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वर्ष 1992-93 में कक्षा 10 की परीक्षा शुरू होने से ठीक पहले की रात को निर्मला कुमारी के पिता ने उसे अंतिम चेतावनी देते हुए कहा था, “अगर तुम अपनी मेहनत और प्रतिभा के बल पर परीक्षा पास कर सकती हो, तभी तुम्हें इसे देना चाहिए. अगर ऐसा नहीं हुआ तो तुम अपने लिए इंटरमीडिएट पास लड़का तलाशने की मेरी परेशानी को ही और ज़्यादा बढ़ाओगी.”[a] अपने पिता की टिप्पणी से निराश, लेकिन अपनी पढ़ाई के लिए प्रतिबद्ध निर्मला ने ना सिर्फ़ हाई स्कूल की परीक्षा दी, बल्कि वह द्वितीय श्रेणी के साथ परीक्षा में उत्तीर्ण भी हुई. वह याद करते हुए बताती हैं, “मैं शिक्षित होने के अपने सपने के साथ इतना आगे बढ़ चुकी थी कि इसे छोड़ ही नहीं सकती थी. मैं खुद परीक्षा केंद्र गई और परीक्षा दी, लेकिन मैं कुछ ही अंकों से प्रथम श्रेणी से चूक गई.” हालांकि स्कूल में उसके अच्छे और अनुकरणीय प्रदर्शन से घर पर उसके प्रति रवैये में कोई तात्कालिक बदलाव नहीं हुआ. निर्मला इस घटना को अपने जीवन भर सीखने के सफर में अपनी पहली सफलता के रूप में याद करती हैं.
निर्मला की उम्र अब 45 वर्ष है. उनका जन्म बिहार के नगर नौसा ब्लॉक के खापुरा गांव में हुआ था. वहीं पर उनका बचपन बीता और वह अपनी चार बहनों और दो भाइयों के साथ पली-बढ़ीं. निर्मला को जब पोलियो हुआ, तब वह केवल एक वर्ष की थीं. पोलियो की वजह से उनका बायां पैर दिव्यांग हो गया. उनके परिवार की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी, और मामूली संसाधनों के बीच रहने वाली निर्मला और उनके भाई-बहनों ने एक स्थानीय सरकारी स्कूल में पढ़ाई की. 16 साल की उम्र में 10वीं की परीक्षा पूरी करने के तुरंत बाद निर्मला की शादी हो गई. उनके समुदाय में यह कोई असामान्य या अजीब सी बात नहीं थी. जैसा कि राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण से पता चलता है कि बिहार में लड़कियों के लिए पहली शादी की औसत आयु अभी भी 17 वर्ष है.[1]
निर्मला को जब पोलियो हुआ, तब वह केवल एक वर्ष की थीं. पोलियो की वजह से उनका बायां पैर दिव्यांग हो गया. उनके परिवार की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी, और मामूली संसाधनों के बीच रहने वाली निर्मला और उनके भाई-बहनों ने एक स्थानीय सरकारी स्कूल में पढ़ाई की.
उनके पति का परिवार उसी ब्लॉक के अरियामा गांव का रहने वाला था. निर्मला ने बताया कि वह गांव, “इतना पिछड़ा था कि वहां किसी भी महिला को कभी भी पढ़ने, काम करने और बाहर जाने की अनुमति नहीं थी.” वह कहती हैं कि उनका पति, जो अब एक पशु चिकित्सक है, बेहद विनम्र और समझदार व्यक्ति था. इतना ही नहीं वह उच्च शिक्षा प्राप्त करने की उसकी इच्छा के बारे में जानता था और उसका समर्थन करने के लिए तत्पर था. उसने वर्ष 2018 में निर्मला को एक मोबाइल फोन दिया और उसे किशोरी केंद्र (किशोरावस्था केंद्र) के साथ अनुदेशिका[b] के रूप में काम करने के लिए नामांकित करके गांव में लड़कियों को पढ़ाने का आग्रह किया. किशोरी केंद्र छह साल और उससे अधिक उम्र की उन लड़कियों को शिक्षा के लिए फिर से संगठित करने में जुटा था, जिन्होंने स्कूली शिक्षा को बीच में ही छोड़ दिया था.
बिहार में महिलाओं का तकनीकी सशक्तिकरण(15-49 वर्ष की आयु) |
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वे महिलाएं जिनके पास मोबाइल फोन है और खुद उपयोग भी करती हैं |
514% |
जो महिलाएं अपने मोबाइल फोन में एसएमएस मैसेज पढ़ सकती हैं |
493% |
जो महिलाएं वित्तीय लेन-देन के लिए मोबाइल का उपयोग करती हैं |
104% |
जिन महिलाओं ने कभी इंटरनेट का इस्तेमाल किया है |
206% |
स्रोत : राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS-5), 2019-21[2]
किशोरी केंद्र में निर्मला ने लगभग 50 लड़कियों को पढ़ाया, जिनमें से 30 लड़कियों को उच्च-प्राथमिक और माध्यमिक विद्यालय में फिर से नामांकित किया गया. सामुदायिक शिक्षा और जागरूकता अभियानों में सफलता का यह उनका पहला अनुभव था. निर्मला गर्व के साथ कहती हैं, “मेरी दो लड़कियों ने सफलता हासिल की है और अपने लिए करियर का निर्माण किया है.” दोनों लड़कियों में से एक सहायक नर्स/मिडवाइफ के रूप में कार्य करती है, जबकि दूसरी आंगनवाड़ी सेविका (चाइल्डकेयर सेंटर हेल्पर) के रूप में काम करती है. हालांकि निर्मला को यह सब करते हुए एक स्थायी शिक्षक की भूमिका नहीं मिली, लेकिन इस प्रयास ने उसे उच्च शिक्षा हासिल करने के लिए दोबारा प्रेरित किया. इसके बाद उन्होंने अपनी आगे की शिक्षा और आर्ट्स में स्नातक की डिग्री पूरी की. पूरे भारत में स्कूली शिक्षा में लगने वाले कई वर्ष और कमाई की क्षमता जैसे कई कारक हैं, जिन्हें मोबाइल फोन रखने और इस्तेमाल करने को प्रभावित करने के लिए जाना जाता है. (चित्र 1 देखें).
मोबाइल वाणी के कई मंचों, जैसे सामाजिक सुरक्षा योजनाओं, महिलाओं का स्वास्थ्य, नागरिक अधिकार, उपयोगी उत्पादों की जानकारी जैसे और स्व-विवेक द्वारा कवर किए गए कई मुद्दों की बड़ी सूची से प्रेरित होकर निर्मला ने इस आंदोलन में शामिल होने का निर्णय किया.
स्नातक की डिग्री हासिल करने के बाद निर्मला के लिए तरक्की के तमाम दरवाजे खुल गए. उन्होंने बिहार सरकार के ‘जीविका’ कार्यक्रम के साथ जॉब रिसोर्स पर्सन के रूप में काम किया,[c] जहां उन पर वर्ष 2018 तक युवा कौशल और रोज़गार का उत्तरदायित्व था. उस समय जीविका महिलाओं के स्वास्थ्य, प्रसवपूर्व, गर्भावस्था और नवजात की देखभाल पर केंद्रित एक ‘मोबाइल वाणी’ कार्यक्रम चला रही थी. इस कार्यक्रम में निर्मला की बहुत अधिक दिलचस्पी थी. मोबाइल वाणी के कई मंचों, जैसे सामाजिक सुरक्षा योजनाओं, महिलाओं का स्वास्थ्य, नागरिक अधिकार, उपयोगी उत्पादों की जानकारी जैसे और स्व-विवेक द्वारा कवर किए गए कई मुद्दों की बड़ी सूची से प्रेरित होकर निर्मला ने इस आंदोलन में शामिल होने का निर्णय किया.[3] वर्ष 2019 में वह इसके मेरी आवाज मेरी पहचान [d] (एमएएमपी या ‘माई वॉयस, माई आइडेंटिटी’) प्लेटफॉर्म में शामिल हुईं और ग्रामीण महिलाओं के बीच मोबाइल साक्षरता बढ़ाने यानी उन्हें मोबाइल के उपयोग की जानकारी देने की तरफ अपना ध्यान केंद्रित किया. इसके साथ ही उन्होंने इस पर भी फोकस किया कि एक मोबाइल फोन से उपयोग करके किस प्रकार ग्रामीण महिलाओं में ज़िम्मेदारी की भावना पैदा की जा सकती है.
सामुदायिक विकास को बढ़ावा देने और लोगों को प्रेरित करने के लिए उन्होंने चंडी और नगर नौसा ब्लॉकों के गांवों की यात्रा की. इस यात्रा के दौरान उन्होंने कई स्वयं सहायता समूहों (एसएचजी), आंगनवाड़ी सेविकाओं, हेल्थ वर्कर्स और ग्रामीण संगठनों की महिलाओं के साथ बातचीत करके उनसे इस मुफ्त सेवा को सुनने का आग्रह किया, जिसमें स्थानीय मुद्दों के बारे में गहराई से चर्चा की जाती है. इतना ही नहीं निर्मला ने महिला समूहों के साथ कई ऐसे सत्रों का भी आयोजन किया, जिनमें उन्हें दिखाया जा सके कि मोबाइल के माध्यम से किस प्रकार पैसे भेजे और प्राप्त किए जाते हैं, ऑनलाइन बैंकिंग सेवाओं का लाभ उठाया जाता है, बैंक खाते में मौजूद अपनी बचत शेष राशि को देखा जाता है, किस प्रकार पासबुक अपडेट की जाती और सुरक्षित बैंकिंग को कैसे किया जाता है. इसके साथ ही उन्होंने महिलाओं को यह करके दिखाया कि मोबाइल के माध्यम से किस प्रकार माइक्रोक्रेडिट ऋण के लिए आवेदन किया जाता है और डिजिलॉकर जैसे सुविधाजनक डिजिटल संग्रह का किस प्रकार उपयोग किया जाता है. निर्मला ने ग्रामीण महिलाओं के समूहों के सामने ऑनलाइन वित्तीय लेन-देन से जुड़ी भ्रांतियों को भी दूर किया. वह ज़ोर देकर कहती हैं, “अब मेरे गांव की महिलाओं को अपने खाते की शेष राशि देखने या पैसे ट्रांसफर करने के लिए स्थानीय बैंक में जाने की आवश्यकता नहीं है. यदि उन्हें किसी सरकारी प्रतियोगी परीक्षा के लिए पंजीकरण करना होता है, तो वे डिजिलॉकर का उपयोग करती हैं. लड़कियां ने अब नियमित रूप से खुद अमेज़न पर चीज़ें ख़रीदना शुरू कर दिया है. अब हम अपने फोन का उपयोग लगभग हर उस चीज़ और कार्य को पूरा करने के लिए करते हैं, जो हमें करने की ज़रूरत होती है. यह हमारे लिए बहुत ही फायदेमंद है.”
वह कहती हैं, “एक दूसरे से सीखने और सिखाने की प्रक्रिया में हम आत्मनिर्भर हो गए हैं. इन दिनों अब ऐसा हो गया है कि अगर हमें लगता है कि हमारे गांव या समुदाय की किसी भी महिला को मदद की ज़रूरत है, तो हम तुरंत उन्हें अपना मोबाइल नंबर देते हैं और कहते हैं कि अगर उन्हें कभी कोई कठिनाई आए तो हमें कॉल करें.”
गांवों में महिलाओं के साथ अपनी बातचीत और अनुभव के बारे में विस्तार से बताते हुए निर्मला ना केवल आपसी मेल-जोल की एक सुंदर तस्वीर पेश करती हैं, बल्कि कई तरह की जानकारियों से भरी बदलाव की व्यक्तिगत कहानियां भी साझा करती हैं. ग्रामीण महिलाओं के साथ एक बार जब उनके रिश्ते प्रगाढ़ हो गए, तो ज़्यादा संख्या में महिलाओं को समूह में लाना आसान हो गया. निर्मला का उन सभी महिलाओं को समझाने का नज़रिया, जो महिलाएं टेक्नोलॉजी से बिलकुल अनजान हैं और इसके बारे में कुछ जानना भी नहीं चाहती हैं, एक लिहाज़ से महिला सशक्तिकरण की दिशा में यह निर्लमा के अपने स्वयं के अनुभव से निकला तरीक़ा है. उदाहरण के लिए, निर्मला पहले केवल कॉल करने और कॉल रिसीव करने के लिए मोबाइल फोन का उपयोग करती थीं. लेकिन एक कम्युनिटी रिपोर्टर के रूप में प्रशिक्षित होने के पश्चात अब वे बिजली बिलों का भुगतान करने, एलपीजी सिलेंडर बुक करने और कॉलेज में अपने बेटे को पैसे भेजने के लिए मोबाइल ऐप का उपयोग करती हैं. वह कहती हैं, “एक दूसरे से सीखने और सिखाने की प्रक्रिया में हम आत्मनिर्भर हो गए हैं. इन दिनों अब ऐसा हो गया है कि अगर हमें लगता है कि हमारे गांव या समुदाय की किसी भी महिला को मदद की ज़रूरत है, तो हम तुरंत उन्हें अपना मोबाइल नंबर देते हैं और कहते हैं कि अगर उन्हें कभी कोई कठिनाई आए तो हमें कॉल करें.”
वह कंचन नाम की एक परेशान महिला और उसके नवजात बेटे को उसके हिंसक पति से बचने में मदद करने की घटना के बारे में याद करती हैं, जिसके बारे में उन्हें हाल ही में एक एमएएमपी एपिसोड से पता चला था. निर्मला ने महिला हेल्पलाइन नंबर (1091) पर कॉल करने में अपनी साथी स्वयंसेविकाओं का नेतृत्व किया और तत्काल वहां पुलिस को बुलाकर उस महिला की मदद की. इतना ही नहीं इन मोबाइल वाणी स्वयंसेविकाओं के समूह ने पंचायत के समक्ष भी घरेलू दुर्व्यवहार के दुष्प्रभावों पर विचार-विमर्श करने और पीड़ित महिला की मदद करने के लिए भी कदम बढ़ाया. इस प्रकार उन्होंने कंचन को सम्मानजनक और ख़ुशहाल जीवन जीने में मदद करने के लिए पूरे समुदाय को प्रोत्साहित किया.
निर्मला की 20 वर्षीय बेटी हाल ही में जब सरकारी वेतन की नौकरी पाने वाली परिवार की पहली सदस्य बनी तो उन्होंने इसे अपनी जीत के रूप में देखा. बड़े होते हुए, उन्होंने कभी भी महिलाओं को सशक्त रूप में नहीं देखा था, लेकिन अब निर्मला अपने दृढ़निश्चय से सैकड़ों महिलाओं का ना केवल नेतृत्व कर सकती हैं, बल्कि उन्हें सक्षम भी बना सकती हैं.
निर्मला की महिलाओं की मदद करने की इच्छा बहुत आगे बढ़ चुकी है. उनकी प्रेरणा और मेहनत का ही परिणाम है कि अब ग्राम सभा में महिलाओं की लगभग एक-तिहाई उपस्थिति है.[e] उन्होंने विधवा भत्ता, जननी सुरक्षा योजना (सुरक्षित मातृत्व), नल जल योजना (स्वच्छ जल के नल तक पहुंच), मातृ वंदना योजना (मातृ और नवजात मृत्यु दर को कम करने के लिए), स्वच्छ भारत मिशन (साफ-सफाई और स्वच्छता) और मुफ़्त राशन जैसी सरकारी सामाजिक सुरक्षा योजनाओं को लोकप्रिय बनाया है. वह कहती हैं, “हमें जो जानकारी ऑनलाइन मिलती है और जो जानकारी मोबाइल वाणी के माध्यम से प्राप्त होती है, इसी जानकारी की वजह से हमारे गांव की सभी महिलाओं ने बैंक खाते खोले हैं, इसके लिए बहुत-बहुत धन्यवाद.” आज निर्मला के पास राशन कार्ड (सब्सिडी वाला खाद्यान्न खरीदने के लिए) है और उनका परिवार किसान सम्मान निधि योजना (छोटे और सीमांत किसानों के लिए वित्तीय मदद) और वृद्धजन पेंशन योजना (वृद्धावस्था पेंशन) का लाभार्थी है. वह इस सबका श्रेय अपने मोबाइल फोन और एमएएमपी कार्यक्रम को देती हैं, जिसे वह नियमित रूप से सुनती हैं.
निर्मला की 20 वर्षीय बेटी हाल ही में जब सरकारी वेतन की नौकरी पाने वाली परिवार की पहली सदस्य बनी तो उन्होंने इसे अपनी जीत के रूप में देखा. बड़े होते हुए, उन्होंने कभी भी महिलाओं को सशक्त रूप में नहीं देखा था, लेकिन अब निर्मला अपने दृढ़निश्चय से सैकड़ों महिलाओं का ना केवल नेतृत्व कर सकती हैं, बल्कि उन्हें सक्षम भी बना सकती हैं. ज़ाहिर है कि इसका श्रेय उनकी शिक्षा को जाता है. अपनी साथी स्वंयसेविकाओं के साथ वह नगर नौसा और चंडी ब्लॉक में लगभग 15,000 महिलाओं तक संपर्क स्थापित कर चुकी हैं और उन्हें अपने मोबाइल के माध्यम से ना सिर्फ़ प्रशिक्षित कर रही हैं, बल्कि उन्हें सशक्त भी बना रही हैं. शारीरिक रूप से दिव्यांग एक ग्रामीण महिला और तीन बच्चों की मां निर्मला ने कभी नहीं सोचा था कि वह उस बदलाव को ला सकती हैं, जिसे वह देखना चाहती हैं. अपने क्षेत्र में वर्षों से उन्होंने जो कार्य किया है, उसने उन्हें बहुत सम्मान दिलाया है. लेकिन उन्हें असली संतुष्टि और ख़ुशी तब महसूस होती है, जब वह किसी गांव में जाती हैं और वहां के बच्चे उन्हें पहचान कर चिल्लाते हैं, “मोबाइल वाणी वाली दीदी आ गई” (मोबाइल वाणी की बड़ी बहन आ गई). यही वो बात है, जो निर्मला को और ज़्यादा मेहनत करने के लिए प्रेरित करती है और उनमें नई ऊर्जा का संचार करती है.
चित्र1: बिहार और भारत के लिए महिला डिजिटल और वित्तीय सशक्तिकरण सूचकांक, 2019-2021
स्रोत: लेखक स्वयं, NFHS–5 से मिले आंकड़ों पर आधारित[4]
प्रमुख सबक
- बड़ी संख्या में मोबाइल होने के बावज़ूद डिजिटल साक्षरता की कमी निश्चित तौर पर महिला सशक्तिकरण में एक बड़ी बाधा है. कम लागत वाली, मल्टी-प्लेटफॉर्म प्रौद्योगिकियों में महत्वपूर्ण जानकारी और ज्ञान पाने का रास्ता तैयार करने की क्षमता है. लेकिन इसके लिए लोगों को डिजिटल कुशल बनाना बेहद ज़रूरी है.
- लैंगिक आधार पर मोबाइल स्वामित्व के विभाजन को, ग्रामीण-शहरी आधार पर विभाजन को और महिलाओं की डिजिटल एवं वित्तीय ज़रूरतों को अलग-अलग चुनौतियों के तौर पर देखा जाना चाहिए. इसके साथ ही इन चुनौतियों से निपटने के लिए स्थान एवं समुदाय के अनुकूल स्थानीय समाधान की आवश्यकता होती है. विशेष रूप से, फिनटेक स्पेस को महिला-पुरुष की ज़रूरतों के मुताबिक़ और अधिक समावेशी बनने की ज़रूरत है.
- डिजिटल प्रौद्योगिकियों में व्यवहारिक, सांस्कृतिक और लैंगिक-सकारात्मक बदलाव लाने की असीम संभावनाएं हैं.
NOTES
[a] सामाजिक मानदंड/प्रवृत्ति का जिक्र करते हुए, जिसमें एक अरेंज मैरिज में पुरुष की उम्र अधिक होनी चाहिए और महिला की तुलना में वो अधिक शिक्षित भी होना चाहिए। निर्मला के मामले में 10वीं कक्षा उत्तीर्ण होने का अर्थ है कि उसके आदर्श जीवन साथी को कम से कम 12वीं कक्षा (इंटरमीडिएट) उत्तीर्ण होना चाहिए।
[b] अनुदेशिका का मतलब प्रशिक्षक/संरक्षक से है
[c] जीविका बिहार सरकार का प्रमुख ग्रामीण गरीबी उन्मूलन और आजीविका संवर्धन मिशन है. मोबाइल वाणी इस मिशन पर केंद्रित इसके कई कार्यक्रमों का एक हिस्सा है.
[d] मोबाइल वाणी (स्थानीय स्तर पर ग्राम वाणी के रूप में भी लोकप्रिय) एक आईवीआर–आधारित और समुदाय के नेतृत्व वाला इंटरैक्टिव सोशल मीडिया और सूचना प्रसारण मंच है। उपयोगकर्ता कुछ छोटे कोड (विभिन्न चैनलों के अलग–अलग कोड हैं और एमएएमपी उनमें से एक है) का उपयोग करके नि:शुल्क डॉयल कर सकते हैं और चैनलों के माध्यम से ब्राउज करके स्थानीय स्वयंसेविकाओं द्वारा तैयार किए गए कंटेंट को प्राप्त कर सकते हैं, या फिर ऑडियो संदेशों को रिकॉर्ड करके अपना मैसेज भी शेयर कर सकते हैं। इसे कम फीचर वाले फोन के माध्यम से उपयोग किया जा सकता है और यह बिहार, उत्तर प्रदेश, दिल्ली, मध्य प्रदेश एवं झारखंड के ग्रामीण जिलों में बेहद लोकप्रिय है।
[e] ग्राम सभा का अर्थ है एक जगह पर उपस्थित ग्रामीणों का समूह, जिसमें गांव के सभी वयस्क सदस्य (18 वर्ष से अधिक और जो मतदाता सूची में शामिल हैं) शामिल होते हैं। ग्राम सभा में उस पंचायत के लोगों की चिंताओं और समस्याओं को उठाया जाता है और उन पर चर्चा की जाती है। ऐतिहासिक रूप से इन सार्वजनिक सभाओं में महिलाओं की भागीदारी बहुत कम रही है क्योंकि ग्राम सभाओं को पुरुष प्रधान स्थान माना जाता था।
[1] Bihar, NFHS-5, http://rchiipsorg/nfhs/NFHS-5Reports/Biharpdf
[2] National Family Health Survey (NFHS-5), 2019–21, http://rchiipsorg/nfhs/NFHS-5Reports/NFHS-5_INDIA_REPORTpdf
[3] GSMA, “OnionDev’s Mobile Vaani media marketplace serves underserved populations in emerging markets with locally relevant content” 2016, https://wwwgsmacom/mobilefordevelopment/wp-content/uploads/2016/08/OnionDevs-Mobile-Vaani-Case-Studypdf
[4] Bihar, NFHS-5, http://rchiipsorg/nfhs/NFHS-5Reports/Biharpdf
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