Published on May 10, 2023 Updated 0 Hours ago
“एक जवाबदेह एडटेक (EdTech) तंत्र की स्थापना की ज़रूरत”

महामारी ने दुनिया भर में सामाजिक संबंधों की प्रकृति को काफी हद तक बदल दिया है. चूंकि लॉकडाउन के चलते लोग अपने घरों में बंद थे इसलिए संचार से लेकर व्यापार और स्वास्थ्य जैसे क्षेत्रों में परिस्थितियों को थोड़ा सामान्य बनाने के लिए तेज़ी से वैकल्पिक उपायों को अपनाया गया. डिजिटल प्रौद्योगिकी ने इस बदलाव को जन्म देने में, ख़ासकर शिक्षा क्षेत्र में अहम भूमिका निभाई है.

महामारी के कारण शैक्षिक प्रक्रिया से जुड़ी सभी पहलुओं, जैसे कार्मिक प्रबंधन, शिक्षण विधि एवं‍ मूल्यांकन आदि में डिजिटल उपकरणों के प्रयोग को गति मिली है. वास्तव में, इसके कई गुना फ़ायदे हैं; समर्थक दावा करते हैं कि एडटेक शिक्षा व्यवस्था को और ज्यादा पारदर्शी बनाने में अहम भूमिका निभाता है.


महामारी के कारण शैक्षिक प्रक्रिया से जुड़ी सभी पहलुओं, जैसे कार्मिक प्रबंधन, शिक्षण विधि एवं‍ मूल्यांकन आदि में डिजिटल उपकरणों के प्रयोग को गति मिली है. वास्तव में, इसके कई गुना फ़ायदे हैं; समर्थक दावा करते हैं कि एडटेक शिक्षा व्यवस्था को और ज्यादा पारदर्शी बनाने में अहम भूमिका निभाता है, और ऑगमेंटेड या वर्चुअल रियलिटी (A/VR) के माध्यम से छात्रों को शिक्षा के व्यावहारिक पक्ष से जोड़ता है, जिससे सीखने-सिखाने की प्रक्रिया और बेहतर होती है. इसके अलावा, ऐसे समाधान सभी उम्र और लिंग (जेंडर) के लोगों के लिए सीखने के अवसर प्रदान करके शिक्षा को लोकतांत्रिक बना सकते हैं, जो लोग नए सिरे से कुछ सीखना चाहते हैं, उनके रास्ते में आने वाली संस्थागत बाधाओं को दूर कर सकते हैं, और इस तरह से एक सक्षम और स्फूर्त कार्यबल के निर्माण को बढ़ावा दे सकता है. ये बदले में, सामाजिक असमानताओं को कम करने और समावेशिता बढ़ाने में मदद कर सकते हैं.

हालांकि, यह ज़रूरी है कि इन दावों की जांच करते समय एडटेक से जुड़े जोखिमों की भी पड़ताल की जाए. अध्ययनों में पाया गया कि 'एडटेक समाधानवाद' से जुड़ी धारणा समस्याओं को बहुत कम करके आंकती है, जहां तकनीकी पहलों और अच्छे शैक्षिक परिणामों के बीच संबंध को बहुत सरल माना जाता है, जो शिक्षण प्रक्रिया से जुड़ी जटिलताओं को महज़ शिक्षण सामग्री के उत्पादन तक सीमित कर देता है और एक प्रदर्शनकारी शैक्षिक वातावरण तैयार करता है, जिसका किसी वास्तविक बदलाव से कोई लेना-देना नहीं होता. वर्तमान में एडटेक आधारित समाधानों में शिक्षण विधियों की विविधताओं को शामिल नहीं किया गया है और इसके अनियंत्रित प्रसार से "मशीनी व्यवहारवाद" की संस्कृति को बढ़ावा मिल सकता है, जहां आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) और विशिष्ट व्यवहार नियम सीखने की प्रक्रिया को पूरी तरह नियंत्रित करते हैं, जो छात्रों की व्यक्तिगत स्वतंत्रता प्रभावित कर सकते हैं. इसके अलावा, ऐसे प्रमाण कम हैं जो एडटेक की प्रभावकारिता को साबित करते हैं और जवाबदेहिता तय किए बिना बाज़ार आधारित दृष्टिकोण अपनाने से डिजिटल डिवाइड के और ज्यादा बढ़ जाने का ख़तरा है, जो पहले से ही संपन्न वर्ग को ही लाभ पहुंचाता है.

ऐसा लगता है कि एडटेक को लेकर की जाने वाली बहसें प्रमुख रूप से अर्थव्यवस्था में नवाचार को बढ़ावा देने की संभावनाओं पर आधारित हैं. भले ही ये अपने आप में महत्त्वपूर्ण मुद्दा है, लेकिन इस बात पर ज़रूरत से ज्यादा ज़ोर दिए जाने कि “इससे शिक्षा तंत्र से जुड़ी हर समस्या का समाधान ढूंढ़ा जा सकता है" से प्रौद्योगिकी के कारण मानव के आत्म-नियंत्रण की क्षमता, स्वायत्तता, निजता और भलाई पर पैदा होने वाले जोखिमों से ध्यान हट जाता है. अन्य इंटरनेट प्लेटफॉर्मों की तरह, एडटेक प्लेटफॉर्म लोगों की ज़रूरतों के आधार सेवाएं प्रदान करने के लिए आंकड़े एकत्र करते हैं और ऐसे एल्गोरिथमों का इस्तेमाल करते हैं. हालांकि, वर्तमान में एडटेक से जुड़े आंकड़ों के संग्रहण और उपयोग को लेकर सुरक्षा नियमों का अभाव है, जिससे उपयोगकर्ताओं के बारे में जानकारियां जुटाने, उन्हें एडटेक उत्पादों के प्रयोग के लिए उकसाने और उनके व्यवहार को प्रभावित करने के प्रयासों जैसी कार्रवाईयों की संभावना बढ़ जाती है. कुछ एडटेक उत्पादों द्वारा मनःस्थिति और तनाव-स्तर पर नज़र रखने और भांपने के लिए बायोमेट्रिक आंकड़े (जैसे हार्टबीट, रेटीना मूवमेंट) जुटाने संबंधी रिपोर्टें सामने आई हैं, जो छात्रों पर निगरानी रखने की व्यापक संस्कृति को दर्शाता है, जिसे अगर अनियंत्रित छोड़ दिया गया तो कई समस्याएं जन्म ले सकती हैं.

चूंकि ऐसी सेवाएं ज्यादातर बच्चों और किशोरों के लिए तैयार की गई हैं, तो ऐसे में अगर नाबालिगों और युवाओं की सुरक्षा के लिए कोई एक समान रणनीति या उपाय (उत्पादों के भीतर और बाह्य तंत्र की निगरानी समेत दोनों माध्यमों से) लागू नहीं किए जाते हैं तो उन पर ख़तरों का जोखिम बढ़ जाता है. 5Rights Foundation यूके में स्थित एक बाल अधिकार संगठन है, जिसने एडटेक प्लेटफॉर्मों से जुड़े जोखिमों को तीन बड़े वर्गों में विभाजित किया है: १) सामग्री से जुड़े जोखिम, जहां अनुचित सामग्री के संपर्क में आने का ख़तरा मौजूद होता है, २) संपर्क जोखिम, असामाजिक व्यक्तियों से संपर्क का ख़तरा, और ३) अनुबंध जोखिम, आंकड़ों के व्यापक संग्रह से जुड़ी चिंताएं. भले ही इंटरनेट उपयोगकर्ताओं का एक तिहाई हिस्सा बच्चों का हो, लेकिन ज्यादातर एडटेक समाधानों को बच्चों को केंद्र में रखकर नहीं तैयार किया गया है, जो डिजिटल शिक्षा के भविष्य की चिंताजनक तस्वीर सामने रखती है.

भारतीय एडटेक कंसोर्टियम ने गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की पहुंच सुनिश्चित करने के लिए एक स्व-नियामक आचार संहिता का विकास किया है, जो इस क्षेत्र में प्रशासन से जुड़ा नया दृष्टिकोण है.


इसके अलावा, जिस तरह से सरकारें लगातार एडटेक समाधानों को लागू करती जा रही हैं, ऐसे में व्यापक पैमाने पर ख़रीद, विक्रेताओं के लिए सामान्य शर्तें और उपयुक्त निगरानी तंत्र जैसे मुद्दों को नीति निर्माण प्रक्रिया के दौरान शामिल किया जाना चाहिए. इसका एडटेक बाज़ार में प्रतिस्पर्धा पर दीर्घकालिक प्रभाव होगा, और वर्चुअल क्षेत्र में एकाधिकारवाद को रोका जा सकेगा. आखिरकार, जिस तरह से, AI के कारण इंटरनेट के मायने बदलते जा रहे हैं और मेटावर्स की लोकप्रियता बढ़ती जा रही है, नीतिनिर्माताओं और तकनीकी विशेषज्ञों को गहरी अनिश्चितता की स्थिति को ध्यान में रखते हुए एडटेक प्रबंधन के भविष्य के लिए योजनाएं तैयार करनी होंगी.


आगे की दिशा


वर्तमान में जिन प्रौद्योगिकियों के बल पर एडटेक उद्योग को स्थापित किया गया है, उसकी द्विध्रुवीय प्रकृति सकारात्मक नवाचार को बढ़ावा देने के साथ-साथ जोखिमों को भी पैदा करती रहेगी. हालांकि, उससे जुड़े नुकसानों को रोकने के लिए अवरोधों को खड़ा करने से उसकी संभावनाओं के दोहन के अवसर हाथ से निकल जाएंगे. साथ ही, हम केवल ऐसे उपायों पर भी निर्भर नहीं रह सकते जो नुकसान हो जाने के बाद उसकी भरपाई तक सीमित रहती हों. ऐसे में ज़रूरी है कि आपसी सहयोग आधारित गतिशील समाधान लागू किए जाएं जो इन लक्ष्यों को हासिल करने में सहयोग कर सकें. इसलिए हमें ज़िम्मेदारी के साथ एडटेक क्षेत्र में नवाचारों को जन्म देना चाहिए.

इसका अर्थ यह नहीं है कि इस संदर्भ में किसी कार्रवाई की ज़रूरत नहीं है. आयु-उपयुक्त डिजाइन एवं डेटा गवर्नेंस फ्रेमवर्क को लेकर इंस्टीट्यूट ऑफ इलेक्ट्रिकल एंड इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियर्स (आईईईई) द्वारा निर्धारित मानक, यूके का एज-एप्रोप्रियेट डिजाइन कोड और संयुक्त राज्य अमेरिका का चिल्ड्रन ऑनलाइन प्राइवेसी प्रोटेक्शन एक्ट और ऑस्ट्रेलियाई ई-सेफ्टी कमिश्नर द्वारा बनाई गईं सेफ़्टी बाय डिजाइन नीतियां इस संबंध में कुछ बेहतरीन उदाहरण हैं. भारतीय एडटेक कंसोर्टियम ने गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की पहुंच सुनिश्चित करने के लिए एक स्व-नियामक आचार संहिता का विकास किया है, जो इस क्षेत्र में प्रशासन से जुड़ा नया दृष्टिकोण है. इसके अलावा, AI और डिजिटल सेवाओं को लेकर यूरोपीय संघ द्वारा तैयार किए गए व्यापक जोखिम आधारित दृष्टिकोण भी इस उभरते नियामक उद्यम को आकार दे रहे हैं.

हालांकि, इस दिशा में ठोस कार्रवाई की ज़रूरत है. जवाबदेहिता आधारित नवाचार से जुड़े दृष्टिकोण नीति निर्माताओं और प्रौद्योगिकीविदों को उद्देश्य आधारित फ्रेमवर्कों के निर्माण के लिए मार्गदर्शन प्रदान कर सकते हैं. नीचे जिस फ्रेमवर्क का इस्तेमाल किया गया है, वह चार आयामों पर विचार करता है: पूर्वानुमान, आत्म-निरीक्षण, समावेशिता, जवाबदेहिता. और एडटेक में इन चारों को आयामों को लागू करने पर एक सुरक्षित शैक्षिक वातावरण का निर्माण किया जा सकता है.

वास्तव में, यह नीति नियामक संस्थाओं को नीति निर्धारण के लिए एक खाका पेश करता है जिसे देश के संदर्भ में सावधानी से विचार करते हुए लागू किया जाना चाहिए. हालांकि, इस संदर्भ में और साक्ष्य जुटाने और एडटेक प्रशासन में ऐसे फ्रेमवर्कों को शामिल किए जाने की तत्काल आवश्यकता है ताकि भविष्य में शिक्षा न्यायसंगत, समावेशी और सुरक्षित हो और उसे इतना अधिक विनयमित न किया जाए कि उससे नवाचार प्रभावित हो.

The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.