Published on Nov 04, 2023 Updated 28 Days ago

नई दिल्ली G20 लीडर्स डिक्लेरेशन में हेल्थ सेक्टर को लेकर जिस प्रकार से नीतिगत प्रतिबद्धताओं का उल्लेख किया गया है, उसने मौज़ूदा वित्तीय एवं वैश्विक स्वास्थ्य प्रशासन चर्चा-परिचर्चाओं की दिशा को बदलने में G20 की भूमिका को बढ़ा दिया है.

नई दिल्ली G20 लीडर्स डिक्लेरेशन और स्वास्थ्य से संबंधित मुद्दों को लेकर दृष्टिकोण

प्रस्तावना

वर्ष 2008 में जब से G20 समिट की शुरुआत हुई है, उसके बाद से ही दुनिया की प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं के इस समूह के मंच पर विभिन्न मुद्दों पर चर्चा की गई है. लेकिन इन चर्चाओं में सबसे अधिक फोकस आर्थिक मुद्दों से लेकर सामाजिक-आर्थिक एवं पर्यावरण से जुड़े मुद्दों पर रहा है. ज़ाहिर है कि स्वास्थ्य तरक़्क़ी से जुड़ा एक प्रमुख सूचक होता है और इसी वजह से हाल के वर्षो में स्वास्थ्य के मुद्दे पर भी चर्चा बढ़ रही है. जैसा कि चित्र 1 में दर्शाया गया है कि साल-दर-साल में G20 लीडर्स डिक्लेरेशन में किन-किन विषयों पर कितनी चर्चा की गईं और किस मुद्दे को कितनी गंभीरता से लिया गया.

स्वास्थ्य से जुड़े इन विषयों को लेकर जताए गए संकल्पों और ज़मीनी स्तर पर उन्हें अमल में के बीच के अंतर को समाप्त किए जाने की ज़रूरत है, क्योंकि G20 के सदस्य देशों ने वर्ष 2022 तक वैश्विक स्तर पर हेल्थ गवर्नेंस से जुड़े इन संकल्पों में से सिर्फ़ 80 प्रतिशत का ही अनुपालन किया है.

वर्ष 2023 की G20 समिट से पहले भी इस समूह ने स्वास्थ्य से जुड़े तमाम विषयों को लेकर अपनी प्रतिबद्धताओं को ज़ाहिर किया है. इन विषयों में सार्वजनिक स्वास्थ्य और पेंशन योजनाएं, खाद्य सुरक्षा, पोषण, पर्यावरण, एंटी-माइक्रोबियल रजिस्टेंस (AMR), स्वास्थ्य प्रणालियों के निर्माण के लिए टिकाऊ वित्तपोषण तंत्र, डिजिटल हेल्थ और महामारी की रोकथाम, महामारी से निपटने की तैयारी एवं प्रतिक्रिया को सशक्त करने जैसे मुद्दे शामिल थे. हालांकि, स्वास्थ्य से जुड़े इन विषयों को लेकर जताए गए संकल्पों और ज़मीनी स्तर पर उन्हें अमल में के बीच के अंतर को समाप्त किए जाने की ज़रूरत है, क्योंकि G20 के सदस्य देशों ने वर्ष 2022 तक वैश्विक स्तर पर हेल्थ गवर्नेंस से जुड़े इन संकल्पों में से सिर्फ़ 80 प्रतिशत का ही अनुपालन किया है. नई दिल्ली में आयोजित हुए G20 शिखर सम्मेलन के दौरान अफ्रीकी संघ (AU) को स्थाई सदस्यता प्रदान करने के साथ ही इस समूह ने स्वास्थ्य से संबंधित पहलुओं पर फोकस को बेहद ज़रूरी बना दिया है. उल्लेखनीय है कि अफ्रीकी संघ में कई ऐसे देश शामिल हैं, जो व्यापक स्तर पर स्वास्थ्य समस्याओं से जूझ रहे हैं और G20 में AU को शामिल करके दुनिया के कुछ सबसे ग़रीब देशों को समूह से जोड़ गया है.

चित्र 1: G20 समिट्स में चर्चा के लिए शामिल विषयों की तुलनात्मक आवृत्ति

नई दिल्ली G20 डिक्लेरेशन में वर्तमान दौर के प्रमुख मुद्दों पर सभी सदस्य देशों की एक राय देखी गई. इनमें समावेशी विकास, सतत विकास लक्ष्यों (SDGs) की प्रगति में तेज़ी, हरित विकास, बहुपक्षीय संस्थानों में सुधार, टेक्नोलॉजी, अंतर्राष्ट्रीय टैक्सेशन, फाइनेंस, लैंगिक समानता और आतंकवाद का खात्मा जैसे महत्वपूर्ण समसामयिक मुद्दे शामिल थे. नई दिल्ली डिक्लेरेशन में जिस प्रकार से SDGs के एक हिस्से के तौर पर स्वास्थ्य प्रतिबद्धताओं का उल्लेख किया गया है, वे कहीं न कहीं 2021 में रोम और 2022 में बाली में हुई G20 समिट में हुई चर्चाओं को ही दोहराता है. नई दिल्ली डिक्लेरेशन में एंटी-माइक्रोबियल रजिस्टेंस (AMR) का मुक़ाबला करने के लिए “वन हेल्थ” योजना के कार्यान्वयन पर ज़ोर दिया गया है. AMR एक ऐसी परिस्थिति है, जिसमें बैक्टीरिया या वायरस समय के साथ अपना स्वरूप बदलते हैं और उन पर दवाओं को कोई असर नहीं होता है, जिससे संक्रमण का इलाज करना मुश्किल हो जाता है. इसके साथ ही इसमें वन हेल्थ दृष्टिकोण  के अंतर्गत यूनिवर्सल हेल्थ कवरेज (UHC) और मानसिक स्वास्थ्य को बढ़ावा देना, वैक्सीन्स, चिकित्सा विज्ञान और रोगों की पहचान व उपचार का एक समान विस्तार, लचीली स्वास्थ्य प्रणालियों का निर्माण, महामारी का मुक़ाबला करने के लिए पुख़्ता तैयारी और संक्रामक रोगों की निगरानी को प्रोत्साहन देना शामिल है. इसके अलावा, नई दिल्ली डिक्लेरेशन में स्वास्थ्य से जुड़े कुछ ऐसे विषयों फोकस किया गया है, जिन पर शायद पहले उतना ध्यान नहीं दिया गया था. जैसे कि इसमें महिलाओं और बच्चों के स्वास्थ्य एवं पोषण पर अधिक ध्यान केंद्रित करने, डिजिटल हेल्थ को लेकर वैश्विक स्तर पर पहल की स्थापना करने और मादक द्रव्यों के विरुद्ध अतंर्राष्ट्रीय स्तर पर सहयोग को सशक्त करने पर फोकस किया गया है. इतना ही नहीं, नई दिल्ली घोषणा में ज्वाइंट फाइनेंस एंड हेल्थ टास्क  फोर्स (JFHTF) के अंतर्गत वित्त एवं स्वास्थ्य मंत्रालयों के बीच समन्वय बढ़ाने के साथ ही निम्न-मध्यम इनकम वाले देशों (LMICs), कम विकसित देशों और छोटे द्वीपीय देशों एवं विकासशील देशों में बेहतर चिकित्सा  संसाधन उपलब्ध कराने का भी संकल्प जताया गया है.

इसमें महिलाओं और बच्चों के स्वास्थ्य एवं पोषण पर अधिक ध्यान केंद्रित करने, डिजिटल हेल्थ को लेकर वैश्विक स्तर पर पहल की स्थापना करने और मादक द्रव्यों के विरुद्ध अतंर्राष्ट्रीय स्तर पर सहयोग को सशक्त करने पर फोकस किया गया है.

जहां तक स्वास्थ्य-केंद्रित संकल्पों की बात है, तो ये जन सामान्य के कल्याण के लिए लचीली स्वास्थ्य प्रणालियों के निर्माण को प्रोत्साहित करते हैं. लेकिन इतना ही काफ़ी नहीं है, इस दौरान सभी सेक्टरों में नीतिगत पहलों के स्वास्थ्य पहलुओं को समझना भी उतना ही अहम है. ऐसे में ज़ाहिर तौर पर सभी नीतियों में स्वास्थ्य (HiAP) का नज़रिया विभिन्न सेक्टरों से जुड़ी नीतियों के बीच बेहतर तालमेल स्थापित करने की कोशिश करता है, साथ ही नीतियों के औचित्य, उनकी जवाबदेही, पारदर्शिता, जानकारी तक पहुंच, भागीदारी, स्थिरता और सभी के लिए स्वास्थ्य पर सहयोग जैसे विषयों पर फोकस करता है. चित्र 2 में प्रदर्शित किया गया है कि नई दिल्ली G20 लीडर्स डिक्लेरेशन में जताए गए सभी बड़े नीतिगत संकल्पों में एक अंतर-क्षेत्रीय इकाई के रूप में स्वास्थ्य की पड़ताल करने के लिए किस प्रकार से HiAP एक अहम ज़रिया है.

चित्र 2: G20 प्रतिबद्धताओं की एक अंतरक्षेत्रीय इकाई के रूप में स्वास्थ्य

नई दिल्ली G20 समिट की प्रतिबद्धताओं का स्वास्थ्य पहलू

नई दिल्ली G20 घोषणापत्र में जिन प्रमुख बातों का उल्लेख किया गया है, अगर उनका विश्लेषण किया जाए, तो यह पता चलता है कि विभिन्न सेक्टरों में नीतिगत दख़लों का हेल्थ सेक्टर पर ख़ासा असर पड़ता है. उदाहरण के तौर पर G20 द्वारा जिस प्रकार से ठोस, टिकाऊ, संतुलित और समावेशी प्रगति पर ध्यान केंद्रित किया गया है, वो न केवल विभिन्न सामाजिक-आर्थिक समूहों में व्यक्तिगत सुख-समृद्धि बढ़ाता है, बल्कि उनके स्वास्थ्य पर भी सकारात्मक असर डाल सकता है. ज़ाहिर है कि अगर किसी व्यक्ति की इनकम में 10 प्रतिशत की बढ़ोतरी होती है, तो उसके जीवन काल में 2.2 महीने का इज़ाफ़ा हो सकता है. G20 के हरित विकास समझौते की जो प्राथमिकताएं है, वे टिकाऊ भविष्य और हेल्थ सेक्टर के विकास के लिए ज़रूरी हैं. इसका कारण यह है कि स्वास्थ्य पर जलवायु परिवर्तन का बुरा असर पड़ता है और इस असर की प्रत्यक्ष लागत 2030 तक प्रति वर्ष 2-4 बिलियन अमेरिकी डॉलर होने का अनुमान है. ग्रीन डेवलपमेंट एक्शन के एक हिस्से के रूप में ऊर्जा परिवर्तन संकल्प विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की ग्लोबल हेल्थ एंड एनर्जी प्लेटफॉर्म ऑफ एक्शन (HEPA) पहल में भी मददगार साबित हो सकता है. HEPA का मकसद स्वास्थ्य सुरक्षा के लिए स्वच्छ एवं टिकाऊ ऊर्जा की उपलब्धता सुनिश्चित करना है.

G20 समूह की सतत विकास लक्ष्यों को हासिल करने में तीव्रता लाने की कोशिश देखा जाए तो स्वास्थ्य को तमाम दूसरी चिंताओं से, जैसे कि भुखमरी और कुपोषण, ऊर्जा असुरक्षा एवं शिक्षा से जोड़ने का काम करती हैं. बच्चों के बेहतर स्वास्थ्य के लिए भुखमरी और कुपोषण की समस्या से निजात पाना बेहद अहम है, क्योंकि भोजन की कमी होने से बच्चों का स्वास्थ्य बिगड़ने की सबसे अधिक संभावना होती है. ऊर्जा असुरक्षा का मसला निम्न मध्यम आय वाले देशों में हेल्थ केयर सुविधाओं के लिए गंभीर चिंता का मुद्दा रहा है. ज़ाहिर है कि इन देशों में बिजली के समुचित संसाधनों की मौज़ूदगी के बग़ैर लगभग 1 बिलियन लोगों का इलाज किया जा रहा है. स्वास्थ्य पर होने वाले भारी-भरकम ख़र्च को देखते हुए फाइनेंस एवं हेल्थ से जुड़ी नीतियों का एकीकरण बहुत अहम है. उल्लेखनीय है कि स्वास्थ्य पर अपनी गाढ़ी कमाई का बेहिसाब ख़र्च करने की वजह से पूरी दुनिया में 930 मिलियन लोगों के ग़रीबी की चपेट में आने का ख़तरा मंडरा रहा है. स्वास्थ्य एवं शिक्षा का पारस्परिक जुड़ाव भी ज़रूरी है, क्योंकि अगर वयस्क लोग पढ़े-लिखे होते हैं, तो न सिर्फ़ उनका स्वास्थ्य बेहतर रहता है, बल्कि वे लंबे समय तक जीते हैं.

कोविड-19 महामारी के दौरान पूरी दुनिया में स्वास्थ्य सेवाओं के लिहाज़ से जो विकट परिस्थितियां पैदा हुई थीं, उन्होंने स्पष्ट रूप से बताया है कि उन सभी बहुपक्षीय संस्थानों को सशक्त किए जाने की ज़रूरत है, जो वैश्विक स्वास्थ्य संकट के दौरान या तो विफल साबित हुए थे, या फिर उन्होंने काफ़ी देरी से क़दम उठाए थे. विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों (IFIs) द्वारा LMICs को वित्तीय पैकेज दिए जाने के बावज़ूद, इन देशों पर न केवल पहले से चढ़े कर्ज़ से जुड़ी मुश्किलें बढ़ गईं हैं, बल्कि यह वित्तीय प्रावधान वैक्सीन की उपलब्धता से जुड़ी असमानता को दूर करने के लिए भी नाकाफ़ी थे. इस मुद्दे ने इस बात पर बल दिया है कि G20 समूह वैश्विक ऋण से संबंधित परेशानियों का समाधान तलाशने पर ध्यान केंद्रित करे, ताकि स्वास्थ्य पर पड़ने वाले इसके प्रभाव को कम किया जा सके. फाइनेंशियल सेक्टर द्वारा उठाए गए क़दम वित्तपोषण की इस खाई को पाट सकते हैं. इसके लिए एनवायरमेंट, सोशल एवं गवर्नेंस (ESG) निवेश मानकों में एक स्वास्थ्य कंपोनेंट (H) को भी जोड़ा जा सकता है. इससे न सिर्फ़ प्राइवेट प्लेयर्स की भागीदारी को प्रोत्साहन मिलेगा, बल्कि मुख्यधारा के निवेश में स्वास्थ्य को स्थापित करने में भी यह एक अहम भूमिका निभा सकता है. इसके अलावा, अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी टैक्सेशन के कुछ उपायों को अमल में लाया जा सकता है, जैसे कि फैट, शुगर या नमक की अधिकता वाली खाद्य सामग्रियों पर हेल्थ टैक्स लगाया जा सकता है. हंगरी, सेंट विंसेंट और ग्रेनेडाइंस व टोंगा में ऐसा ही किया गया है, ताकि न केवल लोगों के स्वास्थ्य पर नकारात्मक असर पड़ने से रोका जा सके, बल्कि इससे हासिल हुई धनराशि का उपयोग स्वास्थ्य प्रणालियों को विकसित करने के लिए भी किया जा सके.

नई दिल्ली G20 डिक्लेरेशन में टेक्नोलॉजी संबंधी परिवर्तन एवं पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर पहलों को लेकर जो प्रस्ताव दिया गया है, वो हेल्थ इंडस्ट्री के डिजिटलीकरण को तेज़ कर सकता है. ज़ाहिर है कि कोरोना महामारी के बाद से हेल्थ सेक्टर का डिजिटलीकरण एक अनिवार्य ज़रूरत बन गया है. डिजिटलीकरण की यह आवश्यकता हेल्थ केयर में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) से संबंधित विभिन्न एप्लीकेशन्स के उपयोग को भी बढ़ा सकती है, जिसका मूल्य वर्ष 2030 तक 187 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुंचने का अनुमान है. इसके अतिरिक्त, प्राथमिकता के आधार पर लैंगिक समानता को बढ़ावा देने एवं महिलाओं व लड़कियों का सशक्तिकरण करने की नीतियों के अमल पर ध्यान देने से भी स्वास्थ्य पर सकारात्मक असर पड़ सकता है. महिलाओं तक स्वास्थ्य सेवाओं की पहुंच के बीच कई बड़ी बाधाएं हैं. जैसे कि उनके आने-जाने पर तमाम पाबंदियां होना, निर्णय लेने की प्रक्रिया में भागीदारी नहीं होना, भेदभाव और जागरूकता की कमी के चलते महिलाओं को स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंचने में दिक़्क़तें होना आदि, इसलिए, इन बाधाओं को भी दूर किया जाना चाहिए. राजनीति में महिलाओं की भागीदारी बढ़ने से भी शिक्षा, पोषण, स्वास्थ्य और आय जैसे विकास सूचकों में सकारात्मक नतीज़े देखने को मिले हैं.

वैश्विक स्तर पर एक न्यायसंगत, समावेशी, टिकाऊ और लचीली स्वास्थ्य प्रणाली के निर्माण में योगदान देता है. इसके लिए हितधारकों के सुझावों के अनुरूप नीतियां बनाई जा सकती हैं और उन्हें लागू किया जा सकता है.

G20 समूह द्वारा हमेशा सभी प्रकार के आतंकवाद की कठोर निंदा की गई है. इसके साथ ही G20 के सदस्य देश आतंकवाद रोधी प्रभावी उपायों को विकसित करने के लिए वैश्विक सहयोग को बढ़ाने की दिशा में भी कार्य कर रहे हैं. इसके लिए G20 द्वारा समग्र दृष्टिकोण को अपना जा रहा है, जिसमें स्वास्थ्य एवं अन्य महत्वपूर्ण इंफ्रास्ट्रक्चर की सुरक्षा भी शामिल है. इसके अतिरिक्त, अधिक समावेशी विश्व के निर्माण के मकसद से ही G20 समूह में अफ्रीकन यूनियन को भी शामिल किया गया है. G20 समूह में शामिल होने से अफ्रीकी देशों के समक्ष उन क्षेत्रों पर ज़ोरदार तरीक़े से कार्य करने का अवसर उपलब्ध हुआ है, जहां पहले प्रगति बहुत धीमी रही है. इसके साथ ही इसने अफ्रीकी देशों को गैर-पारंपरिक और नए-नए वित्तपोषण तंत्रों के माध्यम से स्वास्थ्य के लिए घरेलू स्तर पर वित्तपोषण को बढ़ावा देने का मौक़ा उपलब्ध कराया है.

आगे की राह

विभिन्न सेक्टरों को लेकर नई दिल्ली G20 डिक्लेरेशन में शामिल किए गए नीतिगत संकल्पों का प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से स्वास्थ्य पर उल्लेखनीय प्रभाव पड़ता है. ऐसे में G20 समूह को विभिन्न सेक्टरों को लेकर अपनी नीतियों का निर्धारण करते समय इस बात को लेकर बेहद सतर्क रहना चाहिए कि कहीं उनमें स्वास्थ्य से संबंधित आवश्यकताओं की अनदेखी न हो. अगर G20 समूह की नीतियों में स्वास्थ्य को प्राथमिकता में रखा जाता है, तो यह निश्चित तौर पर वैश्विक स्तर पर एक न्यायसंगत, समावेशी, टिकाऊ और लचीली स्वास्थ्य प्रणाली के निर्माण में योगदान देता है. इसके लिए हितधारकों के सुझावों के अनुरूप नीतियां बनाई जा सकती हैं और उन्हें लागू किया जा सकता है. ऐसा करने से न केवल G20 सदस्य देशों में स्वास्थ्य सुविधाओं में सुधार हो सकता है, बल्कि समूह द्वारा स्वास्थ्य को लेकर जताई गई प्रतिबद्धता एवं उसे ज़मीनी स्तर पर लागू करने के गैप को भी भरा जा सकता है. निसंदेह तौर पर G20 एक प्रमुख प्लेटफॉर्म है, जो वर्तमान में वैश्विक स्तर पर स्वास्थ्य प्रशासन के क्षेत्र में चल रही चर्चाओं और वित्तीय ज़रूरतों को लेकर चल रहे विचार-विमर्शों को एक दिशा प्रदान कर सकता है. इसके साथ ही G20 वैक्सीन निर्माण इंडस्ट्री में नई जान फूंक सकता है और चिकित्सा विज्ञान एवं उपचार के क्षेत्र में बदलाव ला सकता है. G20 अपने सदस्य देशों एवं अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के बीच व्यापार से संबंधित बौद्धिक संपदा अधिकारों के मुद्दों का समाधान करने में भी मदद कर सकता है.

G20 समूह की एकजुटता एवं प्रासंगिकता के लिए एक के बाद एक होने वाले इसके शिखर सम्मेलनों के बाद सामने आने वाली घोषणाओं में विश्व की बेहतरी के लिए विभिन्न संकल्पों एवं नीतियों को शामिल करने की प्रक्रिया जारी रखना ज़रूरी है. भारत-ब्राज़ील-दक्षिण अफ्रीका (IBSA) तिकड़ी के साथ G20 समूह के अगले अध्यक्ष के रूप में ब्राज़ील को पूर्व में अध्यक्षता करने वाले देशों की तुलना में भविष्य की ज़रूरतों के अनुरूप और सशक्त प्रतिबद्धताओं को प्रकट करना होगा. भारत-ब्राज़ील-दक्षिण अफ्रीका की तिकड़ी को हर हाल में यह सुनिश्चित करना होगा कि कोविड-19 महामारी समाप्त होने के बावज़ूद, पूरी दुनिया में स्वास्थ्य और इससे जुड़ी ज़रूरतों एवं चर्चा-परिचर्चाओं की अनदेखी नहीं की जाए. कुल मिलाकर निष्कर्ष यह है कि भविष्य में किसी भी वैश्विक स्वास्थ्य संकट का समाना करने, उसकी रोकथाम करने और त्वरित प्रतिक्रिया देने के लिए इंटरनेशनल हेल्थ रेगुलेशन (2005) के सुधार पर चर्चा करना; AMR, UHC और पैंडेमिक ट्रीटी का समाधान करने के लिए वन हेल्थ के दृष्टिकोण को अमल में लाना, स्वास्थ्य के लिए धनराशि एकत्र करना और बीमारी के बोझ को कम करना अत्यंत आवश्यक है.


संजय पट्टनशेट्टी, प्रसन्ना स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ में ग्लोबल हेल्थ गवर्नेंस विभाग के प्रमुख हैं और सेंटर फॉर हेल्थ डिप्लोमेसी के कोऑर्डिनेटर  हैं.

अनिरुद्ध इनामदार, प्रसन्ना स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ के सेंटर फॉर हेल्थ डिप्लोमेसी में रिसर्च फेलो हैं.

किरण भट्ट, प्रसन्ना स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ के ग्लोबल हेल्थ विभाग के सेंटर फॉर हेल्थ डिप्लोमेसी में रिसर्च फेलो हैं.

हेल्मुट ब्रांड प्रसन्ना स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ के संस्थापक निदेशक हैं.

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Authors

Aniruddha Inamdar

Aniruddha Inamdar

Aniruddha Inamdar is a Research Fellow at the Centre for Health Diplomacy, Department of Global Health Governance, Prasanna School of Public Health, Manipal Academy of ...

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Helmut Brand

Helmut Brand

Prof. Dr.Helmut Brand is the founding director of Prasanna School of Public Health Manipal Academy of Higher Education (MAHE) Manipal Karnataka India. He is alsoJean ...

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Kiran Bhatt

Kiran Bhatt

Kiran Bhatt is a Research Fellow at the Centre for Health Diplomacy, Department of Global Health Governance, Prasanna School of Public Health, Manipal Academy of ...

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Sanjay Pattanshetty

Sanjay Pattanshetty

Dr. Sanjay M Pattanshetty is Head of theDepartment of Global Health Governance Prasanna School of Public Health Manipal Academy of Higher Education (MAHE) Manipal Karnataka ...

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