सितंबर महीने के आख़िर में पहली बार क्वॉड के नेताओं की आमने-सामने, मेल-मुलाक़ातों वाली बैठक हुई. वॉशिंगटन में हुए इस शिखर सम्मेलन की मेज़बानी अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने की. इस विचार मंथन का आयोजन अफ़ग़ानिस्तान में दो दशकों तक चले संघर्ष की समाप्ति और तालिबान के हाथों काबुल के पतन की पृष्ठभूमि में हुआ. अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान की वापसी ने ‘आतंक के ख़िलाफ़ युद्ध’ की अमेरिकी क़वायद को नए सिरे से परिभाषित किया है. इतना ही नहीं इस घटनाक्रम के चलते 9/11 के बाद के कालखंड में संचालित आतंक-निरोधक नीतियों और लक्ष्यों को लेकर नए-नए सवाल खड़े किए जाने लगे हैं. अमेरिका के नज़रिए से देखें तो उसकी आतंक-निरोधी रूपरेखा में “आतंक के ख़िलाफ़ जंग” से हटकर “दूर से निगरानी” की व्यवस्था का उदय हुआ है. ये बदलाव जबरन लाया गया जान पड़ता है और सही मायनों में इसका पूरा खाका तय होना अभी बाक़ी है.
क्वॉड के दृष्टिकोण से देखें तो आतंक-निरोधी उपायों को इस जमावड़े में आपसी तालमेल सुनिश्चित करने वाले प्रमुख तत्व के रूप में रेखांकित किया जा रहा है.[1] हालांकि इस मसले पर क्वॉड द्वारा किसी तरह का सहयोग करने की वचनबद्धता दर्शाने वाली रूपरेखा को काफ़ी ढीले-ढाले तरीक़े से परिभाषित किया गया है. ग़ौरतलब है कि क्वॉड में क्षेत्रीय और वैश्विक सुरक्षा से जुड़े मसलों पर हिंद-प्रशांत क्षेत्र के चश्मे से ही चर्चा होती है. लिहाज़ा आतंकवाद-विरोधी उपायों से जुड़ी परिचर्चा काफ़ी हद तक सामरिक स्वभाव वाली बन जाती है. ऐसे में साफ़ है कि इस मसले पर कार्य-नीति संबंधी संवाद नहीं हो पाता. हालिया वक़्त में क्वॉड के तमाम सदस्य देशों का आतंकवाद से सामना हो चुका है. मिसाल के तौर पर 2015 में जापानी पत्रकार मिका यामामोटा की सीरिया में हत्या कर दी गई थी. इसके कुछ ही वर्षों बाद 2019 में अफ़ग़ानिस्तान में लंबे समय से सामाजिक सेवा और चिकित्सक का काम कर रहे टेत्सु नाकामुरा का भी क़त्ल कर दिया गया. अफ़ग़ानी शहर जलालाबाद में अज्ञात बंदूकधारियों ने 2019 में उनको मौत के घाट उतार दिया था.[2]
क्वॉड के दृष्टिकोण से देखें तो आतंक-निरोधी उपायों को इस जमावड़े में आपसी तालमेल सुनिश्चित करने वाले प्रमुख तत्व के रूप में रेखांकित किया जा रहा है. हालांकि इस मसले पर क्वॉड द्वारा किसी तरह का सहयोग करने की वचनबद्धता दर्शाने वाली रूपरेखा को काफ़ी ढीले-ढाले तरीक़े से परिभाषित किया गया है.
वैसे तो क्वॉड के नेताओं की किसी भी वार्ता प्रक्रियाओं के इर्द-गिर्द और उनके दौरान आतंकवाद निरोधी उपायों का मुद्दा बयानों और विज्ञप्तियों में प्रमुखता से शुमार रहता है, लेकिन इस दिशा में अब तक कुछ ठोस हासिल नहीं हो सका है. नवंबर 2019 में भारत की नेशनल इंवेस्टिगेशन एजेंसी (एनआईए) ने क्वॉड के सदस्यों के पहले आतंकवाद विरोधी टेबल-टॉप अभियान (सीटी-टीटीएक्स) की मेज़बानी की थी.[3] सीटी-टीटीएक्स का मकसद इस नए बहुपक्षीय मंच को आतंकवाद के मुद्दे से रुबरु कराना था. इसके तहत लगातार बढ़ती भागीदारियों, दोस्ताना रिश्तों और आपसी सहयोग की भावनाओं पर आधारित इकोसिस्टम खड़ा करने पर संवाद शुरू करने का लक्ष्य रखा गया. इस क़वायद का मकसद आतंकवाद से जुड़े तमाम पहलुओं पर सूचनाओं को साझा करने से जुड़े तंत्र को संस्थागत रूप देना है. इसके तहत संदिग्ध व्यक्तियों या समूहों, उनकी फ़ंडिंग और उसके स्रोतों पर जानकारी के आदान-प्रदान का लक्ष्य शामिल है. इतना ही नहीं आज के समय में ऑनलाइन माध्यमों के ज़रिए चरमपंथी विचारों के प्रचार-प्रसार और उग्रवादी संगठनों द्वारा लोगों की भर्तियों से जुड़ी चुनौतियां भी बढ़ती जा रही हैं. ऐसे में आतंकवाद-विरोधी और हिंसक उग्रवाद की रोकथाम करने से जुड़े तमाम मुद्दों को भी इसके दायरे में शामिल किया गया है.
इस क़वायद का मकसद आतंकवाद से जुड़े तमाम पहलुओं पर सूचनाओं को साझा करने से जुड़े तंत्र को संस्थागत रूप देना है. इसके तहत संदिग्ध व्यक्तियों या समूहों, उनकी फ़ंडिंग और उसके स्रोतों पर जानकारी के आदान-प्रदान का लक्ष्य शामिल है.
खुफ़िया सूचनाएं कैसे साझा हों?
बहरहाल, गठजोड़ की औपचारिक रूपरेखा तय किए बिना क्वॉड सदस्यों के बीच आतंकवाद-विरोधी उपायों पर सीधे तौर पर तालमेल के रास्ते में तमाम तरह की अड़चनें आना तय है. ख़ासतौर से ख़ुफ़िया सूचनाओं को साझा किए जाने (जो आम जानकारियों से जुदा होती हैं) को लेकर कई तरह की रुकावटें आ सकती हैं. वैसे तो भारत और अमेरिका के बीच द्विपक्षीय स्तर पर इंटेलिजेंस के मुद्दों पर सहयोग बढ़ा है, लेकिन क्वॉड समूह के भीतर व्यापक तौर पर ख़ुफ़िया सूचनाओं को साझा करने से जुड़े इंतज़ाम अब भी नदारद हैं. और तो और निकट भविष्य में भी ऐसा तंत्र कायम होने के आसार काफ़ी कम दिखाई देते हैं. हालांकि इस मसले को वरीयता दिए जाने की ज़रूरत है क्योंकि आतंकवाद निरोधी ढांचे में ख़ुफ़िया जानकारियों के आदान प्रदान की बड़ी अहम भूमिका होती है. भारत के सरहदी इलाक़ों में सामरिक तौर पर बेहद चुनौतीपूर्ण हालात बने हुए हैं. हिंदुस्तान की मौजूदा फ़ौजी और ख़ुफ़िया क्षमताओं के लिए ये चुनौतियां पहाड़ जैसी हैं. बहरहाल, मई 2020 में लद्दाख इलाक़े में चीन के साथ भारी तनातनी का मंज़र सामने आने के बाद भारत क्वॉड में ख़ुफ़िया जानकारियों के तालमेल को बढ़ाने से जुड़े प्रयासों की अगुवाई कर सकता है. हालांकि इस मोर्चे पर जापान और ऑस्ट्रेलिया के रुख़ पर चीन के साथ उनके द्विपक्षीय टकरावों का प्रभाव पड़ने से इनकार नहीं किया जा सकता. ज़ाहिर है कि बीजिंग के प्रति इन दोनों देशों के नज़रिए के बहुपक्षीय की बजाए क्षेत्रीय दृष्टिकोण से संचालित होने के ही आसार रहेंगे.[4]
कुल मिलाकर देखें तो आतंकवाद-विरोधी उपायों पर तालमेल के लक्ष्य की प्राप्ति क्वॉड के लिए कोई मुश्किल बात नहीं है. दरअसल इस लक्ष्य की प्राप्ति के प्रयासों से इस मंच में और भी ज़्यादा जुड़ाव लाया जा सकता है. इस मसले पर दक्षिण पूर्व एशिया और दक्षिण एशिया जैसे भौगोलिक क्षेत्रों के बीच सहयोग से क्षेत्रीय लक्ष्य साधे जा सकते हैं. सैन्य उपायों की बजाए रणनीतिक तौर पर सहयोग से इस मकसद को हासिल किया जा सकता है. हालांकि सिर्फ़ हिंद-प्रशांत क्षेत्र के भौगोलिक दृष्टिकोण और जोख़िमों से जुड़े साझा नज़रिए से ये लक्ष्य हासिल नहीं हो सकते. इसके लिए कार्यकारी तौर पर तालमेल कायम करने से जुड़ी क़वायद ज़रूरी है. इसके लिए साझा तौर पर वित्तीय योगदानों के ज़रिए तैयार कोष का विकल्प शामिल हो सकता है. इसके साथ ही हिंद-प्रशांत क्षेत्र में, उसके आसपास और इसके दायरे में चरमपंथ और आतंकवाद के ख़िलाफ़ काम करने वाली एजेंसियों के बीच भी तालमेल कायम करने के अवसर तलाशे जा सकते हैं. सिविल सोसाइटी, विश्वविद्यालयों, क़ानून का पालन करवाने वाली एजेंसियों और तकनीकी इकोसिस्टम को साथ लाकर इस लक्ष्य को हासिल किया जा सकता है. इन सबके सहयोग से चरमपंथी विचारधाराओं पर चोट किया जा सकता है. मिसाल के तौर पर क्वॉड की अगुवाई वाले इकोसिस्टम के ज़रिए बांग्लादेश, मालदीव, श्रीलंका और नेपाल जैसे देशों को हिंसक चरमपंथ से निपटने के बेहतरीन उपायों और अनुभवों के आदान-प्रदान के साथ जोड़ा जा सकता है. इसके साथ ही ऑनलाइन माध्यमों के नियमन के तौर-तरीक़ों पर भी संवाद कायम किया जा सकता है. इस पूरी क़वायद का इस्तेमाल आतंकवादी संगठनों के ख़िलाफ़ तर्क और विमर्श खड़ा करने के लिए किया जा सकता है. सबसे अच्छी बात ये है कि इन प्रयासों के लिए हिंद-प्रशांत क्षेत्र में किसी तरह के सैन्य कार्यक्रमों या फ़ौजी साजोसामानों के इस्तेमाल की भी ज़रूरत नहीं पड़ेगी. क्वॉड के लिए भी ये अपने उभार को नई दिशा देने और इस प्रक्रिया में नए देशों के साथ जुड़ावों को सामने लाने का तरीक़ा हो सकता है. सरकारी एजेंसियों के नज़रिए से देखें तो सीटी-टीटीएक्स जैसे अभ्यासों को विस्तार देकर इसके दायरे में नए देशों को बारी-बारी से पर्यवेक्षक के तौर पर जोड़ा जा सकता है. इनके साथ-साथ तमाम एजेंसियों को भी रोटेशनल आधार पर साथ लाया जा सकता है. इन उपायों के दायरे में हिंद-प्रशांत भौगोलिक क्षेत्र के तमाम देशों और एजेंसियों को शामिल किया जा सकता है.[5]
मिसाल के तौर पर क्वॉड की अगुवाई वाले इकोसिस्टम के ज़रिए बांग्लादेश, मालदीव, श्रीलंका और नेपाल जैसे देशों को हिंसक चरमपंथ से निपटने के बेहतरीन उपायों और अनुभवों के आदान-प्रदान के साथ जोड़ा जा सकता है. इसके साथ ही ऑनलाइन माध्यमों के नियमन के तौर-तरीक़ों पर भी संवाद कायम किया जा सकता है.
एनआईए द्वारा सीटी-टीटीएक्स की मेज़बानी किए जाने से क्वॉड समूह के भीतर आतंकवाद विरोधी विमर्श को आगे बढ़ाने को लेकर भारत के अगुवा बनने की इच्छा सामने आई है. भले ही कोविड-19 महामारी के चलते इन शुरुआती क़दमों पर अस्थायी रूप से ब्रेक लग गया हो लेकिन आतंकवाद के ख़िलाफ़ कड़े से कड़े उपाय अपनाए जाने को लेकर बहुपक्षीय मंचों (जैसे संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद[6] और शंघाई सहयोग संगठन) में भारत के बढ़ते दख़ल का प्रभाव क्वॉड पर पड़ना भी तय है.[7]
क्वॉड जैसे बहुपक्षीय ढांचे के निशाने पर मोटे तौर पर एशिया और उसके आगे चीन का बढ़ता प्रभाव और उभार है. ऐसे में बेशक़ कुछ विश्लेषक ये सवाल उठाते हैं कि क्या इस मंच पर आतंकवाद-विरोधी तालमेल के लिए सचमुच कोई जगह बनती है? हालांकि क्वॉड को भौगोलिक बंधनों और दायरों में बांधना एक हद के आगे कारगर नहीं होगा. बेशक़, अमेरिका ने अफ़ग़ानिस्तान से बाहर निकलने के अपने फ़ैसले को अपनी रणनीति में लाए गए ज़रूरी बदलाव के तौर पर प्रचारित किया है. अमेरिका ने रेखांकित किया है कि वो अब अपनी ऊर्जा एशिया में उभरते नए ख़तरों (जैसे चीन) से निपटने में ख़र्च करेगा. अफ़ग़ानी सत्ता के पतन और तालिबान के उभार को चीन से लगातार मज़बूत समर्थन मिलता रहा है.
एक ऐसे समय में जब यूरोपीय देश हिंद-प्रशांत को लेकर अपनी-अपनी नीतियों का एलान कर रहे हैं, तो ऐसे में क्वॉड के ढांचे में आतंकवाद विरोधी तालमेल को हिंद-प्रशांत क्षेत्र तक सीमित रखने का कोई व्यवहार्य कारण नहीं है. राष्ट्रपति बाइडेन ने कहा है, “हम लोग चीन के साथ एक गंभीर प्रतिस्पर्धा भरे हालात का सामना कर रहे हैं. ऐसे में चीन और रूस पर ध्यान देने की बजाए अमेरिका के लिए अफ़ग़ानिस्तान में एक और दशक तक सिर खपाने का कोई मतलब नहीं है.”[8]
एक ऐसे समय में जब यूरोपीय देश हिंद-प्रशांत को लेकर अपनी-अपनी नीतियों का एलान कर रहे हैं, तो ऐसे में क्वॉड के ढांचे में आतंकवाद विरोधी तालमेल को हिंद-प्रशांत क्षेत्र तक सीमित रखने का कोई व्यवहार्य कारण नहीं है.
हो सकता है कि आतंकवाद-विरोधी उपाय क्वॉड के प्राथमिक कार्यक्षेत्रों में शामिल न हो, इसके बावजूद क्वॉड आतंकवाद से दो-दो हाथ करने को लेकर रणनीतिक नज़रिया पेश कर सकता है. इसकी वजह ये है कि आतंकवाद से निपटने का लक्ष्य आज विश्व बिरादरी की वरीयता सूची में सबसे ऊपर आ गया है. चूंकि क्वॉड के भविष्य के लिए भारत की भूमिका बेहद अहम है, लिहाज़ा आतंकवाद से निपटने के उपायों को इस मंच से काफ़ी बढ़ावा मिलने की उम्मीद है. इस मुद्दे पर राजनीतिक, रणनीतिक और कार्यकारी तौर-तरीक़ों से निपटने की ज़रूरत है.
ये लेख ओआरएफ़ की स्पेशल रिपोर्ट नं. 161, The Rise and Rise of the ‘Quad’: Setting an Agenda for India | ORF (orfonline.org) का हिस्सा है.
Endnotes
[1] “Quad leaders’ joint statement: The spirit of the Quad”, The White House, March 12, 2021.
[2] “Tetsu Nakamura: A Japanese doctor amongst six dead in Afghan gun attack”, BBC, December 4, 2019.
[3] “NIA to host first counter-terrorism cooperation exercise for ‘Quad’ countries”, Press Trust of India, November 19, 2019.
[4] Rajeswari Pillai Rajagopalan, “What does the new counterterrorism exercise mean for the Quad?”, The Diplomat, December 6, 2019.
[5] Kabir Taneja, “Cooperation against ISIS is low hanging fruit for a stronger Indo-Pacific”, 9dashline, February 8, 2021.
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