Author : Ramanath Jha

Published on Oct 10, 2022 Updated 24 Days ago

कुछ समय के बाद शहरों में भीड़ बहुत ज़्यादा बढ़ने की संभावना को देखते हुए नये ठौर-ठिकानों के निर्माण की संभावना पर ज़्यादा नज़दीक से ध्यान देना ज़रूरी है.

नए निर्मित राजमार्ग और हाईवे किनारे टाउनशिप का निर्माण!

8 जुलाई 2022 को मुंबई में ‘संकल्प से सिद्धि- नया भारत, नया संकल्प सम्मेलन’ में भाषण देते हुए केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री ने महाराष्ट्र सरकार को सलाह दी कि बड़े शहरों के बीच बनाये जा रहे नये राजमार्गों, जैसे कि पुणे-औरंगाबाद राष्ट्रीय राजमार्ग, दिल्ली-मुंबई एक्सप्रेसवे, नागपुर-मुंबई समृद्धि महामार्ग और पुणे-बेंगलुरु एक्सप्रेस-वे के बीच नई टाउनशिप का निर्माण करें. राष्ट्रीय स्तर के इन सड़क संपर्कों का वर्तमान में निर्माण हो रहा है. अपने भाषण में उन्होंने ये जोड़ा कि उनका मंत्रालय राष्ट्रीय राजमार्गों के किनारे स्मार्ट शहरों, टाउनशिप, लॉजिस्टिक पार्क और औद्योगिक क्लस्टर के निर्माण की अनुमति देने के लिए कैबिनेट की मंज़ूरी लेगा. मंत्री के द्वारा सड़कों के किनारे टाउनशिप के संदर्भ के अनुसार ये लेख इस तरह के शहरों की अनुकूलता के बारे में विस्तार से छानबीन करेगा.

इस समय भारत की कुल आबादी में शहरी आबादी क़रीब 35.86 प्रतिशत है लेकिन ये उम्मीद की जाती है कि 2050 तक भारत की कुल जनसंख्या में से आधे से ज़्यादा लोग शहरों में रहेंगे. शहरों की आबादी में ये बढ़ोतरी सिर्फ़ शहरों की जनसंख्या में बढ़ोतरी या शहरों के द्वारा आस-पास के गांवों को अपने में शामिल करने की वजह से उनकी भौगोलिक सीमा के विस्तार के कारण नहीं होगी. हमें पहले से मानकर चलना चाहिए कि भारी मात्रा में लोग गांवों से शहरों की ओर बढ़ेंगे. इन सभी कारणों से शहरों की आबादी 30 करोड़ बढ़ेगी. ये संख्या मौजूदा समय में शहरी भारत में रह रहे क़रीब 50 करोड़ लोगों के अलावा होगी.

इस समय भारत की कुल आबादी में शहरी आबादी क़रीब 35.86 प्रतिशत है लेकिन ये उम्मीद की जाती है कि 2050 तक भारत की कुल जनसंख्या में से आधे से ज़्यादा लोग शहरों में रहेंगे.

ऊपर बताये गये संदर्भ में शहरीकरण भारत में जिस पैटर्न को बढ़ावा देना चाहता है, उस पर नज़र रखने का मतलब बनता है. क्या हम उन शहरों पर निर्भर होना जारी रखेंगे जो गांवों से आने वाली आबादी का खामियाजा भुगत रहे हैं या फिर गांवों से आने वाली आबादी को दूसरे शहरी क्षेत्रों की तरफ़ विकेंद्रित करने पर नज़र डालेंगे? आज बड़े शहर जिन चुनौतियों का सामना कर रहे हैं और जलवायु परिवर्तन की वजह से जो ताज़ा मुश्किलें आ सकती हैं, उन्हें देखते हुए शहरी प्रसार की एक रणनीति बनाना तार्किक लगता है. शहरीकरण के प्रसार में दूसरे जगहों की तलाश करते हुए इस बात का विकल्प है कि या तो उन मौजूदा छोटे शहरों का चयन करें जिनमें बड़ा शहरी ठौर-ठिकाना बनने की प्रतिस्पर्धी अनुकूल परिस्थिति हो या पूरी तरह से नये शहर बसाने का रास्ता अपनाएं. इस प्रकार राजमार्गों और एक्सप्रेसवे के किनारे टाउनशिप का निर्माण राष्ट्रीय महत्व के काम हैं क्योंकि ऐसा होने पर संपर्क समेत कई तरह के अनुकूल हालात का लाभ मिलेगा.

जीवन की खराब गुणवत्ता

भारत के बड़े शहर प्रवासन की वजह से बेडौल हो गए हैं. इस स्थिति को देखते हुए उन शहरों पर आबादी का और ज़्यादा बोझ डालना बुद्धिमानी नहीं होगी. इन शहरों में जीवन की गुणवत्ता पहले से ही ख़राब हो रही है और उन पर अतिरिक्त बोझ डालने से हालात और भी बदतर होंगे. विकास की संभावना रखने वाले छोटे शहरों को चुनने का विकल्प अच्छा विचार लगता है. प्रवासन की वजह से भारी संख्या में लोगों के आने की उम्मीद को देखते हुए ये समझदारी वाला काम होगा कि सावधानी से चयन करें और उन्हें व्यावहारिक शहरी ठिकाने के रूप में बनाएं. लेकिन भारत में शहरीकरण के विशाल पैमाने को देखते हुए इसका ये मतलब नहीं है कि शहरों को बिल्कुल शुरू से नहीं बनाया जा सकता है.

नये ठौर-ठिकानों को बनाना पूरी तरह से एक नई तरह की पहल नहीं है. हाल के समय में ब्राज़ीलिया और कैनबरा पूरी तरह से नये निर्माण हैं. मिस्र राजधानी काहिरा से क़रीब 45 किमी पूर्व में एक नई राजधानी का निर्माण कर रहा है. सऊदी अरब “द लाइन” के नाम से पूरी तरह से नये-नवेले ज़ीरो कार्बन शहर के निर्माण में लगा हुआ है. सऊदी अरब ने 10 लाख लोगों के शहर के रूप में इसकी योजना बनाई है जो 170 किमी लंबा होगा और इसकी चौड़ाई इतनी होगी कि सिर्फ़ पांच मिनट में घूमा जा सकेगा. ओमान रेगिस्तान के बीच में “दुक़्म” शहर बसा रहा है जो कि सिंगापुर के आकार का क़रीब दोगुना होगा. इंडोनेशिया, मलेशिया, चीन, सेनेगल, जापान, मालदीव, अमेरिका और कई अन्य देश भी नये शहर का निर्माण करने की कोशिश कर रहे हैं. इनमें से ज़्यादातर शहरों को निरंतरता के आधुनिक सिद्धांतों के आधार पर बनाया जा रहा है. ये शहर स्मार्ट होने के साथ-साथ पर्यावरण अनुकूल भी होंगे, पूरी तरह से नवीकरणीय ऊर्जा पर काम करेंगे, जीवाश्म ईंधन को स्वीकार नहीं करेंगे और निजी वाहनों को इन शहरों में या तो नामंज़ूर किया जाएगा या उन्हें प्रोत्साहन नहीं मिलेगा. इनमें से कई शहर अपने निर्मित माहौल में नवीनतम तकनीकों को शामिल करने की तरफ़ ध्यान दे रहे हैं. इन तकनीकों में रोबोटिक्स, ब्लॉकचेन, क्रिप्टोकरेंसी, ऊर्जा के लिए हाइड्रोजन ईंधन सेल, ऑटोमेटेड ड्राइविंग, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और सौर ऊर्जा के उत्पादन के लिए फोटोवोल्टिक पैनल से छतों को ढंकना शामिल हैं.

इंडोनेशिया, मलेशिया, चीन, सेनेगल, जापान, मालदीव, अमेरिका और कई अन्य देश भी नये शहर का निर्माण करने की कोशिश कर रहे हैं. इनमें से ज़्यादातर शहरों को निरंतरता के आधुनिक सिद्धांतों के आधार पर बनाया जा रहा है. ये शहर स्मार्ट होने के साथ-साथ पर्यावरण अनुकूल भी होंगे.

कई बड़े कारण नये शहरों के निर्माण के पक्ष में काम करते हैं. पहला कारण है कि चूंकि ज़मीन काफ़ी हद तक निर्माण से दूर है और वहां लोग नहीं रहते हैं तो उचित योजना बनाई जा सकती है जिसमें पहले की किसी चीज़ की ज़रूरत नहीं है. दूसरा कारण है कि मौक़े पर चयन के लिए व्यापक पसंद मौजूद है. जिस जगह पर साथ देने वाले इंफ्रास्ट्रक्चर जैसे कि ज़मीन, पानी, संचार और नज़दीकी बाज़ार कम क़ीमत पर उपलब्ध हैं, वहां योजना बनाई जा सकती है. इनकी मदद से लागत कम रखी जा सकेगी और शहर किफ़ायती और आर्थिक रूप से प्रतिस्पर्धी होगा. इसके अलावा ऊपर जिस प्रवासन की मात्रा का ज़िक्र किया गया है, वो ‘दोनों में से एक-या’ वाली स्थिति को दूर करता है. हमें ज़्यादा शहरी जगहों की ज़रूरत है, कुछ नये ठौर-ठिकानों की नहीं. ये जगह आधुनिक विचारों पर आधारित आधुनिक शहरों का निर्माण होने देंगी.

सभी को मिले न्यायसंगत बसेरा

नये शहरों के ख़िलाफ़ एक दलील ये दी जाती है कि उन्हें बनाने में बहुत ज़्यादा समय लगेगा और उनको पूरी तरह सजाने-संवारने में बहुत ज़्यादा पैसा खर्च होगा. ये बिल्कुल स्पष्ट है कि जिस तरह प्रवासन धीरे-धीरे होगा, उसे देखते हुए शहरों को एक बार में बनाने की ज़रूरत नहीं है बल्कि उन्हें चरणबद्ध तरीक़े से बनाया जा सकता है. दूसरी बात ये है कि ज़मीन का अधिग्रहण उस क़ीमत के मुक़ाबले काफ़ी कम दाम पर किया जा सकेगा जो एक निर्मित शहरी क्षेत्र में लोग चुकाएंगे. इस तरह ज़मीन की बिक्री से जो राजस्व प्राप्त होगा, उसका इस्तेमाल इंफ्रास्ट्रक्चर के ज़्यादातर काम के लिए किया जा सकता है. चीन में 2011 के आस-पास नये शहरों में इमारतों को बनाने का काम अपने चरम पर था, उस दौरान ज़मीन के लेन-देन से देश की नगरपालिकाओं को क़रीब तीन-चौथाई राजस्व मिला था और शहरी क्षेत्रों में ज़मीन 40 गुना मुनाफ़े पर बाज़ार में बेची गई.

शहरों को जहां दौलतमंद पेशेवरों को आकर्षित करना चाहिए और उनके आराम, मनोरंजन और अच्छी संपत्ति रखने की अनुमति देनी चाहिए, वहीं उन्हें न्यायसंगत भी होना होगा और सभी निवासियों के लिए अच्छा जीवन मुहैया कराना होगा.

ऊपर बताई गई पृष्ठभूमि में मंत्री के द्वारा राजमार्गों के किनारे शहर बसाने पर विचार करने की सलाह अच्छी थी. लेकिन इसमें चेतावनी ये है कि अलग-अलग शहरों को बसाने की धारण पर  सोचना होगा. ऊपर बताये गये इंफ्रास्ट्रक्चर के फ़ायदों की तरफ़ देखने के अलावा किस तकनीक पर वो शहर आधारित होंगे, वहां किस तरह का रोज़गार मिलेगा और किस तरह की अर्थव्यवस्था को वहां प्राथमिकता मिलेगी, इन सवालों पर फ़ैसला करने की ज़रूरत होगी. ये मामले जटिल हैं और इन्हें सरकारी एजेंसियों, वित्तीय संस्थानों, निवेशकों और उन शहरों में व्यवसाय की इच्छा रखने वाले व्यवसायियों के साथ व्यापक विचार-विमर्श के ज़रिए तय करना होगा.

लेकिन एक बात और ध्यान रखनी होगी कि भारत में शहर सिर्फ़ दूसरे घर की तलाश करने वाले अमीर लोगों के हिसाब से नहीं बनाये जा सकते हैं. शहरों की तरफ़ जाने वाले ज़्यादातर प्रवासी ग़रीब घरों से होंगे. इसलिए शहरों को जहां दौलतमंद पेशेवरों को आकर्षित करना चाहिए और उनके आराम, मनोरंजन और अच्छी संपत्ति रखने की अनुमति देनी चाहिए, वहीं उन्हें न्यायसंगत भी होना होगा और सभी निवासियों के लिए अच्छा जीवन मुहैया कराना होगा. किफ़ायती घर, अनौपचारिक रोज़गार और उचित दाम पर स्वास्थ्य एवं शैक्षिणिक सेवाओं के प्रावधान को इन शहरों से दूर नहीं रखा जा सकता है.

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