आधुनिक मुकाबलों में जैविक युद्ध को लेकर हमेशा सरकारों और आम लोगों की तरफ से एक साथ तीखी प्रतिक्रिया आई है. लेकिन जो राजनीतिक शक्ति से प्रेरित होते हैं और उसके लिए अपने दृष्टिकोण को सही ठहराते हैं वो अक्सर जैविक हथियारों और उनके इस्तेमाल से कम प्रभावित होते हैं.
जैव सुरक्षा की वैश्विक व्यवस्था
जैविक युद्ध को कम संभावना लेकिन अधिक असर के साथ युद्ध का एक रूप माना जाता है यानी किसी हमले में जैविक हथियारों के इस्तेमाल का दायरा कम हो सकता है लेकिन अगर हथियार का नुकसान (वायरुलेंस) अधिक है तो हमले का असर ज़्यादा हो सकता है. जैव हथियारों को सामूहिक विनाश के हथियार (WMD) के दायरे के तहत आम तौर पर बड़ा ख़तरा नहीं माना जाता है. जैविक हथियार सम्मेलन (BWC) जैसी अंतर्राष्ट्रीय संधियों के होने की वजह से जैविक हथियारों के उपयोग की आशंका कम है. BWC ऐसी संधि है जो जैविक हथियारों के विकास, उत्पादन और हासिल करने को रोकती है.
लेकिन केवल समझौते अचूक सिस्टम नहीं मुहैया करा सकते हैं. इंटरपोल जैसे संगठनों के माध्यम से अंतर्राष्ट्रीय सहयोग भी जैविक हथियारों से जुड़ी सामग्रियों के अवैध व्यापार का मुकाबला करने के लिए ज़रूरी है. इन वैश्विक संगठनों ने पहले ही इनके प्रशासन से जुड़े अहम दस्तावेज़ और उपकरण जारी किए हैं ताकि जैविक ख़तरों को नियंत्रित करने में सूचना साझा करने, परिचालन से जुड़े समर्थन और छानबीन से जुड़े समर्थन की निगरानी की जा सके. इनमें वैश्विक जैव सुरक्षा कार्यक्रम, पुलिस के आंकड़े एवं प्रबंधन विश्लेषण, एनिमल एग्रोक्राइम (पशुओं से जुड़े अपराध) और एग्रोटेररिज़्म (कृषि को नष्ट करने की कोशिश) शामिल हैं जिन्हें इंटरपोल ने जारी किया है. इसके अलावा संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) ने अपने प्रस्ताव 1540 (2004) के ज़रिए हस्ताक्षर करने वालों को संकल्प दिलाया कि वो गैर-सरकारी तत्वों (नॉन-स्टेट एक्टर्स) को परमाणु, जैविक और रसायनिक हथियारों के निर्माण में योगदान देने वाली सामग्री हासिल करने से रोकें. समय-समय पर इस प्रस्ताव को दोहराया जाता है और हाल के समय में 2022 में इसे दोहराया गया था. 2016 में UNSC ने प्रसार के ख़िलाफ़ अपनी कोशिशों को आगे बढ़ाने के लिए प्रस्ताव 2325 को अपनाया.
जैविक हथियार सम्मेलन (BWC) जैसी अंतर्राष्ट्रीय संधियों के होने की वजह से जैविक हथियारों के उपयोग की आशंका कम है. BWC ऐसी संधि है जो जैविक हथियारों के विकास, उत्पादन और हासिल करने को रोकती है.
वैश्विक प्रशासन के इन तौर-तरीकों में अलग-अलग देश वैश्विक स्वास्थ्य सुरक्षा में सहयोग, तालमेल और निगरानी में जुड़ते हैं. इनमें खुफिया जानकारी साझा करना, पर्याप्त निर्यात नियंत्रण को लागू करना और सीमा सुरक्षा को मज़बूत करना शामिल है. महामारी की निगरानी और जानकारी देने समेत वैश्विक स्वास्थ्य सुरक्षा को बढ़ाने की कोशिशें संक्रामक बीमारियों के प्रसार को रोकने में भूमिका निभाती हैं जिसका गैर-सरकारी तत्व फायदा उठा सकते हैं. इस तरह गैर-सरकारी तत्व आम तौर पर जैव सुरक्षा से जुड़े बड़े ख़तरे नहीं हैं.
ऊपर बताई गई संधियों और प्रस्तावों के बावजूद बायोटेक्नोलॉजी में प्रगति और दोहरे इस्तेमाल की तकनीकों की बढ़ती उपलब्धता ने कम रोकथाम के तरीकों के साथ जैविक हथियारों के अनियंत्रित इस्तेमाल और रिसर्च के बारे में चिंताएं बढ़ा दी हैं. नॉन-स्टेट एक्टर्स बैक्टीरिया या वायरस जैसे प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले जैविक हथियारों को हासिल करने की कोशिश कर सकते हैं और ग़लत उद्देश्यों से उनका इस्तेमाल कर सकते हैं.
पंथ, आतंकवाद और जैव हथियार
जैव आतंकवाद के गैर-सरकारी उपयोगकर्ता बहुत कम हैं या कम-से-कम इस तरह के हमलों का दोष गैर-सरकारी तत्वों पर शायद ही कभी मढ़ा गया है. इसका इस्तेमाल आतंकवाद के लिए होने के बदले अपराध के लिए रहा है. लेकिन ऐसे हमलों का परिणाम राजनीतिक और बड़े पैमाने पर रहा है. उदाहरण के लिए 1984 में अमेरिका के ओरेगन से चलने वाले रजनीश के पंथ ने अपने पक्ष में स्थानीय चुनाव को प्रभावित करने के लिए साल्मोनेला एंटेरिका नाम के एक जीवाणु को फैलाने की कोशिश की. इस पंथ के पास एक क्लिनिक की सुविधा होने के कारण एक व्यावसायिक किसान के माध्यम से बीज जीवाणु (सीड बैक्टीरिया) तक उसकी पहुंच थी. इस प्रकोप ने 751 लोगों को संक्रमित किया लेकिन प्रशासन पंथ में इस बीमारी के सुराग का पता नहीं लगा सका. जब दूसरी आपराधिक गतिविधि के लिए उनकी छानबीन की गई तो पंथ के क्लिनिक में साल्मोनेला के समान स्ट्रेन का पता चला. आख़िर में पंथ के कुछ सदस्यों ने सीड बैक्टीरिया का इस्तेमाल करके बीमारी फैलाने का आरोप स्वीकार किया.
पंथ के द्वारा जैव हथियारों के उपयोग का एक और मामला जापान में कुख्यात ओम शिनरिक्यो का था. ये पंथ कथित तौर पर 1990-1995 के बीच जैविक हथियारों के कार्यक्रम में लगा हुआ था. मार्च 1995 में सरीन गैस का इस्तेमाल करके टोक्यो सबवे में हमले की नाकाम कोशिश के बाद ही इस कार्यक्रम का पता चला था. छानबीन करने वालों ने तब जैविक हमलों के तीन असफल प्रयासों का पता लगाया जिनमें से एक एंथ्रैक्स के हमले का था. वैसे तो इस पंथ और इसके जैव हथियारों के कार्यक्रम के इर्द-गिर्द जानकारी अभी भी बंटी हुई है लेकिन एंथ्रैक्स का उपयोग करने और इबोला वायरस हासिल करने की उसकी कोशिशें अधिक महत्वपूर्ण नहीं तो लगातार हमलों के संकेत हैं.
इसका इस्तेमाल आतंकवाद के लिए होने के बदले अपराध के लिए रहा है. लेकिन ऐसे हमलों का परिणाम राजनीतिक और बड़े पैमाने पर रहा है.
1999 में अल-क़ायदा ने कंधार में स्थित एक प्रयोगशाला में जैविक हथियार विकसित करने के लिए एक जीवविज्ञानी को नियुक्त किया. ये संगठन कथित तौर पर एक बायोकेमिस्ट के साथ जुड़ा था जो एंथ्रैक्स के एक घातक स्ट्रेन को अलग कर रहा था. 2016 में बेल्जियम की पुलिस के एक कथित “आधिकारिक आंतरिक दस्तावेज़” में इस्लामिक स्टेट के द्वारा जैविक हथियार की गतिविधियों के शक का दावा किया गया. लेकिन अमेरिका की होमलैंड सिक्युरिटी ने ऐसे दावों का खंडन किया और दस्तावेज़ की प्रामाणिकता की अभी तक पुष्टि नहीं हुई है.
घरेलू जैव सुरक्षा में बढ़ोतरी
ऊपर बताए गए मामले BWC जैसे अंतर्राष्ट्रीय तालमेल के बाद भी सामने आए हैं. BWC जैसे वैश्विक नियंत्रण के उपकरण ये सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक हैं कि जैविक हथियारों का इस्तेमाल युद्ध में नहीं हो और दूसरी व्यवस्थाएं जैसे कि जैविक विविधता सम्मेलन (CBD) व्यापार एवं पर्यावरण से जुड़ी ज़िम्मेदारी और जवाबदेही पर निगरानी के लिए ज़रूरी है लेकिन इनके तहत गैर-जवाबदेह पक्षों जैसे कि ऊपर बताए गए गैर-सरकारी तत्व के लिए जैव सुरक्षा नहीं आती है.
इसके अलावा सभी मामलों की एक और साझा विशेषता है. सभी गैर-सरकारी तत्व बिना किसी सुराग के नुकसानदेह जैविक एजेंट तक पहुंच बनाने में सफल रहे. नाकाम हमलों या सदस्यों की स्वीकारोक्ति के माध्यम से पता चलने पर उन्हें केवल और अधिक रिसर्च एवं उपयोग से रोका गया.
जैविक हथियारों पर अवैध रिसर्च और उनके उपयोग की पहचान करने में पुलिस प्रशासन और संधियों की नाकामी और ज़्यादा सख्त जैव सुरक्षा के उपायों की ज़रूरत को उजागर करती है. वैसे तो इंटरपोल के पास जैव आतंकवाद को रोकने के लिए विशेष कार्यक्रम और नियम हैं लेकिन मज़बूत जैव सुरक्षा के उपायों को एक घरेलू क्षमता में नुकसानदेह एजेंट तक पहुंच से रोकथाम और नियंत्रित भी करना चाहिए. जैविक सामग्रियों और प्रयोगशाला तक बिना इजाज़त पहुंच को रोकने के लिए मज़बूत जैव सुरक्षा के उपायों की आवश्यकता महत्वपूर्ण है. जैविक एजेंट का सुरक्षित संचालन, भंडारण और परिवहन इन सामग्रियों के गलत हाथों में पड़ने के ख़तरे को कम कर सकता है.
गैर-सरकारी तत्वों तक जैविक हथियारों की उपलब्धता को रोकने के लिए राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर एक व्यापक और समन्वित प्रयास की आवश्यकता है. इसमें मूल कारणों का समाधान करने, जैव सुरक्षा के उपायों को बेहतर बनाने और संभावित ख़तरों का पता लगाने और उसका जवाब देने के लिए अंतर्राष्ट्रीय सहयोग बढ़ाना शामिल है. जैविक हथियारों के प्रसार के साथ जुड़े जोखिमों को कम करने के लिए लगातार चौकसी और उभरती तकनीकों के मुताबिक ढलना महत्वपूर्ण है.
जैविक युद्ध के द्वारा पैदा ख़तरे दूसरे WMD की तुलना में अधिक आसानी से उपलब्ध हैं और इनका तब तक आसानी से पता नहीं लगाया जा सकता जब तक कि इनके असर को रोकने में देरी न हो जाए.
पहला कदम BWC के तहत सभी हस्ताक्षर करने वाले देशों में जैव सुरक्षा एजेंसी की स्थापना करना होगा जो नुकसानदेह जैविक एजेंट के ट्रांसफर, व्यापार और ख़रीद को लेकर किसी भी गड़बड़ी के बारे में इंटरपोल को रिपोर्ट करेगी. ये एजेंसियां किसी घरेलू जैव सुरक्षा एजेंसी के साथ तालमेल के तहत अलग काम करेंगी. इसके अलावा इन एजेंसियों को इटली की G7 अध्यक्षता के तहत जैव सुरक्षा काम-काजी समूह पर वैश्विक साझेदारी (ग्लोबल पार्टनरशिप ऑन बायोसिक्युरिटी वर्किंग ग्रुप) के द्वारा पहचान की गई निम्नलिखित व्यवस्था देखनी होगी:
-
जैविक प्रसार का ख़तरा पैदा करने वाली सामग्रियों की सुरक्षा और निगरानी.
-
ये सुनिश्चित करने के लिए स्थानीय जैव सुरक्षा प्रयोगशाला के साथ बातचीत कि सभी सामग्रियों और जैविक एजेंट का हिसाब रखा गया है और अचानक गैर-सरकारी तत्वों तक उपलब्धता को रोकने के लिए उनके निपटारे की मानक (स्टैंडर्ड) पद्धति है.
-
कुशल व्यवस्था (प्रोटोकॉल) तैयार करना और बनाए रखना ताकि जैविक एजेंट के जान-बूझकर दुरुपयोग को रोका जा सके, पहले से अंदाज़ा लगाया जा सके, पता लगाया जा सके और नाकाम किया जा सके.
-
जैविक एजेंट पर अवैध रिसर्च की तुरंत पहचान करने के लिए घरेलू और वैश्विक क्षमताओं को बढ़ाना.
जैविक युद्ध के द्वारा पैदा ख़तरे दूसरे WMD की तुलना में अधिक आसानी से उपलब्ध हैं और इनका तब तक आसानी से पता नहीं लगाया जा सकता जब तक कि इनके असर को रोकने में देरी न हो जाए. वैसे तो अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और संधियां एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं लेकिन अलग-अलग देशों को जैव सुरक्षा पर निगरानी करने और लोगों, पशुओं एवं फसलों को जैविक हमलों से बचाने के लिए एजेंसियां भी बनानी चाहिए. एक अलग उपाय होना चाहिए जो गैर-सरकारी तत्वों तक सीमित पहुंच, लीकेज को रोकने और जैविक एजेंट के सही डिस्पोज़ल को सुनिश्चित करने के लिए एजेंसियों के साथ तालमेल करते हुए लीकेज, रिसर्च और दवा बनाने एवं खाद्य सुरक्षा में विकास के रूप में हादसों पर ध्यान दे. उभरते ख़तरों को लेकर सक्रिय कदम उठाकर और सतर्क रहकर हम जैविक युद्ध के साथ जुड़े जोखिमों को कम कर सकते हैं और दुनिया की सुरक्षा कर सकते हैं.
श्राविष्ठा अजय कुमार ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन के सेंटर फॉर सिक्युरिटी, स्ट्रैटजी एंड टेक्नोलॉजी में एसोसिएट फेलो हैं.
The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.