Author : Kabir Taneja

Published on Sep 26, 2022 Updated 0 Hours ago

SCO को आतंकवाद के खिलाफ किसी भी संभावित सूची को तैयार करने के लिए इसे परिभाषित करने के तरीके पर आम सहमति बनानी होगी.

SCO की संभावित आतंकवाद सूची की भावी डगर कठिन

वर्ष 2022 में उज्बेकिस्तान के ऐतिहासिक शहर समरकंद में शंघाई सहयोग संगठन (SCO) के शिखर सम्मेलन का आयोजन ऐसे वक्त में किया गया, जब अंतरराष्ट्रीय राजनीति दबाव के दौर से गुजर रही थी. अधिकांश देश कोविड-19 महामारी के बाद लग रहे झटकों को झेल रहे थे.  इसी बीच रूस ने यूक्रेन पर आक्रमण कर दिया. सात माह गुजरने के बाद भी इस संकट का अंत दिखाई नहीं दे रहा है. इस संकट ने अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था और अर्थव्यवस्था दोनों को ही तगड़ा झटका देते हुए पश्चिमी देशों और रूस-चीन की अगुवाई वाले राजनीतिक पर्याय के बीच की खाई पर पड़ रहे दबाव को और भी बढ़ा दिया है.

SCO की ओर से जारी संयुक्त बयान के अनुसार SCO के आगे बढ़ने के उद्देश्यों में से एक इस बहुपक्षीय ढांचे के तहत आतंकवादी संगठनों और व्यक्तियों को नामित करने का एक तंत्र विकसित करना है. बयान में कहा गया है कि, ‘‘सदस्य देश, अपने राष्ट्रीय कानून के अनुसार और आम सहमति के आधार पर, उन आतंकवादी, अलगाववादी और चरमपंथी संगठनों की एक एकीकृत सूची बनाने के लिए सामान्य सिद्धांतों और दृष्टिकोणों को विकसित करने की कोशिश करेंगे, जिनकी गतिविधियां SCO सदस्य देशों के क्षेत्रों में प्रतिबंधित हैं.’’

हालांकि इस तरह की ढांचागत प्रणाली को विकसित करने की आकांक्षापूर्ण धारणा के बावजूद एक बहुपक्षीय समूह के तहत ऐसी सूची तैयार करने की कोशिश करना एक बेहद मुश्किल काम है. इस बात को सही परिप्रेक्ष्य में इस तरह देखा जा सकता है. जिस दिन SCO ने इस तरह का तंत्र विकसित करने का संयुक्त बयान जारी किया, उसी दिन 26/11 के मुंबई हमलों में अपनी भूमिका के लिए वांछित  पाकिस्तान स्थित लश्कर-ए-तैयबा (एलईटी) के आतंकवादी साजिद मीर को ब्लैक लिस्ट में डालने के लिए संयुक्त राष्ट्र (यूएन) में अमेरिका और भारत के नेतृत्व में आए एक प्रस्ताव को चीन ने अटका दिया. 26/11 भारत की धरती पर किया गया सबसे बड़ा दुस्साहासी हमला था. भारत के साथ ही चीन और पाकिस्तान दोनों ही SCO के सदस्य हैं.

सदस्य देश, अपने राष्ट्रीय कानून के अनुसार और आम सहमति के आधार पर, उन आतंकवादी, अलगाववादी और चरमपंथी संगठनों की एक एकीकृत सूची बनाने के लिए सामान्य सिद्धांतों और दृष्टिकोणों को विकसित करने की कोशिश करेंगे, जिनकी गतिविधियां SCO सदस्य देशों के क्षेत्रों में प्रतिबंधित हैं.

आतंकवाद के लिए आवश्यक भू-राजनीति, राजनीतिक रूप से काफी जटिल

भले ही आतंकवाद को लगातार वैश्विक सुरक्षा के सामने मौजूद सबसे बड़ी चुनौती माना जाता हो, लेकिन इससे निपटने के लिए आवश्यक भू-राजनीति, राजनीतिक रूप से काफी जटिल है. यह राजनीति इतनी जटिल है कि अपनी स्थापना के सात दशकों बाद भी संयुक्त राष्ट्र अब तक आतंकवाद की परिभाषा को लेकर सहमति नहीं बना सका है. राजनयिक ढांचे की इस भूल का लाभ उठाकर विभिन्न देश अल्पावधि के लिए खुद का वर्चस्व साबित करने का प्रयास करते रहते हैं. कुछ ताजा उदाहरणों में फरवरी 2021 में यमन के हूती आतंकियों को यूएस ने यह कहते हुए सूची से बाहर कर दिया कि यमन में गृहयुद्ध की वजह से गहरा मानवीय संकट है. लेकिन इसके पीछे की कहानी यह थी कि अमेरिका ईरान के साथ अटके पड़े परमाणु समझौते को आगे बढ़ाना चाहता था. इसलिए ही उसने हूती आतंकियों के प्रति सहानुभूति रखने वाले ईरान को रणनीतिक जगह मुहैया करवाने के लिए ऐसा किया था. इसी तरह का एक और उदाहरण है कि चीन को लक्षित कर चलने वाले उइगर आतंकवादी संगठन ईस्ट तुर्किस्तान इस्लामिक मूवमेंट (ईटीआईएम) को सूची से बाहर करने का यूएस का फैसला. वाशिंगटन ऐसा करते हुए, चीन के साथ महाशक्ति की तेज होती प्रतिद्वंद्विता में चीन पर दबाव डालने की कोशिश कर रहा था.

इसी परिप्रेक्ष्य में ही उत्तरी सीरिया में सक्रिय इस्लामिक आतंकी समूह हयात तहरीर अल-सलाम (एचटीएस), जिसे पूर्व में आईएसआईएस और अलकायदा से जोड़ा गया था, के नेता ने एक साक्षात्कार में एचटीएस को आतंकी संगठन घोषित किए जाने का विरोध किया था. एचटीएस के नेता, अबु मोहम्मद अल-जुलानी, उत्तरी सीरिया के उस हिस्से को नियंत्रित करते हैं, जहां पिछले कुछ दिनों में आईएसआईएस के हाई प्रोफाइल नेताओं का खात्मा हुआ है. ऐसे में यह सवाल उठता है कि क्या अपने संगठन को ‘सामान्य’ बनाने की कोशिशों और इसे सुधरा हुआ साबित करने के प्रयासों में, एचटीएस कहीं आईएसआईएस नेतृत्व को लक्षित कर उनके खात्मे की पश्चिमी कोशिशों की सहायता तो नहीं कर रहा है. और यदि यह बात सही है तो यह आतंकवाद के खिलाफ सहयोग को लेकर बहुपक्षीय कूटनीतिक बातचीत में कैसे फिट बैठती है. क्योंकि अब आतंकवाद का खतरा इस्लामिक आतंकवाद और दक्षिणपंथी आतंकवाद के बीच वैचारिक रूप से विस्तारित होता जा रहा है. इसके साथ ही चरमपंथी समूहों को अब आधुनिक तकनीक और सूचना के नए संसाधन, जैसे मैसेजिंग ऐप और सोशल मीडिया से लेकर ड्रोन तक उपलब्ध होने लगे है.

यह सवाल उठता है कि क्या अपने संगठन को ‘सामान्य’ बनाने की कोशिशों और इसे सुधरा हुआ साबित करने के प्रयासों में, एचटीएस कहीं आईएसआईएस नेतृत्व को लक्षित कर उनके खात्मे की पश्चिमी कोशिशों की सहायता तो नहीं कर रहा है.

यहां साफ कर दें कि आधार स्तर पर स्वीकार की जाने वाली आतंकवाद की परिभाषा सार्वभौमिक है. 9/11 जैसे हमलों ने दिखाया कि अलकायदा की आलोचना करने में सभी देशों और वैचारिक सरकारों ने सहयोग का रुख अपनाया था. लेकिन कम वैश्विक स्तर पर आतंकवाद की परिभाषा अस्पष्ट हो जाती है. इसका उपयोग देश, सरकारें आदि अपने- अपने रणनीतिक आवश्यकताओं के अनुसार करते हुए या तो इसे अपनाते है या फिर इससे पल्ला झाड़ लेते हैं. यह स्थिति चीन और पाकिस्तान की ओर से यूएन में किए गए साजिद मीर के बचाव में दिखाई दी, जहां दोनों देशों के रणनीतिक हितों ने वैश्विक स्तर पर आतंकवाद को केवल हिंसा के रूप में देखकर उसकी निंदा करने से रोक दिया. यहां इस बात की ओर भी ध्यान आकर्षित करना जरूरी है कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर दशकों से भारत के सबसे महत्वपूर्ण सहयोगी रहे रूस ने कभी भी यूएन में नई दिल्ली को सबसे ज्यादा वांछित आतंकवादियों अथवा आतंकी समूह जैसे एलईटी, जैश-ए-मोहम्मद आदि को ब्लैक लिस्ट में डालने अथवा प्रतिबंधित करने के किसी प्रस्ताव को प्रायोजित नहीं किया है.

SCO को आतंकवाद, आतंक फैलाने वाले अथवा आतंकी समूहों की कोई भी संभावित सूची बनाने के लिए पहले अपने समूह के परिप्रेक्ष्य को ध्यान में रखकर इस बात पर सहमति बनानी होगी कि ‘आतंकवाद’ क्या है. चूंकि इसके सदस्यों में पाकिस्तान, चीन और भारत शामिल हैं, अत: नई दिल्ली के खिलाफ इस्लामाबाद के राज्य प्रायोजित आतंकवाद और इसे चीन की ओर से दक्षिण एशिया के एक अहम क्षेत्र में अपना प्रभाव बरकरार रखने के लिए दिया जा रहे समर्थन को देखते हुए इस पर आम सहमति बनने की बात असंभव सी दिखाई दे रही है. अनेक देश संभवत: अल कायदा, आईएसआर्ईएस, आईएस खोरसान (आईएसकेपी) को दंडित करने के लिए तैयार भी हो जाएंगे और अफगानिस्तान से निकलने वाले आतंकवाद के खिलाफ संयुक्त लड़ाई के लिए भी तैयार हो जाएंगे. लेकिन अन्य समूहों को अन्य देशों की ‘राज्य नीतियों’ में बाधा डालने के लिए छोड़ दिए जाने से SCO के दायरे में इस तरह की सूची का कोई महत्व नहीं रह जाएगा. इसी वजह से SCO 2022 के बयान में ‘‘राष्ट्रीय कानून’’ और ‘सहमति’’ को सूची बनाने के मुख्य सिद्धांत कहा जाना एक समस्या बन जाता है. SCO की क्षेत्रीय आतंकवाद विरोधी संरचना (आरएटीएस) में पाकिस्तान भी शामिल है. अत: ऐसे में यह तथ्य साफ है कि ऐसी सूची जिसके तहत होगी वह संरचना पहले से ही कमजोर पड़ी हुई है. यह दर्शाता है कि SCO जैसे इकोसिस्टम भारत की कूटनीति के लिए महत्वपूर्ण तो हैं, लेकिन आतंकवादरोधी नीति का पहले घरेलू और क्षेत्रीय प्रभाव पड़ता है और इसके बाद ही यदि उसका कोई अंतरराष्ट्रीय प्रभाव हो तो उस अंतर्राष्ट्रीय प्रभाव का नंबर आता है. इस वर्ष ईरान के भी SCO का पूर्ण सदस्य बन जाने से यह मामला आगे जाकर और भी जटिल हो जाएगा.

एक तर्क यह भी दिया जा रहा है कि है कि आतंकवाद के खिलाफ छोटे बहुपक्षीय अथवा ‘मिनिलैटरल’ पहलों में समझौता हो सका तो इसके सहयोग से तेज परिणाम मिल सकते हैं.

आतंकवाद के खिलाफ छोटे बहुपक्षीय पहल

इससे संबंधित एक तर्क यह भी दिया जा रहा है कि है कि आतंकवाद के खिलाफ छोटे बहुपक्षीय अथवा ‘मिनिलैटरल’ पहलों में समझौता हो सका तो इसके सहयोग से तेज परिणाम मिल सकते हैं. एक व्यापक समस्या के रूप में आतंकवाद की तुलना में एक क्षेत्रीय परिप्रेक्ष्य से आतंकवाद राजनीतिक (इसमें शामिल प्रत्येक देश के लिए), भू-राजनीतिक और भौगोलिक रूप से आवेशित करने वाला मुद्दा है और इस पर संयुक्त राष्ट्र जैसे बड़े ढांचे या महाशक्ति की प्रतिस्पर्धा की छतरी के तहत आतंकवादरोधी अभियान पर व्यापक परिणाम हासिल किए जा सकते हैं. हाल ही में रूस और यूक्रेन के द्वारा एक दूसरे के खिलाफ किये गए ‘आतंकवाद’ शब्द का प्रयोग यह दिखाता है कि यह शब्दावली अब कमजोर पड़ गई है. और यह केवल इस वक्त यूरोप में हो रही गतिविधियों की दृष्टि से ही सच नहीं है, बल्कि दुनिया के अन्य हिस्सों पर भी यह बात लागू होती है.
अंत में भारत को एसीसीओ की अगुवाई में आतंकवाद सूची बनाने को लेकर किए जा रहे प्रयासों को लेकर उत्साहित होने के साथ ही सतर्क भी रहना होगा.इस तरह की सूची को यदि कार्यात्मक और उपयोगी होना है तो पाकिस्तान और चीन जैसे SCO सदस्यों को आतंकवाद के खिलाफ अपने मजबूत संकल्प को रेखांकित करते हुए संयुक्त राष्ट्र में मीर की ब्लैकलिस्टिंग को अवरुद्ध करने जैसा कदम उठाने से खुद को रोकना होगा. इस बात की भी बहुत संभावना है कि इस तरह की सूची, SCO के लिए ज्यादातर मार्केटिंग प्रस्ताव के काम आएगी, लेकिन ऐतिहासिक रूप से बहुपक्षीय समूहों के हिस्से के रूप में वास्तविक आतंकवाद सूचियों को निष्पादित करना बहुत मुश्किल रहा है.

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