नियमन में प्रौद्योगिकियों की निर्णायक भूमिका रही है. विश्व शांति, सुरक्षा, स्थायित्व और सतत विकास में इसके सामाजिक, आर्थिक, वैधानिक और नैतिक प्रभाव बेहद अहम हो गए हैं.

पिछली सदी के दौरान परमाणु बम के इस्तेमाल से जुड़े ख़तरों के व्यापक अध्ययन से लेकर आधुनिक समय में साइबर अपराधों की रोकथाम के लिए साइबरस्पेस के नियमन में प्रौद्योगिकियों की निर्णायक भूमिका रही है.

सहयोग या टकराव?: एटम बम ने दुनिया को क्या सिखाया

परमाणु बम के इस्तेमाल के बाद के प्रभाव, समसामयिक रूप से विज्ञान और प्रौद्योगिकी के नैतिक पक्ष को समझने की धुरी बने हुए हैं. ये क्वांटम विज्ञान के व्यावहारिक प्रयोग में सबसे आगे की कतार में है. ऐसे में एटम बम के प्रयोग से हासिल सबक़ 21वीं सदी में क्वांटम प्रौद्योगिकियों से जुड़ी नैतिक समझ के उभार में बुनियादी भूमिका निभा सकते हैं. इस समझ का मूल तत्व ये जानना है कि राष्ट्र-राज्य टकराव या सहयोग, किसके लिए प्रौद्योगिकियों का विकास करते हैं. क्वांटम कंप्यूटिंग की दूसरी पीढ़ी की अगुवाई करने वालों के लिए ये नैतिकता का मसला बन जाता है- क्या वो मुफ़लिसों की ओर मदद का हाथ बढ़ाते हैं या उनपर प्रौद्योगिकीय, आर्थिक, सियासी और मनोवैज्ञानिक रूप से धौंस जमाते हैं. निश्चित रूप से प्रौद्योगिकी क्षेत्र के नेतृत्वकर्ताओं को इस पर विचार करना चाहिए कि क्या वो क्वांटम साइंस को व्यापक रूप से मानवता की बेहतरी के लिए आगे बढ़ा रहे हैं या दूसरों की आज़ादी और संप्रभुता को कमज़ोर करने के लिए इसे प्रयोग में ला रहे हैं.

विश्व युद्धों के बाद विनाशकारी अंजामों वाली प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल पर लगाम लगाने के लिए अनेक बहुपक्षीय संगठनों, सम्मेलनों, संधियों और समझौतों का सहारा लिया गया. इसके बावजूद इस सिलसिले में वैश्विक स्तर पर रास्ता भटकने की कई घटनाएं देखने को मिली हैं. इन सबक़ों के बाद क्वांटम प्रौद्योगिकियों की आचार नीति को आकार देने की क़वायद न सिर्फ़ वैज्ञानिक समुदाय, बल्कि राष्ट्र-राज्यों, शिक्षा जगत, सिविल सोसाइटी और चिंतकों की भी ज़िम्मेदारी बन जाती है.

आधुनिक समय में आचार नीति से जुड़े चंद मसले

गूगल, IBM और इंटेल जैसे मुट्ठीभर ग्लोबल टेक फ़र्म, क्वांटम प्रौद्योगिकियों के क्षेत्र में ज़बरदस्त तरक़्क़ी कर रहे हैं. लिहाज़ा इस बात की संभावना बढ़ जाती है कि वो प्रौद्योगिकी से जुड़े वैश्विक निर्णयों, अहम तकनीकी रुझानों और उनके प्रयोग का संचालन करने वाले नियमों में और भी ज़्यादा दबदबा जमाएंगे. इससे इन विशाल टेक कंपनियों द्वारा और बारीक़ी से निगरानी रखने की क़वायद सामने आ सकती है. आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस (AI) और इंटरनेट ऑफ़ थिंग्स (IoT) जैसी प्रौद्योगिकियों के ज़रिए वो बड़ी आसानी से अपने अल्पाधिकारी बर्तावों (oligopolistic behaviour) का विस्तार कर सकते हैं. राष्ट्र-राज्यों पर भी यही बात लागू हो सकती है. क्वांटम कंप्यूटिंग के विकास से कुछ चुनिंदा राष्ट्रों को अपने नागरिकों पर निगरानी रखने की क्षमता में ज़बरदस्त बढ़ोतरी करने की क़ाबिलियत मिल जाएगी. साथ ही नागरिकों की टोह लेने के लिए तमाम तकनीकी उपायों की तैनाती करने की क़वायद में भी भारी इज़ाफ़ा हो जाएगा.

विश्व युद्धों के बाद विनाशकारी अंजामों वाली प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल पर लगाम लगाने के लिए अनेक बहुपक्षीय संगठनों, सम्मेलनों, संधियों और समझौतों का सहारा लिया गया. इसके बावजूद इस सिलसिले में वैश्विक स्तर पर रास्ता भटकने की कई घटनाएं देखने को मिली हैं.

क्वांटम प्रौद्योगिकी के प्रयोग के साथ आचार नीति से जुड़ा एक और बड़ा मसला जुड़ जाता है. दरअसल ये प्रौद्योगिकी परंपरागत क्रिप्टोग्राफ़ी में आसानी से घुसपैठ कर सकती है. चीन और अमेरिका जैसे देशों ने क्वांटम कंप्यूटर तैयार करने की दिशा में भारी तरक़्क़ी कर ली है. वो अनेक ऐप्लिकेशंस की टेस्टिंग भी कर चुके हैं, लिहाज़ा इन्हें इस क्षेत्र में दूसरे देशों के मुक़ाबले बढ़त मिल गई है. परंपरागत डेस्कटॉप PC या हाथ से संचालित होने वाला कोई दूसरा उपकरण, क्वांटम कंप्यूटर से अंजाम दिए गए साइबर हमलों के आगे टिक नहीं सकेगा. इससे अरबों लोगों के डेटा ख़तरे में आ जाते हैं, अनगिनत देशों की टेक संप्रभुता कमज़ोर पड़ जाती है और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए हालात नाज़ुक और असुरक्षित हो जाते हैं. क्वांटम-प्रतिरोधी एलगोरिदम को आगे बढ़ाने का काम जारी है. ऐसे में एक प्रमुख चिंता क्लाउड में पहले से मौजूद सूचनाओं को लेकर उपजती है. इसके अलावा इंटरनेट से संचालित होने वाले हज़ारों उपकरणों, स्टोरेज डिवाइसेज़ और करोड़ों सर्वरों में विशाल तादाद में जमा कर रखे गए डेटा को लेकर भी कई तरह की आशंकाएं पैदा होती हैं. क्वांटम कंप्यूटिंग की क्षमताओं से लैस शत्रु पक्ष, डेटा के इस पहाड़ के साथ क्या सलूक करेगा, ये सवाल क्वांटम आचार नीति पर वैश्विक विमर्श के दायरे में आता है. डीप फ़ेक्स के बढ़ते मामलों के बीच क्वांटम प्रौद्योगिकियां इस समस्या को और बढ़ाने वाली हैं.

तमाम दूसरे क्षेत्रों में भी इसी प्रकार की चुनौतियां वैज्ञानिकों के लिए पहेली बनी हुई हैं. मिसाल के तौर पर जैवविज्ञानियों के लिए बड़ा सवाल ये है कि- जब क्वांटम कंप्यूटर्स इतने परिपक्व हो जाएंगे कि वो जेनेटिक श्रृंखलाओं में छेड़छाड़ करने लायक हो जाएं, तो उन प्रयोगों की निष्पक्षता और नैतिकता कैसे सुनिश्चित की जाएगी? इसी तरह एक समाज विज्ञानी के लिए क्वांटम ऐप्लिकेशंस मायावी नहीं होने चाहिए. साथ ही इसका प्रयोग समाज को और गहरे आर्थिक खाई की ओर धकेलने वाला नहीं होना चाहिए. इसी तरह न्यायसंगत तरीक़े से क्वांटम इंटरनेट तक पहुंच से जुड़ी चिंताओं और क्वांटम गणनाओं में एकाधिकार के रोकथाम से जुड़ी क़वायदों का निपटारा भी ज़रूरी है. इसके साथ ही प्रौद्योगिकी के मोर्चे पर सतत रूप से प्रगति सुनिश्चित करने की दिशा में पड़ताल करना भी ज़रूरी है. बहरहाल ज़्यादातर लोगों की यही राय होगी कि इन परिचर्चाओं को प्रौद्योगिकी के मोर्चे पर होने वाले विकास के साथ तालमेल बढ़ाते हुए आगे ले जाया जाना चाहिए.

क्वांटम मेटा-इथिक्स को आकार देने वाले बुनियादी नियम

इस पृष्ठभूमि में आचार नीति, वैधानिकता और नैतिक रूप से क्वांटम प्रौद्योगिकी के प्रयोग के लिए नियम-क़ायदों, समझौतों, रूपरेखाओं और दिशानिर्देशों को सामने रखने की दरकार है. व्यापक रूप से सबसे ज़्यादा स्वीकृत स्तर पर आचार नीति के निर्देशात्मक सिद्धांतों का क्वांटम प्रौद्योगिकियों तक विस्तार किया जा सकता है. इसके तहत इसका न्यायसंगत और निष्पक्ष प्रयोग, प्रौद्योगिकी का परोपकार और भलाई से लबरेज रूपांतरण और टिकाऊपन शामिल हैं. टेबल 1 में चंद सिद्धांतों का ब्योरा दिया गया है.

             टेबल 1. क्वांटम मेटा-इथिक्स के सिद्धांत
समझने में आसान: क्वांटम प्रौद्योगिकियां समझने में आसान और सार्वजनिक तौर पर जवाबदेह होनी चाहिए. उनसे संघर्ष की गूंज नहीं सुनाई देनी चाहिए. उन्हें निश्चित तौर पर इस तरह से पेश किया जाना चाहिए जिससे सभी संबंधित पक्षों के सामने उसके सकारात्मक और नकारात्मक पहलू साफ़ हो जाएं.
ग़ैर-सामान्य: क्वांटम प्रौद्योगिकियों से मौजूदा सामाजिक विभाजन और गहरे नहीं होने चाहिए. इन्हें विशिष्ट नवाचार के वाहक के तौर पर देखा जाना चाहिए जो ग़ैर-सामान्य प्रायोगिक क्षेत्रों और संरचनाओं को बढ़ावा देते हों, जिनसे ख़ास समस्याओं का निपटारा होता हो और जिनका एक केंद्रित इकोसिस्टम हो. सामान्य उद्देश्यों वाले क्वांटम कंप्यूटर्स की दरकार को न्यूनतम स्तर पर ले जाया जाना चाहिए.
उपलब्धता: क्वांटम प्रौद्योगिकियां मायावी नहीं होनी चाहिए. प्रौद्योगिकी विशेषज्ञों, बिग टेक कंपनियों, वैज्ञानिक बिरादरी आदि के अलावा ये दूसरे तबक़ों को भी उपलब्ध होनी चाहिए. इस सिलसिले में खुलेपन और समावेशी रुख़ को अहमियत दी जानी चाहिए.
आसानी से पहुंच: क्वांटम प्रौद्योगिकियां आम इंसान की पहुंच के दायरे में होनी चाहिए. इस प्रौद्योगिकी को भूराजनीतिक परिदृश्यों में क्वांटम सर्वोच्चता या इस दौड़ में सबसे पहले क़दम उठाने से जुड़े लाभ हासिल करने के तंग नज़रिए से आगे नहीं बढ़ाया जाना चाहिए. इन प्रौद्योगिकियों का विकासशील अर्थव्यवस्थाओं तक विस्तार किया जाना चाहिए. इनमें अनेक सामाजिक, सांस्कृतिक, लैंगिक और जनसंख्या संबंधी संदर्भों को शामिल किया जाना चाहिए.
जवाबदेही: क्वांटम प्रौद्योगिकियों को टिकाऊ तरीक़े से, और जवाबदेही के साथ विकसित किया जाना चाहिए. प्रौद्योगिकी के प्रभाव का आकलन करने के लिए तमाम ज़रूरी प्रावधान किए जाने चाहिए. इससे बेहतरीन क्रियाकलापों का उभार मुमकिन हो सकेगा. साथ ही प्रौद्योगिकी के दीर्घकालिक परिणामों का पूर्वानुमान भी लगाया जा सकेगा. इसके अलावा, अनचाहे परिणाम सामने आने की सूरत में अपनाए जाने वाले तौर-तरीक़ों की भी गुंजाइश रहनी चाहिए.
संदर्भ आधारित: क्वांटम प्रौद्योगिकियों को एक ही तरह के स्वरूप वाले रुख़ से विकसित नहीं किया जाना चाहिए. आम लोगों पर इन प्रौद्योगिकियों के परिणामों के आकलन में सिविल सोसाइटी की भागीदारी को बढ़ावा दिया जाना चाहिए. क्वांटम विज्ञान के विकास में अलग-अलग सांस्कृतिक संदर्भों को जगह दी जानी चाहिए.
समझदारी भरा: क्वांटम प्रौद्योगिकियों को आम लोगों की आकांक्षाएं पूरी करनी चाहिए. प्रौद्योगिकी विकास की ये प्रक्रिया महज़ वाणिज्यिक फ़ायदों और औद्योगिक उत्पादों में सुधार लाने की क़वायद के तौर पर ही सीमित नहीं रहनी चाहिए. लोगों की सामाजिक-आर्थिक बेहतरी के हिसाब से इसकी योजना बनाई जानी चाहिए.

इन सामान्य आचार नीति सिद्धांतों के साथ-साथ क्वांटम प्रौद्योगिकियों के मेटा-इथिक्स को क्वांटम विज्ञान को संचालित करने वाले आधारभूत नियम-क़ानूनों के अनुकूल होने की ज़रूरत होगी. इनमें सुपरपोज़िशन, टनलिंग और एनटैंगलमेंट शामिल हैं. मिसाल के तौर पर जब क्वांटम कंप्यूटिंग को मशीन लर्निंग एलगोरिदम के साथ क्वांटम डेटासेट्स पर प्रयोग किया जाता है तब परिणामों का स्वरूप पारंपरिक नतीजों से अलग पाया जाता है. ऐसे में आचार नीति से जुड़ी चिंताएं पैदा होती हैं. लिहाज़ा क्वांटम साइंस के बुनियादी मिज़ाज से मेल खाने वाली रूपरेखाएं तैयार करना ज़रूरी हो जाएगा.

आचार नीति संबंधी समझौतों का ढांचा कौन तैयार करेगा?

क्वांटम प्रौद्योगिकियों के लिए आचार नीति संबंधी क़रार तय करते वक़्त इस क्षेत्र में विशेषज्ञता रखने वाले भौतिकविदों, वैज्ञानिकों और शिक्षाविदों को निर्णय लेने की भूमिका सौंपी जानी चाहिए. क्वांटम प्रौद्योगिकियों को आचार नीति और वैधानिकता के मानकों और नियम-क़ायदों का पालन करना चाहिए. इसके अलावा वैज्ञानिक बिरादरी द्वारा स्थापित परंपराओं को भी ऊंचा दर्जा दिया जाना चाहिए. क्वांटम ऐप्लिकेशंस और क्वांटम डेटा, पारंपरिक ऐप्लिकेशंस और डेटा से अलग होंगे. ऐसे में ख़ासतौर से उन नए ऐप्लिकेशंस के लिए आचार नीति से जुड़ा ढांचा धीरे-धीरे उभर सकता है. मिसाल के तौर पर स्वास्थ्य क्षेत्र के दिशानिर्देश, वित्तीय बाज़ारों के नियम-क़ायदों से जुदा हो सकते हैं. क्वांटम प्रौद्योगिकियों के नियमन के लिए राष्ट्र-राज्यों को बहुआयामी रुख़ अपनाना चाहिए. इस कड़ी में समाज विज्ञान और प्राकृतिक विज्ञानों के साथ-साथ प्रमाण-आधारित प्रौद्योगिकी नीति-निर्माण का प्रयोग किया जाना चाहिए.

इस कड़ी में क्वांटम मेटा-इथिक्स प्रोजेक्ट का भी नाम लिया जा सकता है- जो यूनिवर्सिटी ऑफ़ सिडनी और ऑब्ज़र्वर रिसर्च फ़ाउंडेशन के आपसी गठजोड़ से चलाया जा रहा है. इसके तहत व्यापक रूप से समाजों पर क्वांटम प्रौद्योगिकियों के प्रभावों की पड़ताल के लिए संबंधित साहित्य के साथ-साथ अन्य बौद्धिक संसाधन तैयार किए गए हैं.

क्वांटम प्रौद्योगिकियों की आचार नीति पर परिपक्व परिचर्चाओं की शुरुआत के लिए राष्ट्र-राज्य वैश्विक प्लेटफ़ॉर्मों (मसलन G20 और क्षेत्रीय बहुपक्षीय समूह जैसे क्वॉड) की मदद ले सकते हैं. AI और मशीन लर्निंग जैसी मौजूदा प्रौद्योगिकियों के सिलसिले में भी इसी तरह की क़वायद हुई है. इसी प्रकार उभरती प्रौद्योगिकियों पर बहुपक्षीय किरदारों वाली व्यवस्था द्वारा स्थापित गठजोड़ों और कार्यदलों को क्वांटम प्रौद्योगिकियों के हिसाब से गढ़ा जा सकता है. इनमें सरकारें, उद्योग संघ और संयुक्त राष्ट्र जैसे अंतरसरकारी संगठन शामिल हैं. ये एक समग्र व्यवस्था के तौर पर कार्य कर सकता है, जो दोनों तरह की नीतियां सुझा सके- पहला, मानकीकृत आचार नीति दिशानिर्देश और दूसरा, जो संदर्भ-आधारित हों.

इनके अलावा शिक्षा जगत और सिविल सोसाइटी संगठनों में लक्षित परियोजनाएं और कार्यक्रम, क्वांटम प्रौद्योगिकियों में वैश्विक और संदर्भित विमर्शों को आकार देने में अहम भूमिका निभा सकते हैं. इस सिलसिले में हम क्वांटम इथिकल, लीगल, सोशल एंड पॉलिसी इंप्लिकेशंस (ELSPI) प्रोजेक्ट की मिसाल ले सकते हैं. ये स्टैनफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी और ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी की साझा पहल है. इस कड़ी में क्वांटम मेटा-इथिक्स प्रोजेक्ट का भी नाम लिया जा सकता है- जो यूनिवर्सिटी ऑफ़ सिडनी और ऑब्ज़र्वर रिसर्च फ़ाउंडेशन के आपसी गठजोड़ से चलाया जा रहा है. इसके तहत व्यापक रूप से समाजों पर क्वांटम प्रौद्योगिकियों के प्रभावों की पड़ताल के लिए संबंधित साहित्य के साथ-साथ अन्य बौद्धिक संसाधन तैयार किए गए हैं. ये विभिन्न समुदायों के बीच ज्ञान के आदान-प्रदान को भी बढ़ावा देते हैं. इनमें सिविल सोसाइटी की भागीदारी सुनिश्चित की जाती है.

चलते चलते…

क्वांटम मेटा-इथिक्स और क़रारों को नई प्रौद्योगिकी के विकास और नवाचार के रास्ते की बाधा के तौर पर नहीं देखा जाना चाहिए. इसके उलट, इन क़वायदों से समावेशी प्रौद्योगिकी प्रयोगों के लिए रास्ता साफ़ होना चाहिए, जो इंसानी समाज को फ़ायदा पहुंचा सके. क्वांटम बहुपक्षीय किरदार व्यवस्था के हर धड़े को इन रूपरेखाओं को अपनाना चाहिए. इनमें क्वांटम वैज्ञानिक बिरादरी भी शामिल है. बहरहाल इस मक़सद के लिए नियम और दिशानिर्देश तैयार करना वाकई मुश्किलों भरा सबब साबित होने वाला है. इसके लिए समाज विज्ञान, दर्शनशास्त्र और विशुद्ध विज्ञान को एक छत के नीचे लाने की ज़रूरत पड़ेगी.

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