Author : Sukrit Kumar

Published on Jun 05, 2019 Updated 0 Hours ago

कोलंबो बंदरगाह श्रीलंका का सबसे बड़ा बंदरगाह है, जहाँ से देश का 90% समुद्री माल गुजरता है. यह यूरोप, मध्य पूर्व, अफ्रीका और एशिया को जोड़ता है.

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भारत और जापान ने कोलंबो बंदरगाह में संयुक्त रूप से “ईस्ट कंटेनर टर्मिनल” विकसित करने के लिए श्रीलंका के साथ एक महत्वपूर्ण त्रिपक्षीय समझौता किया है. $ 500 मिलियन वाले इस विकास परियोजना का इस क्षेत्र के लिए बहुत ही ज़्य़ादा महत्व है. श्रीलंका सरकार ने परियोजना के विकास के बारे में चिंता व्यक्त की है. निक्की एशियन रिव्यू ने एक जापानी सूत्र के हवाले से कहा कि, “अगर कोलंबो के बंदरगाह के विकास में समय लगता है, तो माल को हंबनटोटा स्थानांतरित किया जा सकता है.”

श्रीलंका बंदरगाह प्राधिकरण (एसएलपीए) ने कहा कि कोलंबो बंदरगाह के ट्रांसशिपमेंट कारोबार (बड़े जहाजों से छोटे जहाजों में माल का परिवहन) का करीब 70 फीसदी भारत से संबंधित है जबकि, जापान 1980 से बंदरगाह कंटेनर टर्मिनल के निर्माण में सहयोग कर रहा है. इस समझौते के अनुसार, श्रीलंका बंदरगाह प्राधिकरण के पास ईस्ट कंटेनर टर्मिनल का 100 फीसदी का मालिकाना हक़ है. श्रीलंका की इसमें 51 फीसदी की हिस्सेदारी है और शेष 49 फीसदी भारत और जापान के बीच विभाजित है.

कोलंबो पोर्ट को व्यावसायिक रूप से सबसे व्यवहार्य परियोजना माना जाता है. इसने बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव के तहत चीन से लगभग 1.4 बिलियन डॉलर का निवेश आकर्षित किया है. श्रीलंका सरकार ने तीन टर्मिनल विकसित करने की योजना बनाई थी – दक्षिण, पश्चिम और पूर्व – जो बंदरगाह पर बड़े कंटेनर जहाजों को संचालित कर सकेगा. चाइना मर्चेंट होल्डिंग्स ने 2013 में साउथ टर्मिनल का विकास पूरा किया, जबकि भारत और चीन के बीच राजनयिक दांव-पेंच के कारण ईस्ट टर्मिनल पर काम ठप हो गया था.

कोलंबो बंदरगाह श्रीलंका का सबसे बड़ा बंदरगाह है, जहाँ से देश का 90% समुद्री माल गुजरता है. यह यूरोप, मध्य पूर्व, अफ्रीका और एशिया को जोड़ता है. इसने साल 2017 में 6.21m टीस का ट्रैफ़िक दिया, जिससे यह दक्षिण-पश्चिम एशिया का सबसे व्यस्त बंदरगाह बन गया. कोलंबो अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय शहर से लगभग 1.8 मील की दूरी पर स्थित है, जिसे पोर्ट सिटी के रूप में भी जाना जाता है. यह हंबनटोटा बंदरगाह से लगभग 100 मील की दूरी पर है, जो अब बीजिंग के नियंत्रण में है, 2017 में श्रीलंका सरकार ने बंदरगाह को 99 अरब डॉलर के अपने बकाया ऋण को इक्विटी में बदलने के लिए 99 साल के पट्टे में बंदरगाह को सौंप दिया था. बंदरगाह को ज़ब्त करने से बीजिंग को हिंद महासागर में एक अहम मुकाम हासिल करने का ज़रिया मिल गया है. बीजिंग ने हंबनटोटा को वन बेल्ट, वन रोड (OBOR, जिसे बेल्ट एंड रोड के नाम से भी जाना जाता है) पहल के रूप में विकसित किया. बीजिंग ने 2013 में OBOR को एशिया, यूरोप, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका के कुछ हिस्सों में बुनियादी ढाँचागत परियोजनाओं के निर्माण के माध्यम से भू-राजनीतिक प्रभाव बढ़ाने के लिए अपनी विदेशी नीति के तहत यह परियोजना शुरू की.

इस क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभाव को देखते हुए भारत और जापान ने बड़े परिपेक्ष्य में देखकर इस परियोजना में शामिल हुए है. प्राधिकरण ने कहा, “हिंद महासागर के केंद्र के रूप में, श्रीलंका का विकास और उसके बंदरगाहों का खुलना बहुत महत्व रखता है. कोलंबो बंदरगाह इस क्षेत्र का प्रमुख बंदरगाह है. यह संयुक्त परियोजना तीनों देशों के बीच लंबे समय से चले आ रहे सहयोग और बेहतर संबंधों को दर्शाती है.” इस पहल से भारत और जापान को इस क्षेत्र में रणनीतिक बढ़त मिलेगी.

भारत-जापान के अलावा इससे पहले श्रीलंका बंदरगाह प्राधिकरण के साथ चीन-क़तर-ईरान, ने कोलंबो बंदरगाह पर इस परियोजना को विकसित करने के लिए रुचि व्यक्त की थी.

हालाँकि, श्रीलंका में चीन का राजनीतिक रूप से विवादास्पद निवेश 2015 में एक चुनावी मुद्दा बन गया और राजधानी में राजनेताओं के बीच अंदरूनी कलह उत्पन्न हो गया था. भारत, अमेरिका और कई अन्य देश बीआरआई परियोजनाओं पर चिंताओं को उजागर कर रहे हैं जो कई छोटे देशों को कर्ज़ के जाल में छोड़ सकते हैं. चीन द्वारा श्रीलंका के हंबनटोटा बंदरगाह को 99 साल की लीज़ पर लेने के बाद यह चिंता और बढ़ गई.

इस क्षेत्र में जापान अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाने का लक्ष्य रखता है और इसीलिए वह अपनी स्वतंत्र और मुक्त प्रशांत महासागर और हिन्द महासागर रणनीति को आगे बढ़ाना चाहता है. भारत और जापान की भागीदारी इस परियोजना को चीन के बढ़ते प्रभाव को बेअसर करने के उद्देश्य से एक बड़े विकास के रूप में देखा जा रहा है, जिसने अपने व्यापक बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) इन्फ्रास्ट्रक्चर प्लान के तहत दक्षिण एशियाई द्वीप राष्ट्र में पैसा डाला है.

पिछले साल सितंबर में, श्रीलंका के राष्ट्रपति मैत्रीपाला सिरिसेना के भारत द्वारा पूर्व कंटेनर टर्मिनल में हिस्सेदारी दिए जाने के कथित विरोध ने राजनीतिक हंगामा खड़ा कर दिया था. सिरिसेना ने भारत की भागीदारी के खिलाफ यह तर्क दिया कि श्रीलंका के लिए यह अपने आप में लाभप्रद होगा. भविष्य में इस परियोजना में भारत की भागीदारी भी श्रीलंका के आंतरिक कलह का कारण बन सकता है.

यह एक ऐसा कदम है जो द्वीप राष्ट्र के बुनियादी ढ़ाँचे के विकास के साथ-साथ श्रीलंका को आर्थिक और सामरिक मामलों में भारत, जापान और अमरीका के करीब ले जायेगा और उसे चीन पर बढ़ती निर्भरता को कम करने में सहूलियत मिलेगा.

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