पश्चिमी देशों में कोविड-19 महामारी के चलते फिर से लॉकडाउन लागू किए जा रहे हैं; इस उठा–पटक के चलते वैश्विक अर्थव्यवस्था को नुक़सान पहुंचने का सिलसिला जारी है. ऐसे मंज़र में ज़्यादातर देशों को क्षति उठानी पड़ रही है. मौजूदा परिदृश्य में अकेला चीन ही है, जो मुनाफ़े में है. कम से कम अभी तो ऐसा ही लग रहा है. वर्ष 2020 की तीसरी तिमाही में चीन की विकास दर 4.9 प्रतिशत रही है. वहीं, पूरे साल की पहली तीन तिमाहियों को मिला लें, तो चीन की विकास दर 0.7 फ़ीसद रही है. सितंबर महीने में ख़ुदरा बिक्री में 3.3 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. हालांकि, 2020 के पहले नौ महीनों के दौरान ख़ुदरा बिक्री में 7.2 फ़ीसद की कमी दर्ज की गई थी.
अकेले नवंबर महीने में चीन के निर्यातों में 21.1 प्रतिशत का इज़ाफ़ा हुआ है. जबकि अक्टूबर 2020 में चीन के निर्यात 11.4 प्रतिशत बढ़े थे (Figure 1). फ़रवरी 2018 के बाद चीन के निर्यातों में दर्ज की गई ये सबसे अधिक बढ़ोत्तरी है. चीन के निर्यात में पिछले छह महीनों से लगातार इज़ाफ़ा होता देखा जा रहा है. ऐसा लगता है कि इस समय चीन के कारखाने, पश्चिमी देशों में लागू की गई नई पाबंदियों का भरपूर फ़ायदा उठा रहे हैं.
चीन के आयात के आंकड़े भी उसके कोरोना महामारी से उबरने का इशारा कर रहे हैं. मई 2020 में चीन के आयातों की विकास दर नकारात्मक यानी (-) 16.6 प्रतिशत रही थी, जो नवंबर में बढ़कर 4.5 फ़ीसद हो गई. लगातार तीन महीनों से चीन के आयात में वृद्धि हो रही है. चीन में औद्योगिक आपूर्ति और खपत की मांग में हमेशा से अंतर देखा गया है. लेकिन, अब चीन के आयात और निर्यात में एक जैसी बढ़ोत्तरी इस बात का स्पष्ट संकेत है कि चीन में आर्थिक गतिविधियां पटरी पर वापस आ रही हैं. ये एक ऐसा पहलू है, जो हम दुनिया की अन्य प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में बिल्कुल नहीं देख रहे हैं. निश्चित रूप से आज चीन अन्य देशों के मुक़ाबले बेहतर स्थिति में है, भले ही वो अस्थायी क्यों न हो.
चीन के निर्यात में पिछले छह महीनों से लगातार इज़ाफ़ा होता देखा जा रहा है. ऐसा लगता है कि इस समय चीन के कारखाने, पश्चिमी देशों में लागू की गई नई पाबंदियों का भरपूर फ़ायदा उठा रहे हैं.
अगस्त 2020 के बाद, चीन का व्यापार सरप्लस कुछ महीनों तक सिकुड़ता गया था. लेकिन, सितंबर महीने के बाद उसका व्यापारिक सरप्लस फिर से बढ़ता दर्ज किया गया. 2020 की शुरुआत में जब कोविड-19 की महामारी ने हमला बोला था, तो चीन का अन्य देशों के साथ ये व्यापारिक असंतुलन लगभग शून्य हो गया था. कोरोना महामारी के शुरुआती हमले से चीन काफ़ी अच्छे तरीक़े से निपटा था. वो दुनिया के उन गिने–चुने देशों में से था, जिन्होंने मार्च 2020 में लॉकडाउन में रियायतें देने की शुरुआत की थी. अब उसके नतीजे दिखने लगे हैं (Figure 2).
जैसा कि उल्लेख किया गया है कि चीन के घरेलू बाज़ार में ख़ुदरा बिक्री में बढ़ोत्तरी के आंकड़े, अन्य समग्र आर्थिक बुनियादी तथ्यों से मेल नहीं खाते हैं. ऐसा लगता है कि इससे चीन के पास औद्योगिक उत्पादों का ज़ख़ीरा जमा हो गया होगा, और ये चीन के सामने नई चुनौती खड़ी करने वाली बात है. पर, अभी निर्यात में लगातार वृद्धि से चीन की इस समस्या का समाधान भी होता दिख रहा है.
हालांकि, आने वाले समय में चीन को बढ़ती बेरोज़गारी, घरेलू आमदनी में कमी और उपभोक्ताओं के व्यय के तौर–तरीक़ों में बदलाव (जो उपभोक्ताओं की मांग पर विपरीत प्रभाव डाल सकता है) जैसी चुनौती का सामना करना होगा. इसीलिए, आज ही नहीं भविष्य में भी चीन के आर्थिक उत्थान के लिए निर्यात में लगातार बढ़ोत्तरी की ज़रूरत होगी.
महामारी के दौर में चीन की ये आर्थिक और व्यापारिक उपलब्धियां, अन्य देशों में चीन के साथ अलगाव की परिचर्चा को और रफ़्तार देंगी. पिछले दो दशकों के दौरान चीन की आर्थिक शक्ति में इस वृद्धि और जियोपॉलिटिकल मोर्चे पर उसके हालिया आक्रामक रवैये ने ही चीन के साथ डिकपलिंग की बहस को जन्म दिया है.
2001 में विश्व व्यापार संगठन का सदस्य बनने के बाद, चीन को विकसित देशों के बाज़ार तक पहुंच बनाने का मौक़ा मिला था. इससे अगले दो दशकों में चीन को अपने आर्थिक विकास को रफ़्तार देने का एक नया ज़रिया मिल गया था. हालांकि, जिन विकसित देशों ने अपने बाज़ार चीन के लिए खोले थे, उन्होंने चीन की बहुत सी ग़लत हरकतों की अनदेखी भी की. ये चीन के ऐसे क़दम थे, जो नियमों पर आधारित अंतरराष्ट्रीय व्यापारिक और आर्थिक व्यवस्था के ख़िलाफ़ थे. इस प्रक्रिया से गुज़रते हुए चीन ने ख़ुद को दुनिया के कारखाने के रूप में विकसित कर लिया. आज चीन अकेले ही दुनिया के कुल मैन्युफैक्चरिंग उत्पाद का 30 प्रतिशत माल तैयार करता है.
जब वुहान से पैदा हुई कोविड-19 की महामारी ने दुनिया पर धावा बोला, तो भी चीन का वैश्विक नियमों से खिलवाड़ करने का सिलसिला जारी रहा. महामारी से मिल–जुलकर निपटने के लिए बाक़ी दुनिया से वायरस संबंधी जानकारी साझा करने के बजाय आज भी चीन इसी कोशिश में जुटा है कि वो नई–नई कहानियां गढ़कर इस महामारी को दुनिया भर में फैला देने की अपनी जवाबदेही से बच जाए.
चीन की इन्ही हरकतों की वजह से आज अगर दुनिया के तमाम देशों की सरकारें चीन के व्यापारिक तौर तरीक़ों और उसके साथ अपने सामरिक संबंधों पर नए सिरे से विचार कर रही हैं, तो इसमें हैरानी की कोई बात नहीं लगती. डॉनल्ड ट्रंप के शासन काल के दौरान अमेरिका पहले ही चीन के साथ व्यापार युद्ध में उलझा हुआ था. आज यूरोपीय संघ में भी चीन के साथ संबंध को सीमित करने के लिए गंभीर परिचर्चाएं हो रही हैं.
इसी वजह से चीन के साथ अलगाव–कम से कम चर्चा के स्तर पर–तो पिछले कुछ महीनों से केंद्र में आ ही गया है.
चीन के साथ डिकपलिंग कर पाना किस हद तक संभव है?
लेकिन, सवाल ये है कि चीन के साथ दुनिया के तमाम देशों के लिए डिकपलिंग कर पाना अभी किस हद तक संभव है?
अगर हम चीन के नवंबर 2020 के क्षेत्रवार और हर देश के अलग अलग आंकड़े पर नज़र डालें, तो उसकी अर्थव्यवस्था के बाक़ी देशों के अलग हो पाने की संभावना बेहद कम दिखने लगती है–कम से कम अभी के स्तर पर तो ऐसा ही लगता है. नवंबर 2020 तक चीन का 32.6 प्रतिशत सकल निर्यात अमेरिका और यूरोपीय देशों को हुआ है. अगर हम इसमें जापान, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और ब्रिटेन को चीन के निर्यात के आंकड़ों को भी जोड़ लें, तो इनकी चीन के कुल निर्यात में हिस्सेदारी बढ़कर 45 प्रतिशत हो जाती है (Figure 3).
इससे दो हक़ीक़तें एकदम साफ़ हो जाती हैं. पहली तो ये कि विकसित देशों की अर्थव्यवस्थाएं अभी भी कोविड-19 महामारी के क़हर से जूझ रही हैं और अभी वो चीन के साथ किसी तरह की दूरी बनाने का जोखिम उठा पाने की स्थिति में नहीं हैं. दूसरी सच्चाई ये है कि अगर ये देश बिना किसी योजना के, हड़बड़ी में चीन से आर्थिक दूरी (Decoupling) बनाने का फ़ैसला करते हैं, तो इससे उन्हें फ़ायदे से अधिक नुक़सान होने का डर है.
अगर हम चीन द्वारा किए जाने वाले आयातों के स्रोत पर नज़र डालें, तो ये बात और भी साफ़ हो जाती है. चीन अपने कुल आयात का 19 प्रतिशत हिस्सा अमेरिका और यूरोपीय संघ (EU) से मंगाता है. अगर हम इसमें जापान, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और ब्रिटेन से चीन को होने वाले निर्यात के आंकड़ों को जोड़ दें, तो ये आंकड़ा 35 प्रतिशत तक पहुंच जाता है. मज़े की बात तो ये है कि चीन ने अपने आयात का 16 प्रतिशत हिस्सा उन देशों से मंगाया, जो न तो उसके बड़े व्यापारिक साझीदार हैं और न ही बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में गिने जाते हैं. (Figure 4).
पश्चिमी देशों में कोविड-19 महामारी के चलते फिर से लॉकडाउन लागू किए जा रहे हैं; इस उठा–पटक के चलते वैश्विक अर्थव्यवस्था को नुक़सान पहुंचने का सिलसिला जारी है. ऐसे मंज़र में ज़्यादातर देशों को क्षति उठानी पड़ रही है. मौजूदा परिदृश्य में अकेला चीन ही है, जो मुनाफ़े में है. कम से कम अभी तो ऐसा ही लग रहा है. वर्ष 2020 की तीसरी तिमाही में चीन की विकास दर 4.9 प्रतिशत रही है. वहीं, पूरे साल की पहली तीन तिमाहियों को मिला लें, तो चीन की विकास दर 0.7 फ़ीसद रही है. सितंबर महीने में ख़ुदरा बिक्री में 3.3 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. हालांकि, 2020 के पहले नौ महीनों के दौरान ख़ुदरा बिक्री में 7.2 फ़ीसद की कमी दर्ज की गई थी.
अकेले नवंबर महीने में चीन के निर्यातों में 21.1 प्रतिशत का इज़ाफ़ा हुआ है. जबकि अक्टूबर 2020 में चीन के निर्यात 11.4 प्रतिशत बढ़े थे (Figure 1). फ़रवरी 2018 के बाद चीन के निर्यातों में दर्ज की गई ये सबसे अधिक बढ़ोत्तरी है. चीन के निर्यात में पिछले छह महीनों से लगातार इज़ाफ़ा होता देखा जा रहा है. ऐसा लगता है कि इस समय चीन के कारखाने, पश्चिमी देशों में लागू की गई नई पाबंदियों का भरपूर फ़ायदा उठा रहे हैं.
चीन के आयात के आंकड़े भी उसके कोरोना महामारी से उबरने का इशारा कर रहे हैं. मई 2020 में चीन के आयातों की विकास दर नकारात्मक यानी (-) 16.6 प्रतिशत रही थी, जो नवंबर में बढ़कर 4.5 फ़ीसद हो गई. लगातार तीन महीनों से चीन के आयात में वृद्धि हो रही है. चीन में औद्योगिक आपूर्ति और खपत की मांग में हमेशा से अंतर देखा गया है. लेकिन, अब चीन के आयात और निर्यात में एक जैसी बढ़ोत्तरी इस बात का स्पष्ट संकेत है कि चीन में आर्थिक गतिविधियां पटरी पर वापस आ रही हैं. ये एक ऐसा पहलू है, जो हम दुनिया की अन्य प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में बिल्कुल नहीं देख रहे हैं. निश्चित रूप से आज चीन अन्य देशों के मुक़ाबले बेहतर स्थिति में है, भले ही वो अस्थायी क्यों न हो.
चीन के निर्यात में पिछले छह महीनों से लगातार इज़ाफ़ा होता देखा जा रहा है. ऐसा लगता है कि इस समय चीन के कारखाने, पश्चिमी देशों में लागू की गई नई पाबंदियों का भरपूर फ़ायदा उठा रहे हैं.
अगस्त 2020 के बाद, चीन का व्यापार सरप्लस कुछ महीनों तक सिकुड़ता गया था. लेकिन, सितंबर महीने के बाद उसका व्यापारिक सरप्लस फिर से बढ़ता दर्ज किया गया. 2020 की शुरुआत में जब कोविड-19 की महामारी ने हमला बोला था, तो चीन का अन्य देशों के साथ ये व्यापारिक असंतुलन लगभग शून्य हो गया था. कोरोना महामारी के शुरुआती हमले से चीन काफ़ी अच्छे तरीक़े से निपटा था. वो दुनिया के उन गिने–चुने देशों में से था, जिन्होंने मार्च 2020 में लॉकडाउन में रियायतें देने की शुरुआत की थी. अब उसके नतीजे दिखने लगे हैं (Figure 2).
जैसा कि उल्लेख किया गया है कि चीन के घरेलू बाज़ार में ख़ुदरा बिक्री में बढ़ोत्तरी के आंकड़े, अन्य समग्र आर्थिक बुनियादी तथ्यों से मेल नहीं खाते हैं. ऐसा लगता है कि इससे चीन के पास औद्योगिक उत्पादों का ज़ख़ीरा जमा हो गया होगा, और ये चीन के सामने नई चुनौती खड़ी करने वाली बात है. पर, अभी निर्यात में लगातार वृद्धि से चीन की इस समस्या का समाधान भी होता दिख रहा है.
हालांकि, आने वाले समय में चीन को बढ़ती बेरोज़गारी, घरेलू आमदनी में कमी और उपभोक्ताओं के व्यय के तौर–तरीक़ों में बदलाव (जो उपभोक्ताओं की मांग पर विपरीत प्रभाव डाल सकता है) जैसी चुनौती का सामना करना होगा. इसीलिए, आज ही नहीं भविष्य में भी चीन के आर्थिक उत्थान के लिए निर्यात में लगातार बढ़ोत्तरी की ज़रूरत होगी.
महामारी के दौर में चीन की ये आर्थिक और व्यापारिक उपलब्धियां, अन्य देशों में चीन के साथ अलगाव की परिचर्चा को और रफ़्तार देंगी. पिछले दो दशकों के दौरान चीन की आर्थिक शक्ति में इस वृद्धि और जियोपॉलिटिकल मोर्चे पर उसके हालिया आक्रामक रवैये ने ही चीन के साथ डिकपलिंग की बहस को जन्म दिया है.
2001 में विश्व व्यापार संगठन का सदस्य बनने के बाद, चीन को विकसित देशों के बाज़ार तक पहुंच बनाने का मौक़ा मिला था. इससे अगले दो दशकों में चीन को अपने आर्थिक विकास को रफ़्तार देने का एक नया ज़रिया मिल गया था. हालांकि, जिन विकसित देशों ने अपने बाज़ार चीन के लिए खोले थे, उन्होंने चीन की बहुत सी ग़लत हरकतों की अनदेखी भी की. ये चीन के ऐसे क़दम थे, जो नियमों पर आधारित अंतरराष्ट्रीय व्यापारिक और आर्थिक व्यवस्था के ख़िलाफ़ थे. इस प्रक्रिया से गुज़रते हुए चीन ने ख़ुद को दुनिया के कारखाने के रूप में विकसित कर लिया. आज चीन अकेले ही दुनिया के कुल मैन्युफैक्चरिंग उत्पाद का 30 प्रतिशत माल तैयार करता है.
जब वुहान से पैदा हुई कोविड-19 की महामारी ने दुनिया पर धावा बोला, तो भी चीन का वैश्विक नियमों से खिलवाड़ करने का सिलसिला जारी रहा. महामारी से मिल–जुलकर निपटने के लिए बाक़ी दुनिया से वायरस संबंधी जानकारी साझा करने के बजाय आज भी चीन इसी कोशिश में जुटा है कि वो नई–नई कहानियां गढ़कर इस महामारी को दुनिया भर में फैला देने की अपनी जवाबदेही से बच जाए.
चीन की इन्ही हरकतों की वजह से आज अगर दुनिया के तमाम देशों की सरकारें चीन के व्यापारिक तौर तरीक़ों और उसके साथ अपने सामरिक संबंधों पर नए सिरे से विचार कर रही हैं, तो इसमें हैरानी की कोई बात नहीं लगती. डॉनल्ड ट्रंप के शासन काल के दौरान अमेरिका पहले ही चीन के साथ व्यापार युद्ध में उलझा हुआ था. आज यूरोपीय संघ में भी चीन के साथ संबंध को सीमित करने के लिए गंभीर परिचर्चाएं हो रही हैं.
इसी वजह से चीन के साथ अलगाव–कम से कम चर्चा के स्तर पर–तो पिछले कुछ महीनों से केंद्र में आ ही गया है.
चीन के साथ डिकपलिंग कर पाना किस हद तक संभव है?
लेकिन, सवाल ये है कि चीन के साथ दुनिया के तमाम देशों के लिए डिकपलिंग कर पाना अभी किस हद तक संभव है?
अगर हम चीन के नवंबर 2020 के क्षेत्रवार और हर देश के अलग अलग आंकड़े पर नज़र डालें, तो उसकी अर्थव्यवस्था के बाक़ी देशों के अलग हो पाने की संभावना बेहद कम दिखने लगती है–कम से कम अभी के स्तर पर तो ऐसा ही लगता है. नवंबर 2020 तक चीन का 32.6 प्रतिशत सकल निर्यात अमेरिका और यूरोपीय देशों को हुआ है. अगर हम इसमें जापान, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और ब्रिटेन को चीन के निर्यात के आंकड़ों को भी जोड़ लें, तो इनकी चीन के कुल निर्यात में हिस्सेदारी बढ़कर 45 प्रतिशत हो जाती है (Figure 3).
इससे दो हक़ीक़तें एकदम साफ़ हो जाती हैं. पहली तो ये कि विकसित देशों की अर्थव्यवस्थाएं अभी भी कोविड-19 महामारी के क़हर से जूझ रही हैं और अभी वो चीन के साथ किसी तरह की दूरी बनाने का जोखिम उठा पाने की स्थिति में नहीं हैं. दूसरी सच्चाई ये है कि अगर ये देश बिना किसी योजना के, हड़बड़ी में चीन से आर्थिक दूरी (Decoupling) बनाने का फ़ैसला करते हैं, तो इससे उन्हें फ़ायदे से अधिक नुक़सान होने का डर है.
अगर हम चीन द्वारा किए जाने वाले आयातों के स्रोत पर नज़र डालें, तो ये बात और भी साफ़ हो जाती है. चीन अपने कुल आयात का 19 प्रतिशत हिस्सा अमेरिका और यूरोपीय संघ (EU) से मंगाता है. अगर हम इसमें जापान, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और ब्रिटेन से चीन को होने वाले निर्यात के आंकड़ों को जोड़ दें, तो ये आंकड़ा 35 प्रतिशत तक पहुंच जाता है. मज़े की बात तो ये है कि चीन ने अपने आयात का 16 प्रतिशत हिस्सा उन देशों से मंगाया, जो न तो उसके बड़े व्यापारिक साझीदार हैं और न ही बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में गिने जाते हैं. (Figure 4)
चीन की जियोपॉलिटिकल आक्रामकता और इसकी विश्व की महाशक्ति बनने की आकांक्षा का मक़सद सिर्फ़ एक है. वो दुनिया का नया नीति निर्माता बनना चाहता है और विश्व व्यवस्था के संचालन के लिए ऐसे नए नियम बनाना चाहता है, जो उसके अपने हितों के अनुकूल हों.
इससे मौजूदा अंतरराष्ट्रीय व्यापारिक बनावट की एक और बात स्पष्ट हो जाती है. जो देश चीन से आर्थिक तौर पर अलग होने में दिलचस्पी रखते हैं, वो चीन से आयात पर निर्भर हैं. वहीं, चीन उनके सामानों के आयात पर बिल्कुल निर्भर नहीं है. हालांकि, चीन के प्रमुख व्यापारिक साझीदारों के साथ उसके आयात और निर्यात की सही तस्वीर समझने के लिए इसकी और बारीक़ी से समीक्षा करने की ज़रूरत है. लेकिन, मोटे तौर पर जो आंकड़े हमारे सामने हैं, उनके आधार पर चीन से तुरंत इन देशों का अलग हो पाना संभव नहीं दिखता है.
चीन की महाशक्ति बनने की आकांक्षा
चीन की जियोपॉलिटिकल आक्रामकता और इसकी विश्व की महाशक्ति बनने की आकांक्षा का मक़सद सिर्फ़ एक है. वो दुनिया का नया नीति निर्माता बनना चाहता है और विश्व व्यवस्था के संचालन के लिए ऐसे नए नियम बनाना चाहता है, जो उसके अपने हितों के अनुकूल हों. ज़ाहिर है चीन की इन गतिविधियों को लेकर दुनिया के अन्य देश आशंकित ही होंगे. इसी कारण से बहुत से देश आज व्यापारिक स्तर पर चीन से अलग होना चाहते हैं. लेकिन, ये बात कहनी जितनी आसान है, इसे लागू कर पाना उतना ही मुश्किल है. ख़ास तौर से तब और जब चीन से अलगाव के लिए अब तक कोई ठोस अंतरराष्ट्रीय योजना नहीं बनी है. चीन के हालिया व्यापारिक आंकड़े बड़ी मज़बूती से इसकी गवाही देते हैं.
ये चाइना क्रॉनिकल्स सीरीज़ का 107वां लेख है. सीरीज़ के अन्य लेख यहां पढ़ें.
इससे मौजूदा अंतरराष्ट्रीय व्यापारिक बनावट की एक और बात स्पष्ट हो जाती है. जो देश चीन से आर्थिक तौर पर अलग होने में दिलचस्पी रखते हैं, वो चीन से आयात पर निर्भर हैं. वहीं, चीन उनके सामानों के आयात पर बिल्कुल निर्भर नहीं है. हालांकि, चीन के प्रमुख व्यापारिक साझीदारों के साथ उसके आयात और निर्यात की सही तस्वीर समझने के लिए इसकी और बारीक़ी से समीक्षा करने की ज़रूरत है. लेकिन, मोटे तौर पर जो आंकड़े हमारे सामने हैं, उनके आधार पर चीन से तुरंत इन देशों का अलग हो पाना संभव नहीं दिखता है.
चीन की महाशक्ति बनने की आकांक्षा
चीन की जियोपॉलिटिकल आक्रामकता और इसकी विश्व की महाशक्ति बनने की आकांक्षा का मक़सद सिर्फ़ एक है. वो दुनिया का नया नीति निर्माता बनना चाहता है और विश्व व्यवस्था के संचालन के लिए ऐसे नए नियम बनाना चाहता है, जो उसके अपने हितों के अनुकूल हों. ज़ाहिर है चीन की इन गतिविधियों को लेकर दुनिया के अन्य देश आशंकित ही होंगे. इसी कारण से बहुत से देश आज व्यापारिक स्तर पर चीन से अलग होना चाहते हैं. लेकिन, ये बात कहनी जितनी आसान है, इसे लागू कर पाना उतना ही मुश्किल है. ख़ास तौर से तब और जब चीन से अलगाव के लिए अब तक कोई ठोस अंतरराष्ट्रीय योजना नहीं बनी है. चीन के हालिया व्यापारिक आंकड़े बड़ी मज़बूती से इसकी गवाही देते हैं.
ये चाइना क्रॉनिकल्स सीरीज़ का 107वां लेख है. सीरीज़ के अन्य लेख यहां पढ़ें.
The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.