Author : Apoorva Lalwani

Published on Jun 30, 2022 Updated 0 Hours ago

विकासशील देशों की अर्थव्यवस्थाओं की बेहतरी को केंद्र में रखते हुए एक निष्पक्ष और समावेशी वैश्विक डिजिटल अर्थव्यवस्था बनाने के लिए अंतर्राष्ट्रीय कर प्रणाली में सुधार करना बेहद ज़रूरी है.

OECD का वैश्विक टैक्स समझौता: भारत पर इसका प्रभाव और आगे की राह

लगातार बढ़ती डिजिटल अर्थव्यवस्था के साथ कॉर्पोरेशन अपना व्यवसाय कैसे संचालित करते हैं, यह कई गुना विकसित हो चुका है. आज उत्पादन का प्राथमिक कारक ज़मीन पर मौज़ूद कारखानों के बदले डेटा के रूप में छिपा है. व्यवसाय के विकसित होते नए तरीक़ों के मद्देनज़र अंतर्राष्ट्रीय कर प्रणाली पुरानी हो गई है. इसकी वजह से तक़नीक क्षेत्र की बड़ी कंपनियां, जो ख़ास तौर पर संयुक्त राज्य अमेरिका (यूएस) में मौज़ूद हैं, टैक्स के घेरे से बचने में सफल रही हैं. इसे ‘बेस इरोज़न एंड प्रॉफ़िट शिफ्टिंग’ (बीईपीएस) भी कहा जाता है. फ़ेयर टैक्स मार्क की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ साल 2010 और 2019 के बीच, डिज़िटल स्पेस की सभी ऑफसोर सेटअप में बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने वास्तविक कर की तुलना में 155 बिलियन अमेरिकी डॉलर कम का भुगतान किया है. इसके अलावा अमेरिकी डिजिटल सेवा क्षेत्र से जुड़ी कंपनियां अन्य देशों की तुलना में अमेरिका को चार गुना अधिक भुगतान करती हैं, जबकि उनकी महत्वपूर्ण आय अमेरिका के अलावा अन्य देशों से होती है. यही वज़ह रही कि कई देशों ने डिजिटल सेवा कर (डीएसटी) लगाया ताकि डिजिटल कंपनियां उन देशों को टैक्स के अपने उचित हिस्से का भुगतान करें जो उन्हें अपना मुनाफ़ा कमाने में मदद करते हैं. हालांकि, इस मुद्दे पर कोई वैश्विक सहमति नहीं बन पाई थी, इसलिए कई देशों ने अपनी कर की दरों को मनमाने ढंग से निर्धारित किया. उदाहरण के लिए, केन्या ने 1.5 प्रतिशत लगाया, जबकि यूरोप के कुछ देशों ने 5 प्रतिशत तक डीएसटी लगाया. इसी तरह, भारत सरकार ने भारत में दो करोड़ रुपये से अधिक के टर्नओवर वाले नॉन रेसिडेंट डिजिटल सेवा प्रदाताओं के राजस्व पर दो प्रतिशत का कर लगाया, जो टैक्स की बराबरी के दायरे का विस्तार करती है, और वो साल 2020 तक केवल डिजिटल विज्ञापन सेवाओं पर लागू होती थी. केंद्रीय बज़ट में पेश किया गया यह नया कानून एक अप्रैल, 2021 से लागू हुआ.

भारत सरकार ने भारत में दो करोड़ रुपये से अधिक के टर्नओवर वाले नॉन रेसिडेंट डिजिटल सेवा प्रदाताओं के राजस्व पर दो प्रतिशत का कर लगाया, जो टैक्स की बराबरी के दायरे का विस्तार करती है, और वो साल 2020 तक केवल डिजिटल विज्ञापन सेवाओं पर लागू होती थी. केंद्रीय बज़ट में पेश किया गया यह नया कानून एक अप्रैल, 2021 से लागू हुआ.

अमेरिका की जवाबी कार्रवाई

डीएसटी के ख़िलाफ़ जवाबी कदम के तौर पर, अमेरिका ने भारत सहित कई देशों के कुछ उत्पादों पर 25 प्रतिशत तक का जवाबी शुल्क लगा दिया. भारत पर संयुक्त राज्य व्यापार प्रतिनिधि (यूएसटीआर) की जांच रिपोर्ट का तर्क है कि यह कई आधार पर भेदभावपूर्ण है. सबसे पहले, यह कानून भारतीय कंपनियों को ग़ैर-भारतीय फर्मों को टारगेट करने के साथ छूट देता है और उन पर दोहरे कराधान का बोझ डालता है. विवाद का दूसरा मुद्दा यह है कि डीएसटी अंतर्राष्ट्रीय कर समझौतों का उल्लंघन करता है क्योंकि यह उन कंपनियों पर लगाया जा रहा है जिसकी वास्तविक मौज़ूदगी भारत में नहीं है. इसके अलावा, यूएसटीआर का तर्क है कि डीएसटी के तहत 119 कंपनियां आती हैं, जिनमें से 86 (72 प्रतिशत) अमेरिकी कंपनियां हैं, जो डीएसटी को अनिवार्य रूप से अमेरिका के ख़िलाफ़ भेदभावपूर्ण बना रही हैं. हालांकि, ये सभी तर्क डीएसटी लागू करने के औचित्य पर ही सवाल खड़े करते हैं. डीएसटी का मक़सद यह सुनिश्चित करना है कि नॉन रेसिडेंट डिजिटल सेवा प्रदान करने वाली सभी कंपनियां भारतीय डिजिटल बाज़ार से कमाए जाने वाले राजस्व पर उचित टैक्स का भुगतान करे. कोरोना महामारी के दौरान यह टैक्स और भी प्रासंगिक हो जाता है जब तक़नीकी क्षेत्र की इन दिग्गज़ कंपनियों ने भारत जैसे बड़े बाज़ारों के ज़रिए अपना क़ारोबार बढ़ाया और ख़ुद भी विस्तार किया. विकासशील अर्थव्यवस्थाओं के लिए संकट से निपटने के लिए यह कर ज़रूरी है.

डीएसटी का मक़सद यह सुनिश्चित करना है कि नॉन रेसिडेंट डिजिटल सेवा प्रदान करने वाली सभी कंपनियां भारतीय डिजिटल बाज़ार से कमाए जाने वाले राजस्व पर उचित टैक्स का भुगतान करे. कोरोना महामारी के दौरान यह टैक्स और भी प्रासंगिक हो जाता है जब तक़नीकी क्षेत्र की इन दिग्गज़ कंपनियों ने भारत जैसे बड़े बाज़ारों के ज़रिए अपना क़ारोबार बढ़ाया और ख़ुद भी विस्तार किया.


डिजिटल टैक्स के आसपास वैश्विक बहस को हल करने के लिए, आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (ओईसीडी) ने दुनिया भर में समान रूप से डिजिटल सेवा कंपनियों पर कर लगाने के लिए एक मॉडल विकसित करने के लिए कदम बढ़ाया है. टैक्स व्यवस्था डिजिटल टैक्सेसन (कराधान) के विवाद का दो पिलर पर आधारित है. पहला पिलर कहता है कि 20 बिलियन यूरो से अधिक की वैश्विक बिक्री और 10 प्रतिशत की लाभ कमाने वाली बहुराष्ट्रीय कंपनियों को अपने घरेलू बाज़ार के बावज़ूद जहां वे व्यापार करते हैं, वहां करों का भुगतान करना होगा. दूसरा पिलर कंपनियों के लिए 15 प्रतिशत की वैश्विक न्यूनतम कर दर का सुझाव देता है, भले ही ऐसी कंपनियां अपना घरेलू आधार कहीं भी स्थापित की हों.

आगे का रास्ता

हालांकि, भारत ने 1 बिलियन यूरो की सीमा तय की थी, जिसमें 5,000 वैश्विक संस्थाओं को शामिल किया गया था और उसकी तुलना में नए सौदे में केवल शीर्ष 100 डिजिटल एमएनई को कवर करने की बात कही गई है. कोरोना महामारी के बाद आर्थिक सुधार, कर दायरे में वृद्धि और बेहतर अनुपालन के कारण भारत का डीएसटी संग्रह 90 प्रतिशत बढ़कर 4,000 करोड़ रुपये तक पहुंच गया. उम्मीद लगाई जा रही है कि ओईसीडी टैक्स सौदे के परिणामस्वरूप डिजिटल कर राजस्व में कमी आ सकती है. इसके बावज़ूद  भारत ने सौदे की पुष्टि की क्योंकि जी 20 समूह ने ओईसीडी और जी 20 देशों के बीच सदस्यता ओवरलैप के कारण गैर-ओईसीडी सदस्यों के बीच इस मामले पर राजनीतिक सहमति बनाने में एक प्रमुख भूमिका निभाई है. कर राजस्व में कमी को रोकने के लिए, भारत को संयुक्त राष्ट्र मॉडल टैक्स कन्वेंशन के लिए आगे बढ़ना चाहिए. यूएन टैक्स मॉडल का अनुच्छेद 12 बी इस सिद्धांत की वक़ालत करता है कि अगर आय को कमाने वाला बेनिफिशियल ओनर दूसरे अनुबंधित राज्य का निवासी है, तो ऐसे में स्रोत राज्य द्वारा लगाए गए कर की राशि भुगतान के तौर पर दोनों पक्षों में हुई बातचीत के बाद भुगतान सकल राशि की उच्चतम सीमा से अधिक नहीं हो सकती है. 

डिजिटल रूप से सक्षम सेवाओं में भारत के सीमित भागीदारों – अमेरिका, चीन और कुछ यूरोपीय देशों को देखते हुए, द्विपक्षीय प्रतिशत पर निर्णय लेने में कोई बड़ी बाधा नहीं होनी चाहिए. हालांकि, OECD टैक्स समझौता यह लचीलापन प्रदान नहीं करता है.

डिजिटल रूप से सक्षम सेवाओं में भारत के सीमित भागीदारों – अमेरिका, चीन और कुछ यूरोपीय देशों को देखते हुए, द्विपक्षीय प्रतिशत पर निर्णय लेने में कोई बड़ी बाधा नहीं होनी चाहिए. हालांकि, OECD टैक्स समझौता यह लचीलापन प्रदान नहीं करता है. ऐसा इसलिये क्योंकि यह न्यूनतम कर दर 15 प्रतिशत की ओर इशारा करता है और इस सीमा से कहीं भी ऊपर जाने पर बातचीत करना मुश्किल हो सकता है. इसके अलावा, संयुक्त राष्ट्र मॉडल ‘क्वालिफ़ाइड प्रॉफ़िट’ के टैक्सेसन (कराधान) पर विचार करता है, जो लाभार्थी के लाभ अनुपात या इसके ऑटोमेटेड डिजिटल बिज़नेस सेगमेंट के प्रॉफिटेबिलिटी रेशियो को लागू करने के परिणामस्वरूप होने वाली राशि का 30 प्रतिशत होता है, अगर उपलब्ध हो, तो यह ऑटोमेटेड डिजिटल सर्विसेज़ से सकल वार्षिक राजस्व के तौर पर अनुबंधित राज्य से प्राप्त होता है जहां ऐसी आय उत्पन्न होती है. यह नियम सभी प्रौद्योगिकी कंपनियों को कर के दायरे में लाती है, चाहे वह बड़ी हो या छोटी. जबकि ओईसीडी कर सौदा केवल उन कंपनियों पर टैक्स लगाती है जिनकी वैश्विक बिक्री न्यूनतम 20 बिलियन यूरो की है, और ऐसे में इसके तहत कई मध्यम आकार की तक़नीकी कंपनियां कराधान से बाहर हो जाती हैं.

ओईसीडी की तरह ही वैश्विक कर सौदा, संयुक्त राष्ट्र मॉडल अपने लचीलेपन को लेकर सबसे पहले अच्छा प्रदर्शन करता है, जिससे स्रोत देश को भागीदारों के साथ कर दरों को तय करने में हिस्सेदारी मिलती है, जिससे उचित वितरण हो पाता है. दूसरा, संयुक्त राष्ट्र का मॉडल मध्यम आकार की फ़र्मों को भी कर के दायरे में लाता है. इसलिए, संयुक्त राष्ट्र का मॉडल विकासशील-देशों के लिए ज़्यादा मुफ़ीद होता है, क्योंकि यह दोहरे कराधान से बचने के बदले स्रोत देश के कर के अधिकारों पर ज़्यादा ध्यान केंद्रित करता है. यह विकासशील देशों को उस लाभ में हिस्सेदार बनने का मौक़ा देता है जिस देश के नागरिकों की बदौलत तक़नीकी क्षेत्र की दिग्गज़ कंपनियां मुनाफ़ा कमाती हैं.

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