अमेरिकी संसद के निचले सदन हाउस ऑफ़ रिप्रेज़ेंटेटिव्स की स्पीकर नैंसी पेलोसी की संभावित ताइवान यात्रा ने अमेरिका को एक ऐसी मुश्किल में डाल दिया है, जिससे राष्ट्रपति जो बाइडेन असहज हैं और अमेरिका की सेना, चीन की कठोर धमकियों को लेकर चिंतित है. नैंसी पेलोसी का ये ताइवान दौरा उस वक़्त एक नए संकट को जन्म दे सकता है, जब अमेरिका का ध्यान पूरी तरह से यूक्रेन युद्ध पर लगा हुआ है और वो रूस के ख़िलाफ़ यूरोप की एकजुटता को बरक़रार रखने की कोशिश कर रहा है. वहीं, चीन जो ख़ुद को रूस से ज़्यादा ताक़तवर जताने को बेकरार है, उसने नैंसी पेलोसी के दौरे को लेकर, अमेरिका को गंभीर नतीजों की धमकी दी है.
जब भी अमेरिका का कोई अधिकारी ताइवान का दौरा करता है तो चीन उसकी निंदा करने के साथ- साथ अपनी सैन्य ताक़त की नुमाइश भी करता है. लेकिन, नैंसी पेलोसी के अगस्त में इस प्रस्तावित ताइवान ने इस बार अमेरिका को जितनी फ़िक्र में डाल दिया है, वैसे मुद्दे कम ही होते हैं.
चीन की इस चुनौती की सबसे बड़ी वजह है, अमेरिका की अपनी ‘वन चाइना नीति’, जिसे 1979 में अपनाया गया था. तब अमेरिका ने बीजिंग की सरकार को चीन की वैध सरकार के तौर पर मान्यता दी थी. अमेरिका ने तब ताइवान को चीन का ही एक हिस्सा माना था. हालांकि, तब अमेरिका ने ताइवान के ऊपर संप्रभु अधिकार को मान्यता नहीं दी थी. उसी साल अमेरिकी कांग्रेस ने ताइवान रिलेशंस एक्ट पारित किया था. इस क़ानून के ज़रिए अमेरिका ने ताइवान को आत्मरक्षा के लायक़ हथियार देने का भी वादा किया था और कहा था कि ‘ताइवान को किसी भी तरह के हिंसक तौर-तरीक़े से चीन से जोड़ने की कोशिशों को पश्चिमी प्रशांत क्षेत्र के साथ साथ अमेरिका की शांति और सुरक्षा के लिए भयंकर ख़तरा माना जाएगा.’ अमेरिका ने अपने इस रवैये से ‘सामरिक दुविधा’ वाली नीति अपनाई थी और चीन को इस ग़फ़लत में डाल दिया था कि अगर उसने हमला किया तो अमेरिका वास्तव में ताइवान की रक्षा के लिए आगे आएगा या नहीं.
पेलोसी की यात्रा का विरोध
जब भी अमेरिका का कोई अधिकारी ताइवान का दौरा करता है तो चीन उसकी निंदा करने के साथ- साथ अपनी सैन्य ताक़त की नुमाइश भी करता है. लेकिन, नैंसी पेलोसी के अगस्त में इस प्रस्तावित ताइवान ने इस बार अमेरिका को जितनी फ़िक्र में डाल दिया है, वैसे मुद्दे कम ही होते हैं. इसके चलते दौरे के समर्थक और विरोधी लगातार इस विवादित मुद्दे पर बहस में जुटे हैं. पेलोसी के दौरे के पक्ष और विरोध में दिए जा रहे तर्क, अमेरिका की उन्हीं पुरानी दुविधाओं की याद दिलाते हैं, जिनमें चीन की संवेदनाओं का ख़याल रखने या न रखने के बीच खींचतान चलती रही है.
जो लोग नैंसी पेलोसी के प्रस्तावित ताइवान दौरे का विरोध कर रहे हैं, वो उसी विचारधारा के मानने वाले हैं, जो अमेरिका की सामरिक जवाबदेही पर चीन के संवेदनशील मुद्दों का ख़याल रखने को तरज़ीह देते हैं. अमेरिका में चीन के हितों के प्रति संवेदनशीलता रखने वाले इस ख़ेमे की नींव हेनरी किसिंजर ने रखी थी. इस ख़ेमे में शामिल लोग चीन के बनावटी ग़ुस्से का ख़ूब शोर मचाते हैं और ख़ुद अमेरिका की बढ़त को कमतर करके आंकते हैं. ये सच है कि आज का चीन, पहले के दशकों की तुलना में बिल्कुल अलग और ज़्यादा ताक़तवर देश है; उसकी धमकियों के पीछे सैन्य शक्ति भी है और इसका इस्तेमाल करने को लेकर उसके नेताओं की मज़बूत इच्छाशक्ति भी है. लेकिन, सवाल ये है कि क्या चीन के पास अमेरिका के वरिष्ठ अधिकारियों के दौरे पर वीटो लगाने का अधिकार होना चाहिए?
बाइडेन प्रशासन का खुलकर पेलोसी के दौरे के ख़िलाफ़ रुख़ अपनाने ने चीन को अपनी आलोचना को और मुखर बनाने का मौक़ा दे दिया है. भड़काऊ बयानों के लिए मशहूर, चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता झाओ लिजिआन ने चेतावनी दी कि ‘अगर नैंसी पेलोसी ने ताइवान का दौरा किया तो इसके गंभीर नतीजे होंगे’.
बाइडेन और उनके वरिष्ठ सलाहकारों ने मीडिया में ख़बरें लीक करके ये खुलकर ज़ाहिर कर दिया है कि वो अपनी ही पार्टी की नेता नैंसी पेलोसी के ताइवान के जोखिम भरे दौरे के ख़िलाफ़ हैं. उनका मानना है कि ये आज जब अमेरिका, यूक्रेन युद्ध में व्यस्त है, तो ऐसे दौरे का जोखिम लेने की ज़रूरत है नहीं.
पेलोसी के ताइवान दौरे से चीन को बेवजह उकसाने की ज़रूरत हैं और ये दौरा वैसे भी बेहद प्रतीकात्मक ही है. आगे चलकर चीन इसका अपने हित में इस्तेमाल कर सकता है. बाइडेन प्रशासन की सोच ये है कि इसके बजाय अमेरिका को ताइवान के समर्थन के वास्तविक संकेत देते हुए उसकी आत्मरक्षा की ताक़त को और मज़बूत बनाना चाहिए. बाइडेन प्रशासन का खुलकर पेलोसी के दौरे के ख़िलाफ़ रुख़ अपनाने ने चीन को अपनी आलोचना को और मुखर बनाने का मौक़ा दे दिया है. भड़काऊ बयानों के लिए मशहूर, चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता झाओ लिजिआन ने चेतावनी दी कि ‘अगर नैंसी पेलोसी ने ताइवान का दौरा किया तो इसके गंभीर नतीजे होंगे’. लिजियन ने कहा कि, ‘हम इस दौरे को लेकर गंभीरता से तैयार हैं. अगर ये दौरा होता है, और उसके बाद गंभीर नतीजे निकलते हैं, तो अमेरिका को इसकी पूरी ज़िम्मेदारी लेने के लिए तैयार रहना चाहिए.’
चीन के सम्मुख अन्य चुनौतीयां
आज जब चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग, अभूतपूर्व तीसरे कार्यकाल की तैयारी में जुट गए हैं, तो वो कमज़ोर दिखने का जोखिम नहीं ले सकते हैं. सेना की ताक़त की खुली नुमाइश करने वाली चीन की इन धमकियों का मक़सद, तनाव को और बढ़ाने के साथ अमेरिका से घबराई हुई प्रतिक्रिया के लिए हैं, जिनका पिछले कुछ वर्षों से चीन आदी हो चुका है. इस मामले में चीन कुछ हद तक कामयाब होता भी दिख रहा है क्योंकि राष्ट्रपति बाइडेन की तरफ़ से इस सोच को ख़ारिज करना ज़रूरी समझा गया कि वो नैंसी पेलोसी के इस दौरे के समर्थक हैं.
लेकिन, ये सवाल अभी भी बना हुआ है कि चीन के बयान सिर्फ़ उसकी गीदड़ धमकियां हैं, या फिर कुछ और. अमेरिका के किसी अधिकारी के ख़िलाफ़ खुलकर सैन्य क़दम उठाना अमेरिका की तुलना में चीन के लिए ज़्यादा जोखिम भरा होगा. अगर राष्ट्रपति बाइडेन अपने सामने खड़ी चुनौतियों को अभी और बढ़ाना नहीं चाहेंगे, तो चीन की आर्थिक सुस्ती से निपटने और 20वीं पार्टी कांग्रेस से पहले आलोचकों का मुंह बंद करने में जुटे शी जिनपिंग तो और भी नहीं चाहेंगे कि टकराव बढ़े.
शी जिनपिंग के सामने इस वक़्त तेज़ी से बढ़ रही बेरोज़गारी, रियल एस्टेट का गहराते संकट और चीन के नागरिकों द्वारा होम लोन की किस्तें चुकाने से इनकार जैसी चुनौतियों के साथ- साथ ज़ीरो कोविड नीति के दूसरे और तीसरे स्तर की मुश्किलों से निपटने की चुनौतियां खड़ी हैं.
शी जिनपिंग के सामने इस वक़्त तेज़ी से बढ़ रही बेरोज़गारी, रियल एस्टेट का गहराते संकट और चीन के नागरिकों द्वारा होम लोन की किस्तें चुकाने से इनकार जैसी चुनौतियों के साथ- साथ ज़ीरो कोविड नीति के दूसरे और तीसरे स्तर की मुश्किलों से निपटने की चुनौतियां खड़ी हैं. इसके साथ साथ, अगर अमेरिका में राष्ट्रपति और उप-राष्ट्रपति के बाद देश की तीसरी सबसे बड़ी नेता नैंसी पेलोसी, सिर्फ़ चीन की दादागिरी के चलते ताइवान का दौरा रद्द कर देती हैं, तो इससे अमेरिका के एशियाई साथी देशों के बीच ग़लत संकेत जाएगा और उन लोगों की सोच को मज़बूती मिलेगी, जो इस क्षेत्र को लेकर अमेरिका की प्रतिबद्धता को कठघरे में खड़ा करते आए हैं.
पेलोसी को मिला समर्थन
चीन के विरोध और बयान एक तरफ़, मगर ताइवान का दौरा करने वाली नैंसी पेलोसी, अमेरिकी संसद के निचले सदन की पहली स्पीकर नहीं होंगी. रिपब्लिकन पार्टी के न्यूट गिंगरिच 1997 में उस वक़्त ताइवान का दौरा किया था, जब वो हाउस ऑफ़ रिप्रेज़ेंटेटिव्स के स्पीकर थे. अपने उस दौरे में न्यूट गिंगरिच ने बड़े स्पष्ट लफ़्ज़ों में चीन के पूर्व राष्ट्रपति जियांग ज़ेमिन समेत तमाम अधिकारियों को जता दिया था कि अगर ताइवान पर हमला होता है, तो अमेरिका उसकी रक्षा करेगा.
न्यूट गिंगरिच ने प्रस्तावित ताइवान दौरे को लेकर, नैंसी पेलोसी का समर्थन किया है और उन्होंने अमेरिकी सेना के इस दौरे का विरोध करने पर सवाल उठाए हैं. गिंगरिच ने ट्विटर पर लिखा कि, ‘नैंसी पेलोसी को खुलेआम ताइवान जाने से परहेज़ करने की चेतावनी देने वाला अमेरिकी रक्षा विभाग आख़िर सोच क्या रहा है? अगर हम चीन के वामपंथियों की धमकियों से इतना ही डरते हैं कि हम अमेरिकी सदन की स्पीकर की हिफ़ाज़त नहीं कर सकते, तो फिर चीन ये कैसे यक़ीन करेगा कि हम ताइवान को उसके ख़िलाफ़ बचाने में मदद करेंगे.’ रिपब्लिकन पार्टी के दूसरे नेताओं, जैसे कि पूर्व विदेश मंत्री माइक पॉम्पिओ भी नैंसी पेलोसी से ताइवान के दौरे पर जाने की अपील कर रहे हैं. पॉम्पिओ ने पेलोसी को उनके साथ चलने का भी प्रस्ताव दिया है. पॉम्पिओ ने ट्वीट किया कि, ‘नैंसी, मैं आपके साथ चलूंगा. मुझ पर चीन में भले ही प्रतिबंध लगा है, मगर आज़ादी पसंद करने वाले ताइवान जाने में कोई पाबंदी नहीं. मैं आपसे वहीं मिलूंगा’.
सीआईए के निदेशक विलियम बर्न्स ने हाल ही में एस्पेन सिक्योरिटी फोरम को बताया था कि शी जिनपिंग, ताइवान को चीन में मिलाने को लेकर प्रतिबद्ध हैं. हालांकि वो अभी यूक्रेन में रूस की सेना की नाकामियों का अध्ययन कर रहे हैं.
आगे की राह
अब नैंसी पेलोसी ताइवान जाती हैं या नहीं. लेकिन, चीन के भविष्य के दांव को लेकर ख़ुद अमेरिका की ख़ुफ़िया एजेंसी सीआईए (CIA) के आकलन के मुताबिक़, अमेरिका के लिए सामरिक दुविधा का दायरा सिमटता जा रहा है. सीआईए के निदेशक विलियम बर्न्स ने हाल ही में एस्पेन सिक्योरिटी फोरम को बताया था कि शी जिनपिंग, ताइवान को चीन में मिलाने को लेकर प्रतिबद्ध हैं. हालांकि वो अभी यूक्रेन में रूस की सेना की नाकामियों का अध्ययन कर रहे हैं. तब बर्न्स ने कहा था कि, ‘ताइवान पर चीन के हमले का जोखिम बढ़ता जा रहा है. हमें लगता है कि आने वाले एक दशक में ऐसा हो सकता है.’ यूक्रेन युद्ध के बाद चीन के नेतृत्व को लगता है कि ताइवान पर हमला कामयाब होने के लिए ज़बरदस्त सैन्य शक्ति की ज़रूरत होगी; यूक्रेन मेंन चल रहे युद्ध में रूस की सेना को जिस तरह के झटके झेलने पड़े हैं, उसने चीन को ‘परेशान कर दिया’ है. आज जब शी जिनपिंग अपने अगले दांव की तैयारी कर रहे हैं, तो अमेरिका के नेताओं को अगर ताइवान की आज़ादी की ज़रा भी फ़िक्र है, तो उन्हें भी चाहिए कि वो अपनी मोर्चेबंदी मज़बूत कर लें.
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