जैसे-जैसे अंतरिक्ष आधारित सेवाओं पर निर्भर देशों की संख्या बढ़ती जा रही है, वैसे-वैसे अंतरिक्ष की गतिविधियों के लिए अंतर्राष्ट्रीय “व्यवहार के मानक” को विकसित करने और उनकी स्थापना की रफ़्तार भी बढ़ती जा रही है. ऐसे “मानकों” में अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के द्वारा व्यापक रूप से स्वीकृत अंतरिक्ष में व्यवहार के बुनियादी मानदंड शामिल हैं. अतीत में इस तरह के मानकों को अपनाने में संयुक्त राष्ट्र को कुछ हद तक सफलता मिली थी जैसे कि 2007 में अंतरिक्ष में मलबों को कम करने के दिशा-निर्देश और 2011 में अंतरिक्ष की गतिविधियों के लिए दीर्घकालीन निरंतरता दिशा-निर्देश. ये दोनों ही दिशा-निर्देश काफ़ी हद तक अंतरिक्ष की “रक्षा” को लेकर थे.[1]
लेकिन अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को अंतरिक्ष की “सुरक्षा” के लिए मानकों को अपनाने के मामले में कम सफलता मिली थी. एक आलोचना जिसका ज़िक्र अक्सर सुरक्षा के संदर्भ में मानकों पर चर्चा के दौरान किया जाता था, वो ये थी कि ये मानक स्वैच्छिक हैं और ये “क़ानूनी तौर पर अनिवार्य मानकों की जगह” नहीं ले सकते हैं.[2] ये आलोचना इस बात की तरफ़ संकेत देती है कि अगर कोई देश अपने वादों का पालन नहीं करता है तो इसका कोई क़ानूनी नतीजा नहीं हो सकता है. अंतरिक्ष सुरक्षा के स्वरूप और इस क्षेत्र में मौजूद सामरिक ख़तरों को देखते हुए ये आश्चर्य की बात नहीं है कि अलग-अलग देश बाहरी अंतरिक्ष में स्थायित्व को सुनिश्चित करने के लिए मज़बूत उपायों की मांग करते हैं. तब भी अंतरिक्ष की गतिविधियों के लिए “मानकों” के मामले में किसी तरह का क़ानूनी परिणाम नहीं होने का विचार पूरी तरह सटीक नहीं है. वास्तव में मानकों की स्थापना “दोष” की क़ानूनी धारणा में अर्थ भर देती है और इस तरह इसका इस्तेमाल अंतरिक्ष की वस्तु के द्वारा हुए नुक़सान के लिए अंतर्राष्ट्रीय दायित्व पर समझौते (दायित्व समझौता) के तहत ज़िम्मेदारी साबित करने में किया जा सकता है. मानक का एक उदाहरण जिसका कि क़ानूनी परिणाम हो सकता है वो जान-बूझकर बनाये गये लंबे समय तक रहने वाले मलबों से जुड़ा है.
एक आलोचना जिसका ज़िक्र अक्सर सुरक्षा के संदर्भ में मानकों पर चर्चा के दौरान किया जाता था, वो ये थी कि ये मानक स्वैच्छिक हैं और ये “क़ानूनी तौर पर अनिवार्य मानकों की जगह” नहीं ले सकते हैं. ये आलोचना इस बात की तरफ़ संकेत देती है कि अगर कोई देश अपने वादों का पालन नहीं करता है तो इसका कोई क़ानूनी नतीजा नहीं हो सकता है.
ग़लती की ज़िम्मेदारी
दायित्व समझौते के अनुच्छेद II के तहत अंतरिक्ष में लॉन्च करने वाले देश पर पृथ्वी की सतह या आसमान में किसी विमान को होने वाले नुक़सान की पूरी भरपाई करने का दायित्व होता है. इसका मतलब ये है कि भले ही किसी की भी ग़लती हो लेकिन लॉन्च करने वाला देश पूरी तरह ज़िम्मेदार है. शायद इस प्रावधान की मदद लेने का एकमात्र उदाहरण वो मामला है जब सोवियत सैटेलाइट कॉसमॉस 954 कनाडा की धरती पर गिरकर ध्वस्त हो गया था.[3] ऐसे मामलों में “दोष” के बारे में कोई विवाद नहीं होता. जो चीज़ मायने रखती है वो है नुक़सान.
बाहरी अंतरिक्ष में होने वाले नुक़सान के लिए दायित्व समझौते के अनुच्छेद III के तहत दोष आधारित दायित्व का प्रावधान है. लेकिन इसके लिए जो चीज़ निश्चित रूप से साबित होनी चाहिए वो ये है कि एक देश के द्वारा अंतरिक्ष में भेजे गए ऑब्जेक्ट ने उस देश की ‘ग़लती’ के कारण किसी दूसरे देश के अंतरिक्ष ऑब्जेक्ट को नुक़सान पहुंचाया है. वैसे तो अंतरिक्ष का माहौल ये साबित करना मुश्किल बनाता है कि एक अंतरिक्ष ऑब्जेक्ट की टक्कर किसी दूसरे अंतरिक्ष ऑब्जेक्ट से हुई है- क़ानूनी रूप से कारण का सबूत तो छोड़ दीजिए- लेकिन इस समस्या को तकनीक के ज़रिए काफ़ी हद तक कम किया जा सकता है. बेहतर ज़मीन और अंतरिक्ष आधारित सेंसर से जैसे-जैसे अंतरिक्ष के संदर्भ में जागरुकता (SSA) में सुधार होता है और कक्षीय गति विज्ञान को लेकर हमारी जानकारी बढ़ती है, वैसे-वैसे अंतरिक्ष में टक्कर के कारणों को दिखाना आसान होगा. तब भी ‘दोष’ की धारणा कुछ हद तक क़ानून की अनुपस्थिति को प्रस्तुत करती है.
घरेलू क़ानूनी प्रणाली, जिसमें ग़लत करने के बारे में अच्छी तरह से विकसित न्यायशास्त्र है या नियम तोड़ने को लेकर नागरिक संहिता है, से हटकर दोष की धारणा अंतर्राष्ट्रीय क़ानून के लिए कुछ-कुछ अलग स्वभाव की है. ऐसा परंपरागत माध्यम की वजह से होता है जिसके द्वारा एक देश अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अनुचित क़ानून के लिए ज़िम्मेदारी से पैदा होने वाले मुआवज़े का देनदार हो सकता है. अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर एक अनुचित क़ानून के लिए प्रमुख तत्व एक अंतर्राष्ट्रीय वादे का उल्लंघन है जिसका आरोप एक देश पर लगाया जा सकता है. जहां एक अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अनुचित क़ानून मौजूद है वहां एक देश ज़िम्मेदार है और उस पर हर्जाने का देनदार है. कुछ परिस्थितियों के तहत हर्जाने में मुआवज़ा शामिल हो सकता है.
दोष’ का अर्थ उचित उपायों की अनुपस्थिति है जिसे “व्यवहार के कर्तव्य, परिणाम का नहीं, के रूप में परिभाषित किया गया है जिसका मतलब ये है कि अलग-अलग देशों का कर्तव्य ये है कि वो अन्य देशों को होने वाले नुक़सान या हानि को रोकने के लिए अपने सर्वश्रेष्ठ प्रयास का इस्तेमाल करें.” लेकिन हम ये कैसे समझ सकते हैं कि नुक़सान को रोकने के लिए सर्वश्रेष्ठ कोशिशें क्या होनी चाहिए?
लेकिन इस बात पर ध्यान देना महत्वपूर्ण है कि अंतर्राष्ट्रीय दायित्व के सिद्धांत के तहत मुआवज़े के लिए पहले अंतर्राष्ट्रीय वादे को तोड़ने की ज़रूरत होती है. दायित्व समझौते के अनुच्छेद III में ऐसा कोई तत्व नहीं है. दरअसल जैसा कि जेम्स क्रॉफोर्ड ने लिखा था, “अंतर्राष्ट्रीय क़ानून के तहत पूरी तरह से वैध एक अधिनियम के लिए दायित्व रूप-रेखा के निर्माण का सर्वसम्मति से स्वीकृत एकमात्र उदाहरण 1972 के दायित्व समझौते में शामिल है.”[4]अगर दोष एक अंतर्राष्ट्रीय वादे का उल्लंघन नहीं है तो फिर क्या है? इसका जवाब मुश्किल है.
अच्छी बात ये है कि इसको जोएल डेनेरली की क़ानूनी विद्धता के ज़रिए परिभाषित किया गया है.[5] दायित्व समझौते के उद्देश्यों के लिए ‘दोष’ को अंतर्राष्ट्रीय क़ानून के द्वारा वर्जित नहीं किए गए अधिनियमों के तहत हानिकारक परिणामों के लिए अंतर्राष्ट्रीय दायित्व पर अंतर्राष्ट्रीय विधि आयोग के काम-काज के संदर्भ में समझा जाना चाहिए. संक्षेप में कहें तो ‘दोष’ का अर्थ उचित उपायों की अनुपस्थिति है जिसे “व्यवहार के कर्तव्य, परिणाम का नहीं, के रूप में परिभाषित किया गया है जिसका मतलब ये है कि अलग-अलग देशों का कर्तव्य ये है कि वो अन्य देशों को होने वाले नुक़सान या हानि को रोकने के लिए अपने सर्वश्रेष्ठ प्रयास का इस्तेमाल करें.”[6] लेकिन हम ये कैसे समझ सकते हैं कि नुक़सान को रोकने के लिए सर्वश्रेष्ठ कोशिशें क्या होनी चाहिए? इस सवाल के जवाब के लिए हम व्यवहार के मानकों और आचरण के मानदंडों की तरफ़ देख सकते हैं यानी जिसे सुलभ क़ानूनी साधन कहते हैं.[7]
विध्वंसक एंटी-सैटेलाइट परीक्षणों के ख़िलाफ़ मानक
आज के समय में कोई भी क़ानून या नियम किसी भी देश को एंटी-सैटेलाइट हथियारों के परीक्षण के दौरान अपने सैटेलाइट का विध्वंस करने से नहीं रोकता है. लेकिन ‘दोष’ के बारे में विश्लेषण को देखते हुए अगर एंटी-सैटेलाइट परीक्षण का मलबा अंतरिक्ष के किसी दूसरे ऑब्जेक्ट पर गिरता है तो एक पक्ष को उत्तरदायी ठहराया जा सकता है. लेकिन इसके लिए ये दिखाना होगा कि उस देश का आचरण “सर्वश्रेष्ठ कोशिशों” के स्तर का नहीं रहा. उस वक़्त ये सवाल खड़ा होता है कि “रोकने वाले उपाय” क्या हैं और क्या उस देश को ये पता होना चाहिए कि उनकी वैध गतिविधि किसी दूसरे देश को नुक़सान पहुंचाएगी?
इन सवालों का जवाब देने के लिए ये देखना होगा कि दूसरे देश क्या करते हैं, किस तरह के मानक उभरे हैं और उभर रहे हैं. साथ ही ये भी देखना होगा कि संभावित नुक़सान को कम करने के लिए अलग-अलग देश देखभाल का क्या मानदंड अपनाते हैं. 2007 का अंतरिक्ष में मलबा कम करने का दिशा-निर्देश और 2019 का दीर्घकालीन निरंतरता दिशा-निर्देश- दोनों ही मलबे के निर्माण को लेकर रोक-थाम के उपायों के बारे में सर्वश्रेष्ठ प्रयासों के बारे में बताते हैं. बाहरी अंतरिक्ष की गतिविधियों में पारदर्शिता और भरोसा बढ़ाने के उपायों पर सरकारी विशेषज्ञों के समूह की रिपोर्ट इरादतन मलबे के निर्माण के लिए मानकों को लेकर सीधे तौर पर प्रासंगिक है. इस रिपोर्ट को 2013 में आम राय से अपनाया गया था और इसमें चीन, रूस और अमेरिका के विशेषज्ञों की राय भी ली गई थी. सरकारी विशेषज्ञों के समूह की रिपोर्ट में एंटी-सैटेलाइट टेस्ट के लिए मानकों का उल्लेख भी किया गया है, ख़ास तौर पर ये बात कि मलबों से परहेज किया जाना चाहिए, टेस्ट के दौरान सिर्फ़ कम मात्रा में कुछ समय तक रहने वाले मलबों का ही उत्पादन होना चाहिए और ये अंतरिक्ष के मलबों को कम करने के दिशा-निर्देश का ध्यान रखते हुए होना चाहिए. साथ ही रिपोर्ट में इस बात का भी ज़िक्र है कि अलग-अलग देशों को अपनी योजना के बारे में प्रभावित होने वाले देशों को जानकारी देनी चाहिए.[9]
अलग-अलग देशों के द्वारा पूरी तरह से एंटी-सैटेलाइट टेस्ट नहीं करने के एकतरफ़ा भरोसे का सामने आना एक ऐसे मानक की शुरुआत है कि मलबा उत्पन्न करने वाले एंटी-सैटेलाइट टेस्ट सहज रूप से बेहद ख़तरनाक हैं और नुक़सान से रोकने के लिए और भी बड़े स्तर पर देखभाल की ज़रूरत है. ये एकतरफ़ा भरोसे इस तरह की गतिविधियों के लिए स्तर ऊंचा करते हैं कि ‘दोष’ से बचने के लिए देखभाल के जिस स्तर की आवश्यकता है वो काफ़ी ज़्यादा होगा और काफ़ी हद तक ऐसे उदाहरणों को सीमित कर दिया जाएगा जहां इस तरह के टेस्ट होते हैं.
अलग-अलग देशों के द्वारा पूरी तरह से एंटी-सैटेलाइट टेस्ट नहीं करने के एकतरफ़ा भरोसे का सामने आना एक ऐसे मानक की शुरुआत है कि मलबा उत्पन्न करने वाले एंटी-सैटेलाइट टेस्ट सहज रूप से बेहद ख़तरनाक हैं और नुक़सान से रोकने के लिए और भी बड़े स्तर पर देखभाल की ज़रूरत है.
आज के समय में सिर्फ़ सात देशों ने ऐसी नीतियों को अपनाया है जो विध्वंसकारी एंटी-सैटेलाइट टेस्ट को रोकते हैं: अमेरिका, कनाडा, न्यूज़ीलैंड, जर्मनी, जापान, कोरिया गणराज्य और यूनाइटेड किंगडम. कई अन्य देश जैसे कि फ्रांस इस तरह की पहल का समर्थन करता है लेकिन उन्होंने ख़ुद इस तरह का संकल्प नहीं लिया है. अगर इन देशों की संख्या लगातार बढ़ती है तो अंतरिक्ष के मामले में क्षमतावान देशों के बीच भी इस दलील को और ज़्यादा मज़बूती मिलेगी कि विध्वंसक एंटी-सैटेलाइट टेस्ट के द्वारा उत्पन्न मलबों से होने वाले नुक़सान के लिए अलग-अलग देशों को उत्तरदायी ठहराया जा सकता है. उसी रूप में दायित्व समझौते के तहत ऐसे किसी नुक़सान के लिए अलग-अलग देश मुआवज़े के देनदार होंगे. अंतरिक्ष के ऑब्जेक्ट की हैरान करने वाली बड़ी मात्रा को देखते हुए और एंटी-सैटेलाइट टेस्ट के द्वारा उत्पन्न किए जा सकने वाले मलबे के परिणामस्वरूप होने वाला नुक़सान काफ़ी ज़्यादा हो सकता है. उदाहरण के लिए, 500 किमी की ऊंचाई में विध्वंसकारी एंटी-सैटेलाइट टेस्ट करने से अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष केंद्र या स्पेसएक्स के स्टारलिंक समूह को जोखिम हो सकता है. ऐसी हानि के लिए ‘दोषी’ के रूप में पाये जाने का वित्तीय नतीजा बहुत खर्चीला हो सकता है.
निष्कर्ष
वैसे तो मानक के निर्माण के लिए स्वैच्छिक रूप से उसे अपनाने और उसका पालन करने की आवश्यकता होती है लेकिन ये पूरी तरह से क़ानूनी पहलू के बिना नहीं है. कोई संधि परंपरागत क़ानूनी शर्तों के साथ आ सकती है लेकिन मानक समझौतों को प्रेरित करते हैं और उन मानदंडों को तय कर सकते हैं जिसके द्वारा उन्हें लागू किया जाता है. इस संदर्भ में बाहरी अंतरिक्ष की गतिविधियों के लिए मानक उन तरीक़ों को प्रेरित कर सकते हैं जिनसे दायित्व समझौतों को लागू किया जाता है. मलबा उत्पन्न करने वाले एंटी-सैटेलाइट टेस्ट के मामले में ऐसा कोई क़ानून या नियम नहीं है जो उन्हें रोकते हैं लेकिन इस तरह के टेस्ट के ख़िलाफ़ एक बढ़ते मानक का इस्तेमाल ये साबित करने के लिए किया जा सकता है कि अलग-अलग देशों का ‘दोष’ हो सकता है और इसलिए वो मलबों से होने वाले नुक़सान के लिए उत्तरदायी हैं. जितने ज़्यादा देश ये वादा करेंगे उतना ही ये मामला मज़बूत होगा. इस तरह ऐसी ख़तरनाक गतिविधि के लिए कुछ बेहद ज़रूरी क़ानूनी निष्कर्ष प्रदान करेंगे.
[1] “Safety” refers to freedom from accidents, such as collisions with debris, where no intent exists. “Security” refers to freedom from intentional acts, such as attacks.
[2] Submission by India to the UN Secretary General’s request for input regarding Resolution 75/36: Reducing space threats through norms, rules and principles of responsible behaviors.
[3] Paul S. Dempsey, et al., eds, Space Law (Primary documents) Canada Claim Submitted to Russia, Doc. No. 14B2 (3rd ed, 2018).
[4] James Crawford, Brownlie’s Principles of Public International Law, 8th Edition (Oxford: Oxford University Press, 2012) at 561.
[5] Joel A. Dennerley, “State Liability for Space Object Collision: The Proper Interpretation for ‘Fault’ for the Purposes of International Space Law” (2018) 29(1) EJIL 281
[6] Id. at 294.
[7] Id. at 299-300.
[8] Report of the Group of Governmental Experts on Transparency and Confidence-Building Measures in Outer Space Activities, UN General Assembly A/68/189* (29 July 2013).
[9] Id. at para. 45.
[10] France applauds the United States’ commitment to not conduct any destructive, direct-ascent anti-satellite (ASAT) missile testing (21 Apr. 2022) statesstatesstates
[11] See SWF Infographic: ASAT Weapons – Threatening the Sustainability of Space Activities (May 2022)
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