इस्लामाबाद में पिछले कई दिनों से चला आ रहा सियासी घमासान नेशनल असेंबली में अविश्वास प्रस्ताव के वोटिंग के साथ खत्म हो गया. तमाम कोशिशों के बावजूद इमरान खान अपनी सरकार बचाने में नाकाम रहे. संसदीय परंपरा के मुताबिक अब सोमवार को नेशनल असेंबली नए प्रधानमंत्री का चुनाव करेगी. यह चर्चा है कि पाकिस्तान मुस्लिम लीग नवाज़ के अध्यक्ष शहबाज़ शरीफ़ देश के अगले प्रधानमंत्री हो सकते हैं. संयुक्त विपक्ष उनके नाम पर राजी हो सकता है. शाहबाज के लिए अभी चुनौतियों कम नहीं हुई हैं. नए प्रधानमंत्री के समक्ष देश की आंतरिक और वाह्य चुनौतियों की भरमार होगी. ऐसे में सवाल उठता है कि पाकिस्तान के नए निज़ाम के भारत के साथ कैसे रिश्ते होंगे? इसके साथ यह देखना भी दिलचस्प होगा कि रूस यूक्रेन जंग के दौरान नई सरकार अमेरिका और मास्को के साथ अपने संबंधों का कैसे निर्वाह करती है? आर्थिक मोर्चे पर भी उनकी चुनौतियां विकराल है. आर्थिक रूप से तंग हो चुके पाकिस्तान को उबारने के लिए उनके पास क्या रोडमैप है? पाकिस्तान की राजनीति में फौज़ एक बड़ा फैक्टर है, ऐसे में यह अहम होगा कि वह सेना के साथ किस तरह से संतुलन स्थापित करते हैं.
सवाल उठता है कि पाकिस्तान के नए निज़ाम के भारत के साथ कैसे रिश्ते होंगे? इसके साथ यह देखना भी दिलचस्प होगा कि रूस यूक्रेन जंग के दौरान नई सरकार अमेरिका और मास्को के साथ अपने संबंधों का कैसे निर्वाह करती है?
1- प्रो हर्ष वी पंत का कहना है कि पाकिस्तान के पूरे राजनीतिक घटनाक्रम पर भारत की नज़र रही होगी. उन्होंने कहा कि पाकिस्तान में चाहे जिसकी भी हुकूमत हो दोनों देशों के संबंधों में बहुत फर्क नहीं पड़ता. उन्होंने कहा कि इसकी एक बड़ी वज़ह है. पाकिस्तान में वैदेशिक संबंधों में सरकार का दखल कम और सेना का प्रभाव ज्यादा रहता है. ख़ासकर भारत-पाकिस्तान के संबंधों में तो फौज़ ही तय करती है. उन्होंने कहा कि कश्मीर विवाद के बाद फौज़ का दखल बढ़ा है. इसलिए पाकिस्तान में सरकार चाहे जिसकी हो भारत और पाकिस्तान के संबंधों पर बहुत असर पड़ने वाला नहीं है.
जनता का ध्यान भटकाने की कोशिश
2- उन्होंने कहा पाकिस्तान राजनीतिक और आर्थिक मोर्चे दोनों पर जूझ रहा है, ऐसे में यह हो सकता है कि सरकार पाक नागरिकों का ध्यान बांटने के लिए भारत के संबंधों को आगे ला सकती है. उन्होंने कहा कि अक्सर यह देखा गया है कि पाकिस्तान सरकार और फौज़ देश की आंतरिक समस्याओं से आम जनता का ध्यान हटाने के लिए ऐसी हरकत करते हैं. कई बार तो इसके गहरे परिणाम भी देखे गए हैं. प्रो पंत ने कारगिल युद्ध को इसी कड़ी से जोड़कर कहा कि यह युद्ध कहीं से जायज नहीं था, लेकिन तत्कालीन सैन्य सरकार ने ऐसा किया. इसका मकसद भी यही था कि देश की जनता आंतरिक समस्या के बजाए पाक भारत युद्ध में उलझ जाए.
अक्सर यह देखा गया है कि पाकिस्तान सरकार और फौज़ देश की आंतरिक समस्याओं से आम जनता का ध्यान हटाने के लिए ऐसी हरकत करते हैं. कई बार तो इसके गहरे परिणाम भी देखे गए हैं.
3- प्रो पंत ने कहा कि फिलहाल नई सरकार के पास बड़ी चुनौतियां हैं. ऐसे में यह उम्मीद की जाती है कि नई सरकार पहले अपने आंतरिक चुनौतियों से निपटेगी. उन्होंने कहा कि वित्तीय कार्रवाई कार्य बल (एफएटीएफ) का कोड़ा भी नई सरकार के समक्ष होगा. पाकिस्तान को जून 2018 में ग्रे सूची में डाला था. अक्टूबर 2018, 2019, 2020, अप्रैल और अक्टूबर 2021 में हुए रिव्यू में भी पाक को राहत नहीं मिल सकी है. इसलिए सरकार आतंकवादी संगठनों के समर्थन में भी बहुत फूंक-फूंक कर कदम रखेगी. नई सरकार को जून 2022 में एक बार फिर एफएटीएफ को फेस करना होगा. उन्होंने कहा कि नई सरकार के समक्ष जहां देश में प्रभावशाली आतंकवादी संगठनों का दबाव वहीं दूसरी ओर एफएटीएफ़ की ग्रे लिस्ट से बाहर निकलने की मजबूरी भी होगी.
अब यह देखना दिलचस्प होगा कि नई सरकार की क्या रणनीति होती है. वह अमेरिका के साथ अपने संबंधों को किस तरह से आगे बढ़ाती है. क्या उसकी विदेश नीति चीन के दबाव में होगी
नई सरकार के सामने बड़ी चुनौतियां
4- प्रो पंत ने कहा नए प्रधानमंत्री के समक्ष वैदेशिक मोर्चे पर बड़ी चुनौती होगी. ख़ासकर रूस यूक्रेन जंग के दौरान पाकिस्तान और अमेरिका के संबंध काफी तल्ख हो गए हैं. पाकिस्तानी सेना अमेरिका से सामान्य संबंधों की हिमायती रही है. वह अमेरिका के साथ अपने संबंधों को सामान्य बनाना चाहती है, जबकि इमरान सरकार का झुकाव रूस की ओर था. अब यह देखना दिलचस्प होगा कि नई सरकार की क्या रणनीति होती है. वह अमेरिका के साथ अपने संबंधों को किस तरह से आगे बढ़ाती है. क्या उसकी विदेश नीति चीन के दबाव में होगी. क्या रूस के साथ नई सरकार के संबंध पहले जैसे होंगे. उन्होंने कहा कि यह सब कुछ सेना और सरकार के संबंधों पर तय होगा. नई सरकार के समक्ष अमेरिका से संबंधों को पटरी पर लाने का दबाव जरूर होगा. इसके अलावा वह किसी भी हाल में चीन और रूस को भी नहीं नाराज़ करना चाहेंगे.
नई सरकार के समक्ष एक प्रभावशाली विदेश नीति बनाने की चुनौती होगी, ताकि विपक्ष में बैठे इमरान के लिए नई सरकार की निंदा का कोई विषय न मिले.
5- उन्होंने कहा कि इमरान सरकार ने भारत की विदेश नीति की तारीफ की थी. उन्होंने भारत की तारीफ के बहाने अपनी विदेश नीति को भी स्वतंत्र करार दिया था. उन्होंने अपनी रूस यात्रा को जायज ठहराने के लिए भारत का उदाहरण दिया था. इमरान ने कहा था कि भारतीय विदेश नीति स्वतंत्र है. उसके विदेश नीति में राष्ट्रीय हित प्रमुख है. इमरान ने कहा था कि कोई महाशक्ति भारत के राष्ट्रीय हितों को प्रभावित नहीं कर सकता, ऐसे में नई सरकार के समक्ष एक प्रभावशाली विदेश नीति बनाने की चुनौती होगी, ताकि विपक्ष में बैठे इमरान के लिए नई सरकार की निंदा का कोई विषय न मिले.
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