Published on Aug 10, 2022 Updated 0 Hours ago

वैसे तो योजना से लाखों परिवारों को आवास की आपूर्ति सुनिश्चित हुई है, लेकिन झुग्गी पुनर्विकास से जुड़ी चुनौतियों से निपटने के लिए एक केंद्रित रुख़ अपनाना ज़रूरी है.

क्या PMAY-U से सस्ते घर मुहैया कराने में कामयाबी मिली है?

रोज़ी और रोज़गार के लिए शहर चुंबक की भूमिका निभाते हैं. प्रवास के साथ-साथ आबादी के क़ुदरती इज़ाफ़े ने शहरीकरण को रफ़्तार दी है. शहरीकरण की वैश्विक संभावनाओं के आकलन के मुताबिक 2050 तक भारत की 50 फ़ीसदी से ज़्यादा आबादी शहरी क्षेत्रों में निवास कर रही होगी. TG12 रिपोर्ट के अनुसार शहरों में रहने वाले 1.88 करोड़ परिवार रिहाइश की किल्लत का सामना कर रहे हैं. इससे शहरों की मौजूदा बढ़ती और वहां भविष्य में पहुंचने वाली आबादी के लिए सस्ते घरों का इंतज़ाम किए जाने को लेकर चुनौती खड़ी हो गई है.

शहरीकरण की वैश्विक संभावनाओं के आकलन के मुताबिक 2050 तक भारत की 50 फ़ीसदी से ज़्यादा आबादी शहरी क्षेत्रों में निवास कर रही होगी.

‘सस्ती’ रिहाइश के पेच सुलझाना

औसत पारिवारिक आय वाले लोगों की पहुंच में आने वाली रिहाइश को ही सस्ता समझा जाता है. आवास से जुड़ी पसंदगी आर्थिक, सामाजिक और मनोवैज्ञानिक लालसाओं के जटिल मिश्रण का परिणाम होती है. इनमें ख़र्च, अर्थव्यवस्था और परिवहन शामिल हैं. ज़मीन की बाज़ार कीमतें और वित्त तक पहुंच आवासीय क़ीमतों के बेहद अहम निर्धारक होते हैं. ज़मीन की बढ़ती क़ीमतों और वित्त के अभाव के चलते रिहाइश लाखों परिवारों के बूते के बाहर हो गई है. आवासीय क़ीमतों और आमदनी के बीच का अंतर दिनोंदिन बढ़ता जा रहा है. रिहाइश को तब ‘सस्ता या पहुंच के दायरे में’ माना जाता है जब एक परिवार को अपनी कुल मासिक पारिवारिक आय के 20 से 40 प्रतिशत (जो या तो किराए या ज़मानत के लिए अलग रखी गई हो) के एवज़ में तमाम सुविधाओं से लैस एक बेहतर आवासीय इकाई हासिल हो.

सरकारी दख़ल

2015 में भारत सरकार ने सस्ते घर मुहैया कराने के लिए प्रधानमंत्री आवास योजना- शहरी (PMAY-U) की शुरुआत की थी. शहरी संदर्भ में विशिष्ट समस्याओं के निपटारे के लिए इसकी संरचना में चार खंड जोड़े गए हैं. इसके तहत मांग पर आधारित रुख़ अपनाया जाता है, जिसमें राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों द्वारा मांग के आकलनों के आधार पर रिहाइश की किल्लत का निर्णय लिया जाता है. इस योजना के तहत क्रियान्वयन करने वाली एजेंसियों को केंद्रीय सहायता मुहैया कराने का भी प्रावधान किया गया है. 2022 तक योग्य लाभार्थियों को निम्नलिखित कार्यक्रमों के ज़रिए घर मुहैया कराने का लक्ष्य है:

  1. लाभार्थी आधारित निर्माण (BLC): लाभार्थी की अगुवाई में व्यक्तिगत घर निर्माण/बढ़ोतरी के लिए सब्सिडी
  2. क्रेडिट लिंक्ड सब्सिडी स्कीम (CLSS): क्रेडिट सब्सिडी के ज़रिए कमज़ोर वर्गों के लिए सस्ते आवास को प्रोत्साहन
  3. भागीदारी में सस्ते आवास (AHP): सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों- दोनों के द्वारा घरों का निर्माण
  4. यथास्थान झुग्गी पुनर्विकास (ISSR): ज़मीन को संसाधन के तौर पर इस्तेमाल करते हुए निजी डेवलपर्स की भागीदारी से झुग्गी निवासियों का पुनर्वास

PMAY-U का प्रदर्शन- संख्या लाख में

PMAY- U के खंड मंज़ूर किए गए मकान मकानों की नींव डली पूरी तरह से तैयार
BLC 73.76 59.88 28.11
CLSS 23.97
AHP 20.63 13.27 6.63
ISSR 4.33 6.43 4.90

स्रोत: आवास और शहरी मामलों का मंत्रालय- MIS, जून 2022.

क्रेडिट लिंक्ड सब्सिडी स्कीम (CLSS) को छोड़कर (जो केंद्रीय क्षेत्र की योजना है) PMAY-U केंद्र द्वारा प्रायोजित योजना है. PMAY-U के तहत सरकार ने 1.23 करोड़ घरों की मंज़ूरी दी है. इनमें से 60 लाख मकान तैयार भी हो चुके हैं जबकि 40 लाख घर बनकर तैयार हो रहे हैं. 23 लाख घरों का निर्माण पूरा होना अभी बाक़ी है. आसान शब्दों में 51 प्रतिशत आवासीय इकाइयां या तो अभी अधूरी हैं या उनका निर्माण शुरू होना बाक़ी है. योजना पर अमल की रफ़्तार सुस्त है. इस देरी के पीछे कोविड के चलते लागू लॉकडाउन को ज़िम्मेदार ठहराया जा सकता है. बहरहाल योजना के प्रदर्शन की समग्र पड़ताल के लिए हर खंड का विस्तार से विश्लेषण ज़रूरी है.

लाभार्थी आधारित निर्माण (BLC)

मांग सर्वे के ज़रिए उन लाभार्थियों की पहचान की जाती है जिनके पास अपनी ज़मीन होती है. उन्हें घर के निर्माण के लिए 1.5 लाख रु की केंद्रीय सहायता दी जाती है. राज्य सरकारें अपनी तरफ़ से सब्सिडी मुहैया कराती हैं, जो राज्य दर राज्य बदलती रहती है.

BLC के कई संभावित लाभार्थियों को ज़मीन के मालिक़ाना हक़ से जुड़े दस्तावेज़ों को लेकर चुनौतियों का सामना करना पड़ता है. भारत के कई शहरों में (प्रमुख रूप से पुराने शहरी रिहाइशों में) ज़मीन के राजस्व पट्टों को लेकर असमंजस का माहौल रहता है. यही वजह है कि कई लोग इस स्कीम का लाभ लेने से चूक जाते हैं.

सरकार ने ग्रामीण क्षेत्रों में अत्याधुनिक तकनीक से मैपिंग और गावों के सर्वे से जुड़ी योजना (स्वामित्व) शुरू की है. स्वामित्व योजना के तहत ग्रामीण इलाक़ों में (जहां ज़मीन के मालिक़ाना हक़ को लेकर अनिश्चितता रहती है) रहने वाले परिवारों के लिए संपत्ति कार्डों का प्रावधान किया गया है. शहरी क्षेत्रों में इस तरह की योजना नदारद है. BLC के घटक में लाभार्थी बनने के लिए ज़मीन का मालिक़ाना हक़ एक अहमम पात्रता है. लिहाज़ा वक़्त की मांग है कि स्वामित्व योजना की तर्ज पर शहरी क्षेत्रों में भी उपाय किए जाएं ताकि यहां भी ज़मीन के दस्तावेज़ों से जुड़े मसले सुलझाए जा सकें.

क्रेडिट लिंक्ड सब्सिडी स्कीम (CLSS)

CLSS के तहत सरकार आर्थिक रूप से कमज़ोर/निम्न आय और मध्यम आय वाले वर्गों के लाभार्थियों को मकानों की ख़रीद, निर्माण या सुविधाओं में बढ़ोतरी के लिए घर कर्ज़ पर ब्याज़ सब्सिडी मुहैया कराती है. शहरी आबादी के इस हिस्से की रिहाइश से जुड़ी ज़रूरतों को पूरा करना इस क़वायद का मक़सद है. लाभार्थी को मकान की ख़रीद या निर्माण के लिए मदद पहुंचाई जाती है. CLSS स्कीम की स्थिति अभी साफ़ नहीं है. दिशानिर्देशों के मुताबिक 31 मार्च 2022 को इसकी समयसीमा तय की गई थी. सरकार की ओर से आधिकारिक रूप से इसका विस्तार नहीं किया गया है. CLSS से लाभार्थियों पर भुगतान का बोझ कम हुआ था. हालांकि आर्थिक रूप से कमज़ोर तबक़ों में आवासीय ऋणों की पहुंच का विस्तार करने में इससे कुछ ख़ास मदद नहीं मिली है. असंगठित आमदनी वाले समूहों के आर्थिक रूप से कमज़ोर लाभार्थियों को औपचारिक आवासीय वित्त का जुगाड़ करने के लिए अब भी संघर्ष करना पड़ता है. भारत सरकार की क्रेडिट रिस्क गारंटी फ़ंड ट्रस्ट स्कीम इस मोर्चे पर भी नाकाम रही है.

भागीदारी में सस्ते आवास (AHP)

AHP आपूर्ति पक्ष का हस्तक्षेप है. इसका मक़सद सस्ते घर सुनिश्चित कराने के लिए उनकी आपूर्ति को बढ़ाना है. इस दख़ल का मक़सद सार्वजनिक क्षेत्रों, निजी किरदारों और अर्द्धसरकारी एजेंसियों की क्षमता को बढ़ाकर सस्ती आवासीय इकाइयों की आपूर्ति को बढ़ाना है. सस्ती आवासीय परियोजनाओं में सरकार आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्गों (EWS) को 1.5 लाख रु की केंद्रीय सहायता मुहैया कराती है. तैयार रिहाइशों में से 35 फ़ीसदी इकाइयां इस श्रेणी के लिए आरक्षित रहती हैं. राज्यों की ओर से भी AHP परियोजनाओं में मदद दी जाती है. हालांकि ये मदद राज्य दर राज्य बदलती रहती है.

भागीदारी में सस्ती रिहाइश की मांग अनेक किरदारों पर निर्भर करती है. निजी क्षेत्र इसमें बेहद अहम है. हालांकि इसकी भागीदारी सीमित रही है और इसके रास्ते में अनेक चुनौतियां है. इनमें नाकाफ़ी प्रोत्साहनों से लेकर परियोजना में देरी और सरकार और निजी डेवलपर्स के बीच सूचनाओं की विषमता शामिल हैं. अब तक अपनाई गई रणनीतियों में निजी ज़मीन को सस्ते आवासों के लिए इस्तेमाल करना शामिल है. इनमें महंगे घरों के निर्माण की मंज़ूरी के बदले भूमि की सघन उपयोगिता भी आती है. निजी स्वामित्व वाली ज़मीनों को कम लागत पर सस्ते आवासों के लिए हासिल करने की संभावना सीमित है. बहरहाल PPP के मुनासिब ढांचों के ज़रिए निजी क्षेत्र को इस दिशा में आकर्षित किया जा सकता है. कर रियायत, GST और स्टांप ड्यूटी की निम्न दरों जैसे फ़ायदेमंद उपायों से AHP को निजी किरदारों के लिए भी आकर्षक बनाया जा सकता है.

यथास्थान झुग्गी पुनर्विकास (ISSR)

भारत में झुग्गी पुनर्वास से जुड़ी क़वायद बेदख़ली, ग़ैर-क़ानूनी रूप से दोबारा किराए पर चढ़ाने, भ्रष्टाचार और अलग-थलग किए जाने जैसी समस्याओं से ग्रसित है. ISSR से जुड़े खंड का मक़सद पूरी झुग्गी के लिए बेहतर आवासीय व्यवस्था मुहैया कराना है. उसी स्थान पर साफ़-सुथरी रिहाइश के विकास के लिए सरकार निजी डेवलपर को प्रति इकाई एक लाख की सहायता मुहैया कराती है. इसके बाद निजी क्षेत्र उस ज़मीन को मुनाफ़ा कमाने के स्रोत के तौर पर इस्तेमाल कर सकता है. बहरहाल PMAY-U के तमाम खंडों में ISSR का प्रदर्शन सबसे कमज़ोर है. मंज़ूर की गई आवासीय इकाइयों में इसका हिस्सा महज़ 3.52 प्रतिशत (4.44 लाख) है. शहरी मामलों के मंत्रालय द्वारा 2019 में राज्यसभा में पेश किए गए आंकड़े के मुताबिक देश में 6.5 करोड़ लोग झुग्गियों में रहते हैं. इस बाबत ISSR की 4.4 लाख का आंकड़ा सबके लिए आवास का लक्ष्य पूरा करने की दिशा में ऊंट के मुंह में जीरे के समान है.

कई मामलों में राज्य सरकारें किसी स्थान को झुग्गी के तौर पर अधिसूचित ही नहीं करती है. ISSR से जुड़े लक्ष्य हासिल करने के रास्ते में ये एक प्रमुख बाधा है. झुग्गियों के विकास और पुनर्विकास के सिलसिले में पहला क़दम ये सुनिश्चित करना है कि शहरी क्षेत्रों की झुग्गियों और झुग्गियों जैसी बसावटों की ठीक से गिनती और पहचान की जाए. दूसरे, उनकी ख़ासियतों को भी रेखांकित किया जाना ज़रूरी है. इनमें ज़मीन का मालिक़ाना हक़, योजनाएं, क्षेत्रीय वर्गीकरण और दूसरी गतिविधियों की उपयोगिता शामिल हैं. तीसरे, इन चिन्हों में नागरिक और प्राथमिक सेवाओं को भी शामिल किया जाना चाहिए. चौथे, हर झुग्गी के स्थायित्व और व्यवहार्यता की भी पड़ताल की जानी चाहिए. झुग्गियों के स्तर पर हस्तक्षेप से जुड़ी रणनीति में ऊपर के तमाम क़दम बेहद अहम हैं.

आगे का रास्ता

PMAY-U के ज़रिए 48 लाख परिवारों को सफलतापूर्वक आवासीय आपूर्ति सुनिश्चित की जा सकी है. बहरहाल झुग्गी पुनर्वास से जुड़ी क़वायद में अभी रफ़्तार आनी बाक़ी है. झुग्गी पुनर्वास से जुड़ी चुनौती से पार पाने के लिए एक केंद्रित रुख़ अपनाना ज़रूरी है. आवासीय सुविधाओं की आपूर्ति के लिए सरकारी सब्सिडियां दीर्घकालिक टिकाऊ विकल्प नहीं हैं. लाभार्थी को वित्त की सुविधा मुहैया कराने के लिए वित्तीय मोर्चे पर ठोस व्यवस्था तक पहुंच सुनिश्चित कराना ज़रूरी है. इस प्रक्रिया में आय के अनौपचारिक स्रोतों पर निर्भर निम्न आय वाले कर्ज़दारों के लिए सस्ती लागत वाले ऋणों की उपलब्धता को शामिल किया जा सकता है. इसके अलावा जोख़िम गारंटियों और दीर्घकालिक निम्न ब्याज़ दरों की व्यवस्था भी की जानी चाहिए. औपचारिक आवासीय वित्त तक पहुंच का दायरा और उसकी गहराई में तत्काल सुधार लाए जाने की दरकार है. वित्तीय सुविधाओं को बढ़ावा देने के वास्ते कर्ज़दाताओं के लिए अनुकूल वातावरण बनाया जाना ज़रूरी है. प्रवासियों और दूसरे तबक़ों की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए किराए की आवासीय सुविधाओं की उपलब्धता में विस्तार लाए जाने की ज़रूरत है.

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