भारत के विदेश मामलों के मंत्री (ईएएम) डॉ. एस. जयशंकर की हाल की ब्राजील, अर्जेंटीना तथा पराग्वे यात्रा को दुनिया के एक ऐसे हिस्से में बहुत धूमधाम से देखा गया, जहां शायद ही कभी भारतीय कैंसिलर (स्पैनिश भाषा में विदेश मंत्री) को देखा गया हो. 2003 में यशवंत सिन्हा ने ब्राजील की जो यात्रा की थी, यह अंतिम अवसर था जब भारत के किसी विदेश मंत्री ने लैटिन अमेरिकी देश की द्विपक्षीय यात्रा की थी, जिसमें बहुपक्षीय शिखर सम्मेलन की यात्राएं शामिल नहीं थीं. जयशंकर का पूरे सम्मान के साथ स्वागत किया गया. उन्होंने न केवल अपने समकक्ष मंत्रियों से मुलाकात की, बल्कि वे प्रत्येक देश के सबसे बड़े नेता को भी मिले थे.
अब अर्जेटीना, ब्राजील और मैक्सिको जैसे तीन लैटिन अमेरिकी देशों के साथ द्विपक्षीय संबंधों की कमान सीधे भारत के विदेश मंत्री के हाथों में है. इसका कारण यह है कि ये तीनों देश 20 के समूह, (जी20) का हिस्सा है. जी20 एक अंतर सरकारी समूह है, जिसकी 2023 में भारत अध्यक्षता करने वाला है.
जयशंकर की यात्रा के पीछे एक महत्वपूर्ण और हालिया घटनाक्रम है, जिसका न केवल भारतीय बल्कि लैटिन अमेरिकी मीडिया के कवरेज में भी संज्ञान नहीं लिया गया है.
21वीं शताब्दी के अधिकांश काल में लैटिन अमेरिकी क्षेत्र का काम भारत में विदेश राज्य मंत्री, जिनका पद उपविदेश मंत्री का होता है, ने देखा है. लेकिन, आज यह स्थिति नहीं है. अब अर्जेटीना, ब्राजील और मैक्सिको जैसे तीन लैटिन अमेरिकी देशों के साथ द्विपक्षीय संबंधों की कमान सीधे भारत के विदेश मंत्री के हाथों में है. इसका कारण यह है कि ये तीनों देश 20 के समूह, (जी20) का हिस्सा है. जी20 एक अंतर सरकारी समूह है, जिसकी 2023 में भारत अध्यक्षता करने वाला है. दरअसल, जयशंकर ने सितंबर 2021 में ही मैक्सिको का दौरा कर लिया था. इन यात्राओं के परिणामस्वरूप ही इन तीन देशों के साथ भारत के राजनीतिक संबंध पिछले एक वर्ष के दौरान और भी गहरे हो गए हैं.
जिम्मेदारी को लेकर इस सुक्ष्म, लेकिन महत्वपूर्ण परिवर्तन का एक और परिणाम हुआ है. लैटिन अमेरिका हमेशा से ही भारत के तीन वृतों में संकेंद्रित विदेश नीति के सुदूर अंतिम छोर पर रहा है. इस तीन वृत्त संकेंद्रित नीति में सबसे भीतर केंद्रित वृत्त भारत से सटे पड़ोसियों का है, जबकि उसके बाहर का वृत्त एशियाई देशों और रणनीतिक सहयोगियों का है. इसके बाद के वृत्त में शेष दुनिया का समावेश है. वर्तमान में उपरोक्त तीनों लैटिन अमेरिकी देश, जो जी20 का हिस्सा है, भारत की तीन वृतों में संकेंद्रित विदेश नीति के सबसे बाहरी वृत्त से आगे बढ़कर दूसरे वृत्त का हिस्सा बन चुके हैं.
लैटिन अमेरिका में जी20 सदस्यों (अर्जेंटीना, ब्राजील और मैक्सिको) के अलावा उस क्षेत्र में भारत का सबसे रणनीतिक व्यापारिक सहयोगी वेनेजुएला है, जहां दुनिया का सबसे बड़ा पेट्रोलियम भंडार है. इसके बावजूद भारत-वेनेजुएला के संबंधों को पिछले कुछ वर्षो में झटके लगे हैं
अब नामकरण में परिवर्तन के अलावा इस बात के क्या मायने निकाले जा सकते हैं? इसका अर्थ यह है कि अब नई दिल्ली सर्वोच्च स्तर पर नियमित बैठकों के माध्यम से अर्जेंटीना , ब्राजील और मैक्सिको पर पहले जितना ध्यान देता था अब यह उससे ज्यादा ध्यान देगा. राजनीतिक इच्छाशक्ति में इस वृद्धि के परिणामस्वरूप मजबूत आर्थिक संबंध भी बनेंगे. अब तक आर्थिक संबंधों को भारत के निजी क्षेत्र ने ही दिशा देने का काम किया है क्योंकि नई दिल्ली के आला नेताओं के पास भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा को लेकर दूसरी चिंताओं को संभालने की जिम्मेदारी थी और इसमें लैटिन अमेरिका की कोई खास भूमिका भी नहीं थी.
ग्राफ : भारत की संकेंद्रित विदेश नीति के तीन वृत्त
लैटिन अमेरिका : एक क्षेत्र या 20 देश?[1]
तो फिर नई दिल्ली के गलियारो में राजनीतिक प्राथमिकताओं में हुए पुनर्मूल्यांकन का लैटिन अमेरिका के उन अन्य देशों पर क्या असर होगा, जो जी20 समूह का हिस्सा नहीं हैं?
लैटिन अमेरिका में जी20 सदस्यों (अर्जेंटीना, ब्राजील और मैक्सिको) के अलावा उस क्षेत्र में भारत का सबसे रणनीतिक व्यापारिक सहयोगी वेनेजुएला है, जहां दुनिया का सबसे बड़ा पेट्रोलियम भंडार है. इसके बावजूद भारत-वेनेजुएला के संबंधों को पिछले कुछ वर्षो में झटके लगे हैं, खासकर अक्तूबर 2020 से, भारत ने वेनेजुएला से कच्चे पेट्रोलियम तेल का आयात नहीं किया है. इसका कारण यह है कि अमेरिका की ओर से दूसरे दर्जे के प्रतिबंध लगाए जाने की आशंका बनी हुई है. (ठीक ईरान के मामले की तरह, जिसने 2019 से भारत को तेल का निर्यात रोक दिया है) 2019 में अमेरिकी प्रतिबंधों के लागू होने से पहले तक भारत के कुल तेल आयात में वेनेजुएला से आने वाले तेल की हिस्सेदारी 10 प्रतिशत थी.
लैटिन अमेरिका के शेष देशों में से तीन खनिज और हाईड्रोकार्बन्स के अहम आपूर्तिकर्ता होने और भारतीय निर्यात के लिए अहम बाजार होने की वजह से विशेष महत्व रखते हैं. इसमें चिली, कोलंबिया तथा पेरु का समावेश है. 21वीं सदी में लैटिन अमेरिकी क्षेत्र के साथ भारत ने जो कुल व्यापार किया, उसमें इन तीनों देशों की हिस्सेदारी 20 प्रतिशत थी. इसके अलावा चाहे इक्वाडोर, पराग्वे, डोमिनिकन रिपब्लिक और सेंट्रल अमेरिकन देश जैसे पनामा और ग्वाटेमाला के साथ भारत का ज्यादा व्यापार नहीं होता हो, लेकिन ये देश भारत के निर्यात और सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) तथा फार्मास्यूटिकल्स जैसे क्षेत्रों के लिए निवेश की दृष्टि से अहम गंतव्य स्थान है. उदाहरण के तौर पर भारत की आईटी कंपनी एचसीएल ने ग्वाटेमाला में वहां के 2,230 लोगों को रोजगार दिया हुआ है, जबकि मध्य अमेरिका तथा कैरिबियन में क्षेत्रीय आधार वाली एक मध्यम आकार की दवा कंपनी कैपलिन प्वाइंट के माल का 80 प्रतिशत से अधिक वैश्विक निर्यात इन्हीं देशों में होता है.
टेबल 1: लैटिन अमेरिका और कैरिबियन में भारत के व्यापार सहयोगी
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एलएसी क्षेत्र में भारत के शीर्ष 10 व्यापार भागीदार 2001-2021 |
द्विपक्षीय व्यापार (USD बिलियन) |
भारत-एलएसी व्यापार का % 2001-2021 |
1 |
ब्राजील |
$124.00 |
24.76% |
2 |
वेनेजुएला |
$95.05 |
18.98% |
3 |
मैक्सिको |
$82.12 |
16.40% |
4 |
चिली |
$39.64 |
7.92% |
5 |
अर्जेंटीना |
$38.82 |
7.75% |
6 |
कोलंबिया |
$33.01 |
6.59% |
7 |
पेरू |
$24.55 |
1.90% |
8 |
इक्वाडोर |
$8.92 |
1.78% |
9 |
डोमिनिकन गणराज्य |
$6.18 |
1.23% |
10 |
पनामा |
$5.99 |
1.20% |
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शेष एलएसी देश |
$542.43 |
8.47% |
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कुल भारत- एलएसी व्यापार 2001-2021 |
$500.71 |
100% |
जहां भारत के निजी क्षेत्र ने लैटिन अमेरिकी क्षेत्र को अपने वैश्विक व्यापार की श्रेणी का हिस्सा माना है, वहीं नई दिल्ली ने इस क्षेत्र के अलग-अलग देशों को हमेशा ही द्विपक्षीय संबंधों के चश्मे से देखा है. ऐसा नहीं है कि नई दिल्ली की स्वयं ही ऐसा करने की इच्छा थी. दरअसल लैटिन अमेरिकी क्षेत्र में यूरोपियन यूनियन, द एसोसिएशन ऑफ साऊथ ईस्ट एशियन नेशन्स, द गल्फ को-ऑपरेशन कौंसिल अथवा द अफ्रीकन यूनियन जैसा कोई क्षेत्रीय संगठन खड़ा नहीं हो पाया, जिसकी छत के नीचे क्षेत्र के सारे देश एक साथ खड़े हो सके.
इसके स्थान पर लैटिन अमेरिका में विविध समूह वाले छोटे क्षेत्रीय संगठन हैं, जिसमें से कुछ मर्कोसुर, द एंडियन कम्युनिटी, द पैसिफिक एलायंस और द सेंट्रल अमेरिकन इंटीग्रेशन सिस्टम हैं. तीन बड़े क्षेत्रीय संगठन, द यूनियन ऑफ साऊथ अमेरिकन स्टेट्स (यूएनएएसयूआर), द ऑर्गनाइजेशन ऑफ अमेरिकन स्टेट्स (ओएसए) तथा द कम्युनिटी ऑफ लैटिन अमेरिकन एंड कैरिबियन स्टेट्स (सीईएलएसी) के भी अपने ही मसले रहे हैं. यूएनएएसयूआर तो लगभग बिखर ही गया है, जबकि वाशिंगटन स्थित ओएएस को हमेशा से ही विद्वेष की दृष्टि से देखा जाता है, क्योंकि उसे उस गुजरे जमाने का अवशेष माना जाता है जब इस क्षेत्र में अमेरिका का काफी दबदबा था और सीईएलएसी ने सदैव ही खुद को ओएएस के विकल्प के रूप में प्रस्तुत किया है. यह दावा इतनी जोर शोर से किया जाता है कि 2020 में ब्राजील के राष्ट्रपति जाइर बोल्सोनारो ने सीईएलएसी से बाहर होने का निर्णय ले लिया.
इसके बावजूद नई दिल्ली, लैटिन अमेरिका को एक क्षेत्र के रूप में देख सकता है और उसे इसे ऐसे ही देखना भी चाहिए, ताकि वह आर्थिक कूटनीति पर आधारित एक ऐसी विदेश नीति को विकसित करें, जहां व्यापार भारत और लैटिन अमेरिका दोनों के संबंधों को संचालित करें और लाभदायक साबित हो.
यात्रा के परिणाम
भारत के विदेश मंत्री की यह यात्रा कुछ महत्वपूर्ण मुद्दों पर केंद्रित थी :
अर्जेटीना : भारत, अब अर्जेटीना का चौथा सबसे बड़ा व्यापार सहयोगी है (ब्राजील, चीन और अमेरिका के बाद) और 2022 तक व्यापार के 7 बिलियन अमेरिकी डॉलर्स तक पहुंचने की संभावना है. यह भारत के 2021 में कनाडा और श्रीलंका के साथ किए गए व्यापार से भी ज्यादा है. भारत को अर्जेटीना के निर्यात में भारी बहुमत (लगभग तीन-चौथाई) में सोयाबीन और सूरजमुखी तेल का समावेश है, जिसे 2022 में यूक्रेन में शुरू हुए युद्ध के बाद यूक्रेन से भारत को होने वाले सूरजमुखी तेल के आयात में ठहराव के कारण और भी अधिक महत्व मिल गया है. अर्जेटीना ब्रिक्स (बीआरआईसीएस) समूह में भी शामिल होने का इच्छुक है और उसे भारत का समर्थन हासिल है. लेकिन, उसे अभी अन्य देशों की ओर से औपचारिक न्यौता नहीं मिला है. हालांकि दो अन्य महत्वपूर्ण मुद्दों, लिथियम जो नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन का अहम हिस्सा है, अर्जेटीना में प्रचूर मात्रा में उपलब्ध है. इसके अलावा भारत के हल्के लड़ाकू विमान, एचएएल का तेजस है, जिसे अर्जेटीना भारत से आयात करने का विचार कर रहा है. इन दोनों मुद्दों पर भी इस यात्रा में जरूर बात हुई होगी. इन मुद्दों की दीर्घकालीन संभावनाएं हैं और अनेक अन्य देश इस मामले को लेकर समान लक्ष्य के साथ प्रतिस्पर्धा में शामिल हैं.
ब्राजील : भारत-ब्राजील के संबंध हमेशा से ही भारत-लैटिन अमेरिकी संबंधों की दृष्टि से सबसे महत्वपूर्ण रहे हैं और आंकड़े स्वत: इस बात की गवाही भी देते हैं. भारत-ब्राजील व्यापार, 21वीं सदी में भारत-लैटिन अमेरिका के बीच व्यापार का लगभग एक-चौथाई हिस्सा है. ब्राजील में भारतीय निवेश, अनुमानित 6 बिलियन अमेरिकी डॉलर, इस क्षेत्र में अब तक का सबसे बड़ा निवेश है. मंत्रियों और कूटनीतिज्ञों के साथ बैठक के अलावा जयशंकर ने साओ पाउलो, राजधानी ब्रासीलिया से काफी दूर देश के अंदरुनी हिस्से में स्थित, में जाकर व्यापारिक बैठकों को भी संबोधित करते हुए इस बात की पुष्टि की कि भारत और ब्राजील के बीच द्विपक्षीय संबंधों में कारोबार की कितनी अहम भूमिका है. ब्राजील की यह यात्रा दोनों देशों के बीच लंबे वक्त से चल रही वार्ता की निरंतरता थी और यह तथ्य कि इसका आयोजन ब्राजील में होने वाले राष्ट्रपति चुनाव से कुछ सप्ताह पहले किया गया है, इस बात को इंगित करता है कि भारत और ब्राजील संबंधों में व्यापार, राजनीति को पीछे छोड़ देता है.
पराग्वे : जयशंकर की यात्रा का प्राथमिक उद्देश्य पराग्वे की राजधानी असनश्यान में नए भारतीय दूतावास का उद्घाटन करना था. यह इस क्षेत्र में 15वां भारतीय दूतावास और 16वां राजनयिक मिशन (साओ पाउलो में भारत के वाणिज्य दूतावास सहित) है. यह लैटिन अमेरिका में एक नया दूतावास खोलने के लिए भारत के विदेश मंत्रालय द्वारा एक दशक से भी पहले के प्रस्ताव की परिणति है. भारत-पराग्वे के वाणिज्यिक संबंध न्यूनतम बने हुए हैं. 2021 में द्विपक्षीय व्यापार 235 मिलियन अमेरिकी डॉलर था और ज्यादातर ऑटोमोबाइल क्षेत्र की ओर से केवल कुछ मुट्ठी भर भारतीय निवेश ही यहां किया गया है.
नई दिल्ली में बढ़ती राजनीतिक इच्छाशक्ति के कारण लैटिन अमेरिका पर ज्यादा ध्यान देने का फैसला लैटिन अमेरिका और भारत-लैटिन संबंधों के लिए अच्छी स्थिति ही कही जाएगी
नई दिल्ली में बढ़ती राजनीतिक इच्छाशक्ति के कारण लैटिन अमेरिका पर ज्यादा ध्यान देने का फैसला लैटिन अमेरिका और भारत-लैटिन संबंधों के लिए अच्छी स्थिति ही कही जाएगी, लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि यह दोनों पक्षों के बीच अर्थपूर्ण व्यावसायिक संबंधों के लिए जरूरी अथवा पहली आवश्यकता नहीं है. भारत पहले से ही वैश्विक स्तर पर लैटिन अमेरिका के लिए शीर्ष निर्यात बाजारों में से एक है और इसे केवल चीन और अमेरिका ही पीछे छोड़ते हैं. इसके अलावा यह क्षेत्र भारत की खाद्य और ऊर्जा सुरक्षा का एक महत्वपूर्ण योगदानकर्ता बना हुआ है.
जी20 में शामिल इन तीन देशों को अब भारत के विदेश मंत्री संभाल रहे हैं. अत: इन देशों को 2023 में मिलने वाली जी20 की अध्यक्षता का पूरा लाभ उठाते हुए नई दिल्ली के साथ अपने राजनीतिक संबंधों को ज्यादा गहरा और मजबूत कर लेना चाहिए. यह प्रयास ही लैटिन अमेरिकी क्षेत्र के साथ भारत के संबंधों को बढ़ावा देने के लिए पर्याप्त प्रोत्साहन प्रदान कर सकता है और शायद यही, नई दिल्ली को एक अधिक केंद्रित विदेश नीति बनाने के लिए भी प्रेरित करता है जो इस क्षेत्र में भारत के हितों को समेकित करता है.
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