Expert Speak Raisina Debates
Published on Mar 19, 2024 Updated 0 Hours ago

हाल में हुए रूस के राष्ट्रपति चुनाव में व्लादिमीर पुतिन की ज़बरदस्त जीत के बावजूद, इन चुनावों में रूस के आम नागरिकों के सामाजिक बर्ताव में तेज़ी से आता हुआ बदलाव भी दिखा है.

रूस के चुनाव की राजनीति

2024 में पूरी दुनिया में सबसे ज़्यादा चर्चा चुनावों की है. इस महीने सबसे ज़्यादा सुर्ख़ियां भौगोलिक लिहाज़ से सबसे बड़े देश रूस के चुनावों ने बटोरीं. रूस में 15 से 17 मार्च के दौरान राष्ट्रपति के चुनाव कराए गए. लगभग 11.2 करोड़ रूसी नागरिकों ने इस चुनाव में अपने वोट डाले. इस चुनाव में सबसे पहले मतदान यूक्रेन के उन इलाक़ों में कराया गया, जिन पर रूस ने पिछले साल ही क़ब्ज़ा किया था. इसके साथ साथ रूस के दूर-दराज़ वाले इलाक़ों में भी वोटिंग कराई गई. इस बार के चुनाव में पुतिन की भारी जीत के बावजूद, रूस के आम नागरिकों के सामाजिक बर्ताव में तेज़ी से बदलाव आते देखे गए. जैसे कि युद्ध के ख़िलाफ़ बढ़ती नाराज़गी और आर्थिक मुश्किलें. इस वजह से रूस के राष्ट्रपति चुनाव में कुछ नए चलन भी देखने को मिले.

जनमत संग्रह के नतीजों से राष्ट्रपति पुतिन के दो और कार्यकालों के लिए चुनाव लड़ने का रास्ता खुल गया था. इस साल फरवरी में राष्ट्र के नाम सालाना संदेश में राष्ट्रपति पुतिन ने 2024 के लिए कई राष्ट्रीय परियोजनाओं का ऐलान किया था.

राष्ट्रपति चुनाव के उम्मीदवार

व्लादिमीर पुतिन, इस चुनाव में स्वतंत्र प्रत्याशी के तौर पर मैदान में उतरे थे; 2020 में कराए गए जनमत संग्रह के बाद ये पुतिन का पहला चुनाव था. उस जनमत संग्रह के नतीजों से राष्ट्रपति पुतिन के दो और कार्यकालों के लिए चुनाव लड़ने का रास्ता खुल गया था. इस साल फरवरी में राष्ट्र के नाम सालाना संदेश में राष्ट्रपति पुतिन ने 2024 के लिए कई राष्ट्रीय परियोजनाओं का ऐलान किया था. इसमें रूस के परिवारों और युवाओं को सरकार की तरफ़ से सामाजिक और वित्तीय मदद देना, उद्यमियों के लिए टैक्स में रियायतें और शिक्षा के मूलभूत ढांचे से जुड़ी परियोजनाओं पर अधिक रक़म लगाना शामिल था. इसके अलावा पुतिन ने रूस के अलग अलग क्षेत्रों पर केंद्र सरकार से लिए हुए क़र्ज़ के बोझ का कुछ हिस्सा माफ़ कर देने की घोषणा भी की, जिससे इन क्षेत्रों में परियोजनाओं पर ख़र्च करने के लिए और रक़म उपलब्ध हो सके.

राष्ट्रपति चुनावों में रूस के केंद्रीय चुनाव आयोग (CEC) ने केवल तीन उम्मीदवारों को पुतिन के ख़िलाफ़ मैदान में उतरने की इजाज़त दी थी: रूसी गणराज्य की कम्युनिस्ट पार्टी के निकोलाय खारितो नोव, नई नई बनाई गई न्यू पीपुल्स पार्टी के व्लादिस्लाव दवानकोव, और लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी के प्रत्याशी लियोनिद स्लटस्की.

खारितोनोव 1990 के दशक में रूसी संसद यानी ड्यूमा के सदस्य रहे थे और उन्होंने 2004 का चुनाव भी लड़ा था. उस चुनाव में खारितोनोव को 13.8 फ़ीसद वोट मिले थे. अपने प्रचार अभियान के दौरान बुज़ुर्ग खारितोनोव ने कामकाजी तबक़ की अधिकतम सीमा 60 से घटाकर 55 वर्ष करने और पेंशन के भुगतान में इज़ाफ़े का वादा किया था. खारितोनोव का मानना है कि रूस को विश्व व्यापार संगठन (WTO), अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) और दूसरे अंतरराष्ट्रीय संगठनों की सदस्यता से अलग हो जाना चाहिए, क्योंकि उनका दावा है कि इनसे रूस की आर्थिक संप्रभुता को चोट पहुंचती है.

सबसे अहम बात ये कि वो रूस की राजनीतिक व्यवस्था को लेकर बाक़ी राजनेताओं से अलग विचार रखते हैं. दवानकोव खुलकर पुतिन का समर्थन करते हैं.

लियोनिद स्लटस्की 2000 के दशक की शुरुआत से ही ड्यूमा के सदस्य हैं; LDPR के नेता व्लादिमीर झिरिनोवस्की के निधन के बाद, स्लटस्की को ही उनके गुट का नेता नियुक्त किया गया था. वो रूसी संसद यानी ड्यूमा की अंतरराष्ट्रीय मामलों की कमेटी के प्रमुख हैं और पुतिन की विदेश नीति का समर्थन करते हैं. 2022 की बसंत ऋतु में जब रूस और यूक्रेन के बीच बातचीत चल रही थी, तो स्लटस्की भी रूसी प्रतिनिधिमंडल का हिस्सा थे. टैक्स में रियायतों के साथ साथ स्लटस्की के चुनाव अभियान में खाने-पीने के सामान की क़ीमतें फिक्स करना, क़ीमतों की महंगाई का मुक़ाबला करना और सरकार की तरफ़ से घर उपलब्ध कराने जैसे वादे शामिल थे. चुनाव के अंतिम नतीजों के मुताबिक़ लियोनिद स्लटस्की को लगभग 2.5 प्रतिशत वोट हासिल हुए.

रूस के राष्ट्रपति चुनाव में सबसे युवा प्रत्याशी व्लादिस्लाव दवानकोव थे. उनका प्रचार अभियान सबसे अलग नज़र आया. रूसी ड्यूमा के सदस्य दवानकोव एक उदारवादी नज़रिया रखते हैं और वो LGBTQ समुदाय को अधिक अधिकार देने के हामी हैं; दवानकोव मानते हैं कि सियासी क़ैदियों को रिहा कर दिया जाना चाहिए और गर्भपात पर पाबंदी नहीं लगाई जानी चाहिए. सबसे अहम बात ये कि वो रूस की राजनीतिक व्यवस्था को लेकर बाक़ी राजनेताओं से अलग विचार रखते हैं. दवानकोव खुलकर पुतिन का समर्थन करते हैं. लेकिन, वो ये भी मानते हैं कि यूक्रेन से शांति वार्ता ज़रूरी है. चुनाव अभियानों में दवानकोव ने युद्ध को लेकर चर्चा से परहेज़ किया. लेकिन, उन्होंने रूसी सियासी व्यवस्था में ख़ुद को शांति समर्थक उम्मीदवार के तौर पर पेश किया था. अंतिम चुनाव नतीजों में व्लादिस्लाव दवानकोव को 3.6 प्रतिशत वोट हासिल हुए.

व्यवस्था के बाहर के प्रत्याशी

स्थापित सियासी व्यवस्था में रचे-बसे उम्मीदवारों की तुलना में कुछ राजनेताओं को सिस्टम के बाहर के नेता कहा गया. क्योंकि उनकी उम्मीदवारी नौकरशाही की कमियों जैसे कि दस्तावेज़ों की ग़लतियों या फिर अप्रमाणित दस्तख़त की वजह से रद्द कर दी गई थी. रूस में सत्ता के केंद्र क्रेमलिन का समर्थन होने के बावजूद समाज पर इन प्रत्याशियों का काफ़ी प्रभाव है. मौजूदा चुनावों में रूस के केंद्रीय चुनाव आयोग ने दो ऐसे नेताओं की उम्मीदवारी ख़ारिज कर दी, जिन्हें युद्ध का सख़्त विरोधी माना जाता है. इनमें रजेव से संसद की पूर्व सदस्य और सम्मानित पत्रकार एकाटेरिना दुंतसोवा हैं, जिन्होंने युद्ध और अपने देश द्वारा अपनाए गए रास्ते का खुलकर विरोध करने की वजह से काफ़ी शोहरत मिी थी. लेकिन, केंद्रीय चुनाव आयोग ने एकाटेरिना के दस्तावेज़ों में ख़ामियां बताकर उनकी उम्मीदवारी ख़ारिज कर दी थी. इसी तरह रूसी राजनीति के अनुभवी नेता बोरिस नदेझदिन का पर्चा भी दस्तख़त की पुष्टि होने के आधार पर ख़ारिज कर दिया गया. नदेझदिन भी शांति वार्ता के समर्थक हैं. मिखाइल खोदोरकोवस्की और एलेक्सी नवालनी के सहयोगियों का समर्थन होने के बावजूद, अफ़सरशाही की बाधाओं की वजह से नदेझदिन इस चुनाव में नहीं उतर सके.

हाल ही में दिए गए एक इंटरव्यू में दवानकोव ने भी नवालनी की मौत पर दु:ख जताया था. इसी से रूसी समाज पर नवालनी की मौत के असर का पता चलता है.

एलेक्सी नवालनी की मौत का असर

सियासी व्यवस्था के बाहर के प्रत्याशियों में से एक एलेक्सी नवालनी भी थी. इसी साल फरवरी में आर्कटिक क्षेत्र की एक जेल में उनकी मौत हो गई थी. नवालनी ने रूस में भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन चलाया था और उन्होंने रूसी समाज में एक नई परिचर्चा छेड़ने की कोशिश भी की थी. नवालनी को राजनीति से दूर रखने के लिए उनको तोड़-फोड़ के इल्ज़ाम में गिरफ़्तार कर लिया गया था, और बाद में उन्हें उग्रवाद के इल्ज़ाम में फरवरी में मौत होने तक क़ैद में रखा गया था. लोकतंत्र समर्थक नवालनी की मौत के बाद रूस में कई जगह उनकी याद में प्रदर्शन किए गए थे. हाल ही में दिए गए एक इंटरव्यू में दवानकोव ने भी नवालनी की मौत पर दु: जताया था. इसी से रूसी समाज पर नवालनी की मौत के असर का पता चलता है.

बढ़ती युद्ध विरोधी भावनाएं

रूस में युद्ध के ख़िलाफ़ जज़्बात बढ़ते जा रहे हैं, क्योंकि 2 लाख 44 हज़ार से ज़्यादा रूसी सैनिक यूक्रेन के मोर्चे पर तैनात हैं. सैनिकों की मौत की बढ़ती संख्या, एक बार फिर से फ़ौज में भर्ती का अभियान छिड़ने का डर और आर्थिक प्रतिबंधों के दबाव की वजह से युद्ध को लेकर रूस में हताशा घर कर रही है. रूस ने पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों के बावजूद अपनी अर्थव्यवस्था को स्थिर बनाने और अच्छी ख़ासी विकास दर हासिल करने में काफ़ी कामयाबी हासिल की है. पर, बाज़ार में उथल-पुथल और सेना में भर्ती के ख़ौफ़ की वजह से कामकाजी उम्र के लगभग पांच लाख रूसी नागरिकों ने देश छोड़ दिया है. बढ़ती महंगाई और रूबल के अवमूल्यन ने इन आर्थिक मुश्किलों को और बढ़ा दिया है. यही वजह है कि दवानकोव जैसे स्थापित तंत्र के उम्मीदवार अपनी सियासी उपयोगिता बनाए रखने में सफल रहे. जबकि वो शांति की वकालत कर रहे थे. इसी से रूसी समाज में युद्ध विरोधी भावनाओं का पता चलता है.

निष्कर्ष

2024 के राष्ट्रपति चुनावों ने रूस में एक बार फिर से पुतिन के नेतृत्व पर मुहर लगाई है, क्योंकि उन्होंने 87.97 प्रतिशत वोट हासिल किए. हालांकि, पुतिन के नेतृत्व में स्थिरता की मज़बूत ज़मीन के नीचे रूसी समाज में धीरे धीरे और छोटे स्तर पर ही सही, मगर बदलाव आते दिख रहे हैं. युद्ध विरोधी भावनाओं का प्रभाव, एलेक्सी नवालनी की हाल ही में हुई मौत और सियासी व्यवस्था के बाहर के उम्मीदवारों की मौजूदगी ये दिखाती है कि समाज में उभरते व्यवहारों में एक बदलाव तो रहा है. ये उभरते हुए आयाम एक ऐसे समाज का संकेत देते हैं, जहां विरोधी सुरों और वैकल्पिक नज़रियों की तादाद बढ़ती जा रही है.

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