Published on Oct 30, 2023 Updated 0 Hours ago

इज़राइल और हमास के बीच मौजूदा संघर्ष की जटिलताओं को देखते हुए, इस बात की संभावना काफ़ी अधिक है कि वो तनाव को ख़त्म करने के लिए अपने कूटनीतिक प्रयासों का दायरा बढ़ाएगा.

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इज़राइल- हमास युद्ध को लेकर रूस के रुख़ की बारीक़ियां

7 अक्टूबर को इज़राइल पर हमास के अभूतपूर्व हमले की वजह से, मध्य पूर्व (पश्चिमी एशिया) में जो मौजूदा संकट पैदा हुआ है, उसको लेकर ये कहना एक बेबुनियाद और घिसा-पिटा चलन हो गया है कि इसका फ़ायदा रूस को मिलेगा. इसके पीछे तर्क ये दिया जा रहा है कि हमास के साथ इज़राइल के युद्ध से पश्चिमी देशों का ध्यान रूस और यूक्रेन के युद्ध से हटेगा और हो सकता है कि इससे यूक्रेन को पश्चिमी देशों से हथियारों की आपूर्ति भी बाधित हो. हो सकता है कि ये बात सच हो. लेकिन, पश्चिमी एशिया में बढ़ते तनावों ने रूस के लिए काफ़ी चुनौतियां खड़ी कर दी हैं. क्योंकि, इसकी वजह से रूस को अपने साझीदारों, जो कभी दुश्मन तो कभी दोस्त की भूमिका में रहते हैं, और दुश्मनों के बीच सावधानी से संतुलन बनाने को मजबूर होना पड़ा है.

मध्य पूर्व में रूस की भूमिका

2015 में जब रूस ने अपनी वायुसेना और छोटी सी सैनिक टुकड़ी भेजकर सीरिया के गृहयुद्ध  में दख़ल दिया था, तब उसको इस क्षेत्र की एक अहम ताक़त के तौर पर देखा गया था. रूस, ख़ुद को सीरिया के अलावा अन्य देशों में भी एक मध्यस्थ और स्थिरता क़ायम करने वाली ताक़त के तौर पर आगे बढ़ा  रहा था, ख़ास तौर से मशरिक़ के उप-क्षेत्र में जहां वो फ़िलिस्तीन और इज़राइल के संघर्ष के समाधान की प्रक्रिया और लेबनान के हालात सुधारने में मध्यस्थ की भूमिका [1] अदा कर रहा था.

ईरान तो अब रूस का एक सामरिक साझीदार और उन रक्षा उपकरणों को मुहैया कराने वाला देश बन गया है, जिनकी रूस को सख़्त आवश्यकता है.

रूस के साथ अच्छे संबंध बनाए रखने को लेकर अपनी ज़रूरतों को देखकर मध्य पूर्व की शक्तियां भी रूस की अर्थव्यवस्था पर अमेरिकी प्रतिबंधों का पालन करने की अनिच्छुक थीं, और ये देश रूस को अहम सामानों की आपूर्ति के लिए लॉजिस्टिक के बड़े केंद्र बनकर उभरे थे. तुर्की के साथ भी रूस के आर्थिक संबंधों का विस्तार हो रहा है. ईरान तो अब रूस का एक सामरिक साझीदार और उन रक्षा उपकरणों को मुहैया कराने वाला देश बन गया है, जिनकी रूस को सख़्त आवश्यकता है. सऊदी अरब, तेल के बाज़ार और क़ीमतों को प्रभावी तरीक़े से नियंत्रित करने के लिए लगातार कच्चे तेल के उत्पादन के मामले में रूस के साथ नज़दीकी तालमेल से काम कर रहा है. वहीं, संयुक्त अरब अमीरात (UAE) ने रूस की पूंजी को सुरक्षित ठिकाना उपलब्ध कराया है. रूस और यूक्रेन के युद्ध को लेकर मिस्र ने निरपेक्षता की नीति अपनाई है, और वो यूक्रेन को हथियार मुहैया कराने की बढ़ती मांग पूरी करने का विरोध करता रहा है.

हालांकि, यूक्रेन के संघर्ष ने इस क्षेत्र में रूस की हैसियत पर असर डाला है. इज़राइल के साथ उसके रिश्ते तनावपूर्ण थे, ख़ास तौर से यायर  लैपिड की सरकार के दौरान. नेतन्याहू  के सत्ता में लौटने के बाद से रूस और इज़राइल के रिश्ते ज़्यादा संतुलित हुए हैं, तो इसकी बड़ी वजह पुतिन और नेतन्याहू  के निजी तौर पर अच्छे संबंध रहे हैं. रूस, यूक्रेन पर अपने हमले को लेकर इज़राइल द्वारा कड़ा विरोध करने के बावजूद, यूक्रेन को हथियारों की आपूर्ति करने से इनकार करने की रूस तारीफ़ करता रहा है. वैसे तो इज़राइल और रूस के रिश्तों के पीछे आर्थिक संबंध और दोनों देशों के आम लोगों के बीच नज़दीकी संपर्कों का अहम रोल रहा है. लेकिन, अमेरिका से इज़राइल की नज़दीकी ने रूस के साथ उसके रिश्तों को सीमित बनाए रखा है.

हालांकि, फ़रवरी 2022 के बाद से मध्य पूर्व को लेकर रूस की नीति में सबसे बड़ा बदलाव ईरान के साथ उसके रिश्तों का दर्ज़ा बढ़ने के रूप में दिखा है. इस इलाक़े में रूस के अन्य साझीदार देशों की तुलना में ईरान उसको सैन्य और सियासी दोनों तरह का समर्थन देता रहा है, जिससे दोनों देशों के आपसी संबंध में पहले जिन वजहों से मतभेद थे, वो कम हुए हैं और उनके सामरिक संबंध बड़ी तेज़ी से आगे बढ़े हैं. रूस और ईरान के नज़दीकी संबंधों की एक बड़ी वजह ये भी रही है कि दोनों ही देश पश्चिमी देशों के ख़िलाफ़ नज़रिया रखते हैं.

जहां तक सीरिया की बात है तो यूक्रेन पर बहुत ज़्यादा ध्यान केंद्रित करने की वजह से रूस, इस इलाक़े में अपनी फौजी मौजूदगी को मज़बूती नहीं दे सका है. पोर्ट सूडान में नौसैनिक अड्डा स्थापित करने की योजना पर भी रूस अमल नहीं कर पाया है. रूस ने सीरिया के टार्टस में एक नौसैनिक अड्डा बनाया है और सीरिया के हमीमिम  वायुसैनिक अड्डे पर S400 और S300 मिसाइल डिफेंस सिस्टम ज़रूर तैनात किए हैं. हालांकि, इनका इस्तेमाल बहुत चुनकर किया जा रहा है और ये मिसाइल डिफेंस सिस्टम इज़राइल को सीरिया के भीतर घुसकर असद सरकार के सैन्य ठिकानों और ईरान समर्थित गुटों को निशाना बनाने से नहीं रोक सके हैं. सीरिया में अपनी सेना की सीमित मौजूदगी के साथ साथ रूस ने सीरिया में अपनी कूटनीति के लिए भी कुछ गुंजाइश बचा रखी है और वो ‘अस्ताना फॉर्मेट’ के तहत तुर्की और ईरान के संपर्क में भी है- हालांकि अब इन तीनों देशों को बातचीत के लिए कोई नया ठिकाना तलाशना होगा.

सऊदी अरब और ईरान के बीच समझौता कराने और दोनों देशों के बीच कूटनीतिक संपर्क जोड़ने में चीन को कामयाबी मिली है. वहीं, अमेरिका ने अब्राहम समझौते कराए, जिससे संयुक्त अरब अमीरात (UAE), बहरीन, मोरक्को और सूडान के साथ इज़राइल के संबंध सामान्य हुए हैं.

हालांकि इसके साथ साथ, इस इलाक़े में बहुत सी ऐसी गतिविधियां भी हुई हैं, जिनमें रूस भागीदार नहीं रहा है. सऊदी अरब और ईरान के बीच समझौता कराने और दोनों देशों के बीच कूटनीतिक संपर्क जोड़ने में चीन को कामयाबी मिली है. वहीं, अमेरिका ने अब्राहम समझौते कराए, जिससे संयुक्त अरब अमीरात (UAE), बहरीन, मोरक्को और सूडान के साथ इज़राइल के संबंध सामान्य हुए हैं. इन समझौतों की वजह से अमेरिका के नेतृत्व में कई आर्थिक पहलें की गई हैं, जैसे कि I2U2 (भारत, इज़राइल, अमेरिका और संयुक्त अरब अमीरात) का समूह, और भारत मध्य पूर्व यूरोप के बीच आर्थिक गलियारे (IMEC) की महत्वाकांक्षी योजना, जो इज़राइल और खाड़ी देशों के बीच अच्छे संबंध के भरोसे ही परवान चढ़ सकती है.

ग़ैर आतंकवादी जो दहशतगर्दी से काम लेते हैं

इस बीच, मौजूदा संकट को लेकर रूस के आधिकारिक बयानों में इज़राइल पर हमास के शुरुआती हमले का कोई ख़ास ज़िक्र नहीं किया जा रहा. इसके बजाय रूस इस संघर्ष को लगातार इज़राइल और फिलिस्तीन के बीच का झगड़ा बता रहा है. ऐसा लगता है कि रूस का अधिकारी वर्ग, 7 अक्टूबर के हमले को एक अंतहीन संघर्ष की ताज़ा कड़ी भर मान रहा है, और उन्हें लगता है कि इस संघर्ष का समाधान तब तक नहीं हो सकता, जब तक दो राष्ट्रों के विचार को अमली जामा नहीं पहनाया जाता. इस संघर्ष को लेकर इस समय भी रूस का वही नज़रिया है, जो लंबे समय से रहा है और जिसमें रूस ये मानता है कि हिंसा के सिलसिले के जारी रहने के पीछे दोनों पक्षों का हाथ है. इस बात को रूस के पूर्व प्रधानमंत्री येवगेनी प्रिमाकोव ने नपे-तुले शब्दों में इस तरह बयान किया था: ‘इज़राइल के हमले में फिलिस्तीन के आम नागरिकों की जान जाती है, जिनमें बच्चे और महिलाएं भी शामिल हैं. इज़राइल ये पलटवार न सिर्फ़ अपने आम नागरिकों पर आतंकवादी हमले के जवाब में करता है, बल्कि इसकी वजह क़ब्ज़े वाले इलाक़े में इज़राइली सैनिकों के साथ सशस्त्र संघर्ष भी होती है… जबकि फिलिस्तीन की तरफ़ से आतंकवादी गतिविधियों को ये कहकर जायज़ ठहराया जाता है कि ये हमले आम नागरिकों पर इज़राइल की सेना की कार्रवाई के जवाब में किए जाते हैं. इसका नतीजा आतंकवादी हिंसा के एक ऐसे ज़हरीले दुष्चक्र के रूप में सामने आता है, जिसे तब तक ख़त्म नहीं किया जा सकता, जब तक एक तरह के आतंकवाद को अपराध माना जाए और दूसरे को वाजिब ठहराया जाए.’ आज भी रूस के विदेश नीति निर्माण पर येवगेनी प्रिमाकोव की विरासत की छाप दिखती है. प्रिमाकोव के इस नज़रिये को दोहराते हुए, इज़राइल और हमास के बीच मौजूदा युद्ध के बारे में पुतिन ने अपनी टिप्पणी में कहा कि, ‘निश्चित रूप से इज़राइल ने एक अभूतपूर्व हमले का सामना किया है, जो इतिहास में इससे पहले नहीं देखा गया. न सिर्फ़ इसका दायरा व्यापक था, बल्कि जिस बर्बरता से इसे अंजाम दिया गया, वो भी अनदेखी थी… अब इज़राइल इसका बड़े पैमाने पर जवाब दे रहा है और वो भी बहुत निर्ममता से काम ले रहा है.’ चौंकाने वाली बात ये है कि अगर कोई रूस के राष्ट्रपति की वेबसाइट को देखे, तो हमास के हमले के नौ दिनों बाद जाकर राष्ट्रपति पुतिन ने बेंजामिन नेतान्याहू के साथ बातचीत में इस हमले के शिकार इज़राइली नागरिकों की मौत पर शोक प्रकट किया था. लेकिन, ऐसा लगता है कि इज़राइल के प्रधानमंत्री के साथ बातचीत में पुतिन ने हमास को इस हमले के लिए ज़िम्मेदार नहीं ठहराया था. संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में रूस द्वारा पेश किए गए प्रस्ताव में भी हमास की निंदा नहीं की गई थी. ये प्रस्ताव अन्य सदस्यों से समर्थन जुटाने में नाकाम रहा, तो इसमें ये भी एक बड़ी वजह रही थी.

अगर ये युद्ध सीरिया और लेबनान के इलाक़ो में फैलता है या फिर ईरान और इज़राइल के बीच सीधी टक्कर होती है, तो ये रूस के हितों के ख़िलाफ़ होगा.

यहां इस बात पर ध्यान देना भी उपयोगी होगा कि अमेरिका, ब्रिटेन, यूरोपीय संघ (EU), इज़राइल और कुछ अन्य देशों के उलट रूस आधिकारिक रूप से हमास को एक आतंकवादी संगठन नहीं मानता है. हालांकि, हमास को लेकर उसका रवैया बदलता रहा है. 1990 के दशक में जब रूस और इज़राइल के रिश्ते सुधर रहे थे, तब रूस के प्रतिनिधि हमास को ‘इस्लामिक पागलों और कट्टरपंथियों का समूह और उनकी गतिविधियों को अमानवीय जुर्म’ और ‘बेलगाम आपराधिक नाइंसाफ़ी’ कहने से कोई गुरेज नहीं करते थे.

रूस का रुख़ तब बदला, जब 2006 में हमास ने चुनाव जीत लिया. क्योंकि, रूस के मुताबिक़ तब हमास एक कट्टरपंथी विपक्षी से एक वैधानिक शक्ति बन गया. रूस उस वक़्त हमास के राजनीतिक ब्यूरो के प्रमुख ख़ालिद मशाल की सबसे पहले मेज़बानी करने वाले देशों में से एक था. इस तरह उसने हमास को अंतरराष्ट्रीय वैधानिकता दी. मई 2010 में सीरिया के दौरे के दौरान उस वक़्त रूस के राष्ट्रपति रहे दिमित्री मेदवेदेव ने सीरिया के राष्ट्रपति बशर अल-असद के साथ साथ ख़ालिद मशाल से भी मुलाक़ात की थी. हालांकि, 2010 में सीरिया में ही हमास और रूस के रास्ते अलग हो गए थे. क्योंकि रूस, बशर अल-असद की हुकूमत का साथ दे रहा था, जबकि हमास असद की विरोधी ताक़तों के साथ खड़ा था. इस अलगाव के बावजूद, रूस ने हमास को आतंकवादी संगठन कहने से परहेज़ किया था. क्योंकि रूस का ये मज़बूती से मानना था कि हमास, ‘फिलिस्तीनी समाज का अटूट अंग है’ और उसके प्रतिनिधि राष्ट्रीय विधायिका और राष्ट्रीय एकता सरकार के अंग हैं.

2022 से रूस ने कई मौक़ों पर हमास के राजनीतिक ब्यूरो के प्रमुख इस्माइल हानियेह की अगुवाई वाले उन प्रतिनिधिमंडलों की मेज़बानी की है, जो रूस के अधिकारियों से बातचीत के लिए मॉस्को पहुंचे थे. इनमें रूस के विदेश मंत्री सर्गेई  लावरोव और उनके मातहत मिखाइल बोगदानोव  शामिल हैं. बोगदानोव  के पास मध्य पूर्व के इलाक़ों की ज़िम्मेदारी है. इन संपर्कों का मक़सद इज़राइल को रूस द्वारा फिलिस्तीन के अलग अलग गुटों के बीच मध्यस्थता  करने के उन प्रयासों का संकेत देना है, जो लंबे समय से चले आ रहे हैं. अब जबकि इज़राइल और हमास के बीच संघर्ष चौथे सप्ताह में प्रवेश कर गया है, तो हमास द्वारा बंधक बनाए गए लोगों में दो रूसी नागरिक भी शामिल हैं. हमास की राजनीतिक शाखा के साथ पुराने संबंध भी रूस के लिए अपने नागरिकों को छुड़ाने में मददगार साबित नहीं हुए हैं.

इज़राइल और हमास के बीच मौजूदा संघर्ष की जटिलताओं और इसके पूरे इलाक़े में फैलने की आशंका को देखते हुए, इस बात की संभावना अधिक है कि रूस इस तनाव को ख़त्म करने के लिए अपने कूटनीतिक प्रयास जारी रखेगा. अगर ये युद्ध सीरिया और लेबनान के इलाक़ो में फैलता है या फिर ईरान और इज़राइल के बीच सीधी टक्कर होती है, तो ये रूस के हितों के ख़िलाफ़ होगा. क्योंकि, इस वक़्त रूस अपनी सीमाओं से परे किसी और इलाक़े की जंग में शामिल होने की स्थिति में नहीं है.


[1] Russia had been a member of the Middle East Quarter (US, EU, Russia, UN), which coordinated their approaches toward the Palestine-Israel conflict from 2002 to 2021, and has also been engaging separately with Israel and seeking to act as a mediator between Fatah and Hamas.

[2] During the government crisis in Lebanon in 2021, Moscow had been in talks with different parties – the Hezbollah, the leader of the Future Movement and then-Prime Minister Saad Hariri, and the leader of Free Patriotic Movement Gebran Bassil.

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Authors

Nandan Unnikrishnan

Nandan Unnikrishnan

Nandan Unnikrishnan is a Distinguished Fellow at Observer Research Foundation New Delhi. He joined ORF in 2004. He looks after the Eurasia Programme of Studies. ...

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Aleksei Zakharov

Aleksei Zakharov

Aleksei Zakharov is a Research Fellow at the International Laboratory on World Order Studies and the New Regionalism Faculty of World Economy and International Affairs ...

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