Published on Jun 26, 2023 Updated 0 Hours ago
पद की प्रतिष्ठा से अतीत का आधुनिकीकरण: वर्तमान के लिए प्रधानमंत्री का बड़ा दांव

प्रधानमंत्री मोदी ने बड़ी कुशलता से अपने ओहदे और सोशल मीडिया जैसे आधुनिक माध्यमों का बख़ूबी इस्तेमाल करते हुए गुज़री हुई शताब्दियों के विचारों को मुख्यधारा में लाने और उन्हें वर्तमान के साथ जोड़ने के लिए इस्तेमाल किया है. योग, इंटरनेशनल ईयर ऑफ़ मिलेट्स 2023 और मिशन LiFE (Lifestyle for Environment) जैसे उदाहरणों के ज़रिए मोदी ने आज के दौर की चुनौतियों से निपटने के लिए पारंपरिक आदतों का बड़ी कामयाबी से इस्तेमाल किया है. इन परिवर्तनकारी प्रस्तावों को लागू करने में मोदी की कामयाबी, उनके दमदार व्याख्यान गढ़ने और परिवर्तन लाने वाले अपने विज़न के लिए जनता का समर्थन जुटा लेने से जुड़ी है. उन्होंने ख़ुद को एक ऐसे नेता के तौर पर साबित किया है, जो पारंपरिक सोच को चुनौती देने के लिए तैयार हैं, और फिर पूरी दुनिया में आम लोगों की ज़िंदगी में अर्थपूर्ण बदलाव लाने के लिए सोचा-समझा जोखिम लेने के लिए तैयार हैं.

योग का इस्तेमाल अंतरराष्ट्रीय कूटनीति के लिए करते हुए, मोदी ने भारत की सॉफ्ट पावर को दिखाया है, सांस्कृतिक आदान प्रदान को प्रोत्साहन दिया है और दुनिया को इससे जोड़ने के लिए इस्तेमाल किया है.

योग: आधुनिक कल्याण के लिए एक प्राचीन परंपरा का इस्तेमाल

आज दुनिया रहन सहन से जुड़ी बीमारियों के बोझ तले दबी जा रही है. ऐसे में प्राचीन आसनों, सांस लेने की वर्ज़िश और ध्यान वाली प्राचीन परंपरा यानी योग पूरी दुनिया में ख़ूब लोकप्रिय हो रहा है. 2014 में संयुक्त राष्ट्र महासभा में मोदी के भाषण के बाद, UN ने 2015 से 21 जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के रूप में मनाना शुरू किया था. इस वैश्विक मंच ने योग के पारंपरिक अभ्यास को आधुनिक विश्व तक पहुंचाया है, जिसमें आसानी से पहुंच, सबको साथ लेकर चलने और विज्ञान, अनुसंधान और तकनीक़ से जोड़ने पर ज़ोर दिया जाता है.

ट्विटर, फ़ेसबुक और यू-ट्यूब जैसे आधुनिक माध्यमों का इस्तेमाल करके, मोदी ने सक्रियता से अंतरराष्ट्रीय योग दिवस का प्रचार किया है और इसे पूरी दुनिया का जश्न बना दिया है. मोदी ने योग को एक आधुनिक, आसान और सहज उपलब्धता वाला अभ्यास बना दिया है, जो सांस्कृतिक और धार्मिक बंदिशों से बहुत आगे निकल गया है. योग का इस्तेमाल अंतरराष्ट्रीय कूटनीति के लिए करते हुए, मोदी ने भारत की सॉफ्ट पावर को दिखाया है, सांस्कृतिक आदान प्रदान को प्रोत्साहन दिया है और दुनिया को इससे जोड़ने के लिए इस्तेमाल किया है. इसके साथ साथ उन्होंने दुनिया की आबादी के एक अहम हिस्से के लिए, रहन-सहन के जोखिम कम करने में मदद की है. योग कूटनीति ने न केवल आपसी संबंधों को बढ़ावा दिया है, बल्कि, भारत की सकारात्मक छवि को भी आगे बढ़ाया है.

मोटे अनाज का पुनर्जन्म: खाने को सफ़ेद बनाने के चलन से दूरी

दुनिया पर ग़ैर संक्रामक बीमारियों (NCD) के बढ़ते बोझ का गहरा संबंध, खाद्य प्रसंस्करण उद्योग और इसके द्वारा बढ़ावा दिए जाने वाले खाने के चुनाव से है. भारत की कृषि परंपराओं में गहराई से जुड़े मोटे अनाज या मिलेट्स पोषण के फ़ायदे और टिकाऊ खेती-बाड़ी का विकल्प मुहैया कराते हैं. मोटे अनाजों में खाद्य सुरक्षा, पोषण और ग्रामीण विकास की चुनौतियों से निपटने की काफ़ी संभावनाएं हैं. इन्हें समझते हुए मोदी सरकार ने मिलेट्स के प्रयोग को बढ़ावा देने की मुहिम पर काफ़ी ज़ोर लगाया है. मोटे अनाज में अलग अलग तरह के खेती के माहौल में ढल जाने की क्षमता होती है. ये काफ़ी पोषक भी होते हैं और इसीलिए, ये पोषण हासिल करने के बेहद क़ीमती स्रोत हैं, ख़ास तौर से खाने के सीमित विकल्पों वाले समुदायों के लिए.

संयुक्त राष्ट्र ने 2023 को ‘इंटरनेशनल ईयर ऑफ़ मिलेट्स’ घोषित किया है, जिसका प्रायोजक भारत है. इसके ज़रिए टिकाऊ खेती, खाद्य सुरक्षा और लचीली खाद्य व्यवस्थाओं के लक्ष्य हासिल करने में मोटे अनाजों की महत्वपूर्ण भूमिका रेखांकित होती है.

संयुक्त राष्ट्र ने 2023 को ‘इंटरनेशनल ईयर ऑफ़ मिलेट्स’ घोषित किया है, जिसका प्रायोजक भारत है. इसके ज़रिए टिकाऊ खेती, खाद्य सुरक्षा और लचीली खाद्य व्यवस्थाओं के लक्ष्य हासिल करने में मोटे अनाजों की महत्वपूर्ण भूमिका रेखांकित होती है. राष्ट्रीय और वैश्विक मंचों का इस्तेमाल करते हुए प्रधानमंत्री मोदी और उनकी सरकार ने मोटे अनाजों के फायदों की जानकारी का प्रचार किया है. उनकी खेती और खाने में प्रयोग को बढ़ावा दिया है और मिलेट्स को मुख्यधारा की खाद्य व्यवस्थाओं से जोड़कर, खाद्य उद्योग को भी बेहद प्रसंस्कृत और कम पोषक खानों के बजाय, मिलेट्स पर आधारित तरह तरह की खाद्य सामग्री तैयार करने के लिए बढ़ावा दिया है.

मोटे अनाजों पर ध्यान केंद्रित करने का मतलब है, खाने में ‘सफ़ेदी बढ़ाने’ से दूरी बनाना और पूरा और कम से कम प्रसंस्कृत अनाज के इस्तेमाल को बढ़ाना है. ये बात, स्वस्थ खान-पान के विकल्प अपनाने और अधिक टिकाऊ खाद्य व्यवस्था बनाने से जुड़ी है, जो व्यक्तियों और पर्यावरण दोनों के लिए लाभप्रद है और इससे स्वास्थ्य व्यवस्थाओं पर पड़ रहा दबाव कम होता है. भारत की G20 अध्यक्षता के दौरान मिलेट्स को खाने के टिकाऊ और पोषक स्रोत के तौर पर प्रचारित करने के लिए काफ़ी प्रयास किए गए हैं. इस दौरान खाद्य सुरक्षा, खेती में विविधता लाने और लचीली खाद्य व्यवस्थाएं निर्मित करने में मोटे अनाजों की भूमिका पर काफ़ी ज़ोर दिया जा रहा है. 

मिशन LiFE: पर्यावरण के प्रति जवाबदेही की पुकार

ज़रूरत से ज़्यादा खपत और ख़ूब सामान जुटाने का लालच, पर्यावरण के स्थायित्व के लिए चुनौतियां खड़ी करता है. बेहिसाब सामान जुटाने की लगातार कोशिशें और सिर्फ़ क़ीमती चीज़ों को ही मूल्यवान मानने की सोच एक ऐसे दुष्चक्र को बढ़ावा देते हैं, जो टिकाऊ नहीं है. चुनौती इस बात में है कि पर्यावरण संरक्षण के लिए सोच-समझकर और तार्किक तरीक़े से खपत को बढ़ावा देने के साथ साथ बेहिसाब खपत को बढ़ावा देने वाले मनोवैज्ञानिक कारणों से निपटा जाए. स्थायित्व हासिल करने के लिए सामाजिक मूल्यों और लोगों के बर्ताव में बदलाव लाना होगा, ताकि वो सोच-समझकर खपत करें और ज़रूरत से ज़्यादा इस्तेमाल करने की संस्कृति के दुष्चक्र से दूर हों. 

इस बदलाव के प्रति दुनिया का ध्यान खींचते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने मिशन LiFE की परिकल्पना दी और उसे प्रोत्साहित कर रहे हैं. इस परिकल्पना में टिकाऊ खपत और उत्पादन के लिए व्यक्तिगत और सामाजिक बर्ताव में बदलाव लाने को लेकर प्रतिबद्धता ज़ाहिर होती है. मोदी ने अपील की, कि LiFE को एक वैश्विक जन आंदोलन बनाया जाए जिसमें, बेलगाम और तबाही लाने वाली खपत की जगह, सोच-समझकर और अच्छे से चुनाव करके पर्यावरण का इस्तेमाल करने को बढ़ावा दिया जाए. ये प्रस्ताव 2021 में ग्लासगो में हुए जलवायु सम्मेलन (COP26) में पेश किया गया था और ये भारत की G20 अध्यक्षता से भी मेल खाता है, जिसमें राष्ट्र के विकास और वैश्विक कार्रवाई के लिए LiFE और ज़िम्मेदारी भरे फ़ैसलों पर ज़ोर दिया गया है.

लोगों के रोज़मर्रा के जीवन में छोटे छोटे क़दम उठाने वाले उपायों को बढ़ावा देकर, LiFE की कोशिश है कि वो वैश्विक स्तर पर जलवायु परिवर्तन की समस्या से निपटने में महत्वपूर्ण ढंग से योगदान दे सके. ये मिशन सामाजिक नियमों को प्रभावित करने के लिए सोशल नेटवर्क का इस्तेमाल करने और ‘प्रो प्लानेट पीपुल’ (P3) के नाम से एक वैश्विक समुदाय की रचना करने का इरादा रखता है, जो पर्यावरण के लिए उचित रहन सहन अपनाने और उसको बढ़ावा देने को लेकर प्रतिबद्ध हों. ये अभियान व्यक्तिगत और सामुदायिक बर्ताव पर ध्यान केंद्रित करता है. दुनिया भर में विशेषज्ञों से सुझाव मांगता है और अलग अलग संस्कृतियों में प्रचलित पर्यावरण के लिहाज़ से उपयुक्त रीति रिवाजों और परंपराओं का फ़ायदा उठाता है.

अपने पूरे कार्यकाल के दौरान प्रधानमंत्री मोदी, इस दौर के राजनेताओं के आम बर्ताव को चुनौती देते रहे हैं. इसके लिए वो समुदायों को एकजुट करके उनसे, मौजूदा स्थिति बनाए रखने के बजाय ‘जीवन जीने की शैली बदलने’ की अपील करते रहे हैं.

मोदी सरकार ने LiFE को बढ़ावा देने और लोगों के साथ साथ संस्थानों को पर्यावरण के प्रति ज़िम्मेदारी भरा व्यवहार करने को बढ़ावा देने के लिए अलग अलग मंचों का इस्तेमाल किया है. व्यक्तिगत चुनावों और उसके पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभावों के बीच संबंध पर ज़ोर देकर प्रधानमंत्री मोदी ने, वैश्विक पर्यावरण और जलवायु संकट से निपटने का लक्ष्य रखा है. LiFE को शिक्षा में शामिल करके और सोशल मीडिया के ज़रिए जागरूकता बढ़ाकर, मोदी सरकार एक ज़्यादा हरे-भरे, स्वच्छ और अधिक ऊर्जावान भविष्य को बढ़ावा देना चाहती है.

प्राचीन ज्ञान को दोबारा जीवित करने और लोकप्रिय बनाने के लिए आधुनिक माध्यमों का इस्तेमाल करके और इस तरह वर्तमान के साथ एक सांस्कृतिक निरंतरता का भाव पैदा करके, प्रधानमंत्री मोदी परंपरा और प्रगति के बीच एक संतुलत बना पाने में सफल रहे हैं. उन्होंने ये सुनिश्चित किया है कि प्राचीन काल के विचारों को मुख्यधारा में लाकर तेज़ी से बदल रहे समाज की विविध ज़रूरतों के साथ जोड़ा जा सके. अपने पूरे कार्यकाल के दौरान प्रधानमंत्री मोदी, इस दौर के राजनेताओं के आम बर्ताव को चुनौती देते रहे हैं. इसके लिए वो समुदायों को एकजुट करके उनसे, मौजूदा स्थिति बनाए रखने के बजाय ‘जीवन जीने की शैली बदलने’ की अपील करते रहे हैं. मोदी ने मौजूदा मूल्यों का संरक्षण करने के बजाय लोगों का बदलाव लाने के लिए आह्वान करके बड़ा सियासी जोख़िम लिया है. और, मज़े की बात ये है कि इसके बावजूद वो पूरी दुनिया में व्यापक असर छोड़ पाने में सक्षम रहे हैं.

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Authors

Shoba Suri

Shoba Suri

Dr. Shoba Suri is a Senior Fellow with ORFs Health Initiative. Shoba is a nutritionist with experience in community and clinical research. She has worked on nutrition, ...

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Oommen C. Kurian

Oommen C. Kurian

Oommen C. Kurian is Senior Fellow and Head of Health Initiative at ORF. He studies Indias health sector reforms within the broad context of the ...

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