Authors : Shoba Suri | Mona

Published on Aug 01, 2022 Updated 0 Hours ago

जब विश्व हेपेटाइटिस दिवस मनाया जा रहा है, उस वक़्त लोगों की सेहत के लिए ख़तरनाक इस बीमारी के बारे में जागरुक होना ज़रूरी है. ये ख़ास तौर पर इसलिए भी आवश्यक है क्योंकि कोविड के बाद के समय में हेपेटाइटिस के मामलों में बहुत ज़्यादा बढ़ोतरी हुई है.

कोविड के बाद की दुनिया में हेपेटाइटिस लोगों की सेहत के लिए एक बड़ी और बढ़ती चिंता

हेपेटाइटिस वैश्विक स्तर पर लोगों के स्वास्थ्य से जुड़ा एक बोझ है जो पूरी दुनिया में 35.4 करोड़ लोगों को प्रभावित करता है. क़रीब 29.6 करोड़ लोग हेपेटाइटिस बी और 5.8 करोड़ लोग हेपेटाइटिस सी से बीमार हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के मुताबिक़ विषाणुजनित हेपेटाइटिस की वजह से 11 लाख लोगों की मौत हुई है और इसकी वजह से लिवर कैंसर, सिरोसिस इत्यादि जैसी बीमारी होती है. विषाणुजनित हेपेटाइटिस को रोका जा सकता है और समय पर बीमारी का पता लगने और इलाज से मौतों को टाला जा सकता है. हेपेटाइटिस ए और बी को जहां सुरक्षित और असरदार वैक्सीन से रोका जा सकता है, वहीं हेपेटाइटिस ई के मामलों को बेहतर सफ़ाई, खाद्य सुरक्षा और साफ़ पीने के पानी से कम किया जा सकता है. वैश्विक स्तर पर 42 प्रतिशत बच्चों को हेपेटाइटिस बी की वैक्सीन लगी है. पश्चिमी प्रशांत क्षेत्र में जहां 78 प्रतिशत बच्चों को वैक्सीन लगी है, वहीं अफ्रीका के देशों में सिर्फ़ 17 प्रतिशत बच्चों को वैक्सीन लगी है.

वैश्विक स्तर पर 42 प्रतिशत बच्चों को हेपेटाइटिस बी की वैक्सीन लगी है. पश्चिमी प्रशांत क्षेत्र में जहां 78 प्रतिशत बच्चों को वैक्सीन लगी है, वहीं अफ्रीका के देशों में सिर्फ़ 17 प्रतिशत बच्चों को वैक्सीन लगी है. 

2016 में वर्ल्ड हेल्थ असेंबली ने ग्लोबल हेल्थ सेक्टर स्ट्रैटजी को (जीएचएसएस) को अपनाया जिसमें हेपेटाइटिस के उन्मूलन के लिए 2020 और 2030 को लक्ष्य के तौर पर तय किया गया. 2020 तक नये संक्रमण के मामलों में जहां 90 प्रतिशत की कमी का लक्ष्य रखा गया था, वहीं 2030 तक विषाणुजनित हेपेटाइटिस से जुड़ी मौतों की संख्या में 65 प्रतिशत कमी का लक्ष्य था. ज़्यादातर देश 2020 का लक्ष्य पूरा करने में नाकाम रहे हैं. 2020 में 75वीं वर्ल्ड हेल्थ असेंबली में 2022-2030 के लिए ग्लोबल हेल्थ सेक्टर स्ट्रैटजी को लॉन्च किया गया ताकि सतत विकास लक्ष्य के साथ जोड़कर 2030 तक विषाणुजनित हेपेटाइटिस को ख़त्म किया जा सके. इस रणनीति का पीछा करते हुए डब्ल्यूएचओ ने एक रूप-रेखा विकसित की है जिसके सहारे विषाणुजनित हेपेटाइटिस का उन्मूलन करने के लिए प्रमाण चाहने वाले देशों और हिस्सेदारों को निर्देशित किया जा सके. इसमें हेपेटाइटिस बी वायरस (एचबीवी) और हेपेटाइटिस सी वायरस (एचसीवी) पर ख़ास ध्यान दिया गया है.

भारत पर बड़ा बोझ

भारत में हेपेटाइटिस बी के माध्यम से लेकर ज़्यादा मामले आते हैं और कुल वैश्विक मामलों में भारत का योगदान 25-30 प्रतिशत है. भारत में हेपेटाइटिस ई वायरस एक सामान्य महामारी है जबकि सबसे ख़तरनाक एचबीवी बच्चों को प्रभावित करता है और एचसीवी की वजह से लिवर से जुड़ी स्थायी बीमारी होती है.

2018 में स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने सतत विकास लक्ष्य (एसडीजी) 3.3 के साथ तालमेल करके एचसीवी के उन्मूलन और 2030 तक एचबीवी एवं एचसीवी से संक्रमण, बीमारी एवं मृत्यु की दर कम करने के लिए ‘राष्ट्रीय वायरल हेपेटाइटिस नियंत्रण कार्यक्रम’ शुरू किया. इसके बाद 2019 में ‘वायरल हेपेटाइटिस के लिए राष्ट्रीय कार्य योजना’ को विकसित किया गया ताकि समग्र रोकथाम, पता लगाने और इलाज की रणनीति के ज़रिए वायरस का मुक़ाबला किया जा सके.

ग्लोबल बर्डन ऑफ डिज़ीज़ 2019 का अनुमान है कि भारत में एचबीवी के 2.93 प्रतिशत जबकि एचसीवी के 0.83 प्रतिशत मामले आए. अनुमानों से आगे ये भी पता चलता है कि जानलेवा एक्यूट हेपेटाइटिस बी और सी के प्रसार, मामले और मृत्यु दर पूर्वोत्तर के राज्यों में सबसे ज़्यादा हैं

इन कार्यक्रमों के बावजूद ग्लोबल बर्डन ऑफ डिज़ीज़ 2019 का अनुमान है कि भारत में एचबीवी के 2.93 प्रतिशत जबकि एचसीवी के 0.83 प्रतिशत मामले आए. अनुमानों से आगे ये भी पता चलता है कि जानलेवा एक्यूट हेपेटाइटिस बी और सी के प्रसार, मामले और मृत्यु दर पूर्वोत्तर के राज्यों में सबसे ज़्यादा हैं जिनमें अरुणाचल प्रदेश, असम, मेघालय और मणिपुर सबसे आगे हैं. यहां हेपेटाइटिस के मामले सामान्य तौर पर एचआईवी/एड्स के साथ संक्रमण के रूप में सामने आते हैं. दूसरी तरफ़ एम्पावर्ड एक्शन ग्रुप (ईएजी या सशक्त कार्य समूह) वाले राज्यों उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और छत्तीसगढ़ में एक्यूट हेपेटाइटिस ए और ई का प्रसार और मामले ज़्यादा हैं (आंकड़ा 1).

 

आंकड़ा 1: सभी उम्र के पुरुषों और महिलाओं में एक्यूट हेपेटाइटिस का प्रसार (प्रति 1,00,000 आबादी पर)

स्रोत: ग्लोबल बर्डन ऑफ डिज़ीज़ स्टडी (2019)

भारत में वायरल हेपेटाइटिस को लेकर 2014 की एक समीक्षा में आम लोगों एवं मेडिकल प्रोफेशनल के बीच ज़्यादा जागरुकता की ज़रूरत, बेहतर स्वच्छता एवं साफ़ पीने का पानी और सुरक्षित ढंग से खून चढ़ाने की आवश्यकता के लिए अनुरोध किया गया है जिससे कि ‘2080’ तक वायरल हेपेटाइटिस के उन्मूलन के लक्ष्य को हासिल किया जा सके. अलग-अलग कारण, जिनमें मातृत्व स्वास्थ्य देखभाल का उपयोग, मां की शिक्षा और परिवार की संपत्ति का दर्जा शामिल हैं, एचबीवी टीकाकरण की संभावना में बढ़ोतरी दिखाते हैं. अरुणाचल प्रदेश में बच्चों के बीच एचबीवी के ज़्यादा मामले प्रभावित मां से सीधे संक्रमण का ऐसा ही एक संभावित उदाहरण है. कम टीकाकरण के अलावा कई तरह की चुनौतियां, जिनमें बीमारी और उसके फैलने के तरीक़े के बारे में कम जागरुकता, जनजाति एवं अलग-थलग समुदायों में ज़्यादा प्रसार और बीमारी को कलंक समझने एवं भेदभाव जैसी चुनौतियां शामिल हैं, भी वायरल हेपेटाइटिस के प्रसार में योगदान करते हैं.

शुरुआती संकेतों के आधार पर कहा जा सकता है कि कोविड के बाद की दुनिया में लिवर की बीमारी और हेपेटाइटिस के मामलों में बढ़ोतरी होगी. सामुदायिक स्तर पर जांच-पड़ताल और निगरानी में कमी होने पर ये जल्द ही बड़ा ख़तरा बन सकता है.

2015-16 के 62.8 प्रतिशत के मुक़ाबले 2019-21 में 83.9 प्रतिशत के साथ टीकाकरण में महत्वपूर्ण बढ़ोतरी के बावजूद अध्ययनों से पता चलता है कि सामाजिक-आर्थिक और जनसांख्यिकीय के साथ-साथ क्षेत्रीय स्तर पर वैक्सीनेशन की दर अलग-अलग है. ये नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे रिपोर्ट 2019-21 से पता चलता है जो बताता है कि पूर्वोत्तर के राज्यों में वैक्सीनेशन की स्थिति ख़राब है (आंकड़ा 2).

आंकड़ा 2: 12-23 महीने के बच्चों में हेपेटाइटिस बी का वैक्सीनेशन

स्रोत: एनएफएचएस-5

महामारी के बाद की ज़रूरत: सावधान करने में तेज़ी

कोविड-19 का प्रकोप अभी भी जारी है और नये प्रमाणों से पता चलता है कि कोविड-19 की वजह से लिवर की बीमारियां देर से सामने आती हैं. रिसर्च से पता चलता है कि सक्रिय कोविड-19 संक्रमण में गैस्ट्रोइन्टेस्टनल और लिवर से जुड़ी परेशानी साफ़ तौर पर दिखती है और दूसरी तरह की बीमारियों के साथ इससे जुड़ा जोखिम काफ़ी गंभीर हो जाता है. ये नये तरह के लक्षण के रूप में सामने आ सकता है जो इलाज में इस्तेमाल दवाई से रिएक्शन का नतीजा हो सकता है या संक्रमण के बाद विकसित हो सकता है. ये वयस्कों और बच्चों– दोनों में पाया गया है जिसकी वजह से लिवर और किडनी की बीमारियां हो सकती हैं.

इज़रायल में हल्के या बिना लक्षण वाले कोरोना वायरस के संक्रमण से सफलतापूर्वक ठीक होने वाले बच्चों के बीच कराए गए अध्ययन में पता चला कि बाद में हेपेटाइटिस के लक्षणों के साथ उनके लिवर ने पूरी तरह काम करना बंद कर दिया. वैसे तो बच्चों में हेपेटाइटिस होना बेहद दुर्लभ है लेकिन यूनाइटेड किंगडम (यूके), अमेरिका, डेनमार्क, जापान, इटली, फ्रांस, कनाडा और दूसरे देशों में अचानक अज्ञात कारणों से गैस्ट्रोएंटेराइटिस बीमारियों (डायरियां और मिचली) के बाद जॉन्डिस (पीलिया) के मामले सामने आए हैं. इनमें से ज़्यादातर बच्चे हेपेटाइटिस फैलाने वाले 5 वायरस के टेस्ट में निगेटिव पाए गए लेकिन एडेनोवायरस (सामान्य प्लू जैसा वायरस) के टेस्ट में पॉज़िटिव मिले. इसको लेकर सबसे ज़्यादा स्वीकार्य थ्योरी ये है कि सार्स कोव-2 वायरस एडेनोवायरस के साथ मिलकर इम्यून सिस्टम में एक गंभीर, असामान्य प्रतिक्रिया सक्रिय करता होगा. भारत में भी मध्य प्रदेश में हुए एक अध्ययन में इस तथ्य को बच्चों में कोविड से जुड़ा हेपेटाइटिस (सीएएच-सी) कहा गया.

बढ़ते प्रकोप के साथ हेपेटाइटिस के इलाज और रोकथाम के लिए विशेष ध्यान देने की ज़रूरत है. ऐसा नहीं किया गया तो हेपेटाइटिस आसानी से लिवर की स्थायी बीमारी, कैंसर और सिरोसिस में बदल सकता है.

शुरुआती संकेतों के आधार पर कहा जा सकता है कि कोविड के बाद की दुनिया में लिवर की बीमारी और हेपेटाइटिस के मामलों में बढ़ोतरी होगी. सामुदायिक स्तर पर जांच-पड़ताल और निगरानी में कमी होने पर ये जल्द ही बड़ा ख़तरा बन सकता है. इसके अलावा हेपेटाइटिस के इलाज में एक बड़ी चिंता ये है कि भारत में हेपेटाइटिस बी और सी के मामलों को लेकर राष्ट्रीय या राज्य स्तर के आंकड़ों की कमी है. इसकी वजह से सरकार की कोशिशें अंधेरे में तीर चलाने की तरह है. फिलहाल हेपेटाइटिस सी के लिए कोई असरदार वैक्सीन नहीं है, ऐसे में रोकथाम के उपाय बेहद महत्वपूर्ण हो जाते हैं.

उन्मूलन की रणनीति को तेज़ करना

महामारी ने वायरल हेपेटाइटिस के उन्मूलन की दिशा में की गई प्रगति पर पानी फेर दिया है. वायरल हेपेटाइटिस पर कोविड-19 के असर का आकलन करने के लिए वर्ल्ड हेपेटाइटिस एलायंस के द्वारा कराए गए एक वैश्विक सर्वे से सेवाओं में भारी रुकावट के साथ हेपेटाइटिस से बीमार लोगों के लिए कोविड-19 के बारे में जानकारी की कमी का संकेत मिला. लैंसेट के ताज़ा अंक से पता चलता है कि चुनौतियों के बावजूद कोशिशों और फंडिंग में विस्तार के ज़रिए वायरल हेपेटाइटिस को ख़त्म करने के लक्ष्य को हासिल करना संभव है.

 

आंकड़ा 3: हेपेटाइटिस के उन्मूलन के लिए प्रमुख रणनीतियां

स्रोतवर्ल्ड हेपेटाइटिस एलायंस

बढ़ते प्रकोप के साथ हेपेटाइटिस के इलाज और रोकथाम के लिए विशेष ध्यान देने की ज़रूरत है. ऐसा नहीं किया गया तो हेपेटाइटिस आसानी से लिवर की स्थायी बीमारी, कैंसर और सिरोसिस में बदल सकता है. हेपेटाइटिस को ठीक किया जा सकता है (आंकड़ा 3) और इसके लिए रोकथाम की रणनीति की ज़रूरत है. रोकथाम के लिए ज़्यादा जोखिम वाले समूहों में काफ़ी जांच-पड़ताल करनी होगी, साफ़ पानी और बेहतर स्वच्छता को सुनिश्चित करना होगा, वैक्सीनेशन पर ज़ोर देना होगा, हेपेटाइटिस के उन्मूलन के लिए चलाए जाने वाले कार्यक्रमों की असरदार निगरानी करनी होगी और वायरल हेपेटाइटिस के जोखिम को लेकर जागरुकता बढ़ानी होगी.

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Shoba Suri

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Dr. Shoba Suri is a Senior Fellow with ORFs Health Initiative. Shoba is a nutritionist with experience in community and clinical research. She has worked on nutrition, ...

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Mona

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Mona is a Junior Fellow with the Health Initiative at Observer Research Foundation’s Delhi office. Her research expertise and interests lie broadly at the intersection ...

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