Author : Navdeep Suri

Published on Jul 01, 2022 Updated 0 Hours ago

प्रधानमंत्री मोदी का संयुक्त अरब अमीरात दौरा उनके उस यक़ीन का संकेत देता है कि दोनों देशों के बीच मज़बूत रिश्ते क़ायम किए जा सकते हैं.

प्रधानमंत्री मोदी का अबू धाबी दौरा: संयुक्त अरब अमीरात से क़रीबी संबंध के संकेत!

28 जून को प्रधानमंत्री मोदी कुछ घंटों के लिए संयुक्त अरब अमीरात की राजधानी के दौरे पर गए. 2014 में सत्ता संभालने के बाद से ये उनका चौथा संयुक्त अरब अमीरात दौरा था. इससे पहले वो अगस्त 2015, फरवरी 2018 और फिर अगस्त 2019 में वहां जा चुके हैं. अगर हम मोदी के इन चार दौरों को इस हक़ीक़त के बरक्स देखें कि 1981 में इंदिरा गांधी के संयुक्त अरब अमीरात दौरे के बाद 34 साल तक किसी भारतीय प्रधानमंत्री ने वहां का दौरा नहीं किया, तो इस खाड़ी देश के साथ भारत के रिश्तों में आया बदलाव काफ़ी असाधारण मालूम होता है.

ज़ाहिर है कि प्रधानमंत्री मोदी इस बार इसलिए अबू धाबी गए थे, ताकि वो शेख़ ख़लीफ़ा बिन ज़ायद अल नाहयान के देहांत पर शोक जता सकें और शेख़ मोहम्मद बिन ज़ायद अल नाहयान को अबू धाबी का शासक और संयुक्त अरब अमीरात का राष्ट्रपति बनने की मुबारकबाद दे सकें. अगर हम इसे केवल पारंपरिक प्रोटोकॉल के तौर पर देखें, तो प्रधानमंत्री मोदी का ये संयुक्त अरब अमीरात दौरा बिल्कुल ग़ैरज़रूरी मालूम होता है. शेख़ ख़लीफ़ा बिन ज़ायद अल नाहयान की मृत्यु के बाद उप-राष्ट्रपति वेंकैया नायडू भारत सरकार की तरफ़ से संयुक्त अरब अमीरात से शोक जताने के लिए 15 मई को अबू धाबी गए थे. एक असाधारण क़दम उठाते हुए, विदेश मंत्री डॉक्टर एस. जयशंकर ने ख़ुद दिल्ली में संयुक्त अरब अमीरात के दूतावास जाकर शोक जताया था.

प्रधानमंत्री मोदी इस बार इसलिए अबू धाबी गए थे, ताकि वो शेख़ ख़लीफ़ा बिन ज़ायद अल नाहयान के देहांत पर शोक जता सकें और शेख़ मोहम्मद बिन ज़ायद अल नाहयान को अबू धाबी का शासक और संयुक्त अरब अमीरात का राष्ट्रपति बनने की मुबारकबाद दे सकें.

साफ़ है कि दोनों देशों के संबंध अब कूटनीतिक प्रोटोकॉल के दायरों से कहीं आगे बढ़ चुके हैं. प्रधानमंत्री मोदी और शेख़ मोहम्मद के बीच आपसी गर्मजोशी और निजी घनिष्ठता बिल्कुल खरी और स्पष्ट रूप से ज़ाहिर होने वाली है. तीन साल पहले जब दोनों नेता अबू धाबी में मिले थे, तो संयुक्त अरब अमीरात ने प्रधानमंत्री मोदी को अपने सर्वोच्च नागरिक सम्मान, ऑर्डर ऑफ़ ज़ायद से सम्मानित किया था. तब नरेंद्र मोदी ने अगले साल जनवरी में दुबई एक्सपो में आने का वादा भी किया था. लेकिन, ओमिक्रॉन वेरिएंट के चलते कोविड-19 के संक्रमण में इज़ाफ़े के चलते, प्रधानमंत्री मोदी अपना ये वादा पूरा नहीं कर पाए थे. जर्मनी में G7 शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेने के बाद भारत लौटते वक़्त प्रधानमंत्री मोदी का कुछ घंटों के लिए अबू धाबी रुकना एक ऐसा मौक़ा था जब वो शेख़ मोहम्मद के साथ आमने सामने की मुलाक़ात कर सकें और अपने रिश्तों को मज़बूती देने के साथ-साथ शाही परिवार के अन्य सदस्यों से भी मुलाक़ात कर सकें. इनमें राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार और विदेश मंत्री भी शामिल थे.

दोनों देशों के मज़बूत होते आपसी संबंध

इस बीच, भारत और संयुक्त अरब अमीरात के रिश्ते नई नई मंज़िलें तय कर रहे हैं. इसी साल फरवरी में शेख़ मोहम्मद बिन ज़ायद और प्रधानमंत्री मोदी ने वर्चुअल वार्ता की थी, जो काफ़ी लंबी चली थी. इस दौरान दोनों देशों ने व्यापक आर्थिक साझेदारी के समझौते (CEPA) पर दस्तख़त किए थे. दोनों नेताओं ने भविष्य के लिहाज़ से बेहद अहम और एक महत्वाकांक्षी साझा विज़न स्टेटमेंट भी जारी किया था, जिसका नाम था; भारत और संयुक्त अरब अमीरात (UAE) की व्यापक सामरिक साझेदारी को आगे बढ़ाना: नए मोर्चे, नई मंज़िलें.  

आर्थिक साझेदारी का व्यापक समझौता (CEPA), भारत और संयुक्त अरब अमीरात के रिश्तों की एक बड़ी उपलब्धि है, जिसे सिर्फ़ 88 दिनों में अमली जामा पहना दिया गया और जिसके तहत दोनों देशों के व्यापार को अगले पांच वर्षों में 60 अरब डॉलर से बढ़ाकर 100 अरब डॉलर तक पहुंचाने का लक्ष्य रखा गया है. ये समझौता एक मई को लागू हो गया है, और इसने व्यापार कर के दायरे में आने वाले 97 फ़ीसद मामलों में बाज़ार में पहुंच के मामले में तरज़ीह देने की शुरुआत कर दी है. इसके दायरे में भारत से संयुक्त अरब अमीरात को निर्यात होने वाले 99 प्रतिशत सामान आते हैं. उम्मीद की जा रही है कि इस समझौते से भारत को हीरे-जवाहरात, कपड़े, चमड़े के सामान, फुटवियर, खेल के सामान, प्लास्टिक, फर्नीचर, कृषि और लकड़ी के उत्पाद, इंजीनियरिंग के उत्पाद, दवाओं और मेडिकल उपकरणों और ऑटोमोबाइल के निर्यात में बहुत मदद मिलेगी. इस समझौते से भारत के सर्विस सेक्टर को संयुक्त अरब अमीरात के सेवा क्षेत्र के 11 व्यापक सेक्टर के 111 उप-क्षेत्रों तक पहुंच बना पाने में आसानी होगी. 12 मई को संयुक्त अरब अमीरात के अर्थव्यवस्था मंत्री अब्दुल्ला बिन तौक़ के नेतृत्व में एक उच्च-स्तरीय प्रतिनिधिमंडल भारत के दौरे पर आया था. इसका मक़सद भारत में व्यापार और निवेश के नए अवसर तलाशना, भारत के कारोबारी नेताओं को इस समझौते की ख़ास बातें समझाना और छोटे व मध्यम दर्जे के उद्योगों को उनकी स्थिति का लाभ उठाने के नुस्खे बताना था. इस दौरे के दौरान ही डीपी वर्ल्ड और भारत की राष्ट्रीय कौशल विकास परिषद ने एक समझौते पर भी हस्ताक्षर किए जिसके तहत वाराणसी में स्थानीय युवकों को लॉजिस्टिक, बंदरगाह चलाने और संबंधित क्षेत्रों का प्रशिक्षण देने के लिए वाराणसी में स्किल इंडिया सेंटर की स्थापना करना था. इस प्रशिक्षण की मदद से ये युवक विदेशों में अपने लिए रोज़गार तलाश सकेंगे. इस समझौते पर भारत के केंद्रीय शिक्षा और कौशल विकास मंत्री धर्मेंद्र प्रधान, कौशल विकास और उद्यमिता के राज्य मंत्री राजीव चंद्रशेखर और संयुक्त अरब अमीरात के उद्यमिता और सूक्ष्म, लघु और मध्यम दर्जे के उद्योगों के राज्य मंत्री डॉक्टर अहमद बेल्हौल अल फलासी ने दस्तख़त किए थे.

आर्थिक साझेदारी का व्यापक समझौता (CEPA), भारत और संयुक्त अरब अमीरात के रिश्तों की एक बड़ी उपलब्धि है, जिसे सिर्फ़ 88 दिनों में अमली जामा पहना दिया गया और जिसके तहत दोनों देशों के व्यापार को अगले पांच वर्षों में 60 अरब डॉलर से बढ़ाकर 100 अरब डॉलर तक पहुंचाने का लक्ष्य रखा गया है.

दोनों देशों ने शिखर सम्मेलन के बाद जो विज़न स्टेटमेंट जारी किया था, उससे भी भारत और संयुकत् अरब अमीरात के बीच नए क्षेत्रों में साझेदारी के अवसर निकल रहे हैं. जो प्रस्ताव बड़ी तेज़ी से आगे बढ़ रहा है, वो, आईआईटी दिल्ली द्वारा संयुक्त अरब अमीरात में एक विश्वस्तरीय विदेशी कैंपस की स्थापना करना है. संयुक्त अरब अमीरात के जलवायु संबंधी दूत और उद्योग व उन्नत तकनीक मंत्री डॉक्टर सुल्तान अल जबर, जलवायु परिवर्तन पर एक सहमति पत्र पर दस्तख़त करने के लिए 26 मई को भारत के दौरे पर आए थे. उनका ये दौरा अबू धाबी में होने वाले अगले जलवायु सम्मेलन (COP28) से पहले हुआ. दोनों देशों के बीच बड़े पैमाने पर ग्रीन हाइड्रोजन के उत्पादन जैसे क्षेत्रों में सहयोग को लेकर भी बातचीत चल रही है.

क्षेत्रीय मोर्चे की बात करें, तो 2020 में अब्राहम समझौतों के बाद, संयुक्त अरब अमीरात और इज़राइल के रिश्ते बड़ी तेज़ी से सामान्य हो रहे हैं. इससे इज़राइल, भारत और संयुक्त अरब अमीरात के बीच आपस में और अन्य देशों के साथ मिलकर सहयोग के नए अवसर निकल रहे हैं. इज़राइल की कुछ तकनीकी कंपनियां पहले ही दुबई में अपने दफ़्तर स्थापित कर रही हैं, ताकि अपने यहां की ख़ास तकनीक को संयुक्त अरब अमीरात की पूंजी और भारत के श्रम की मदद से आगे बढ़ा सकें. अमेरिका ने एलान किया है कि अपने पश्चिमी एशिया दौरे के दौरान राष्ट्रपति जो बाइडेन, भारत, इज़राइल, अमेरिका और संयुक्त अरब अमीरात के बीच शिखर सम्मेलन में शामिल होंगे. इसे I2U2 की पहल का नाम दिया गया है. जब विदेश मंत्री एस. जयशंकर पिछले साल अक्टूबर में इज़राइल के दौरे पर गए थे, तब चारों देशों के विदेश मंत्रियों की पहली वर्चुअल बैठक हुई थी. इस बैठक में साझा व्यापार, तकनीक, परिवहन और मूलभूत ढांचे के विकास की परियोजनाओं में सहयोग पर विशेष ज़ोर दिया गया था. आज से कुछ साल पहले तक इन चार देशों के एक साथ आने की कल्पना तक नहीं की जा सकती थी. लेकिन अब्राहम समझौतों और इज़राइल के साथ संयुक्त अरब अमीरात से भारत के नज़दीकी संबंधों से सहयोग के नए दरवाज़े खुल रहे हैं.

उथल-पुथल भरा माहौल

ये सकारात्मक बदलाव उस उथल-पुथल के माहौल में हो रहे हैं, जब पैग़म्मद मुहम्मद के बारे में बीजेपी के दो पदाधिकारियों के विवादित बयानों से हंगामा खड़ा हो गया था. वैसे तो भारत के राजदूतों को तलब करके सख़्त बयान जारी करने में क़तर और कुवैत ने अगुवाई दिखाई थी. लेकिन, संयुक्त अरब अमीरात के विदेश और अंतरराष्ट्रीय मामलों के मंत्रालय ने इस मुद्दे पर 6 जून को जाकर बयान दिया था. इसमें संयुक्त अरब अमीरात ने बीजेपी के प्रवक्ताओं के विवादित बयानों की निंदा करते हुए ये कहा गया था कि, ‘संयुक्त अरब अमीरात का विदेश मंत्रालय धार्मिक प्रतीकों का सम्मान करने और उनकी मर्यादा न लांघने की आवश्यकता पर बल देता है. वहीं वो नफ़रत भरे बयानों और हिंसा से भी सख़्ती से निपटने की ताक़ीद करता है’. संयुक्त अरब अमीरात के विदेश मंत्रालय ने सहिष्णुता के मूल्यों का प्रचार करने और शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व की साझा अंतरराष्ट्रीय जवाबदेही की अहमियत पर भी बल देते हुए कहा कि ऐसे बर्तावों पर लगाम लगाने की ज़रूरत है, जो अलग अलग धर्मों के लोगों की आस्थाओं को भड़का सकते हैं.’ कुछ अन्य नाराज़ देशों की तुलना में संयुक्त अरब अमीरात ने न तो भारत के राजदूत को तलब किया और न ही सार्वजनिक रूप से माफ़ी मांगने की मांग उठाई.

क्षेत्रीय मोर्चे की बात करें, तो 2020 में अब्राहम समझौतों के बाद, संयुक्त अरब अमीरात और इज़राइल के रिश्ते बड़ी तेज़ी से सामान्य हो रहे हैं. इससे इज़राइल, भारत और संयुक्त अरब अमीरात के बीच आपस में और अन्य देशों के साथ मिलकर सहयोग के नए अवसर निकल रहे हैं.

पिछले कुछ वर्षों के दौरान, अरब देशों के बीच, संयुक्त अरब अमीरात, भारत का सबसे नज़दीकी साझीदार बनकर उभरा है और दोनों देशों के संबंध आज इतने मज़बूत हो चुके हैं कि वो पार्टी प्रवक्ताओं द्वारा दिए जाने वाले ऐसे किसी विवादित बयान के झटकों को आराम से झेल सकते हैं. इन प्रवक्ताओं के बयान इस बात का इशारा भी करते हैं कि इन्हें ये नहीं मालूम कि इस्लामिक देशों के बीच संयुक्त अरब अमीरात जैसे देश भारत को कितना समर्थन देते हैं. संयुक्त अरब अमीरात ने दिवंगत पूर्व विदेश मंत्री सुषमा स्वराज को अबू धाबी में हुए OIC के विदेश मंत्रियों की बैठक में विशेष मेहमान के तौर पर आमंत्रित किया था. इसी तरह जम्मू-कश्मीर से धारा 370 हटाने के मुद्दे पर भी संयुक्त अरब अमीरात मज़बूती से भारत के साथ खड़ा रहा है. कुल मिलाकर देखें तो अमीरात के आम नागरिकों के दिल दिमाग़ में बसी भारत की छवि को झटका लगा है. दुबई, अबू धाबी और अन्य अरब देशों में रह रहे हज़ारों भारतीय नागरिक भी ऐसे विवादित बयानों से भारत के हितों को होने वाले नुक़सान को लेकर नाख़ुश हैं. पहले तो इन दो प्रवक्ताओं ने विवादित बयान दिए. उसके बाद सोशल मीडिया पर दक्षिणपंथी ट्रोल्स ने भी इस्लाम के बारे में अभद्र बयान दिए. हो सकता है कि ये समाज के हाशिए पर पड़ा वर्ग ही हो. लेकिन, इस पर क़ाबू पाए जाने की ज़रूरत है.

28 जून को प्रधानमंत्री का संयुक्त अरब अमीरात दौरा और उनके नेता के साथ प्रधानमंत्री के अच्छे निजी संबंध, कुछ हद तक इस नुक़सान की भरपाई कर सकेंगे. लेकिन, इस घाव को भरने के लिए जनता के बीच लंबा कूटनीतिक प्रयास करना होगा. खाड़ी के अन्य देशों में तो भारत के लिए ये और बड़ी चुनौती होगा.

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