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श्रीलंका के राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे की हालिया यात्रा ने भारत-श्रीलंका संबंधों को और मजबूत करने के नए अवसर खोले हैं
श्रीलंका के राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे की हाल की नई दिल्ली यात्रा को इसके द्विपक्षीय समझौतों के लिए याद किया जाएगा, जिसका उद्देश्य पिछले साल के अभूतपूर्व आर्थिक झटकों के विरुद्ध देश की अर्थव्यवस्था को मज़बूत करना था. ‘भारत-श्रीलंका साझेदारी विज़न’ के माध्यम से ‘कनेक्टिविटी को बढ़ावा देना, समृद्धि को उत्प्रेरित करना’ का उद्देश्य है जिसमें कई परियोजनाएं शामिल हैं, जिनका अनावरण किया जाना शेष है, जैसा कि यात्रा के अंत में जारी संयुक्त बयान का शीर्षक शीर्षक तय किया गया था. उन्होंने और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संयुक्त रूप से लघु, मध्यम और लंबी अवधि के “पड़ोसी पर्यटन को बढ़ावा देने के अलावा, ऊर्जा, ईंधन, और विदेशी मुद्रा में क्षेत्र-विशिष्ट समाधानों के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को दुहराया है.
देश के सबसे अराजक माहौल के दौरान, राष्ट्रपति के रूप में पदभार संभालने के बाद विक्रमसिंघे की यह पहली भारत यात्रा थी.
देश के सबसे अराजक माहौल के दौरान, राष्ट्रपति के रूप में पदभार संभालने के बाद विक्रमसिंघे की यह पहली भारत यात्रा थी. विगत काल में, केवल द्विपक्षीय संबंधों की गहराई को रेखांकित करने और निर्माण करने के लिए, श्रीलंका के राष्ट्रपतियों, प्रधानमंत्रियों और विदेश मंत्रियों ने पदभार संभालने के कुछ ही दिनों या हफ्तों के भीतर नई दिल्ली को अपना पहला विदेशी गंतव्य बना रखा था. फिर भी, जब विक्रमसिंघे ने 21 जुलाई 2023 को पीएम मोदी से मुलाकात की, तो यह विक्रमसिंघे के राष्ट्रपति पद की पहली वर्षगांठ थी, जो एक साल पहले देखी गई राष्ट्रीय हताशा के खिलाफ़ आशा से भरी हुई थी.
अपनी यात्रा के दौरान हस्ताक्षरित द्विपक्षीय समझौते के मध्य, राष्ट्रपति विक्रमसिंघे को दोनों देशों के बीच भूमि सेतु के बारे में सोचते हुए पुरानी यादें ताज़ा करने का वक्त था, क्योंकि राष्ट्रपति चंद्रिका भंडारनायके – कुमारातुंगा की सरकार में सह-आवासीय प्रधानमंत्री के तौर पर उन्होंने चेन्नई में वर्ष 2013 में आयोजित एक सेमीनार में, भूमि सेतु का विचार रखा था, जिसे बाद में उन्होंने अपने तत्कालीन भारतीय समकक्ष अटलबिहारी बाजपायी के साथ बातचीत में इसे उठाया था और इसके बाद साल 2003 में संयुक्त बयान में भूमि सेतु का उल्लेख किया गया. हालांकि, तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जयललिता ने इसे तब खारिज कर दिया जब केंद्र ने राज्य सरकार से इसकी व्यावहारिकता से संबंधित अध्ययन करने के लिए कहा और विशेष रूप से श्रीलंका सरकार के साथ शांति वार्ता के रुकने के बाद, आतंकवादी संगठन एल.टी.टी. ई. की अनिश्चितता को देखते हुए, इसे ‘राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा’ बताया गया.
इस बार एक बार फिर से, एक भूमि पुल से जुड़ी संभावनाओं के अध्ययन ने फिर से फॉलोअप कार्रवाई की बेहतर संभावनाओं के साथ, संयुक्त बयान में जगह बनाई. हालांकि, यह दोनों देशों के बीच कई कनेक्टिविटी-केंद्रित निर्णयों में से एक है, जिनमें समुद्री संपर्क, ईंधन कनेक्टिविटी और फिनटेक कनेक्टिविटी शामिल हैं – ये सभी भारत की ‘पड़ोसी पहले’ नीति और ‘सागर’ विज़न के विचार का हिस्सा है, जिसका उद्देश्य ‘दोनों देशों के लोगों के बीच सभ्यतागत संबंधों, भौगोलिक निकटता, सांस्कृतिक जुड़ाव और दोनों देशों के बीच सदियों पुरानी सद्भावना’ को बढ़ावा देना था. इन सभी पर दोनों देशों के बीच चर्चा हुई है और विशेष रूप से, श्रीलंका में इस बाबत बहस हुई है, क्योंकि पड़ोसियों को अपनी पूरी क्षमता तक जल्द पहुंचने में मदद करने के बारे में भारत में कोई दो राय नहीं है.
लैंडब्रिज में एक रेलवे लाइन भी शामिल हो सकती है, जो क्षेत्रीय और उप-क्षेत्रीय व्यापार को बढ़ावा देने के अलावा बड़ी संख्या में यात्रा करने वाले पर्यटकों और तीर्थयात्रियों के लिए इसे और भी आकर्षक और व्यावहारिक बनाती है. पीएम मोदी ने दोनों देशों के बीच समुद्री संपर्क को पुनर्जीवित करने की बात की है, जिसके लिए बड़े परिव्यय और लंबी समय सीमा की आवश्यकता नहीं थी. संयुक्त बयान में कहा गया है कि समुद्री संपर्क परियोजनाओं का समग्र दृष्टिकोण ‘आपसी समझ के अनुसार क्षेत्रीय रसद और समुद्री पोर्ट को मज़बूत करने के उद्देश्य से कोलंबो, त्रिंकोमाली और कांकेसंथुराई (केकेटी) में बंदरगाहों और रसद के बुनियादी ढांचे के विकास में सहयोग करना है.
संयुक्त बयान में ‘रामेश्वरम और तलाईमन्नार के बीच नौका सेवाओं को फिर से शुरू करने की दिशा में काम करने’ का भी वादा किया गया, जिसके बंदरगाह का बुनियादी ढांचा 60 के दशक की शुरुआत में एक चक्रवात से नष्ट हो गया था.
समुद्री संपर्क परियोजनाओं की सूची में सबसे ऊपर कांकेसंथुराई – नागापट्टीनम नौका सेवा है, जिनके आने वाले चंद महीनों में शुरुआत होने की गुंजाइश है. संयुक्त बयान में ‘रामेश्वरम और तलाईमन्नार के बीच नौका सेवाओं को फिर से शुरू करने की दिशा में काम करने’ का भी वादा किया गया, जिसके बंदरगाह का बुनियादी ढांचा 60 के दशक की शुरुआत में एक चक्रवात से नष्ट हो गया था. उत्तर-पूर्वी मानसून के प्रभाव में साझा समुद्रों में वार्षिक चक्रवातों का अध्ययन किए जाने की आवश्यकता थी. बाद में, द्वीप-राष्ट्र में जातीय युद्ध, जिसमें ‘सी टाइगर्स’ जो श्रीलंका के जल क्षेत्र पर हावी थे, उसके कारण भी देरी हुई.
इसी तरह से, हवाई संपर्क के संबंध में, दोनों पक्षों ने देखा कि कैसे ‘जाफना और चेन्नई के बीच उड़ानों की बहाली ने लोगों के बीच के आपसी संबंधों को प्रगाढ़ बनाया है’ और ‘इसे कोलंबो तक और विस्तृत करने के साथ-साथ चेन्नई और त्रिंकोमाली, बट्टिकलोआ और श्रीलंका में अन्य गंतव्यों के बीच संपर्क की संभावनाओं का पता लगाने’ पर सहमति जताई. भारत ने ‘नागरिक उड्डयन के क्षेत्र को प्रोत्साहित करने और निवेश को सुदृढ़ करने और सहयोग करने की दिशा में, जिसमें (तमिल बहुल उत्तरी प्रांत स्थित) पलाली में हवाई अड्डे के बुनियादी ढांचे में वृद्धि करना भी शामिल है, इन सबके प्रति अपनी प्रतिबद्धता को दुहराया है.’
जैसा कि पीएम मोदी ने संवाददाता सम्मेलन के दौरान कहा था, यात्रा का मुख्य उद्देश्य संभवतः ‘पेट्रोलियम पाइपलाइन स्थापित करने पर व्यावहारिक अध्ययन करने’ से संबंधित संयुक्त वार्ता करना था. पिछले साल के डॉलर संकट के दौरान पैदा हुई ईंधन और ऊर्जा संकट से, देश की अर्थव्यवस्था का कितना बुरा हाल हो सकता है, ये शिक्षा प्राप्त होने के बाद के अपने संयुक्त बयान में श्रीलंका के लिए ईंधन-पर्याप्तता और ऊर्जा सुरक्षा की गारंटी देने वाली परियोजनाओं पर विस्तार से चर्चा की गई. दोनों पक्ष पूर्ववर्ती गोटाबाया राजपक्षे शासन के तहत तेल टैंक-खेतों के संयुक्त पुनर्विकास पर सहमत हुए थे, और उसके बाद, तत्कालीन विदेश सचिव हर्षवर्धन श्रृंगेरी ने अक्टूबर 2021 में चार दिवसीय श्रीलंका यात्रा के दौरान साइट का निरीक्षण भी किया था.
इस प्रकार, संयुक्त बयान ने दोनों पक्षों को बिजली की लागत में कटौती और श्रीलंका के लिए विदेशी मुद्रा आय में सुधार की उम्मीद के साथ श्रीलंका और बीबीआईएन देशों के बीच द्वी-दिशात्मक बिजली व्यापार को सक्षम करने के लिए एक उच्च क्षमता वाले पावर ग्रिड इंटर-कनेक्शन की स्थापना करने के प्रति प्रतिबद्धता जताई है. इस प्रक्रिया में, दोनों पक्षों ने भारतीय सार्वजनिक क्षेत्र की एनटीपीसी की समपुर सौर ऊर्जा परियोजना (पूर्वी त्रिंकोमाली जिले में, जिसकी परिकल्पना एक तापीय इकाई के रूप में की गई थी) और एलएनजी बुनियादी ढांचे में तेज़ी लाने पर सहमति व्यक्त की, इसके अलावा चल रहे ‘त्रिंकोमाली टैंक फ़ार्म्स’ के विकास में चल रहे सहयोग’ और श्रीलंका को सस्ते और भरोसेमंद ऊर्जा संसाधन की आपूर्ति करने के लिए ‘बहु-उत्पाद पेट्रोलियम पाइपलाइन के निर्माण के लिए सहयोग करने की बात एक संयुक्त बयान के ज़रिये कही गई है. दोनों देशों ने ‘श्रीलंका के ऑफ-शोर बेसिन्स में हाइड्रो-कार्बन की संयुक्त खोज’ – जो कि एक ऐसा काम है जिसे कोलंबो ने अच्छी तरह से शुरू किया था, लेकिन पिछले दशक किन्हीं वजहों अधूरा छोड़ रखा था, उसे पूरा करने की प्रतिबद्धता जतायी.
ऐसे संकेत हैं कि शीघ्र ही दोनों पक्ष, बहु-उत्पाद पाइपलाइन परियोजनाओं पर तकनीक़ी वार्ता शुरू करने वाले है. नेपाल (2019) और बांग्लादेश (2023) के बाद श्रीलंका तीसरा पड़ोसी देश है जिसके साथ भारत पेट्रोलियम उत्पादों और पावर ग्रिड दोनों में ‘ऊर्जा संपर्क’ का निर्माण कर रहा है. दिसंबर 2022 में एक भारतीय अधिकारी नें उल्लेखित किया कि, ‘भारत में आज देश के उत्तर से दक्षिण और पूर्व से पश्चिम तक चलने वाला एक बहुत ही मजबूत पॉवर ग्रिड है. भविष्य में, हम इन सभी ग्रिड को म्यांमार, श्रीलंका सहित पड़ोसी देशों से भी जुड़ा हुआ देखना चाहेंगे और फिर एक एकीकृत बाज़ार के रूप में उभरने के लिए दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों तक इस संचार सेवा का विस्तार करने की कोशिश करेंगे.
इन सबके साथ-साथ, दोनों पक्षों ने ‘श्रीलंका में विभिन्न क्षेत्रों में राज्य के स्वामित्व वाले उद्यमों के विनिवेश और विनिर्माण/आर्थिक क्षेत्रों में भारत से निवेश को सुविधाजनक बनाने’ की योजना बनाई है. उन्होंने यह भी सुनिश्चित किया है कि कैसे ‘दोनों देशों के बीच व्यापार को निपटाने के लिए भारतीय रुपये को प्रमुख मुद्रा के रूप में नामित किए जाने का निर्णय, एक मज़बूत और पारस्परिक रूप से लाभकारी वाणिज्यिक संबंध की शुरुआत करेगी’ और ‘व्यवसायों और आम लोगों के बीच व्यापार और लेनदेन को और बढ़ाने के लिए यूपीआई-आधारित डिजिटल भुगतान को संचालित करने’ पर भी सहमति व्यक्त की गई.
नेपाल (2019) और बांग्लादेश (2023) के बाद श्रीलंका तीसरा पड़ोसी देश है जिसके साथ भारत पेट्रोलियम उत्पादों और पावर ग्रिड दोनों में ‘ऊर्जा संपर्क’ का निर्माण कर रहा है. दिसंबर 2022 में एक भारतीय अधिकारी नें उल्लेखित किया कि, ‘भारत में आज देश के उत्तर से दक्षिण और पूर्व से पश्चिम तक चलने वाला एक बहुत ही मजबूत पॉवर ग्रिड है.
दोनों पक्षों ने द्विपक्षीय पर्यटन को बढ़ावा देने और मौजूदा योजनाओं को लोगों के बीच आपसी संपर्क को बढ़ावा देकर और श्रीलंका की घरेलू अर्थव्यवस्था में सुधार लाने में मदद कर और भी विस्तृत करने का वादा किया है. विक्रमसिंघे के घर लौटने के बाद, उनकी सरकार ने भारतीय रुपये को ‘डेसिगनेटेड मुद्रा’ के रूप में अधिसूचित करने में ज़रा भी देरी नहीं की. श्रीलंका के लिए भारत, आयात का एक प्रमुख स्रोत है और इस उपाय से द्विपक्षीय संबंधों में अमेरिकी डॉलर के निकलने को सीमित करने में मदद मिलेगी. उसके बाद सेंट्रल बैंक ऑफ श्रीलंका (सीबीएसएल) ने स्पष्ट किया है कि देश के भीतर, भारतीय रुपया किसी प्रकार की ‘कानूनी निविदा’ नहीं है. इससे पहले, एक राजनीतिक विरोधी ने दावा किया था कि भारतीय मुद्रा को वैध मुद्रा बनाने से श्रीलंका भारत के भीतर एक और राज्य बनकर रह जाएगा.
उल्लेखनीय है कि इस संयुक्त बयान में, ‘व्यापक आर्थिक साझेदारी समझौते (CEPA) के स्थान पर प्रधानमंत्री के तौर पर रानिल विक्रमसिंघे द्वारा (2015-19) में प्रस्तावित ‘आर्थिक और प्रौद्योगिकी सहयोग समझौते’ (ETCA) को बहुत ज्य़ादा महत्व नहीं दिया गया. इसपर चर्चा किये जाने के संदर्भ में भी मामूली तौर पर ही बात हुई. इसके बाद की वार्ता भी महिंदा राजपक्षे (2005-10) के नेतृत्व में श्रीलंका की हठधर्मिता के कारण असफल रही थी. सीईपीए का उद्देश्य स्वयं दोनों देशों के बीच 1999 के मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) को उन्नत करना था, जो भारत के लिए भी अपनी तरह का पहला मौका था.
संयुक्त बयान के दौरान, भारतीय चिंताओं से संबंधित दो पेचीदा समस्याओं, अर्थात द्विपक्षीय मछुआरों से जुड़े विवाद और श्रीलंका में जातीय मुद्दे पर भी चुप्पी छाई रही. पीएम मोदी ने संयुक्त संवाददाता सम्मेलन में जातीय मुद्दे को व्यापक रूप से संबोधित कियाः हमें उम्मीद है कि श्रीलंका सरकार, तमिलों की आकांक्षाओं को पूरा करेगी, वहां- समानता, न्याय और शांति के लिए पुनर्निर्माण की प्रक्रिया को आगे बढ़ाएगी; और 13वें संशोधन को लागू करने व प्रांतीय परिषद के चुनावों का संचालन करने की अपनी प्रतिबद्धता को पूरा करेगी. इसके अलावा श्रीलंका अपने यहां रह रहे तमिल समुदाय के लिए सम्मानित और गरिमापूर्ण जीवन सुनिश्चित करेगा.’
इस विषय पर कोलंबो सरकार की स्थिति को दोहराते हुए, श्रीलंका के उच्चायुक्त मिलिंद मोरागोडा ने इस यात्रा के बाद एक साक्षात्कार में कहा कि जातीय मुद्दे (भी) का समाधान ‘श्रीलंका के भीतर ही’ खोजना होगा. नई दिल्ली की समझ की भावना को आगे बढ़ाते हुए, राष्ट्रपति विक्रमासिंघे ने भी, विशेष रूप से सत्ता हस्तांतरण पर भारत द्वारा समर्थित 13वें संशोधन के क्रियान्वयन के संदर्भ में, जातीय मुद्दे पर एक सर्वदलीय बैठक बुलाई. जैसी अपेक्षा थी, बैठक गतिरोध में समाप्त हुई, और आगे की वार्ता, अगले कुछ महीने के भीतर होने की संभावना है.
नई दिल्ली की समझ की भावना को आगे बढ़ाते हुए, राष्ट्रपति विक्रमासिंघे ने भी, विशेष रूप से सत्ता हस्तांतरण पर भारत द्वारा समर्थित 13वें संशोधन के क्रियान्वयन के संदर्भ में, जातीय मुद्दे पर एक सर्वदलीय बैठक बुलाई.
संकेतों की मानें तो राष्ट्रपति विक्रमसिंघे, जैसा कि सभी प्रमुख नीतिगत मुद्दों पर उनकी आदत रही है, पारदर्शिता और निरंतरता सुनिश्चित करने की दिशा में, भारत के साथ हस्ताक्षर किए गये कई समझौतों के लिए संसदीय अनुमोदन पाने की कोशिश करेंगे. जैसा कि श्रीलंका के उच्चायुक्त ने कहा कि, ‘श्रीलंका की भारत के आर्थिक विकास से फायदा उठाने और अपने वर्तमान आर्थिक संकट से बाहर निकलने की उम्मीदें सेतु मार्ग, पुल, पाइपलाइन, बिजली की लाइनों और लैंडिंग के बुनियादी ढांचे के निर्माण में सक्षम होने पर आधारित थीं, ताकि भारत से आवाजाही के क्रम को बढ़ाया जा सके’. भारत के विदेश सचिव विनय क्वात्रा के शब्दों में, ‘दोनों देश कोलंबो में राष्ट्रपति विक्रमसिंघे की दिल्ली यात्रा से पहले उनके साथ चर्चा के बाद द्विपक्षीय संबंधों में ‘सकारात्मक बदलाव’ की उम्मीद करते हैं.’
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N. Sathiya Moorthy is a policy analyst and commentator based in Chennai.
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