-
CENTRES
Progammes & Centres
Location
न्यूज़ीलैंड की नई रणनीतिक दिशा, उसे पश्चिम के साथ सुरक्षा सहयोग को संतुलित करते हुए चीन के साथ अपने बदलते संबंधों को आगे बढ़ाने में मददगार साबित होगी या नहीं, ये देखने वाली बात होगी
दक्षिण प्रशांत क्षेत्र, द्वितीय विश्व युद्ध के बाद से भू-राजनीतिक रस्साकशी का केंद्र रहा है. समुद्री जहाज़ों की आवाजाही के नाज़ुक मार्गों, ब्लू इकोनॉमी के अनछुए संसाधनों और यहां मौजूद द्वीप देशों के रणनीतिक बंदरगाहों ने इस क्षेत्रीय प्रतिस्पर्धा को और तेज़ कर दिया है. ऐतिहासिक रूप से, ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैंड इस क्षेत्र की प्रभावशाली शक्तियां रही हैं. प्रशांत क्षेत्र की इन दोनों परंपरागत शक्तियों का सहयोगी अमेरिका भी यहां एक सक्रिय भागीदार रहा है. इन तीनों प्रमुख ताक़तों का प्रभाव क्षेत्र रहे दक्षिण प्रशांत ने अपेक्षाकृत स्थिर वातावरण का लाभ उठाया है, जो विकास और आर्थिक प्रगति के लिए अनुकूल रहे हैं. ये पारंपरिक शक्तियां, दक्षिण प्रशांत क्षेत्र में यथास्थिति को बदलने की कोशिश करने वाली बाहरी ताकतों के प्रति चौकन्नी रही हैं.
बहरहाल, इस क्षेत्र में एक नया खिलाड़ी आ गया है. हाल के दिनों में चीन ने दक्षिण प्रशांत क्षेत्र में अपने जुड़ाव बढ़ा लिए हैं. ख़ासतौर से प्रशांत द्वीप मंच (PIF) देशों के साथ चीन की भागीदारियों में बढ़ोतरी हुई है. मोटे तौर पर चीन इस क्षेत्र के साथ चेकबुक कूटनीति को अंजाम देता रहा है, जिसके तहत इस क्षेत्र के द्वीप देशों को चीन की ओर से आकर्षक स्वरूपों वाले प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) के प्रवाह और विकासात्मक सहायता उपलब्ध कराई गई है. प्रशांत क्षेत्र के द्वीप देशों को चीन द्वारा दी गई अहमियत समझ में आती है, क्योंकि एक वक़्त पर, PIF के 14 में से 8 सदस्यों ने ताइवान को एक स्वतंत्र देश के रूप में मान्यता दे दी थी. आज, इसके सिर्फ़ चार सदस्य ताइवान की स्वतंत्रता को मान्यता देते हैं.
हाल के दिनों में चीन ने दक्षिण प्रशांत क्षेत्र में अपने जुड़ाव बढ़ा लिए हैं. ख़ासतौर से प्रशांत द्वीप मंच (PIF) देशों के साथ चीन की भागीदारियों में बढ़ोतरी हुई है.
ऑस्ट्रेलिया ने दक्षिण प्रशांत में चीनी घुसपैठ को शत्रुतापूर्ण माना है. 2015 की मैल्कम टर्नबुल सरकार के बाद से ऑस्ट्रेलिया की तमाम सरकारों ने चीन की क्षेत्रीय भागीदारी के बारे में आलोचनात्मक टिप्पणियां की हैं. हालांकि, ऑस्ट्रेलिया के पड़ोसी न्यूज़ीलैंड ने एक अलग रणनीति अपनाई है. ऑस्ट्रेलिया के उलट, न्यूज़ीलैंड ने चीन के बढ़ते बाज़ार और विनिर्माण आधार के ज़रिए उसके द्वारा मुहैया कराए गए आर्थिक अवसरों का लाभ उठाया है. आज चीन, न्यूज़ीलैंड का सबसे बड़ा व्यापार भागीदार है. चीन के साथ उसका द्विपक्षीय व्यापार 2022 में 25 अरब अमेरिकी डॉलर तक पहुंच चुका है. बहरहाल, पिछले छह वर्षों में चीन की विदेश नीति में जैसे-जैसे अधिक आक्रामक सुर आ गए हैं, न्यूज़ीलैंड भी इस क्षेत्र में चीनी ख़तरे के प्रति जागरूक हो गया है. न्यूज़ीलैंड की एक के बाद एक तमाम सरकारों ने इस इलाक़े में चीन की सैन्य तैयारियों और दक्षिण प्रशांत क्षेत्र में चीनी निवेश की गहराई को लेकर चिंता जताई है. ये लेख दक्षिण प्रशांत क्षेत्र के लिए न्यूज़ीलैंड की नई रणनीतिक क़वायदों और उन भू-आर्थिक कारकों का विश्लेषण करता है जिन्होंने न्यूज़ीलैंड को ऐसा करने के लिए प्रेरित किया है.
चीन-न्यूज़ीलैंड द्विपक्षीय संबंधों को व्यावसायिक हित संचालित करते हैं. वैसे तो चीन के साथ व्यापारिक मामलों में ये दुर्लभ है, लेकिन हक़ीक़त ये है कि क़रीब 19.2 अरब अमेरिकी डॉलर के निर्यात के साथ न्यूज़ीलैंड भुगतान संतुलन में अगुवा है. फिर भी, चीन पर न्यूज़ीलैंड की भारी आसरे ने दीर्घकाल में आर्थिक निर्भरताएं पैदा कर दी हैं.
न्यूज़ीलैंड के कुल वैश्विक निर्यातों का 35 प्रतिशत हिस्सा, चीन को होने वाले निर्यातों का है. न्यूज़ीलैंड निर्यात पर आधारित अर्थव्यवस्था है, लिहाज़ा उसकी आर्थिक प्रगति के लिए चीन अहम बन गया है. न्यूज़ीलैंड से चीन के आयातों में मुख्य रूप से जल्द ख़राब होने वाली वस्तुएं, जैसे डेयरी, मांस और लकड़ी शामिल हैं. न्यूज़ीलैंड में इन उद्योगों से लगभग 45 प्रतिशत निर्यात, चीन की ओर जाते हैं. इस तरह चीन को होने वाले निर्यातों से हासिल होने वाली कमाई न्यूज़ीलैंड के लिए अहम हो जाती है. न्यूज़ीलैंड के प्रत्येक चार में से एक नागरिक अपनी आजीविका के लिए निर्यात पर निर्भर है, लिहाज़ा चीन के साथ दोस्ताना रिश्ते उसकी विदेश नीति की अहम अनिवार्यता बन गई है. एक और अहम आर्थिक जुड़ाव, वैश्विक व्यापार शर्तों पर चीनी अर्थव्यवस्था का प्रभाव है. न्यूज़ीलैंड की व्यापार की शर्तों (किसी देश की वस्तुओं के लिए आयात-निर्यात क़ीमतों में अंतर) में ज़बरदस्त बढ़ोतरी हुई है. दरअसल चीन की आर्थिक ताक़त ने निर्यात क़ीमतों को बढ़ाने में योगदान दिया है और चीन के औद्योगीकरण ने आयात क़ीमतों को कम करने में भी मदद की है.
न्यूज़ीलैंड में इन उद्योगों से लगभग 45 प्रतिशत निर्यात, चीन की ओर जाते हैं. इस तरह चीन को होने वाले निर्यातों से हासिल होने वाली कमाई न्यूज़ीलैंड के लिए अहम हो जाती है.
एक छोटी राज्यसत्ता के रूप में न्यूज़ीलैंड ने ऐतिहासिक रूप से दक्षिण प्रशांत क्षेत्र में चीन के जुड़ावों और हाल के वर्षों में उसकी बढ़ती सैन्य तैयारियों की सीधे तौर पर आलोचना करने से परहेज़ किया है. फिर भी न्यूज़ीलैंड के आस-पड़ोस में चीन की दबंग सामरिक नीति के प्रसार ने 2017-22 के बीच न्यूज़ीलैंड की लेबर सरकार को चीन की आलोचना करने के लिए प्रेरित किया. न्यूज़ीलैंड की पूर्व प्रधानमंत्री जैसिंडा अर्डर्न ने इस क्षेत्र में चीन की आक्रामक भागीदारी के बारे में चिंता जताई है. वॉशिंगटन डीसी के साथ-साथ जुलाई 2022 में उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन के मैड्रिड शिखर सम्मेलन में भी उन्होंने ऐसी चिंताएं साझा कीं. इसकी प्रतिक्रिया में चीन ने 2023 में न्यूज़ीलैंड से अपने आयात को 7 प्रतिशत तक कम कर दिया. नतीजतन न्यूज़ीलैंड के निर्यात राजस्व में 1.7 अरब अमेरिकी डॉलर का नुक़सान हुआ. चीन की सरकारी मीडिया ने भी ऐसे लेख प्रकाशित किए हैं जो बताते हैं कि न्यूज़ीलैंड के आयात में अधिकतर लोचदार वस्तुएं शामिल हैं और इन्हें कहीं और से भी हासिल किया जा सकता है. साथ ही ये भी कहा गया कि न्यूज़ीलैंड को पश्चिमी दुनिया के साथ रिश्ते बनाते समय चीन के साथ अपने संबंधों को भी ध्यान में रखना चाहिए.
न्यूज़ीलैंड में 2018 और फिर 2023 में चीनी साइबर जासूसी की घटनाएं सामने आईं. इसके अलावा 2019 के घरेलू चुनावों में चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की दख़लंदाज़ियां और उसके आगे आर्थिक दबंगई देखने को मिली. साल 2018 में लेबर पार्टी की सरकार ‘पेसिफिक रीसेट’ की नीति लेकर आई. इस क़वायद का मक़सद दक्षिण प्रशांत में चीनी जुड़ावों को लेकर अतीत के अस्पष्ट और भ्रामक रुख़ के उलट एक नई दिशा मुहैया कराना था.
नीति ने संसाधनों और प्रभाव के लिए सघन होती क्षेत्रीय प्रतिस्पर्धा पर न्यूज़ीलैंड के रुख़ का खुलासा किया. चीन का ज़िक्र किए बिना, दस्तावेज़ में कहा गया है कि न्यूज़ीलैंड को ‘उस पैमाने और परिमाण की पेचीदा चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है जो हमारे पड़ोस में पहले कभी नहीं देखी गई.’ नीति के तहत, न्यूज़ीलैंड ने दक्षिण प्रशांत में अपनी कूटनीतिक मौजूदगी बढ़ाई है. इलाक़े में 14 अतिरिक्त पोस्टिंग्स और विकासात्मक सहायता में 1 अरब अमेरिकी डॉलर की प्रतिबद्धता के ज़रिए इन क़वायदों को अंजाम दिया गया है. नीति में ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका जैसे सुरक्षा साझेदारों से न्यूज़ीलैंड के साथ सैन्य तालमेल बढ़ाने का भी अनुरोध किया गया है ताकि ‘अंतरराष्ट्रीय क़ानून, व्यवस्था और नियम-आधारित प्रणाली को आगे बढ़ाया जा सके.’
ये भी कहा गया है कि चीन द्वारा विदेश नीति की अनिवार्यताओं का अधिक आक्रामक तरीक़े से अनुसरण, वैश्विक रणनीतिक प्रतिस्पर्धा का प्राथमिक चालक है, और इसने एक ऐसी दुनिया बना दी है जहां नियम-क़ायदों की बजाए सत्ता और शक्ति आदर्श बन गए हैं.
इस नीति के पूरक के तौर पर न्यूज़ीलैंड की सरकार ने FDI विनियमन से संबंधित एक अधिसूचना जारी की. इसमें न्यूज़ीलैंड की राज्यसत्ता को राष्ट्रीय सुरक्षा उद्देश्यों से किसी भी प्रकार के विदेशी निवेश की जांच-पड़ताल करने और उसे रोकने का अधिकार दिया गया. जुलाई 2018 के रणनीतिक रक्षा नीति वक्तव्य में आगे ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका को न्यूज़ीलैंड का विश्वसनीय सुरक्षा भागीदार बताया गया. साथ ही दक्षिण चीन सागर, पूर्वोत्तर एशिया, अंटार्कटिका और दक्षिण प्रशांत में चीनी महत्वाकांक्षाओं को लेकर चिंता प्रकट की गई. इन क़ानूनों और राष्ट्रीय नीति निर्देशों को उसी वर्ष प्रभाव में आते देखा गया, और न्यूज़ीलैंड ने घरेलू 5G की शुरुआत में टेक्नोलॉजी क्षेत्र की चीनी कंपनी हुआवेई पर प्रतिबंध लगा दिया.
इन नीतियों और रणनीतिक निर्देशों के आधार पर न्यूज़ीलैंड ने जुलाई 2023 में अपनी प्रारंभिक राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति जारी की. इसके बाद अगस्त 2023 में ‘रक्षा नीति और रणनीतिक वक्तव्य 2023’ और ‘फ्यूचर फोर्स डिज़ाइन प्रिंसिपल्स 2023’ जारी किया गया. ये तमाम दस्तावेज़ बदलती अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था के प्रति न्यूज़ीलैंड के दृष्टिकोण को रेखांकित करते हैं. साथ ही अपने आस-पड़ोस में महाशक्तियों के बीच तेज़ होती रस्साकशी को भी सामने रखते हैं. दस्तावेज़ों में कहा गया है कि चीन ने ‘परंपरागत रूप से प्रशांत क्षेत्र के बड़े साझेदार रहे न्यूज़ीलैंड और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों की क़ीमत पर इस क्षेत्र में अपने राजनीतिक, आर्थिक और सुरक्षा प्रभाव को बढ़ाने की कोशिश की है.’ ये भी कहा गया है कि चीन द्वारा विदेश नीति की अनिवार्यताओं का अधिक आक्रामक तरीक़े से अनुसरण, वैश्विक रणनीतिक प्रतिस्पर्धा का प्राथमिक चालक है, और इसने एक ऐसी दुनिया बना दी है जहां नियम-क़ायदों की बजाए सत्ता और शक्ति आदर्श बन गए हैं.
ऐसे पूरक नीति दस्तावेज़, न्यूज़ीलैंड के रणनीतिक दृष्टिकोण में बदलाव के संकेत देते हैं, जिनमें: ANZUS भागीदारों की अपनी परंपरागत सुरक्षा प्रणाली की ओर रुख़; इलाक़े में चीनी महत्वाकांक्षाओं और सैन्य तैयारियों का मुक़ाबला करने के लिए सरकार की इच्छा; साइबर हमले, जासूसी और चीनी किरदारों द्वारा घरेलू चुनावों में हस्तक्षेप जैसी सुरक्षा घटनाओं को किसी भी सूरत में बर्दाश्त नहीं करना; शामिल हैं. शुरुआती रणनीतिक नीति, प्रशांत के इलाक़े में सामरिक क्षेत्रों (जैसे बंदरगाह निर्माण और हवाई अड्डे तैयार करने) में चीनी भागीदारी पर भी चिंता व्यक्त करती है. बंदरगाहों की कुछ ‘बहुउद्देशीय’ संरचनाओं का नागरिक और सैन्य उद्देश्यों के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है. इन पूरक दस्तावेज़ों में कहा गया है कि ऊपर बताई गई गतिविधियां ‘क्षेत्र के रणनीतिक संतुलन को बुनियादी तौर पर बदल देंगी.’
देखने वाली बात ये होगी कि क्या न्यूज़ीलैंड की नई रणनीतिक दिशा, उसे पश्चिम के साथ सुरक्षा सहयोग को संतुलित करते हुए चीन के साथ अपने बदलते संबंधों को आगे बढ़ाने में मददगार साबित होगी!
न्यूज़ीलैंड, पश्चिमी सुरक्षा गठजोड़ों और चीन के साथ अपने आर्थिक संबंधों के बीच तलवार की धार पर चलता है. जैसा पहले भी ज़िक्र किया गया है, न्यूज़ीलैंड के निर्यात की चीनी उपभोक्ता आधार पर भारी निर्भरता है. फिर भी, अपने आसपास के जल-क्षेत्रों को सुरक्षित करने और आर्थिक विकास और निवेश के लिए अनुकूल वातावरण मुहैया कराने के लिए न्यूज़ीलैंड को पश्चिमी गठबंधनों को और ज़्यादा पुख़्ता करने की दरकार है. ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका ने पहले ही न्यूज़ीलैंड पर AUKUS के दूसरे चरण में शामिल होने के लिए दबाव बनाना शुरू कर दिया है. हालांकि ये द्वीप देश, आर्थिक रूप से चीन के बढ़ते मध्यम वर्ग पर बहुत ज़्यादा निर्भर है, जिसने न्यूज़ीलैंड के निर्यातों को हाथों-हाथ लिया है और उसके लिए पर्याप्त निर्यात राजस्व पैदा किया है. 2008 में चीन-न्यूज़ीलैंड मुक्त व्यापार समझौते पर दस्तख़त किए गए थे. 2008 से 2022 के बीच न्यूजीलैंड से चीन को होने वाला निर्यात आठ गुना बढ़ गया. न्यूज़ीलैंड को चिंता है कि चीन का एकाधिकारवादी नेतृत्व, राजनीतिक लाभ हासिल करने या पश्चिम के साथ न्यूज़ीलैंड के गठजोड़ में बाधा डालने के लिए अपने आर्थिक रसूख़ का इस्तेमाल कर सकता है.
एक लंबे अरसे से न्यूज़ीलैंड ने चीन के प्रति अमन-चैन की नीति अपनाई है, प्रशांत क्षेत्र में चीनी घुसपैठ को नज़रअंदाज़ किया है और इलाक़े में प्रतिस्पर्धा और तनातनी को बढ़ाने में चीनियों की भूमिका के बारे में अस्पष्ट बयान दिए हैं. न्यूज़ीलैंड का ‘सैन्य साझेदार’ ऑस्ट्रेलिया तो 2016 से ही चीन को खरी-खोटी सुनाता आ रहा है, लेकिन न्यूज़ीलैंड की चिंताओं को उसकी ‘पैसिफिक रीसेट’ नीति जारी होने के साथ 2018 में ही निश्चित आधार मिला है. ऐसा लगता है कि चीन के रणनीतिक अतिक्रमण का मुक़ाबला करने के लिए 2023 में न्यूज़ीलैंड के नीति निर्माताओं में आम सहमति बन गई है. वो चीन के साथ महत्वपूर्ण आर्थिक संबंधों को बनाए रखते हुए इस क़वायद को आगे बढ़ाना चाहते हैं. देखने वाली बात ये होगी कि क्या न्यूज़ीलैंड की नई रणनीतिक दिशा, उसे पश्चिम के साथ सुरक्षा सहयोग को संतुलित करते हुए चीन के साथ अपने बदलते संबंधों को आगे बढ़ाने में मददगार साबित होगी!
पृथ्वी गुप्ता ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन के स्ट्रैटेजिक स्टडीज़ प्रोग्राम में रिसर्च असिस्टेंट हैं.
The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.
Prithvi Gupta is a Junior Fellow with the Observer Research Foundation’s Strategic Studies Programme. Prithvi works out of ORF’s Mumbai centre, and his research focuses ...
Read More +