Author : Satish Misra

Published on May 21, 2019 Updated 0 Hours ago

राहुल गांधी बीएसपी प्रमुख की प्रशंसा यह भी संकेत दे रही है कि चुनाव के बाद दोनों दलों के बीच गठबंधन बहुत हद तक संभव है.

चुनाव बाद की तस्वीर: किन गठबंधनों को मिल सकता है, सरकार बनाने का मौका?

2014 के लोकसभा चुनावों में सत्ताधारी पार्टी बीजेपी स्पष्ट बहुमत प्राप्त करने और यहां तक ​​कि 282 संसदीय सीटें जीतने दावा कर रही है. परंतु शीर्ष भाजपा नेताओं के इन लंबे दावों के बावजूद, कुछ विपक्षी नेताओं ने जिस विश्वास के साथ केंद्र में गैर-बीजेपी के नेतृत्व वाली सरकार के गठन की संभावना को तलाशना शुरू कर दिया है, उससे यह स्पष्ट है कि सात चरणों में हुए मौजूदा आम चुनाव के नतीजे बेहद करीबी आने वाले हैं.

आमतौर पर अनुभवी और मंझे हुए राजनेता रडार की भांति जनता की नब्ज़ पकड़ने की अपनी क्षमता और सूक्ष्मभेदी विवेक के लिए जाने जाते हैं. भारतीय राजनेताओं का यह अंतर्निहित गुण चुनाव के पूर्व अपनी पार्टी के प्रति निष्ठा को ताक पर रखते हुए जनता के रुझान के अनुसार दल-बदल करते पाए जाते हैं.

इस संदर्भ में, 2013-14 में संसद भवन के अंदर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी और मीडियाकर्मियों के बीच हुई बातचीत यहां स्मरण किए जाने योग्य है, जिसके दौरान श्री गांधी ने स्वीकार किया था कि उनकी पार्टी 2014 का चुनाव हारने वाली है और इसलिए वह 2019 के लोकसभा चुनावों पर ध्यान केंद्रित करना चाहेंगे.

आंध्रप्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू और तेलंगाना के उनके समकक्ष के चंद्रशेखर राव (केसीआर) ने संभावित चुनावोत्तर परिदृश्य को देखते हुए सरकार बनाने की दिशा में आगे बढ़ना शुरू कर दिया है. इसी क्रम में चंद्रबाबू नायडू एसपी और बीएसपी अध्यक्ष अखिलेश यादव और मायावती, राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी अध्यक्ष शरद पवार, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, शरद यादव से मुलाकात कर चुके हैं. यहां यह कहना आवश्यक है कि नायडू कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी से भी लंबी मुलाकात कर चुके हैं. नायडू तृणमूल कांग्रेस की अध्यक्षा और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से भी टेलीफोन पर संपर्क में हैं. सरकार बनाने के संदर्भ में 23 मई को यूपीए गठबंधन की अध्यक्ष सोनिया गांधी द्वारा ग़ैर-भाजपा विपक्षी दलों के नेताओं को 23 मई को प्रस्तावित बैठक के लिए निमंत्रण भेजा जाना उल्लेखनीय है.

हालांकि, अगली सरकार किसकी बनेगी, वो इस पर निर्भर करेगा कि किस पार्टी को कितनी सीटें मिलती हैं. फिर भी केंद्र में किसी गैर-भाजपा सरकार फिर चाहे वह गैर-कांग्रेसी सरकार ही क्यों न हो के बनने की संभावना से पूरी तरह इंकार नहीं किया जा सकता है.

एक ओर केसीआर भाजपा और गैर-कांग्रेसी दलों का एक संघीय मोर्चा बनाने की कोशिश कर रहे हैं ताकि वो दोनों राष्ट्रीय दलों के साथ पर्याप्त लेन-देन कर सकें, वहीं दूसरी ओर नायडू गैर-भाजपा गठबंधन, जिसमें कांग्रेस भी शामिल है के आरंभिक संयोजन की दिशा में तेज़ी से आगे बढ़ने के लिए आगे आ चुके हैं.

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्य़मंत्रियों एसपी और बीएसपी के प्रमुख़ नेता अखिलेश यादव और मायावती जैसे नेता चुनाव का परिणाम आने पर प्रत्येक पार्टी को प्राप्त होने वाली सीटों की अंतिम टैली तय होने जाने की प्रतीक्षा करने के लिए इच्छुक दिखाई देते हैं और इसीलिए 23 मई से पहले इस संदर्भ में किसी बैठक बुलाए जाने के पक्ष में नहीं थे. ये तीनों नेता अपनी चुनावी ताकत को सुनिश्चित करके आगे बढ़ना चाहते हैं. इसी कारण से चंद्रबाबू नायडू ने 23 मई से पहले अपने पूर्व प्रस्तावित बैठक को ख़ारिज करते हुए सभी नेताओं से सीधा संपर्क साधा है. इससे यह स्पष्ट हो जाएगा कि परिणाम घोषित होने पर ये नेता कितने सशक्त और प्रभावशाली सिद्ध होंगे.

विशेष रूप से पश्चिम बंगाल की राजनीतिक स्थिति जटिल है क्योंकि भाजपा इस प्रदेश की कुल 42 लोकसभा सीटों में से आधे से अधिक जीतने का दावा पूरे ज़ोर-शोर के साथ कर रही है. इसीलिए ममता बनर्जी भविष्य की रणनीति तय करने के लिए अंतिम परिणाम आने तक प्रतीक्षा करना चाहती हैं.

इसके बीच, बीएसपी नेता मायावती चुनावी जोश में आ चुकी हैं और अंतिम तीन चरणों के चुनाव में आक्रामक हो गईं थीं. उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर हमले काफी तेज़ कर दिए थे. मायावती द्वारा मोदी के इस  सुझाव  पर कि वे राजस्थान में कांग्रेस सरकार से समर्थन वापस ले लें,  इस पर मायावती की तीख़ी प्रतिक्रिया दिलचस्प है. निस्संदेह, यह प्रतिक्रिया उनकी चुनाव के बाद की प्राथमिकता की ओर संकेत करती है.

इसी समय, राहुल गांधी द्वारा चुनाव-प्रचार समाप्त होने पर दिए गए साक्षात्कार और संवाददाता सम्मेलन में बीएसपी प्रमुख की प्रशंसा यह भी संकेत दे रही है कि चुनाव के बाद दोनों दलों के बीच गठबंधन बहुत हद तक संभव है. चुनाव से पहले मायावती द्वारा देश की सबसे पुरानी पार्टी पर किए गए हमलों के बावजूद कांग्रेस बीएसपी के साथ तालमेल बनाने में पूरी सावधानी बरत रही है.

दूसरी ओर, ख़ुद प्रधानमंत्री हैं जिन्होंने विपक्षी गठबंधनों को स्वभावत: अस्थिर कहने के बावजूद “गठबंधन चलाने की कला” को बखूबी जानने का दावा किया. बीजेपी नेताओं की गठबंधन बनाने और स्पष्ट बहुमत नहीं मिलने को लेकर आए दिन ज़ुबान फिसलने की घटनाओं से तीन संभावित परिदृश्य बनते दिखाई दे रहे हैं, जिसमें सत्ताधारी पार्टी अब भी अगली सरकार का नेतृत्व करने जा रही है या कर सकती है. सबसे पहला, यदि भाजपा के नेतृत्व वाला राजग स्पष्ट बहुमत पाने में विफल रहता है और 272 के जादुई आंकड़े से दो दर्जन सीटें कम लाता है, तो उस स्थिति में सत्ताधारी दल को टीआरएस, वाईएसआर कांग्रेस या अन्नाद्रमुक के कुछ सांसदों का समर्थन मिल सकता है. चक्रवात फनी से प्रभावित ओडिशा के पुनर्निर्माण के लिए पर्याप्त केंद्रीय सहायता प्राप्त करने की उत्कट आकांक्षा में ओडिशा की बीजेडी भी सरकार में शामिल होकर या बाहर से समर्थन दे सकती है.

दूसरा, यदि बीजेपी 80-100 सीटों के अंतर से बहुमत प्राप्त करने में पिछड़ जाती है, तो उस स्थिति में बीजेपी के लिए बहुमत के जादुई आंकड़े को छूना मुश्किल हो सकता है, फिर भी वह अपने संसाधनों और मानव प्रबंधन कौशल के साथ सरकार बनाने की कोशिश कर सकती है.

तीसरा, अगर भाजपा 100-120 सीटों से कम रह जाती है, तो उसे मोदी को प्रधानमंत्री बनाने के विचार का त्याग करना होगा और केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी या राजनाथ सिंह जैसे नेताओं को प्रधानमंत्री बनाने पर विचार करना पड़ सकता है. बीजेपी को कई मोर्चों पर समझौता करने की आवश्यकता होगी लेकिन वह सत्ता में बने रहने की पूरी कोशिश करेगी.

दूसरी तरफ कांग्रेस की अगुवाई वाला गठबंधन का बनना देश की सबसे पुरानी पार्टी – कांग्रेस द्वारा जीती जाने वाली सीटों की संख्या पर निर्भर करेगा. इसे पहले से ही आंध्र के मुख्यमंत्री एवं डीएमके के अध्यक्ष एम के स्टालिन का समर्थन कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को प्रधानमंत्री बनाने के लिए है. परंतु, ये तभी संभव है जब कांग्रेस 140 या उससे अधिक सीटों पर जीत हासिल कर सके.

हालांकि, कांग्रेस या भाजपा समर्थित तीसरे मोर्चे की सरकार बनने के परिदृश्य पर भी विचार किया जा सकता है, फिर भी इसके होने की संभावना प्रबल नहीं है.

हमारे देश के राजनेता यहां के लोगों की नब्ज़ पकड़ सकते हैं या फिर इसके उलट मतदाता उन्हें धोखा दे सकते हैं, अगले सरकार का स्वरुप यह साफ़ कर देगा.

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