Published on Jul 28, 2022 Updated 0 Hours ago

मध्य एशिया में नशीले पदार्थों की तस्करी पर कार्रवाई बेहद ज़रूरी लग रही है क्योंकि पिछले दिनों अफ़ग़ानिस्तान पर तालिबान के कब्ज़े और यूक्रेन संकट की वजह से हालात और भी ख़राब हुए हैं.

मध्य एशिया में नशीले पदार्थों की बढ़ती तस्करी

2021 में रूस की न्यूज़ एजेंसी तास न्यूज़ ने ख़बर दी कि ताजिकिस्तान की ड्रग कंट्रोल एजेंसी के प्रमुख ने कहा है कि पिछले साल के मुक़ाबले ज़ब्त हेरोइन और हशीश की मात्रा दोगुनी हो गई है. 2020 में ज़ब्त 2.3 टन के मुक़ाबले इनकी मात्रा 2021 में बढ़कर 4 टन हो गई है. इन नशीले पदार्थों की खेती, उनका उत्पादन और तस्करी मुख्य रूप से अफ़ग़ानिस्तान से होती है. मादक पदार्थ एवं अपराध को लेकर संयुक्त राष्ट्र कार्यालय (यूएनडीओसी) के अनुमान के मुताबिक़ दुनिया में 80 प्रतिशत अफीम और हेरोइन की आपूर्ति अफ़ग़ानिस्तान से तस्करी के ज़रिए होती है. इस तस्करी के लिए वृहद एशिया और यूरोप के तीन प्रमुख रास्तों का इस्तेमाल किया जाता है और ये इस क्षेत्र में रहने वाले लोगों की सेहत और सुरक्षा के लिए गंभीर ख़तरा है. अफ़ग़ानिस्तान और यूरोप में हाल की घटनाओं ने अफ़ग़ानिस्तान से आने वाले अवैध नशीले पदार्थों की रोकथाम के काम को मुश्किल बना दिया है. इसके ख़तरे और संभावित समाधान को लेकर विश्व समुदाय में और ज़्यादा चर्चा होना ज़रूरी है.

Source: डीसीए, 2004; यूएनओडीसी, 2007

 

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

ऐतिहासिक रूप से अफ़ग़ानिस्तान, पाकिस्तान और पूर्वी ईरान को मिलाकर “गोल्डन क्रीसेंट” बनता है जो कि एशिया में अवैध अफीम उत्पादन के दो प्रमुख क्षेत्रों में से एक है (दूसरा क्षेत्र गोल्डन ट्राएंगल है). तस्करों के द्वारा अफ़ग़ानिस्तान से अवैध अफीम और दूसरे नशीले पदार्थों की तस्करी के लिए हमेशा से सिल्क रोड से कई रास्ते रहे हैं. ये ऐसा रास्ता है जो सैकड़ों वर्षों से रहा है और आज भी यही स्थिति है. इन बड़े रास्तों में से एक मध्य एशिया के देशों से होकर रूस जाता है जबकि बेलारूस से होकर व्यापक यूरोपीय बाज़ारों तक. 2021 में अफ़ग़ानिस्तान में धर्मनिरपेक्ष सरकार के पतन ने अमेरिका और नेटो की दो दशक की मौजूदगी की नाकामी के बारे में बताया. ब्राउन यूनिवर्सिटी के वॉटसन इंस्टीट्यूट के द्वारा कोस्ट ऑफ वॉर प्रोजेक्ट (युद्ध की लागत परियोजना) के अनुमान के मुताबिक़ अफ़ग़ानिस्तान में युद्ध के दौरान अमेरिका को 2.3 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर खर्च करने पड़े. स्पेशल इंस्पेक्टर जनरल फॉर अफ़ग़ानिस्तान रिकंस्ट्रक्शन (एसआईजीएआर) की एक रिपोर्ट के अनुसार, अमेरिका ने 2012 से 2017 तक सिर्फ़ अफ़ग़ानिस्तान में अफीम की खेती को नष्ट करने की कोशिश में 8 अरब अमेरिकी डॉलर से ज़्यादा खर्च किए. अपने लक्ष्य को हासिल करने के लिए अमेरिका को ये ज़रूरी लगा कि तालिबान को मिलने वाले फंड को ख़त्म किया जाए. तालिबान को मिलने वाले फंड का ज़्यादातर हिस्सा अवैध अफीम की खेती और तस्करी से आता है.

1999 के आख़िर में तालिबान ने अफीम की खेती पर प्रतिबंध लगाने का आदेश जारी किया था जिसका नतीजा किसी एक देश में एक वर्ष के भीतर अफीम की खेती में सबसे ज़्यादा कमी के रूप में सामने आया. अफीम की खेती साल 2000 के 82,712 हेक्टेयर क्षेत्र से घटकर 2001 में 8,000 हेक्टेयर से कम इलाक़े में रह गई. लेकिन तालिबान के लिए इसकी राजनीतिक क़ीमत बहुत ज़्यादा थी. अफीम पर प्रतिबंध ज़्यादा दिन तक टिक नहीं पाया और तालिबान ने सितंबर 2001 में पाबंदी को वापस ले लिया. इसके लिए तालिबान ने दलील दी कि अमेरिका के ख़िलाफ़ लड़ाई के लिए उसे वित्तीय संसाधनों की ज़रूरत है. 21वीं शताब्दी के पहले दशक के आख़िर और दूसरे दशक की शुरुआत में जब गठबंधन के समर्थन वाली सरकार में स्थायित्व आया तो काबुल की सत्ता में मौजूद सरकार बड़ी मात्रा में अफीम की खेती समेत दूसरे मुद्दों की तरफ़ देखने में सक्षम हो पाई. अफीम के कुछ फसलों को जला दिया गया और बड़ी मात्रा में अफीम को ज़ब्त करने का अभियान चलाया गया. लेकिन इसके बावजूद नशीले पदार्थों की तस्करी के कई रास्ते सक्रिय बने रहे. वैसे तो अमेरिका और नेटो के समर्थन वाले बल अवैध नशीले पदार्थों के बुनियादी ढांचे को ध्वस्त करने के अभियान में लगे रहे लेकिन वो कभी भी अफ़ग़ानिस्तान के खेतों से अफीम को पूरी तरह नष्ट नहीं कर पाए. अब जबकि एक बार फिर तालिबान सत्ता में लौट आया है तो उसने एक बार फिर अफीम की खेती पर पाबंदी लगा दी है. साथ ही दूसरे नशीले पदार्थों के उत्पादन, इस्तेमाल और परिवहन को भी प्रतिबंधित कर दिया है. हम पूरे विश्वास के साथ नहीं कह सकते कि तालिबान का ये आदेश कितना सफल रहेगा लेकिन हम ये भी पूरे भरोसे के साथ नहीं कह सकते कि तालिबान इस आदेश को कितना सफल होते देखना चाहता है. इसकी वजह ये है कि तालिबान में शामिल कुछ लोग अभी भी अपने उग्रवाद की फंडिंग के लिए अफीम की तस्करी का इस्तेमाल कर रहे थे. ये गतिविधि कम-से-कम काबुल से अमेरिकी सेना के वापस होने तक चल रही थी.

अवैध नशीले पदार्थों की तस्करी के रास्ते

अफ़ग़ानिस्तान से मध्य एशिया के ज़रिए रूस और पूर्वी यूरोप तक जाने वाले तथाकथित ‘नॉर्दर्न रूट” का ऐतिहासिक रूप से नशीले पदार्थों की तस्करी के लिए इस्तेमाल होता रहा है (वैसे इतिहास में उन पदार्थों की वैधता पर बहस हो सकती है). इस तरह ये अलग-अलग पक्षों के लिए अफ़ग़ानिस्तान में तैयार होने वाले हेरोइन को यूरोप तक भेजने का एक महत्वपूर्ण रूट बन गया. यूएनओडीसी के अनुसार 2010 में अफ़ग़ानिस्तान से क़रीब 15 प्रतिशत अफीमयुक्त मादक पदार्थों और 20 प्रतिशत हेरोइन की तस्करी ताजिकिस्तान के ज़रिए की गई. सच्चाई ये है कि किसी को ये सही ढंग से पता नहीं है कि अफ़ग़ानिस्तान से कितनी मात्रा में हेरोइन ताजिकिस्तान और दूसरे मध्य एशियाई गणराज्यों के ज़रिए जाती है. इस तरह का अनुमान लगाने की कोई मज़बूत प्रक्रिया नहीं है. हालांकि यूएनओडीसी और मध्य एशियाई देशों के साथ अलग-अलग सरकारों की मिली-जुली कोशिशों के ज़रिए मध्य एशिया तक जाने वाला रूट 2003 में पेरिस समझौते की पहल के शुरू होने के बाद से नियंत्रित है. कई मध्य एशियाई देशों के लिए सफलता और असफलता के अलग-अलग स्तर रहे हैं और ये दूसरे रास्तों की छाया में बना रहा है जिनमें मुख्य “बाल्कन रूट” शामिल है. ख़ास बात ये है कि बाल्कन रूट के ज़रिए यूरोप तक तस्करी करके ले जाने के लिए तुर्कमेनिस्तान अफ़ग़ानिस्तान के अफीमयुक्त मादक पदार्थों की मंज़िल रहा है. ऐसे में ये कहना उचित होगा कि इस मामले में मध्य एशिया की भूमिका को नज़रअंदाज़ नहीं करना चाहिए.

जुड़े हुए जोखिम

पाबंदियों के बावजूद इस क्षेत्र में हालात ख़तरनाक दिखते हैं. यूएनओडीसी के कार्यकारी निदेशक यूरी फेडोटोव ने 2010 में कहा था कि अफ़ग़ानिस्तान से आने वाले मादक पदार्थों की रोकथाम के लिए ताजिकिस्तान पहली रुकावट है. अफ़ग़ानिस्तान से लगी सीमा की गश्त के लिए ज़िम्मेदार ताजिक बॉर्डर फोर्स के पास ज़्यादातर मादक पदार्थों की तस्करी को असरदार ढंग से रोकने के लिए मानवीय और तकनीकी संसाधनों की कमी है. ताजिक बॉर्डर फोर्स के जवानों का बेहद कम वेतन उन्हें भ्रष्टाचार का आसान लक्ष्य बनाता है. साथ ही उनके पास मौजूद अपर्याप्त संसाधन का मतलब ये है कि अगर मादक पदार्थों के ताक़तवर तस्कर, जिन्हें अपना उद्देश्य हासिल करने के लिए हिंसा या ताक़त का इस्तेमाल करने में कोई पछतावा नहीं होता, उनके लिए ख़तरा बनते हैं तो उनके पास बेहद कम विकल्प हैं. निरंकुश और भ्रष्ट सरकारों ने मध्य एशिया के क्षेत्र में मादक पदार्थों की तस्करी के उद्योग को बढ़ावा दिया है. ताजिकिस्तान के रास्ते से तस्करी किए गए मादक पदार्थों की क़ीमत का अनुमान 2011 में 2.7 अरब अमेरिकी डॉलर लगाया गया जो कि इस देश में दौलत के किसी भी क़ानूनी स्रोत से काफ़ी ज़्यादा था. इस तरह का क़ीमती उद्योग सरकार के भीतर मौजूद लोगों और सरकारी संस्थानों के महत्वपूर्ण संरक्षण के बिना अस्तित्व में नहीं रह सकता. मिसाल के तौर पर, 2004 में विपक्ष के पूर्व कमांडर अखमद सफारोव पर मादक पदार्थों के लेन-देन का आरोप लगा और वो पुलिस से घिरने के बाद देश छोड़कर भाग गए. 2008 में पॉपुलर फ्रंट के प्रमुख कमांडरों के रिश्तेदार नूरमहमाद सफारोव और सुहरोब लगारीव को दक्षिणी शहर कुलोब में मादक पदार्थों पर डाले गए छापे के दौरान गिरफ़्तार कर लिया गया. यहां भी अमेरिका आरोपों से अछूता नहीं है. माना जाता है कि ताजिकिस्तान में ज़्यादातर तस्करी यहां की कुछ गिनी-चुनी अच्छी सड़कों और पुलों पर होती है जिनमें से एक का निर्माण 2009 में अमेरिकी सेंट्रल कमांड के 35 मिलियन अमेरिकी डॉलर के फंड से किया गया था.

अब जबकि एक बार फिर तालिबान सत्ता में लौट आया है तो उसने एक बार फिर अफीम की खेती पर पाबंदी लगा दी है. साथ ही दूसरे नशीले पदार्थों के उत्पादन, इस्तेमाल और परिवहन को भी प्रतिबंधित कर दिया है.

जनवरी 2022 में कज़ाकिस्तान में अशांति की वजह से पूरे क्षेत्र में असंतोष पर कार्रवाई की गई. 2012 में इस क्षेत्र के लिए यूएनओडीसी की तरफ़ से ख़तरे की समीक्षा में कहा गया कि एक दशक पहले इसी तरह के हालात में जिन संसाधनों का इस्तेमाल मादक पदार्थों की तस्करी का मुक़ाबला करने में किया जाता, उनका इस्तेमाल लोगों की आवाज़ को दबाने के लिए किया जा रहा था. यूएनओडीसी ने काफ़ी समय और संसाधन अलग-अलग तरह के समझौतों एवं पहल जैसे कि सेंट्रल एशियन रीजनल इन्फॉर्मेशन एंड कोऑर्डिनेशन सेंटर फॉर कॉम्बैटिंग इलिसिट ट्रैफिकिंग ऑफ नारकोटिक ड्रग्स, साइकोट्रॉपिक सब्सटेंसेज़ एंड देयर प्रीकर्सस (सीएआरआईसीसी) को विकसित करने में किया ताकि मध्य एशिया में मादक पदार्थों के ख़तरे का मुक़ाबला किया जा सके और इस तरह इसे भयावह संकट में तब्दील होने से रोका जा सके. इसके बावजूद आने वाले दिनों में ऐसा लगता है कि इस क्षेत्र में सिर्फ़ यथास्थिति बनाए रखने के लिए ज़्यादा ध्यान देने और समर्थन की ज़रूरत पड़ेगी. मध्य एशियाई देशों और रूस को चाहिए कि वो इस ख़तरे के बढ़ने से पहले असरदार ढंग से इसके मुक़ाबले के लिए नई क्षेत्रीय एवं राष्ट्रीय मादक पदार्थ नीतियों पर विचार करें. रूस, कज़ाकिस्तान और बेलारूस के बीच यूरेशियन इकोनॉमिक यूनियन समझौते का दुरुपयोग मादक पदार्थों के ख़िलाफ़ कोशिशों को नाकाम बनाने में किया जा सकता है. ऐसे में सदस्य देशों को ऐसे क़दम उठाने चाहिए जो एक तरफ़ जहां सुरक्षा में बढ़ोतरी करें, वहीं दूसरी तरफ़ सामानों के आवागमन में रुकावट न डालें. इन देशों को ये भी समझना चाहिए कि रोकथाम वाले क़दम पर्याप्त नहीं हैं. उन्हें मादक पदार्थों की तस्करी के साथ-साथ मादक पदार्थों के दुरुपयोग का मुक़ाबला करने के लिए राष्ट्रीय क्षमता तैयार करनी चाहिए. उन्हें मादक पदार्थ को लेकर पुनर्वास के बेहतर कार्यक्रम पर भी निवेश करना चाहिए और ऐसे मार्गदर्शी कार्यक्रम चलाने की कोशिश करनी चाहिए ताकि सुई के फिर से इस्तेमाल को रोका जा सके. सुई के दोबारा इस्तेमाल की वजह से इस क्षेत्र में एचआईवी ख़तरनाक संक्रामक बीमारी का रूप ले चुकी है. मादक पदार्थों की तस्करी और आपराधिक समूहों को रोकने के लिए सीमा पर सख़्त तलाशी लेनी चाहिए और किसी भी गिरोह को खड़ा होने का मौक़ा, ख़ास तौर पर दूर-दराज़ के सीमावर्ती क्षेत्रों में, नहीं मिलना चाहिए. कई यूरोपीय देश इस क्षेत्र में क्षमता के निर्माण में शामिल हैं लेकिन इसके बावजूद इस बात की ज़्यादा उम्मीद है कि रूस के साथ इस क्षेत्र की नज़दीकी और क़रीबी रिश्तों की वजह से जर्मनी जैसे देश “सेंट्रल एशिया ड्रग एक्शन प्रोग्राम” (सीएडीएपी 6) की फंडिंग बंद करने का फ़ैसला ले सकते हैं और इसकी जगह कहीं और निवेश करने पर ध्यान दे सकते हैं.

Source: https://dataunodc.un.org/dp-drug-seizures

रूस

पहले से अस्थिर हालात यूक्रेन संकट से और भी प्रभावित हुआ है. यूक्रेन संकट की वजह से पश्चिमी देशों ने बड़े बैंक, बड़े कारोबारियों और पुतिन के क़रीबी सहयोगियों पर आर्थिक प्रतिबंध लगाए हैं. इस क़दम का ये नतीजा भी निकला है कि अलग-अलग उद्योगों जैसे कि तकनीक, फ़ैशन, वित्त और यहां तक कि जहाज़ उद्योग से जुड़ी पश्चिमी देशों की कंपनियों ने बड़ी संख्या में इन आर्थिक प्रतिबंधों का समर्थन करने के लिए कार्रवाई की है और वो पूरे रूस में अपना काम-काज या तो रोक रही हैं या बंद कर रही हैं. इस कार्रवाई की वजह से हज़ारों लोगों की नौकरियां जाने के अलावा इससे रूस दुनिया के ‘पायरेसी कैपिटल’ के रूप में भी उभर सकता है. इसके कारण रूस में बड़े पैमाने पर संगठित अपराध की वापसी हो सकती है जो पश्चिमी देशों के सामानों के लिए काला बाज़ार का नियंत्रण कर सकता है. सेना पर ज़रूरत से ज़्यादा सरकारी खर्च का नतीजा ये निकला है कि जिस फंड का इस्तेमाल दूसरे महत्वपूर्ण कार्यक्रमों, जैसे कि मादक पदार्थों के ख़िलाफ़ लड़ाई में इस्तेमाल होने वाला फंड, में होना था उसका वहां उपयोग नहीं हो रहा है. इस तरह के आर्थिक विनाश के मानवीय लागत का अगर मादक पदार्थों के ख़िलाफ़ नीति के नज़रिए से अध्ययन किया जाए तो ये माना जा सकता है कि अगर हालात ऐसे ही ख़राब होते रहे तो कुछ लोग जहां अपनी आमदनी के लिए अपराध में उतर सकते हैं, वहीं कुछ लोग अपनी मुश्किल स्थिति से दूर भागने के लिए हानिकारक मादक पदार्थों का उपयोग करने वाले बन सकते हैं. रूस उन देशों में से एक है जहां ऐतिहासिक तौर पर शराब के कारण दुर्व्यवहार की सबसे ज़्यादा घटनाएं होती हैं. अगर इसमें हेरोइन को भी जोड़ दिया जाए तो ये एक सामाजिक त्रासदी का कारण बन सकता है. महामारी की वजह से पहले ही रूस में मादक पदार्थों से जुड़ी मौतों में तेज़ बढ़ोतरी देखी गई है. रूस की सरकार के आंकड़ों के मुताबिक़ 2016 से 2018 के बीच रूस में हर साल 4,400 से लेकर 4,800 लोगों की मौत मादक पदार्थों की वजह से हुई है लेकिन 2020 में 7,316 लोगों की मौत ड्रग्स के ओवरडोज़ की वजह से हुई. महामारी की वजह से मानसिक और आर्थिक मुश्किलों का नतीजा मादक पदार्थों के कारण मौतों में 60 प्रतिशत की तेज़ बढ़ोतरी के रूप में निकला. रूस की सरकार को इस मुद्दे पर प्राथमिकता से विचार करना चाहिए ताकि पूरे देश के स्वास्थ्य और सुरक्षा को सुनिश्चित किया जा सके.

सच्चाई ये है कि किसी को ये सही ढंग से पता नहीं है कि अफ़ग़ानिस्तान से कितनी मात्रा में हेरोइन ताजिकिस्तान और दूसरे मध्य एशियाई गणराज्यों के ज़रिए जाती है. इस तरह का अनुमान लगाने की कोई मज़बूत प्रक्रिया नहीं है. 

निष्कर्ष

यूएनओडीसी का कहना है कि पिछले चार में से तीन वर्षों के दौरान अफ़ग़ानिस्तान में अफीम के उत्पादन का सर्वोच्च स्तर देखा गया है. जिस वक़्त कोविड-19 महामारी की तीव्रता थी, उस वक़्त भी यानी 2020 में अफीम की खेती में 37 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की गई. यूएनओडीसी से स्पष्ट संदेश के बावजूद अंतर्राष्ट्रीय समुदाय ने मध्य एशिया में मादक पदार्थों की तस्करी का मुक़ाबला करने के लिए बुनियादी ढांचा स्थापित करने में पर्याप्त निवेश नहीं किया है जबकि ये क्षेत्र पूरे यूरोप और एशिया में मादक पदार्थों की तस्करी का केंद्र बिंदु है. इसी समझ के साथ अलग-अलग सरकारों को मध्य एशिया के ज़रिए अवैध मादक पदार्थों की तस्करी का मुक़ाबला करने के लिए नये जोश के साथ आगे बढ़ना चाहिए.

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