Author : Soumya Bhowmick

Published on Jul 19, 2023 Updated 0 Hours ago
अस्थिर पाकिस्तानी रुपया: उतार चढ़ाव भरा सफर

अक्टूबर 2022 में, पाकिस्तानी रुपया (पीकेआर) एक शानदार उपलब्धि की ओर बढ़ रहा था क्योंकि इसमें 3.9 प्रतिशत की बढ़ोतरी देखी गई, जो पीकेआर 219.92 प्रति डॉलर तक पहुंच गया. इस सकारात्मक प्रवृत्ति का श्रेय अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) और विदेशी निवेशकों द्वारा पर्याप्त विदेशी मुद्रा निवेश की उम्मीद को दिया गया लेकिन दुर्भाग्य से उस समय वित्त मंत्रालय पीकेआर की आने वाली अस्थिरता का अनुमान लगाने में नाकाम रहा. इसके बाद फरवरी 2023 में पाकिस्तानी रुपये में भारी गिरावट का अनुभव हुआ जो 275.5 पीकेआर प्रति डॉलर की दर तक गिर गया और इसके चलते बाज़ार में भारी अफरा-तफरी मच गई.

दुर्भाग्य से  पाकिस्तान में तेज़ी से अस्थिर घरेलू स्थिति पैदा होती गई, जिसने एक निश्चित विनिमय दर, अंतर्राष्ट्रीय तनाव और कोविड-19 महामारी के साथ मिलकर देश को एक अपरिहार्य मुद्रा संकट की स्थिति में धकेल दिया.

दुनिया भर में 1960 के दशक से मुद्रा संकट आम हो गया है क्योंकि इसके बाद से ब्रेटन वुड्स प्रणाली के तहत निश्चित विनिमय दरों के मानदंड ने मुद्राओं को स्पेक्यूलेटिव अटैक के प्रति कुछ ज़्यादा ही संवेदनशील बना दिया था. हालांकि, यह विनिमय दर व्यवस्था नहीं थी बल्कि अर्थव्यवस्था की अंतर्निहित घरेलू संरचना थी जिसने करेंसी को गिरने के लिए प्रेरित किया. दुर्भाग्य से  पाकिस्तान में तेज़ी से अस्थिर घरेलू स्थिति पैदा होती गई, जिसने एक निश्चित विनिमय दर, अंतर्राष्ट्रीय तनाव और कोविड-19 महामारी के साथ मिलकर देश को एक अपरिहार्य मुद्रा संकट की स्थिति में धकेल दिया. 

चित्र1. पाकिस्तान रुपया प्रति अमेरिकी डॉलर (2010- फरवरी 2023 )

स्रोत: Council on Foreign Relations

पाकिस्तान में ईंधन, खाद्य तेल और दालों सहित ज़रूरी आयात की जाने वाली वस्तुओं की बढ़ती क़ीमतों ने सरकार पर भारी बोझ डाल दिया है. इसका नतीज़ा यह हुआ कि देश बढ़े हुए चालू खाते घाटे और राजकोषीय ख़र्च से जूझ रहा है, जिससे चुनौतियां बढ़ती ही जा रही हैं. यह स्थिति लगातार लागत-प्रेरित मुद्रास्फीति के लंबे समय से चले आ रहे मुद्दे को बढ़ावा दे रही है, जिससे बाज़ार पर हावी होने का ख़तरा पैदा हो रहा है. इसके अलावा, स्थानीय उत्पादकों को इनपुट की बढ़ती लागत के कारण उत्पादन जारी रखना अव्यवहार्य लगता जा रहा है. पाकिस्तान का विदेशी मुद्रा भंडार तेज़ी से घट रहा है और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) से कोई प्रत्यक्ष सहायता नहीं मिलने के कारण देश के नागरिकों को बड़े पैमाने पर मानवीय संकट का सामना करना पड़ रहा है.

सीएडी और बीओपी की कमज़ोरियां

करेंट अकाउंट डेफिसिट (सीएडी) का निरंतर उच्च स्तर पर बना रहना टिकाऊ नहीं है और बैलेंस ऑफ पेमेंट (बीओपी) (भुगतान संतुलन) को लेकर अहम समस्याओं का यह कारण बनता है. उच्च सीएडी एक संकट पैदा कर सकता है क्योंकि सट्टेबाज़ विदेशी मुद्रा भंडार में गिरावट की आशंका से मुद्रा को डंप कर देते हैं, जिससे केंद्रीय बैंक मुद्रा की सुरक्षा करने में असमर्थ हो जाता है. इसके अलावा, ऋणग्रस्तता के पैमाने पर हानिकारक प्रभाव देश के वित्त को कमज़ोर करता है और अंतर्राष्ट्रीय ऋण तक पहुंच को कठिन बना देता है. राजनीतिक उथल-पुथल भी जोख़िम के प्रीमियम को तेज़ी से बढ़ा देता है और केंद्रीय बैंक को विदेशी पूंजी को आकर्षित करने के लिए प्रतिबंधात्मक मौद्रिक नीतियों को लागू करने के लिए मज़बूर होना पड़ता है जो समस्याओं को और बढ़ा देती है.

चित्र 2: पाकिस्तान की राष्ट्रीय सुर्खियां मुद्रास्फीति (वर्ष-दर-वर्ष) कोविड-19 से पहले और बाद में

स्रोत: The World Bank

जनवरी 2023 में आईएमएफ ऋण कार्यक्रम को फिर से शुरू करने की कोशिशों के तहत यूएसडी-पीकेआर विनिमय दर पर सीमा को हटाने के बाद, पीकेआर में एक महत्वपूर्ण गिरावट दर्ज़ की गई, जो रिकॉर्ड निचले स्तर पर पहुंच गया. हालांकि यहां ध्यान देना ज़रूरी है कि पाकिस्तान की मुद्रा चुनौतियों का विस्तार उसके हालिया राजनीतिक और आर्थिक मंदी से कहीं आगे तक फैली हुई है. अमेरिकी डॉलर, यूरो और भारतीय रुपये जैसी अन्य प्रमुख मुद्राओं के मुक़ाबले पाकिस्तानी रुपये का अवमूल्यन 2018 की शुरुआत से जारी है. यह बदलाव तब हुआ जब डॉलर के मुक़ाबले पीकेआर ने एक प्रबंधित विनिमय दर प्रणाली से एक फ्री-फ्लोटिंग एक्सचेंज में ख़ुद को बदल लिया. 

पाकिस्तान को आईएमएफ के अत्यधिक ऋण देने से भी सावधान रहना चाहिए क्योंकि बड़ी पूंजी का प्रवाह लंबे समय में बीओपी व्यवहार्यता को कमज़ोर कर सकता है. देश की ऋण संरचना को देखते हुए यह संभावना है कि पैसों का उपयोग खपत को बढ़ावा देगा और मौज़ूदा ऋण दायित्वों को पूरा करने के लिए इसका इस्तेमाल किया जाएगा. संपत्तियों का ऐसा इस्तेमाल उत्पादक क्षमता में वृद्धि नहीं करता है  और अर्थव्यवस्था कम रिटर्न की ओर बढती जाती है. ऐसे में लंबे समय में  बाहरी धन प्राप्त करना कठिन हो जाता है क्योंकि विदेशी मुद्रा अर्जित करने की क्षमता उत्पन्न करने में विफलता देश को डिफॉल्टर बना देती है. इसलिए  सरकार द्वारा लिए गए किसी भी अतिरिक्त ऋण का उपयोग क्षेत्रों की उत्पादक क्षमता पर पूरा ध्यान देते हुए ही किया जाना चाहिए.

मुद्रास्फीति का दबाव

2021 के अंत तक  पीकेआर में बहुत गिरावट आई थी जो पिछले वर्ष की तुलना में अमेरिकी डॉलर के मुक़ाबले 160 रुपये से गिरकर 176 रुपये हो गया था. रुपये के मूल्य में इस अचानक गिरावट के लिए कई फैक्टर्स की भूमिका रही थी. अगस्त 2021 में अमेरिकी सेना की वापसी के बाद पड़ोसी अफ़ग़ानिस्तान में बैंकिंग प्रणाली का पतन इसकी एक अहम वज़ह थी, इसके अलावा आवश्यक वस्तुओं के लिए आयात पर पाकिस्तान की अत्यधिक निर्भरता ने आपूर्ति-मांग अंतर को भी बढ़ा दिया था जिससे पाकिस्तानी मुद्रा पर और दबाव पड़ा. 2022 की विनाशकारी बाढ़ और अन्य राजनीतिक परिस्थितियों ने भी स्थिति को और ख़राब किया, जिससे देश का विदेशी मुद्रा संकट और बढ़ता चला गया.

विनिमय दरों में 200 रुपये की सीमा में उतार-चढ़ाव के साथ, पाकिस्तान को एक संघर्षरत मुद्रा और उसके बाद आयात में वृद्धि का सामना करना पड़ रहा है, जिससे मुद्रास्फीति लगातार बढ़ रही है और ग़रीबी के स्तर में भी बढ़ोतरी हो रही है. पाकिस्तान में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) 2023 में साल-दर-साल 27.5 प्रतिशत बढ़ गया. वित्तीय वर्ष 2022-23 के पहले सात महीनों के लिए औसत मुद्रास्फीति दर 25.4 प्रतिशत थी, जबकि इसी अवधि के दौरान पिछले वर्ष यह 10.3 प्रतिशत थी. आईएमएफ को खुश करने और ईएफएफ कार्यक्रम को फिर से शुरू करने के प्रयास में  शरीफ के नेतृत्व वाली सरकार ने ईंधन और ऊर्जा की क़ीमतें बढ़ा दी और ज़्यादा टैक्स को लागू किया, जिससे मुद्रास्फीति का दबाव लगातार बढ़ता चला गया. ईंधन की क़ीमतों में वृद्धि ने बिजली की कमी को पैदा किया जिससे प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को आकर्षित करने मे व्यवधान पैदा होने लगे.

उच्च मांग और कम आपूर्ति के कारण डिमांड-पुल इनफ्लेशन की प्रवृत्ति चल रही है. बंदरगाहों पर आयात रुका हुआ है, जिससे देश में डॉलर की कमी बढ़ गई है. यह स्थिति बढ़ती मुद्रास्फीति में योगदान देती है और उपभोक्ताओं की आय और बचत को बुरी तरह प्रभावित करती है.

इसके अलावा, पाकिस्तान गंभीर गेहूं संकट का सामना कर रहा है, जिससे कुछ प्रांतों में जमाखोरी और भगदड़ की स्थिति पैदा हो गई है क्योंकि सरकार 160 पीकेआर प्रति किलोग्राम तक सब्सिडी वाले आटे को मुहैया कराने में संघर्ष कर रही है. उच्च मांग और कम आपूर्ति के कारण डिमांड-पुल इनफ्लेशन की प्रवृत्ति चल रही है. बंदरगाहों पर आयात रुका हुआ है, जिससे देश में डॉलर की कमी बढ़ गई है. यह स्थिति बढ़ती मुद्रास्फीति में योगदान देती है और उपभोक्ताओं की आय और बचत को बुरी तरह प्रभावित करती है. ऐसे में निष्कर्ष के तौर पर कहा जा सकता है कि पाकिस्तान का मुद्रा संकट घरेलू राजनीतिक और आर्थिक चुनौतियों, अंतर्राष्ट्रीय तनाव, प्राकृतिक आपदाओं और कोरोना महामारी के स्थायी प्रभाव में निहित है. 

बढ़ती मुद्रास्फीति से निपटने और पीकेआर को स्थिर करने के लिए  स्टेट बैंक ऑफ पाकिस्तान ने ब्याज दर में 300 आधार अंकों की बढ़ोतरी की है जिसके परिणामस्वरूप जनवरी 2022 से 1,050 आधार अंकों की क्यूम्युलेटिव (संचयी) वृद्धि हुई है. हालांकि  2023 की शुरुआत तक  देश का विदेशी मुद्रा भंडार कम हो गया है. जो 3.09 बिलियन अमेरिकी डॉलर के साथ 10 साल के निचले स्तर तक पहुंच गया है. लगातार मुद्रास्फीति की प्रवृत्ति और घटते विदेशी मुद्रा भंडार के चलते पाकिस्तान में घोर मानवीय संकट पैदा हो गया है  और इसलिए पाकिस्तान में गंभीर स्थिति से निपटने के लिए तत्काल वित्तीय उपायों की आवश्यकता है.

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