Published on Sep 26, 2023 Updated 0 Hours ago
क्या NPOS का संशोधित ड्राफ्ट भारत में आंकड़ों को नए नज़रिए से देखने की शुरुआत है?

सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय (MoSPI) द्वारा आधिकारिक सांख्यिकी पर राष्ट्रीय नीति (NPOS) का संशोधित ड्राफ्ट तैयार किया है और उस पर लोगों की प्रतिक्रिया मांगी गई है. यह मसौदा महज एक नीतिगत दस्तावेज़ ही नहीं है, बल्कि आंकड़ों के महत्व को समझते हुए एक सशक्त भविष्य के निर्माण हेतु भारत का रणनीतिक ब्लूप्रिंट है. निसंदेह रूप से यह एक बड़ा बदलाव है और भारत में आंकड़ों को अब तक जिस नज़रिए से देखा जाता था, उसके तौर-तरीक़ों में स्पष्ट परिवर्तन को प्रकट करता है. यह एक ऐसे भविष्य का संकेत देता है, जहां हर तरह के आंकड़ें, फिर चाहे वो सांख्यिकीय सर्वेक्षण के आंकड़े हों, योजनाओं से जुड़े आंकड़े हों या लाभार्थी पंजीकरण से संबंधित आंकड़े हों, सभी की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण होती है और बेहतर गवर्नेंस व किसी निर्णय पर पहुंचने की प्रक्रिया में इन्हें शामिल करके लक्षित नतीज़ों को हासिल किया जा सकता है. इस महत्वाकांक्षी विज़न का मकसद भारत के सांख्यिकीय फ्रेमवर्क को अंतर्राष्ट्रीय मापदंडों के मुताबिक़ बनाना है, ताकि आंकड़ों की पारदर्शिता, क्षमता और योग्यता सुनिश्चित हो सके, साथ ही लगातार विकसित हो रहे सामाजिक-आर्थिक वातावरण के प्रति जवाबदेही भी सुनिश्चित हो सके.

इस महत्वाकांक्षी विज़न का मकसद भारत के सांख्यिकीय फ्रेमवर्क को अंतर्राष्ट्रीय मापदंडों के मुताबिक़ बनाना है, ताकि आंकड़ों की पारदर्शिता, क्षमता और योग्यता सुनिश्चित हो सके, साथ ही लगातार विकसित हो रहे सामाजिक-आर्थिक वातावरण के प्रति जवाबदेही भी सुनिश्चित हो सके.

NPOS का महत्व नंबरों और सामान्य से दिखने वाले तरह-तरह के आंकड़ों को एकत्र करने की प्रक्रिया को संचालित करने से कहीं ज़्यादा है. NPOS एक व्यापक इकोसिस्टम की परिकल्पना करता है, जो एक अरब से अधिक आबादी वाले देश में अलग-अलग प्रकार के नैरेटिव्स और बातों को प्रदर्शित करता है, जो एक नई तरह की जानकारी मुहैया कराता है. यह जो भी नैरेटिव्स हैं उन्हें आंकड़ों के विभिन्न स्रोतों से मिली जानकारी के आधार पर ही गढ़ा गया है. इतना ही नहीं ये नैरेटिव्स न सिर्फ़ पारंपरिक सांख्यिकीय सर्वेक्षणों के महत्व को दिखाते हैं, बल्कि प्रशासनिक और पंजीकरण रिकॉर्ड के अथाह समुद्र  की अहमियत को भी दर्शाते हैं. कहने का तात्पर्य यह है कि ये व्यापक आंकड़े भारत के तेज़ी से बदलते सामाजिक-आर्थिक माहौल की गतिशीलता और उसकी विविधता को प्रकट करते हैं. माइक्रो लेवल पर स्थानीय नगर निकायों द्वारा एकत्र किए गए छोटे-छोटे आंकड़ों से लेकर विभिन्न केंद्रीय मंत्रालयों द्वारा संभाले जाने वाले व्यापक आंकड़ों तक, NPOS डेटा को लेकर एक व्यापक दृष्टिकोण का समर्थन करता हैं. इससे एक तरफ देश और जनमानस से जुड़े तमाम विषयों को लेकर और ताज़ा हालात को लेकर जानकारी हासिल होती है, वहीं दूसरी ओर ये विस्तृत आंकड़े शोधकर्ताओं, नीति निर्माताओं और वैश्विक समुदाय की अलग-अलग ज़रूरतों को भी पूरा करने का भी काम करते हैं.

गवर्नेंस से जुड़ी चुनौतियां

भारत जैसे विशाल और विविधता  से भरे देश में व्यापक स्तर पर की गई कोशिश को संसाधनों का दुरुपयोग या बेमतलब का काम नहीं कहा जा सकता है, बल्कि यह सब करना आज के दौर की ज़रूरत है. इसी को पहचानते हुए, NPOS एक ऐसे सशक्त एवं आपस में जुड़े हुए नेटवर्क की परिकल्पना करता है, जिसका विस्तार कई केंद्रीय मंत्रालयों/विभागों, राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों तक फैला हुआ हो और जिसकी कमान MoSPI के हाथों में हो. देखा जाए तो यह केवल एक प्रशासनिक क़वायद नहीं है, बल्कि यह ऐसी रणनीतिक कार्रवाई है, जिसकी रूपरेखा यह सुनिश्चित करती है कि आंकड़े चाहे किसी दूर-सुदूर के गांव में स्थानीय स्तर पर किए गए सर्वे से हासिल किए गए हों, या फिर बड़े शहरों या राजधानी में सरकार द्वारा शुरू की गईं विभिन्न सांख्यिकीय पहलों से जुटाए गए हों, लेकिन यह आंकड़े हर हाल में तर्कयुक्त, सिलसिलेवार,  व्यापक और मुद्दे के आधार पर प्रासंगिक हों. इसके साथ ही इन आकंड़ों को जुटाने के बाद उन्हें व्यवस्थित कर नियमित तौर पर प्रकाशित करना और अपडेट करना भी ज़रूरी है. इससे यह सुनिश्चित होता है कि देश की ताज़ा स्थिति और परिस्थिति के बारे में आंकड़ों के ज़रिए जो जानकारी हासिल होती है, उससे देश न केवल वर्तमान में, बल्कि भविष्य में सामने आने वाले हालातों और तमाम चुनौतियों के लिए तैयार रहे.

यह एक ऐसा मुद्दा है, जिसके बारे में कहा जा सकता है, इसके लिए नीति में परिवर्तन करने या संशोधन की ज़रूरत नहीं है, लेकिन ऑपरेशनल नज़रिए से यह एक बड़ी चिंता का विषय है.

हालांकि, इस सबमें एक दिक़्क़त ज़रूर है कि अगर एक ही तरह के परिवर्तनशील आंकड़े को लेकर विभिन्न एजेंसियों में अंतर मिलता है, तो उनके बीच तालमेल कैसे बैठाया जाएगा, या फिर इस समस्या का समाधान कैसे किया जाएगा. इस ड्राफ्ट में इसको लेकर कुछ भी नहीं कहा गया है. देखा जाए तो, अभी जो ड्राफ्ट तैयार किया गया है, वो समय-समय पर जारी किए जाने वाले दिशानिर्देशों को लेकर स्टैटिक्स से जुड़े सभी मसलों पर सांख्यिकी परामर्शदाताओं के ज़रिए MoSPI और केंद्रीय मंत्रालयों/विभागों के बीच तालमेल स्थापित करने पर बल देता है. ज़ाहिर है कि पूर्व के कई ऐसे प्रमाण मौज़ूद हैं, जो यह साफ बताते हैं कि एजेंसियों के आंकड़े एक-दूसरे से मेल नहीं खाते थे. हालांकि, यह एक ऐसा मुद्दा है, जिसके बारे में कहा जा सकता है, इसके लिए नीति में परिवर्तन करने या संशोधन की ज़रूरत नहीं है, लेकिन ऑपरेशनल नज़रिए से यह एक बड़ी चिंता का विषय है. पॉलिसी सिर्फ़ इसके बारे में बता सकती है कि इस तरह का समाधान किस एजेंसी द्वारा किया जाएगा, या इसके लिए कौन सी एजेंसी ज़िम्मेदार है. अक्सर यह अंतर विभिन्न सैंपल डेटा के ढांचों की वजह से पैदा होता है. इसमें सबसे अहम बात, इस तरह से चुने गए नमूने की स्थिरता और विश्वसनीयता है. साथ ही यह भी निर्धारित करना बेहद अहम है कि जो भी सैंपल लिया गया है, वो आबादी के बड़े हिस्से का प्रतिनिधित्व करता हो.

वर्तमान में जिस प्रकार से विभिन्न देशों के बीच वैश्विक स्तर पर अपनी सशक्त मौज़ूदगी दर्ज कराने को लेकर होड़ मची हुई है, ऐसे में आंकड़े कहीं न कहीं विश्वसनीयता की करेंसी में तब्दील हो गए हैं. NPOS का ड्राफ्ट आंकड़ों से संबंधित अंतर्राष्ट्रीय मापदंडों के प्रति भारत की अटूट प्रतिबद्धता ज़ाहिर करता है और उसकी एक स्टैटिकल पावरहाउस बनने की महत्वाकांक्षा को पूरा करने की राह सुनिश्चित करता है. वैश्विक संस्थानों द्वारा निर्धारित किए गए मानकों, जैसे की यूनाइटेड नेशन्स फंडामेंटल प्रिंसिपल्स ऑफ ऑफिशियल  स्टैटिस्टिक्स (UNFPOS) के अंतर्गत संयुक्त राष्ट्र  द्वारा वर्ष 2016 में अपनाए गए मानकों, एवं स्पेशल डेटा डिसेमिनेशन स्टैंडर्ड (SDDS) के अंतर्गत अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष द्वारा अपनाए गए मानकों का पालन करने से जो एक साफ संदेश मिलता है, वो यह है कि भारत सिर्फ़ वैश्विक डेटा डायलॉग में ही भागीदारी नहीं कर रहा है, बल्कि वो इसकी अगुवाई करने के लिए भी तैयार है. अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपनाई जाने वाली सर्वोत्तम प्रथाओं को लेकर भारत की यह प्रतिबद्धता साफ तौर पर सुनिश्चित करती है कि भारत द्वारा जो भी आंकड़े जारी किए जाते हैं, उन्हें अलग-अलग स्रोतों से एकत्र किया जाता है और शासन स्तर पर उनका बेहतर तरीक़े से समन्वय किया जाता है. यही वजह है कि भारत के आंकड़ों को लेकर कभी कोई सवाल नहीं उठता है और वैश्विक मंच पर उनकी विश्वसनीयता क़ायम होती है.

भारत में निचले स्तर से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक गवर्नेंस की संरचना इतनी व्यापक है और ऊपर से इसमें अफ़रशाही की तमाम जटिलताएं है, जो मिलकर विकट चुनौतियां पेश करती हैं.

फिर भी, अगर UNFPOS के नियम 10 का पालन किया जाता है, तो समन्वय की चुनौती सामने आएगी. इस नियम के मुताबिक़: “…स्टैटिस्टिक्स को लेकर द्विपक्षीय और बहुपक्षीय सहयोग सभी देशों में आधिकारिक सांख्यिकी प्रणालियों के सुधार एवं उन्नयन  में योगदान देता है.” यह एक सच्चाई है कि भारत सभी प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के साथ जुड़ा हुआ है और उनमें उसकी व्यापक भागीदारी भी है. हालांकि, यह अलग बात है कि विभिन्न देशों के समय में अंतर होने की वजह से अक्सर आंकड़े भिन्न होते हैं. (उदाहरण के लिए, ज़्यादातर अंतर्राष्ट्रीय संगठनों का वार्षिक वर्ष, भारत के वित्तीय वर्ष से अलग होता है.)

तकनीक़ी एवं परिवर्तन

भविष्य की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए सिर्फ विज़न से काम नहीं चलता है, बल्कि इसके लिए सही दिशा में उचित कार्रवाई की ज़रूरत होती है. NPOS द्वारा आंकड़ों को एकत्र करने एवं उनका विश्लेषण करने के लिए जिस प्रकार से अत्याधुनिक टेक्नोलॉजी का उपयोग किया जा रहा है और उसका लाभ उठाया जा रहा है, ये भारत की दूरदर्शिता को दिखाता है. निसंदेह, आंकड़ों का भविष्य डिजिटल है, भारत की इस पॉलिसी में विभिन्न सर्वेक्षणों को डिजिटल प्लेटफॉर्म पर करने की बात कही गई है, ज़ाहिर है कि यह भारत की व्यापक “डिजिटल इंडिया पहल” के अनुरूप है. लेकिन देखा जाए तो यह नीति डिजिटलीकरण से भी आगे की बात करती है. NPOS के ड्राफ्ट में डेटा के फैलाव एवं विस्तार के लिए यूज़र-फ्रेंडली ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स पर अधिक ध्यान दिया गया है, साथ ही आधुनिक एवं डिजिटल-फर्स्ट तरीक़ों को प्रोत्साहित किया गया है. इस प्रकार से NPOS भारत को ग्लोबल डेटा रिवोल्यूशन में सबसे अग्रणी देशों की पंक्ति में खड़ा करने का काम करता है.

उल्लेखनीय है कि हर महत्वाकांक्षी  विज़न को अमली जामा पहनाने के दौरान कई चुनौतियों का मुक़ाबला करना पड़ता है. ऐसे में NPOS भी कोई अपवाद नहीं है, क्योंकि इसमें भी बेहद परिवर्तनकारी और व्यापक नज़रिया अपनाया गया है. भारत में निचले स्तर से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक गवर्नेंस की संरचना इतनी व्यापक है और ऊपर से इसमें अफ़रशाही की तमाम जटिलताएं है, जो मिलकर विकट चुनौतियां पेश करती हैं. इसके अलावा, आंकड़ों की विश्वसनीयता और सच्चाई को बरक़रार रखते हुए, इतने बड़े देश में आंकड़ों का बाधा रहित सुगम एकीकरण सुनिश्चित करना वास्तविकता में एक अत्यधिक पेचीदा काम है. हालांकि, NPOS अपने व्यापक नज़रिए, वैश्विक स्तर पर मेलजोल और भविष्य के अनुरूप अपने विज़न के साथ आगे बढ़ने का बेहतरीन मार्ग प्रशस्त करता है.

NPOS के परिवर्तनकारी विज़न के केंद्र में टेक्नोलॉजी के साथ आंकड़ों का सुगम और निर्बाध संबंध है. जैसे-जैसे टेक्नोलॉजी अपनी विकास यात्रा को जारी रखती है, वैसे-वैसे यह हमारे जीवन के हर पहलू में कुछ नयापन और बदलाव भी लाती है. तकनीक़ की वजह से जो कार्यकुशलता मिलती है, उससे आंकड़ों को जुटाना और उनका विश्लेषण व प्रसार जिस तरीक़े से होता है, उसका कोई मुक़ाबला नहीं है. जैसे कि डिजिटल प्लेटफॉर्म्स पर रियल टाइम आंकड़ों तक पहुंच पक्की होती है, उसी प्रकार से मशीन लर्निंग एल्गोरिदम भविष्य के बारे में जानकारी उपलब्ध कराते हैं, साथ ही क्लाउड इंफ्रास्ट्रक्चर मापनीयता और पहुंच सुनिश्चित करते हैं. ऐसा नहीं है कि आंकड़ों और टेक्नोलॉजी के इस तालमेल में चुनौतियां नहीं हैं. आंकड़ों की गोपनीयता, साइबर सुरक्षा ख़तरों और आबादी के कुछ हिस्सों में तकनीक़ से दूर रहने की संभावना से जुड़ी चिंताएं काफ़ी बड़ी हैं.

जैसे-जैसे भारत इस गौरवपूर्ण यात्रा पर आगे बढ़ रहा है, वह NPOS द्वारा बनाई गई सशक्त नींव पर वैश्विक सांख्यिकीय क्षेत्र को आकार देने में अहम भूमिका निभाने के लिए तैयार है.

इसके अतिरिक्त, टेक्नोलॉजी का जिस तेज़ गति के साथ विकास हो रहा है, उसकी तुलना  में हमारा नियामक और नीतिगत फ्रेमवर्क्स विकसित नहीं हो रहा है और इससे ग़लतियां होने की संभावना बढ़ जाती है. आगे का रास्ता इनोवेशन एवं सतर्कता के बीच बेहतर मेलजोल है. ऐसे में जबकि NPOS सही मायने में अत्याधुनिक तकनीक़ी समाधानों को अपनाने का हिमायती है, तो इसके साथ-साथ ऐसे सशक्त फ्रेमवर्क्स को विकसित करना लाज़िमी हो जाता है, जो न केवल आंकड़ों की सच्चाई और विश्वसनीयता को बनाए रखें, उनकी समावेशिता को सुनिश्चित करें, बल्कि लोगों की गोपनीयता को भी अपनी सर्वोच्च प्राथमिकता बनाएं. संक्षेप में कहा जाए तो डेटा और टेक्नोलॉजी के तालमेल की विकास यात्रा ऐसी होनी चाहिए, जो सिर्फ़ भविष्य की संभावनाओं के बारे में ही नहीं सोचे, बल्कि अतीत में जो हुआ है उससे भी सबक ले.

आंकड़ों का वर्गीकरण

NPOS हालांकि आंकड़ों का वर्गीकरण करने के मामले में कुछ नहीं बताता है. विश्लेषकों की कई शिकायतें हैं, उनमें से एक यह है कि बहुत से मामलों में आंकड़ों को क्लासीफाइड घोषित कर दिया जाता है, लेकिन उन्हें इस तरह से नहीं बनाया जाता है कि सार्वजनिक तौर पर लोगों की पहुंच में आ जाएं. उदाहरण के तौर पर, कुछ ऐसी नदियों के बारे में जो देशों की सीमाओं के पार बीच बहती हैं, उनके हालिया हाइड्रोलॉजिकल डेटा को वर्गीकृत किया गया है. सच्चाई यह है कि आंकड़ों का यह वर्गीकरण ऑब्जेक्टिव एनालिसिस यानी वस्तुस्थिति को अच्छी तरह से समझने में व्यवधान पैदा करता है और नतीज़तन इसकी वजह से कई बार नीति बनाने की प्रक्रिया में परेशानी होती है. हालांकि, यह भी एक सच्चाई है कि आंकड़ों की सुरक्षा से जुड़ी चिंताओं की वजह से इससे संबंधित दूसरी चिंताओं की अनदेखी हो जाती है. ऐसे सभी मसलों पर अधिक सुव्यवस्थित और जानकारी से युक्त पॉलिसी की ज़रूरत है. जिस प्रकार से वर्गीकृत आंकड़ों के विषय को इस मसौदे में कोई तवज्जो नहीं दी गई है, वह इसकी कमी को दर्शाता है. यह उस बुनियादी सिद्धांत का उल्लंघन है, जिस पर ड्राफ्ट  को तैयार किया गया है, अर्थात  डेटा को एक सार्वजनिक वस्तु के रूप में स्वीकारना, जो की सर्व समावेशी है या कहा जाए की सभी के लिए सुलभ है और किसी के द्वारा उपयोग करने से दूसरे व्यक्ति के लिए इसमें कोई कमी नहीं आती है.

आगे की राह

यूनाइटेड नेशन्स स्टैटिस्टिकल कमीशन (UNSC) में वर्ष 2024-2027 की अवधि के लिए हाल ही में हुआ भारत का चुनाव सिर्फ़ सांख्यिकी के क्षेत्र में भारत के प्रयासों की मान्यता ही नहीं है, बल्कि सांख्यिकीय श्रेष्ठता के लिए भारत की प्रतिबद्धता का भी एक प्रमाण हैं. ज़ाहिर है कि इस प्रतिबद्धता को NPOS के संशोधित मसौदे में प्रदर्शित किया गया है. भारत को मिला यह सम्मान, कार्यकुशलता, पारदर्शिता और अखंडता के उच्चतम मापदंडों को बरक़रार रखने के लिए उसके आधिकारिक स्टैटिस्टिशियन्स की ज़िम्मेदारी को भी बढ़ाता है. कुल मिलाकर NPOS, वैश्विक स्तर पर क़दमताल करने, UNFPOS के मापदंडों के पालन और अंतर्राष्ट्रीय निकायों द्वारा तय किए गए मानकों के साथ सामंजस्य स्थापित करने पर ज़ोर देने के साथ, वैश्विक सांख्यिकीय क्षेत्र में भारत की यात्रा के लिए एक मार्गदर्शक के तौर पर कार्य करता है.

ज़ाहिर है कि UNSC में शामिल होने से भारत को न सिर्फ़ अन्य देशों की सांख्यिकीय प्रणालियों के साथ सहयोग करने का अवसर मिलता है, बल्कि अपने व्यापक अनुभव, इनोवेशन और जानकारी को बढ़ाने का भी मौक़ा मिलता है. इससे यह भी सुनिश्चित होता है कि वैश्विक स्तर पर होने वाली सांख्यिकीय चर्चाओं-परिचर्चाओं को भारत के असाधारण सामाजिक-आर्थिक परिदृश्य और उसके आंकड़ों द्वारा संचालित होने वाले नैरेटिव्स से लाभ मिले. इसके अतिरिक्त, अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सांख्यिकीय सहयोग से जहां भारत को दुनिया भर से अमल में लाई जाने वाली सर्वोत्तम प्रथाओं को अपनाने का अवसर मिलेगा, वही अपने स्टैस्टिकल सिस्टम को बेहतर बनाने का भी मौक़ा प्राप्त होगा. साथ ही इससे भारत के वैश्विक सांख्यिकी नवाचार के क्षेत्र में सबसे आगे रहने का रास्ता भी तय होगा. जैसे-जैसे भारत इस गौरवपूर्ण यात्रा पर आगे बढ़ रहा है, वह NPOS द्वारा बनाई गई सशक्त नींव पर वैश्विक सांख्यिकीय क्षेत्र को आकार देने में अहम भूमिका निभाने के लिए तैयार है.

NPOS का संशोधित ड्राफ्ट सिर्फ़ एक नीतिगत दस्तावेज़ नहीं है, बल्कि यह डेटा-केंद्रित वैश्विक वातावरण में भारत की दमदार मौज़ूदगी और उसकी आकांक्षाओं का ऐलान है. इतना ही नहीं, NPOS का संशोधित ड्राफ्ट सांख्यिकीय लिहाज़ से नवजागरण के शीर्ष पर खड़े भारत की सामूहिक महत्वाकांक्षा का भी प्रतीक है. जैसे-जैसे भारत NPOS के साथ आगे बढ़ रहा है, दुनिया सांस थामकर उसकी ओर देख रही है और एक ऐसे नए युग के आरंभ की उम्मीद कर रही है, जहां आंकड़े न सिर्फ़ निर्णयों को निर्धारित करने वाले हों, बल्कि नियति को भी सुनिश्चित करें.


ओमन सी कुरियन ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन की स्वास्थ्य पहल में प्रमुख और सीनियर फेलो हैं.

 निलंजन घोष ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में सेंटर फॉर न्यू इकोनॉमिक डिप्लोमेसी में निदेशक हैं.

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