Published on Jun 29, 2022 Updated 0 Hours ago

सरकार के फंड से बनी पद्मा बहुउद्देशीय सेतु परियोजना से पता चलता है कि किस तरह बांग्लादेश बदहाल अर्थव्यवस्था की अपनी छवि ख़त्म करने के लिए तेज़ी से आगे बढ़ रहा है.

बांग्लादेश: बहुउद्देशीय पद्मा सेतु परियोजना यानी बांग्लादेश के नये उदय का भरोसा!

बांग्लादेश में कनेक्टिविटी के एक नये युग की शुरुआत करते हुए प्रधानमंत्री शेख़ हसीना ने 25 जून को पद्मा सेतु का उद्घाटन किया. पद्मा बहुउद्देशीय सेतु परियोजना (पीएमबीपी) पद्मा नदी, जो कि बांग्लादेश के क्षेत्र में गंगा नदी के पहुंचने के बाद का हिस्सा है, के ऊपर एक बहुउद्देशीय रेल-सड़क पुल है. 6.15 किलोमीटर का मुख्य सेतु बांग्लादेश का सबसे बड़ा पुल है और गंगा नदी के मैदानी क्षेत्र में दूसरा सबसे बड़ा पुल है. इस प्रोजेक्ट को सबसे उन्नत और प्रगतिशील में से एक माने जाने के साथ-साथ बांग्लादेश के इतिहास में सबसे चुनौतीपूर्ण विकास परियोजना भी कहा जाता है. आज के युग में जब कनेक्टिविटी के मामले में प्रतिस्पर्धी रणनीतियों और निवेशों की दक्षिण एशिया में भरमार है, उस वक़्त इस ‘ड्रीम प्रोजेक्ट’ की फंडिंग पूरी तरह से बांग्लादेश सरकार के द्वारा की गई है. इसलिए इस बात का विश्लेषण ज़रूरी है कि इस पुल से बांग्लादेश को किस तरह फ़ायदा होगा; क्या इस पुल की वजह से पड़ोसी देशों के साथ बांग्लादेश के संबंध मज़बूत होंगे और क्या ऐसा होने पर 2023 के आगामी चुनाव में शेख़ हसीना के नेतृत्व वाली आवामी लीग की मौजूदा सरकार को मदद मिलने की संभावना है. 

पद्मा बहुउद्देशीय सेतु परियोजना (पीएमबीपी) पद्मा नदी, जो कि बांग्लादेश के क्षेत्र में गंगा नदी के पहुंचने के बाद का हिस्सा है, के ऊपर एक बहुउद्देशीय रेल-सड़क पुल है. 6.15 किलोमीटर का मुख्य सेतु बांग्लादेश का सबसे बड़ा पुल है और गंगा नदी के मैदानी क्षेत्र में दूसरा सबसे बड़ा पुल है.

देश और क्षेत्र को जोड़ना

मॉनसून के मौसम के दौरान उफनती पद्मा नदी को पार करना अक्सर बहुत मुश्किल होता है और घाट पर जाम की समस्या बनी रहती है. पीएमबीपी इस चुनौती के समाधान और देश के भीतर कनेक्टिविटी को बढ़ावा देने के लिए है. इसका मक़सद पद्मा नदी के मावा और जंजिरा किनारों को जोड़ना है, दक्षिण-पश्चिम बांग्लादेश के ज़िलों जैसे कि फ़रीदपुर, जेसोर, कुश्तिया, भोला और बरिशल को देश के उत्तरी और पूर्वी भागों से जोड़ना है. ये पुल सामानों, सेवाओं और लोगों के आराम से आवागमन को सुनिश्चित करता है और इस तरह व्यापार और कनेक्टिविटी को बढ़ावा देता है. बांग्लादेश के विदेश मंत्रालय के मुताबिक़, इस पुल के तैयार होने से “बांग्लादेश की सामूहिक ख़ुशहाली बढ़ेगी, सामाजिक-आर्थिक विकास होगा और इसके साथ-साथ क्षेत्रीय संपर्क में तेज़ी आएगी.” इसके अलावा पीएमबीपी दो स्तर का एक स्टील ब्रिज है जिसके पहले स्तर पर रेलवे की पटरी है जबकि दूसरे स्तर पर गाड़ियों की आवाजाही होती है. रेलवे की पटरी जेसोर और ढाका जैसे बड़े शहरों को जोड़ती है और इसकी वजह से दोनों शहरों के बीच बंगबंधु ब्रिज के ज़रिए 8 घंटे के सफ़र के मुक़ाबले कम समय लगेगा. इसके 2024 तक शुरू होने की उम्मीद है. 

क्षेत्रीय दृष्टिकोण से सोचें तो इस रेलवे ट्रैक में बांग्लादेश और उसके पड़ोसी देशों के बीच कनेक्टिविटी या संबंद्धता को बढ़ावा देने की संभावना है जो बांग्लादेश की विदेश नीति की प्राथमिकताओं के बारे में बताता है. उदाहरण के लिए, बांग्लादेश के वरिष्ठ रेल अधिकारियों के मुताबिक़ प्रोजेक्ट के लागू हो जाने के बाद ढाका से कोलकाता के बीच सफ़र का समय घटकर तीन से चार घंटे रह जाएगा. अगर इस रेल ट्रैक को आगे अखौरा-अगरतला रेल लिंक से जोड़ा जाए, जिसकी दूरी पद्मा सेतु से सिर्फ़ 159 किमी है, तो ये बांग्लादेश को भारत के पूर्वोत्तर के साथ भी जोड़ देगा. भारत और बांग्लादेश के बीच प्रगाढ़ता की वजह से इस संबंध का विस्तार कनेक्टिविटी को बढ़ावा देने में होना स्वाभाविक है. पिछले कुछ महीनों के साथ-साथ हाल के वर्षों में प्रधानमंत्री हसीना ने अक्सर भारत से अनुरोध किया है कि वो बांग्लादेश की सुविधाओं जैसे कि चटगांव बंदरगाह का इस्तेमाल अपने समुद्र से दूर पूर्वोत्तर क्षेत्र में कनेक्टिविटी में सुधार के लिए करे, ख़ास तौर से पूर्वोत्तर की पहुंच समुद्र तक करने में करे. 

प्रधानमंत्री हसीना ने अक्सर भारत से अनुरोध किया है कि वो बांग्लादेश की सुविधाओं जैसे कि चटगांव बंदरगाह का इस्तेमाल अपने समुद्र से दूर पूर्वोत्तर क्षेत्र में कनेक्टिविटी में सुधार के लिए करे, ख़ास तौर से पूर्वोत्तर की पहुंच समुद्र तक करने में करे. इस ‘मेगा ब्रिज’ के ज़रिए बांग्लादेश एशियन हाइवे नेटवर्क का हिस्सा भी बनेगा जिसका उद्देश्य 32 देशों को सड़क के रास्ते यूरोप से जोड़ना है.

इस ‘मेगा ब्रिज’ के ज़रिए बांग्लादेश एशियन हाइवे नेटवर्क का हिस्सा भी बनेगा जिसका उद्देश्य 32 देशों को सड़क के रास्ते यूरोप से जोड़ना है. बांग्लादेश में तीन रूट पर काम चल रहा है- एशियन हाइवे 1 (एएच1), एशियन हाइवे 2 (एएच2) और एशियन हाइवे 41 (एएच41). पद्मा नदी पर बना सेतु एएच1 का एक ज़रूरी हिस्सा है. इसके अलावा पद्मा सेतु पर बना रेल रूट ट्रांस-एशियन रेल रूट का भी विस्तार करेगा जिसके ज़रिए बांग्लादेश को दक्षिण एशियाई और दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों जैसे कि भारत, पाकिस्तान, म्यांमार और चीन से रेल कनेक्टिविटी के माध्यम से जोड़ा जाना है. ये नया रूट बांग्लादेश के तीन मौजूदा रूट के अलावा चौथे रूट के तौर पर काम करने वाला है. नेटवर्क की इस भूल-भुलैया के ज़रिए पद्मा सेतु में मोंगला और पैरा बंदरगाह में ऊर्जा भरने की संभावना है. इसका नतीजा भारत, नेपाल और बांग्लादेश से निवेश आकर्षित करके बांग्लादेश के वाणिज्य में बढ़ोतरी के रूप में निकलेगा. 

Source: The Business Standard
Source: Daily Bangladesh

देश के भीतर के साथ-साथ क्षेत्रीय कनेक्टिविटी में बढ़ोतरी के अलावा पद्मा सेतु की एक और क़ीमत है. ये बांग्लादेश की बढ़ती क्षमता और आत्मनिर्भरता का सबूत है जिनके ज़रिए बांग्लादेश  एक कठिन परिस्थिति को अपने इरादे को सलामी देने वाले हालात में बदलने में कामयाब रहा है. 

गर्व का पुल

मशहूर अमेरिकी राजनयिक हेनरी किसिंजर ने एक बार बांग्लादेश को “बास्केट केस” यानी गंभीर आर्थिक हालात से जूझने वाला देश बताया था. वास्तव में बांग्लादेश उस वक़्त इस घिसी-पिटी धारणा को हासिल करने के कगार पर पहुंच भी गया था जब विश्व बैंक, एशियाई विकास बैंक, जापान अंतर्राष्ट्रीय सहयोग एजेंसी और अंतर-अमेरिकी विकास बैंक ने कथित “भ्रष्टाचार” के नाम पर इस सेतु के निर्माण के लिए और पैसा देने से मना कर दिया था. इस राष्ट्रीय चुनौती का सामना करते हुए बांग्लादेश की सरकार ने पुल के निर्माण के लिए अपना पैसा लगाने का फ़ैसला लिया और इस तरह ये साबित किया कि वो आत्मनिर्भरता में सक्षम है और “भीख मांगने की सोच के ख़िलाफ़” है. इस तरह बांग्लादेश सरकार ने पुल पर 3.6 अरब अमेरिकी डॉलर की लागत लगाने का फ़ैसला लिया. देश के प्रत्येक नागरिक ने भी 5 टका (4.2 भारतीय रुपया) और 10 टका (8.4 भारतीय रुपया) ब्रिज फंड में दान के तौर पर दिया. 

बांग्लादेश के अपने संसाधनों और सरकार के फंड से बनी इस परियोजना को तगड़े विरोध का सामना करना पड़ा था. लेकिन इसके सफलतापूर्वक शुरू होने से बांग्लादेश की आर्थिक कामयाबी में एक और अध्याय जुड़ गया है. वास्तव में विश्व बैंक के विशेषज्ञों ने दावा किया है कि बांग्लादेश में मज़बूत आर्थिक बहाली हुई है. 

बांग्लादेश ने पुल के निर्माण में किसी दूसरे देश का पैसा इस्तेमाल नहीं करने का भी फ़ैसला लिया. बांग्लादेश की सरकार ने साफ़ कर दिया कि ये पुल चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव का हिस्सा नहीं है और इसमें चीन की तरफ़ से वित्तीय मदद नहीं दी गई है. हालांकि चीन ने 2018 में पद्मा रेल लिंक को फंड देने में दिलचस्पी दिखाई थी. वास्तव में बांग्लादेश दक्षिण एशिया में पाकिस्तान के बाद चीन का फंड हासिल करने के मामले में दूसरे नंबर पर है और बांग्लादेश में विकास की कई परियोजनाओं जैसे कि दाशेरकांडी सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट और ढाका बाइपास में चीन की तरफ़ से वित्तीय मदद मिली है. लेकिन पिछले कुछ समय से चीन के साथ हिस्सेदारी के मामले में बांग्लादेश समझदारी का परिचय दे रहा है ताकि श्रीलंका की तरह चीन के कर्ज़ जाल में फंसने से परहेज किया जा सके. इसी वजह से बांग्लादेश ने चीन के निवेश से सोनिदिया बंदरगाह को विकसित करने की योजना छोड़ दी. पद्मा सेतु तो और भी ताज़ा उदाहरण है. इसलिए बांग्लादेश न सिर्फ़ पद्मा सेतु को विदेशी सहायता के नाम पर ऐसे बंधन में फंसने से रोकने में कामयाब रहा बल्कि उसने अपनी कनेक्टिविटी का कायापलट करने के साथ-साथ पूरे क्षेत्र को आगे बढ़ाकर ख़ुद को “बास्केट केस” कहे जाने की धारणा को भी बदल दिया है. इसलिए ये सेतु उस वक़्त पीएम शेख़ हसीना के लिए फ़ायदा उठाने की चीज़ है जब वो आगामी चुनाव का सामना करने वाली हैं. 

ज़्यादा बड़ा दांव, ज़्यादा इनाम

पद्मा सेतु का निर्माण शेख़ हसीना सरकार के लिए बड़ा राजनीतिक दांव है. अगर 2023 के आगामी चुनाव से पहले इसके निर्माण की शुरुआत नहीं होती तो आवामी लीग के चुनावी घोषणापत्र का ये एक खोखला वादा साबित होता और इस तरह पार्टी की लगातार चौथी जीत की संभावना को झटका लगता. पीएमबीपी के निर्माण में लगने वाले लंबे समय और पुल के लिए सामग्री की ख़रीदारी में पारदर्शिता की कमी से होने वाली देरी आने वाले संसदीय चुनाव में प्रचार अभियान के दौरान विपक्ष के लिए मुद्दा बन जाता. ये भी महत्वपूर्ण है कि पद्मा सेतु का बाक़ी बचा काम तय समय पर पूरा हो जाए. पीएमबीपी को लेकर बनी बांग्लादेश सरकार की वेबसाइट से संकेत मिलता है कि मुख्य पुल पर 5 प्रतिशत से भी कम काम बचा हुआ है. 

बांग्लादेश के अपने संसाधनों और सरकार के फंड से बनी इस परियोजना को तगड़े विरोध का सामना करना पड़ा था. लेकिन इसके सफलतापूर्वक शुरू होने से बांग्लादेश की आर्थिक कामयाबी में एक और अध्याय जुड़ गया है. वास्तव में विश्व बैंक के विशेषज्ञों ने दावा किया है कि बांग्लादेश में मज़बूत आर्थिक बहाली हुई है. यहां वित्त वर्ष 2019-20 में 12.5 प्रतिशत के मुक़ाबले 2020-21 में  ग़रीबी की अनुमानित दर घटकर 11.9 प्रतिशत रह गई है. इसके अलावा बांग्लादेश में सकल राष्ट्रीय प्रति व्यक्ति आय वित्त वर्ष 2019-20 के 2,326 अमेरिकी डॉलर से बढ़कर 2020-21 में 2,591 अमेरिकी डॉलर हो गई है. इस तरह के आंकड़े बांग्लादेश की आर्थिक सफलता के बारे में बताते हैं और इस तरह शेख़ हसीना के पांचवीं बार देश का प्रधानमंत्री बनने की संभावना को मज़बूत करते हैं. 

बांग्लादेश ने पुल के निर्माण में किसी दूसरे देश का पैसा इस्तेमाल नहीं करने का भी फ़ैसला लिया. बांग्लादेश की सरकार ने साफ़ कर दिया कि ये पुल चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव का हिस्सा नहीं है और इसमें चीन की तरफ़ से वित्तीय मदद नहीं दी गई है. हालांकि चीन ने 2018 में पद्मा रेल लिंक को फंड देने में दिलचस्पी दिखाई थी.

बांग्लादेश को अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के द्वारा सबसे तेज़ी से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था बताया गया है और कोविड-19 संकट के दौरान भी बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था ने अपनी मज़बूती दिखाई. इस सफलता में अगर बांग्लादेश के द्वारा अपने दम पर पीएमबीपी के कल्पना लेने से लेकर उसके वास्तविकता में बदलने को जोड़ दिया जाए तो बांग्लादेश के लोगों के साथ-साथ इस क्षेत्र के देशों में ये भरोसा बढ़ता है कि इस देश में बड़ी परियोजनाओं को लागू करने की क्षमता है. इस तरह पीएमबीपी तीन उद्देश्यों को पूरा करता है: इससे घरेलू और क्षेत्रीय कनेक्टिविटी मज़बूत होती है; 2023 के आम चुनाव में अवामी लीग को फ़ायदा हो सकता है; और सबसे महत्वपूर्ण कि ये परियोजना दुनिया के सामने बांग्लादेश की बदलती छवि को पेश करती है. 

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Authors

Anasua Basu Ray Chaudhury

Anasua Basu Ray Chaudhury

Anasua Basu Ray Chaudhury is Senior Fellow with ORF’s Neighbourhood Initiative. She is the Editor, ORF Bangla. She specialises in regional and sub-regional cooperation in ...

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Sohini Bose

Sohini Bose

Sohini Bose is an Associate Fellow at Observer Research Foundation (ORF), Kolkata with the Strategic Studies Programme. Her area of research is India’s eastern maritime ...

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Contributor

Prarthana Sen

Prarthana Sen

Prarthana Sen was Research Assistant with ORF Kolkata. Her interests include gender development cooperation SDGs and forced migration.

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